बदल रही परिवेश बेटियां,करके अद्भुत काम
विश्व पटल पर आगे आकर,रोशन करती नाम ll
श्रम के बल से जीत रही हैं,स्वर्ण पदक हर बार
निज प्रतिभा से कर जाती हैं, सारी बाधा पार ll
सुरम्य धरती का हर कोना , बेटी से गुलजार
स्नेह भावमय जग को करती,सदा लुटाती प्यार ll
अंगारों पर चलना सीखी , बेटी बनी जुझार
कठिन घड़ी जब भी आती है,जमकर करती वार ll
सीख सको सीखो बेटी से, जीवन का हर सार
दया धर्म समता ममता की ,…
ContinueAdded by डॉ छोटेलाल सिंह on April 11, 2018 at 7:09pm — 6 Comments
ग़ज़ल(डर लग रहा है तेवरे दिलदार देख कर )
(मफ ऊल-फाइलात-मफाईल-फाइलुन/फाइलात)
इक़रार में छुपा हुआ इनकार देख कर।
डर लग रहा है तेवरे दिलदार देख कर ।
जो आरज़ूए दीद थी काफूर हो गई
रुख़ पर पड़ी निक़ाब की दीवार देख कर ।
दिल की ख़ता है और निशाना जिगर पे है
तीरे नज़र चलाइए सरकार देख कर ।
अगला निशाना तू ही है दहशत पसन्द का
हँस ले तू ख़ूब घर मेरा मिस्मार देख कर ।
शायद बना लिया गया फिर…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on April 11, 2018 at 4:39pm — 23 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on April 11, 2018 at 4:06am — 11 Comments
221 2121 1221 212
जिस दिन वो मुझसे प्यार का इजहार कर दिया ।
इस जिंदगी को और भी दुस्वार कर दिया ।।
चिंगारियों से खेलने पे कुछ सबक मिला ।
घर को जला के मैंने भी अंगार कर दिया ।।
उठने लगीं हैं उंगलियां उस पर हजार बार ।
मुझको वो जब से हुस्न का हकदार कर दिया ।।
शायद पड़ी दरार है रिश्तों की नींव में ।
किसने दिलों के बीच मे दीवार कर दिया ।।
मांगा था मैंने एक तबस्सुम भरी नज़र…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on April 11, 2018 at 12:05am — 13 Comments
आज फिर ....
नहीं जला
चूल्हा
उसके घर
आज फिर
घर से निकला
उदासी में लिपटा
काम की तलाश में
एक साया
आज फिर
लौट आया
रोज की तरह
खाली हाथ
आज फिर
पेट में
क्षुधा की ज्वाला
सड़क पर
काम की ज्वाला
नौकरियों में
आरक्षण की ज्वाला
ज्ञान गौण
प्रश्न मौन
उलझन ही उलझन
माथे पर
चिंताओं को समेंटे
यथार्थ से निराकृत
खाली हाथ
लौट आया
आज…
Added by Sushil Sarna on April 10, 2018 at 8:13pm — 10 Comments
Added by Tariq Azeem Tanha on April 9, 2018 at 11:37pm — 3 Comments
जज़्बात
(अतुकांत)
हर फ़ल्सफ़: यूँ बयाँ न ही हो तो अच्छा
शबे-वस्ल हमेशा मीठी तो नहीं होती
रात-अँधेरे जब नींद ओझल हो आँखो से
चले आते हैं मेरे ही फ़ल्सफ़े डसने मुझको
मेरा कहा आज कलामे मुस्तदाम न सही
या अल्फ़ाज़ मेरे चरागे आस्मानी न सही
जानता हूँ सोचेगा कर्दगार खुदा ही कभी
क़लमदस्त का कलाम ऐसा बुरा तो न था
रहमत होगी तब खुदा की, बुलाएगा मुझ्रे
रिहाइश के वास्ते…
ContinueAdded by vijay nikore on April 9, 2018 at 3:51pm — 14 Comments
२२/२२/२२/२२/२२/२२/२२/२
.
ख़ुद को क़िस्सा-गो समझे है हर क़िरदार कहानी में
क़तरा ख़ुद को माने समुन्दर जाने किस नादानी में.
.
कैसा हिटलर कौन हलाकू, साहिब गर्मी काहे की
इक दिन सब को जाना है इतिहास की कूड़े दानी में.
.
तैर नहीं सकते थे माना लेकिन चल तो सकते थे
डूब मरे हैं कुछ बेचारे टखनों से कम पानी में.
.
जादू का इक झूठा कपड़ा पहने फिरते हैं साहिब
और ठगों की पौ-बारह है उनकी इस उर्यानी में.
.
पहले जिस के लफ्ज़ लबों के पार न…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 9, 2018 at 12:30pm — 35 Comments
स्वप्न मनभावन हृदय में,
रात-दिन पलता रहा.
गीत पग-पग साथ मेरे,
हर समय चलता रहा
पीर लिख कर कागजों में
रोज दिल अपना दुखाया.
प्रेम के दो शब्द लिखकर,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on April 9, 2018 at 10:00am — 10 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on April 9, 2018 at 4:54am — 11 Comments
मानवता की मौत -- लघुकथा –
दिल्ली की ब्लू लाइन बस में आश्रम से सफ़दरगंज अस्पताल जाने के लिये एक बूढ़ी देहाती औरत अपने साथ एक जवान गर्भवती स्त्री को लेकर चढ़ रही थी।
"अरे अम्मा जी, बस में पैर रखने को जगह नहीं है। इस बाई की हालत भी ऐसी है कि ये खड़ी भी न हो पायेगी। कोई और सवारी देख लो"? बस कंडक्टर ने सुझाव दिया|
"एक घंटो हो गयो, खड़े खड़े। लाड़ी के दर्द शुरू हो गये। अस्पताल पहुंचनो जरूरी है| सारी सवारी गाड़ियों की हड़ताल है, सरकार ने पेट्रोल के दाम बढ़ा दिये, इसलिये| घनी मजबूरी है…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on April 8, 2018 at 8:02pm — 12 Comments
221 - - 2121 - - 1221 - - 212
तृष्णाओं के भँवर में फँसा बद-हवास था
सब कुछ था मेरे पास मगर मैं उदास था
जीवन के मयकदे में कुछ हालत थी यूँ मेरी
होंठों पे प्यास हाथ में खाली गिलास था
हर आदमी के ज़ेह्न में रक़्साँ थी बेकली
दुनियावी ख़्वाहिशात का हर कोई दास था
आह्वान बंद का था सियासत के नाम पर
होगा नहीं वबाल फ़क़त इक क़यास था
भगवे हरे में बँट गया फिर शह्रे-दुश्मनी
चारों तरफ़ इक आलमे-ख़ौफ़ो-हिरास था
तूफ़ाँ में रात जिसका सफ़ीना बचा…
ContinueAdded by दिनेश कुमार on April 8, 2018 at 6:25pm — 12 Comments
122 122 122 122
गम-ए-दिल उठाऊँ,अज़ीमत नहीं है
मगर बच निकलने की सूरत नहीं है
सुनो बख़्श दो मुझको वादों वफ़ा से
यहाँ अब किसी की जरुरत नहीं है
परेशां रहा हूँ मैं अहल-ए-सितम से
तुम्हारी भी क़ुर्बत की नीयत नहीं है
ओ महताब तू है तो ग़ज़लें हैं रौशन
वगरना सुख़नवर की अज़्मत नहीं है
सरेआम 'ब्रज' की ग़ज़ल गुनगुनाना
ये है और क्या गर मुहब्बत नहीं है
अज़ीमत-इरादा
अहल-ए-सितम-तानाशाह…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 8, 2018 at 1:30pm — 20 Comments
"कितनी बार कहा कि ऐसी पवित्र धार्मिक जगहों पर मंद-मंद मुस्कराया मत करो!" रामदीन को कोहनी मारते हुए उसके दोस्त ने कहा - " यहां चलते-फिरते सीसीटीवी कैमरे भी हैं! स्टिंग ऑपरेशन तक हो सकते हैं, समझे!"
"कितने दर्शन और करने होंगे! इस सदी में भी यहां ये कस्टम-सिस्टम! .. और कहां-कहां जाना पड़ेगा!" बड़ी बेचैनी के साथ धार्मिक औपचारिकताएं निभाते हुए रामदीन ने धीरे से कहा।
"आदत डाल ही लो! बड़े नेता के बेटे हो! अब जीवन में यही करना होगा!" - रामदीन के माथे से पसीने की बूंदें अपने…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on April 8, 2018 at 10:17am — 11 Comments
121 22 121 22
...
ज़ुदा हुआ पर सज़ा नहीं है,
न ये समझना ख़ुदा नहीं है ।
ज़रा सा नादाँ है इश्क़ में वो,
सबक़ वफ़ा का पढ़ा नहीं है'
दिखाऊँ कैसे वो दिल के अरमाँ ,
चराग दिल का जला नहीं है ।
है दर्द गम का सफर में अब तक,
कि अश्क़ अब तक गिरा नहीं है ।
न वो ही भूले ये दिल दुखाना,
यहाँ अना भी खुदा नहीं है ।
न देना मुझको ये ज़ह्र कोई,
हुनर तो है पर नया नहीं है ।
लिपट जा…
ContinueAdded by Harash Mahajan on April 8, 2018 at 9:30am — 16 Comments
अनकही ख़ामोशियाँ
बहुत कुछ कहती है
उनका शोर बहुत दूर तक सुनाई देता है
उन ख़ामोशियों की ज़मीन पे
बीज अंकुरित होते हैं
बहुत कुछ कहने के
मगर अनकही ख़ामोशियाँ
ख़ामोश बनकर रह जाती है
जैसे हड़ताल की अधूरी रह जाती है माँगें
जो कभी पूरी नहीं होती है
और माँगें हड़ताल को चलाती है
अतीत की स्मृतियों को भी
दबाती है अनकही ख़ामोशियाँ
धीरे-धीरे अनकही ख़ामोशियाँ
कब भीतर की तपिश बन जाती है
पता ही नहीं चलता है
यह तपिश
लावा बनकर फूट पड़ती है…
Added by Mohammed Arif on April 8, 2018 at 9:06am — 12 Comments
आलमे खयाल
(अतुकांत)
शाम बैठी रही हो कर तैयार वह दुलहन-सी
उदास.. मुन्तज़िर थी वह आज भी इश्क की
ज़रूर निराला ही होगा यह आलमे तसव्वुर
दर पर हाँ एक हल्की-सी दस्तक तो हुई थी…
ContinueAdded by vijay nikore on April 8, 2018 at 7:59am — 11 Comments
बह्र:- 2122-2122-2122-212
एक तरफ़ा हो नहीं सकता कोई भी फैसला।।
दर्द दोनों ओर देगा ये सफर ये रास्ता।।
अब रकीबत का असर आया है रिस्ते में मेरे।
दरमियाँ अब दिख रहा है दूरियां और फासला।
बीज रिश्ता ,फासले के आज कल बोने लगा ।
अब फसल नफरत की पैदा खेत में वो कर रहा।।
लाख समझाया मगर उनको समझ आया नहीं।
दम मुहब्बत तोड़ देगी, गर नहीं होंगे फ़ना।।
बस जरा सा मुस्कुराकर कर दिया हल मुश्किलें।
फर्क अब पड़ता नहीं ,मैं…
Added by amod shrivastav (bindouri) on April 7, 2018 at 10:53pm — 10 Comments
"लगता है कि अभी भी यह उड़ना नहीं सीख पायी।"
"अरे नहीं! दरअसल वह उड़ना भूल चुकी है बुरे तज़ुर्बों से !" - नई सदी की हैरान, परेशान नवयौवना को घर की छत पर अनिर्णय की स्थिति में देख उसके इर्द-गिर्द हवा में उड़ते एक गिद्ध ने अपने साथी कौवे से कहा। कौवा उस गिद्ध को घूरने सा लगा।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by Sheikh Shahzad Usmani on April 7, 2018 at 10:07pm — 16 Comments
हो सके तो वन बचा लो
दे रहे जीवन सभी को,
खेत, वन, उपवन सजा लो.
हैं जरूरी जिन्दगी को,
हो सके तो वन बचा लो.
हो चुके हैं, मत करो इन,
पर्वतों को और…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on April 7, 2018 at 8:30pm — 18 Comments
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