"बेटा जी आज दूरबीन से इतनी देर से आसमान में क्या ढूंढ रहे हो।"
"पापा जिस तेजी से प्रदूषण फैल रहा है, जल्दी ही पृथ्वी पर प्रलय आ सकती है। इसलिए मैं यह देख रही थी कि क्या कोई और ग्रह हमारी पृथ्वी जैसा है जहाँ हम भविष्य में रह सके।"
(मौलिक और अप्रकाशित)
Added by neha agarwal on April 17, 2015 at 12:00pm — 18 Comments
समाचार - पत्र
प्रात:
नित्य क्रिया से निव्रुत्ति होकर
चींखती- सुप्रभात....!
आँंगन में फड़फड़ा कर गिरता
समाचार-पत्र
सुबुकता, कराहता, आहें भरता
दुर्भिक्षों सा
कातर दृष्टि में अपेक्षा के स्वर
आशा, सहयोग, सद्भावना...
किन्तु, सर्वथा.....अर्थ हीन
उपेक्षा का भाव...
सुरसा सा आकार लेता.
घायलों का अधिक रक्त स्राव
प्राण तक छीन लेती
क्षण भर की देरी
मंजिल के पास ही -
चौराहों की लाल बत्ती…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 17, 2015 at 9:47am — 4 Comments
हार जाने के डर से छिपाये हुये तर्क
*******************************
कोरी बातों से या आधे अधूरे समर्पण से
किसी भी परिवर्तन की आशायें व्यर्थ है
जब तक आत्मसमर्पण न कर दें आप
तमाम अपने छुपाये हुये हथियारों के साथ
अंदर तक कंगाल हो के
सद्यः पैदा हुये बालक जैसे , नंगा, निरीह और सरल हो के
सत्य के सामने या
वांछित बदलाव के सामने
आपके सारे अब तक के अर्जित ज्ञान ही तो
हथियार हैं आपके
वही तो सुझाते हैं आपको…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on April 17, 2015 at 9:00am — 23 Comments
२१२२/२१२२
आँख से उतरा नहीं है
बस!! कोई रिश्ता नहीं है.
हम पुराने हो चले हैं
आईना रूठा नहीं है.
मुस्कुराहट भी पहन ली
ग़म मगर छुपता नहीं है.
साथ ख़ुशबू है तुम्हारी …
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 16, 2015 at 10:42pm — 20 Comments
ग़ज़ल / रचना पूर्व प्रकाशित होने के कारण एवं ओ बी ओ नियमों के अनुपालन के क्रम में प्रबंधन स्तर से हटाई जा रही है.
एडमिन
2014041907
Added by Abhay Kant Jha Deepraaj on April 16, 2015 at 9:00pm — 2 Comments
“मास्टर साहब तनिक मेरे छोटका बेटा को समझाइये न, गलत संगत में पड़ वह अपनी जिन्दगी और खानदान का नाम... दोनों बर्बाद कर रहा है.”
मास्टर साहब को चुप देख प्रधान जी पुनः बोल पड़े.
“आप तो उसे ऊँगली पकड़ कर चलना सिखाये हैं आप की बात वो जरुर मानेगा.”
“प्रधान जी आपके कहने से पहले ही मैंने सोचा था कि उसे समझाऊं किन्तु ...”
किन्तु क्या मास्टर साहब ?
"प्रधान जी क्षमा चाहूँगा किन्तु कीचड़ से सनी उसकी जूती तथा अपना उजला लिबास देख उसे समझाने का साहस मैं नहीं जुटा…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 16, 2015 at 5:21pm — 18 Comments
लगाये आँख में लाली सुबह वो पास आती है
दिखा कर पाँव के कंगना खुशी से मुस्कुराती है।
कहे कैसी सजी हूँ मैं लगा कर मॉंग में काजल
तुम्हें मैं प्यार करती हूँ समझना मत मुझे पागल
लगाती नाक पर बिन्दियॉं अदा उसकी निराली है
जला कर दिन में वो दीपक कहे मुझसे दिवाली है
बजा कर हाथ की पायल मुझे हरदम सताती है
दिखा कर पाँव के कंगना खुशी से मुस्कुराती है।
लगाये आँख में लाली सुबह वो पास आती है
न पूछो बात तुम उसकी बड़ी सीधी बड़ी न्यारी …
Added by Akhand Gahmari on April 16, 2015 at 4:30pm — 2 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२२ २२१२
तेरी महफ़िल के दिवाने को सनम और कोई महफ़िल भाती नही
तू जिसे जलवा दिखा दे,उसको अपनी याद भी फिर आती नही
***
तेरी मस्ती में मै हूँ सरमस्त,मस्तों के कलन्दर भोले पिया
तेरी मूरत यूँ छपी दिल में के,सूरत कोई दिल छू पाती नही
***
यूँ जिया में है भरी झंकार के,धड़कन मेरी पायल बन गयीं
मन थिरकता वरना क्यूँ ऐसे,मिलन के गीत सांसें गाती नही
****
आफताबो-माहताबो-कहकशां रौशन हैं तेरे ही नूर से
इश्क़ बिन तेरे,न टरता कण…
Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 16, 2015 at 9:00am — 12 Comments
पापा आवारा किसे कहते हैं ? चार साल के बिट्टू के इस प्रश्न पर मैं थोडा चौंका , फिर गोद में लेकर प्यार से उसके सर पर हाथ फेर कर बोला, बेटा आवारा उसे कहते हैं जिसका कोई नहीं होता, जो व्यर्थ गली-गली घूमता है ! ...तो ..पापा क्या दादा जी का कोई नहीं है... ? जो मम्मी रोज कहती है ....इस उम्र में भी भटकता रहता है आवारा जैसा ....शाम को भोजन के वक्त घर याद आता है ..............
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
राजू आहूजा
Added by rajkumarahuja on April 16, 2015 at 12:30am — 10 Comments
आज फिर से बादल , मौसम को ई का हो गया है , रामदीन सोच में डूब गया | आधे से ज्यादी फसल तो पहले ही चौपट हो गयी है , ऊपर से अगर घाम न हुआ तो पकेगी कैसे बची खुची फसल | कुछ समझ नहीं आ रहा था उसको | थोड़ी देर बाद वो उठा और कुम्हार टोला की ओर निकल गया | वहां रघू भी अपने सर पर हाँथ रख कर बैठा था , उसे देखते ही बोला " अरे ई मौसम को का हो गवा है , एकदम समझ नहीं आवत है एकर मिज़ाज़ | बर्तन तो तैयार ही नहीं हो पावत हैं , कइसे दो जून की रोटी का इंतज़ाम होई "|
कोई जवाब नहीं था उसके पास , चुपचाप उठा और…
ContinueAdded by विनय कुमार on April 15, 2015 at 11:21pm — 10 Comments
बदलने को बदल जाना, मगर तहजीब जिंदा रख
हवा के साथ ढल जाना, मगर तहजीब जिंदा रख
यहाँ रंगीन होती रोशनी है कौंधने वाली
खुशी के साथ जल जाना, मगर तहजीब जिंदा रख
हमारे आम पर यह कूकती कोयल बताती है
नये मौसम मचल जाना, मगर तहजीब जिंदा रख
हमारे नौजवानों की नई पीढी, नये रिश्ते
नशे में खुद को छल जाना मगर तहजीब जिंदा रख
महब्बत के लिये तो लाख पापड बेलने होंगे
महब्बत में उछल जाना मगर तहजीब जिंदा रख
बदलना भी जमाने का बडा हैरान करता है
बहुत आगे निकल जाना…
Added by सूबे सिंह सुजान on April 15, 2015 at 10:30pm — 10 Comments
“आपकी लड़की हमको बहुत पसंद है !”
“ बहुत –बहुत शुक्रिया आप दोनों का !”
“ बस बहन जी, थोडा लेन- देन की बात भी...!”
“हाँ-हाँ क्यों नहीं, भाई-साहब, बहन जी बताइये- बताइये ?”
“ अरे आप तो जानती हीं हैं आजकल का चलन, और फिर मेरा लड़का अच्छा खासा सरकारी इंजीनीयर है , कम से कम ४० लाख नकद और एक गाडी तो बनती ही है !” …
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on April 15, 2015 at 9:43pm — 10 Comments
खुशी जो हमने बांटी गम कम तो हुआ
हुए बीमार भार तन का कम तो हुआ
माँगी जो हमने कीमत मिली हमें दुआ
उनके बजट का भार कुछ कम तो हुआ
मरहूम हो गए दुःख सहे नही गए
उनके सितम का भार कुछ कम तो हुआ
माना कि मेरे मौला है नाराज इस वकत
फक्र जिनपे था भरोसा कम तो हुआ
मालूम था उन्हें हमसे हैं वो मगर
उनकी नजर में एक ‘मत’ कम तो हुआ
अन्नदाता बार बार कहते है जनाब
भूमि का भागीदार एक कम तो हुआ
(मौलिक व अप्रकाशित)
मैंने गजल…
ContinueAdded by JAWAHAR LAL SINGH on April 15, 2015 at 8:00pm — 15 Comments
इतनी मुश्किल से तो बेठने की जगह मिली, ऊपर से गाड़ी लेट ! उस पर साथ मे पहले से बेठा आवारा सा लड़का जो लगातार उसे घूरता ही जा रहा है ! और वो गुस्से मे अनदेखा करके थोड़ा पीछे हटकर मुह घुमाकर बेठ गयी I अचानक पड़ा लिखा सुदर्शन युवा बीच के थोड़ी से स्थान मे फस कर बेठ गया, और लड़की अचानक आवारा लड़के से बोल पड़ी,
"भैया गाड़ी लेट क्यूँ हो गयी ?"!
मोलिक अपकाशित
Added by aman kumar on April 15, 2015 at 5:00pm — 15 Comments
"कुछ सिखाओं अपनी माँ को | शहर में रहते पच्चीसों साल हो गये पर रही गंवार की गंवार |"
" बड़े साहब कितनी बार कहें बैठ जाओ पर ये बैठी नहीं |"
"कइसे बैठती जी, वो 'पैताने' बैठने को कहत रहा | "...सविता मिश्रा
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by savitamishra on April 15, 2015 at 4:30pm — 29 Comments
सरगम भरता, कल-कल करता,
झर-झर झरता निर्झर सस्वर I
तम को छलता, पग-पग चलता,
धक्-धक् जलता सूरज सत्वर II
सन-सन बहता, गुम-सुम रहता,
क्या-कुछ कहता रह-रह मारुत I…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 15, 2015 at 4:30pm — 20 Comments
(१). बदरंग संवेदनाएँ
"घोषणा करवा दो कि कल हम पूरा दिन अन्न-जल ग्रहण नहीं करेंगे।"
"क्यों नेता जी ? कल तो कोई व्रत उपवास भी नहीं है।"
"अरे कल अम्बेदकर जयंती है न, पता नहीं किस किस बस्ती में जाना पड़ जाए ।"
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(२). सफ़ेद साँप
"आज तो स्पेशल जश्न होना चाहिए।"
"तो भेजें किसी को दारू सिक्का लाने ?"
"दारू सिक्के के साथ साथ मेरे लिए नत्थू की लौंडिया पकड़ कर…
Added by योगराज प्रभाकर on April 15, 2015 at 4:00pm — 17 Comments
Added by Samar kabeer on April 15, 2015 at 11:28am — 13 Comments
जवानी की दहलीज़ पार कर चुकी विनीता ने फिर से लड़के वालों के आने की खबर सुनते ही अपने घर जाने के अरमानों को संजों लिया. अपनी माँ के खटिया पकड़ने के बाद, उसे अपने पिता समान बड़े भाई और माँ के दर्जे वाली भाभी से ही आशायें बंधी हुई है. आज फिर एक कुलीन परिवार का लड़का, अपनी सहमती जताकर लौट गया. मेहमानों के लौटते ही भाभी ने विनीता से कहा..
“बिन्नो!! मैं ऑफिस के लिए बहुत लेट हो गई हूँ. तुम बच्चों को तैयार कर स्कूल भिजवा देना, माँ जी का कमरा और कपडे देख लेना और सुनो.. मैं तुम्हारे लिए आज…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on April 15, 2015 at 10:30am — 20 Comments
22-22-22-22-22-2 जो रह-रहकर इस सीने में उठता है |
तेरा मेरा दर्द पुराना किस्सा है |
|
उनकी आँखों से उतरे हर आँसू से |
ग़ज़लों को भी गीला होते देखा है… |
Added by मिथिलेश वामनकर on April 15, 2015 at 10:30am — 17 Comments
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