बन्द कर दो सितम अब खुदा के लिये
जुल्म कितना करोगे अना के लिये
कत्ल करदे मगर यूँ न बदनाम कर
हाथ उठने लगे हैं दुआ के लिये
इस कदर मुफलिसी दे न मेरे खुदा
पास पैसे न हों जब दवा के लिये
चींखती रह गयी बेगुनाही मेरी
है गुनाह भी जरूरी सजा के लिये
बाद जाने के तेरे बचा कुछ नहीं
जी रहा हूँ फ़कत मैं क़जा के लिये
पत्थरों के शहर में हुआ हादसा
मर गया इश्क देखो व़फा के लिये
उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित…
Added by umesh katara on May 3, 2015 at 9:00am — 10 Comments
“क्या कहा शाम को छुट्टी दे दूँ ? रूपा क्या कह रही हो तुम्हे अच्छे से पता है आज हमारी वेडिंग एनिवर्सरी की पार्टी है ऐसे में तुम्हे छुट्टी ? चुपचाप शाम को तुम दोनों ढंग के कपड़े पहन के आना बहुत लोग आयेंगे, दीपू बाहर सर्व करने में हाथ बटाएगा” सोनिया थोड़ा गुस्से से बोली|
“वो क्या है न मेमसाब जी,आज हमे पिक्चर जाना था आज हम दोनों की भी” ...रूपा ने बीच में ही दीपू के मुख पर हाथ धर दिया और बात काट कर बोली “जी मेमसाब हम आ जायेंगे”|
उसकी आँखों में झिलमिलाये आँसू मेमसाहब और दीपू से छुपे…
ContinueAdded by rajesh kumari on May 3, 2015 at 8:21am — 32 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२२
तुमको पत्थर में नहीं मूरत दिखाई दे रही है
नदियों की कल कल न बांधों में सुनायी दे रही है
कोई भी इल्जाम मैंने तो लगाया था नहीं फिर
वो हंसी गुल जाने क्यूँ इतनी सफाई दे रही है
चीख बस बच्चों कि ही तुमको सुनायी देती है क्यूँ
ये न देखा लाडले को माँ दवाई दे रही है
एक रोटी के लिए तरसा दिया उस माँ को तुमने
जो गृहस्ती ज़िंदगी भर की बनायी दे रही है
काम दुनिया में…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on May 2, 2015 at 10:30pm — 14 Comments
२१२/ २१२/ २१२/ २१२// २१२/ २१२/ २१२/ २१२
हर तरफ भागती दौडती ज़िन्दगी बेसबब घूमती इक घड़ी की तरह
हमसफ़र है वही और राहें वही, मंज़िले हैं मगर अजनबी की तरह.
.
आज के बीज से उगते कल के लिए मुझ को जाना पड़ेगा तुम्हे छोड़कर
तुम भी गुमसुम सी हो मैं भी ख़ामोश हूँ लम्हा लम्हा लगे है सदी की तरह
.
श्याम की संगिनी बाँसुरी ही रही, प्रीत की रीत भी आज तक है यही
कर्म की राह ने प्रेम को तज दिया, राधिका रह गयी बावरी की तरह.
.
ये अलग बात है उनसे बिछड़े हुए…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 2, 2015 at 10:00pm — 36 Comments
बह्र : १२२२ १२२२ १२२२ १२२२
अमीरी बेवफ़ा मौका मिले तो छोड़ जाती है
गरीबी ही सदा हमको कलेजे से लगाती है
भरा हो पेट जिसका ठूँस कर उसको खिलाती पर
जो भूखा हो अमीरी भी उसे भूखा सुलाती है
अमीरी का दिवाला भर निकलता है सदा लेकिन
गरीबी कर्ज़ से लड़ने में जान अपनी गँवाती है
अमीरी छू के इंसाँ को बना देती है पत्थर सा
गरीबी पत्थरों को गढ़ उन्हें रब सा बनाती है
ये दोनों एक माँ की बेटियाँ हैं इसलिए…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 2, 2015 at 4:13pm — 18 Comments
उस तंग कमरे में ,सालों से बीमार चल रहा हरिया रोज मृत्यु की कामना किया करता था I पड़ा पड़ा कभी बहू कभी बेटा ,नाती पोतों को मिलने की गुहार लगाता रहता I उसके जर्जर ,क्षीण होती काया सबके लिए दुखदायी होती जा रही थी ,स्वयं उसके लिए भी I आखिर कार मृत्यु को उस पर दया आ ही गयी ,आ गयी उसको एक दिन लिवा जाने !! लेकिन यह क्या ? दिन रात मृत्यु की कामना करने वाला हरिया ,साक्षात उसे सामने देख गिड़गिड़ाया -" तनिक छोटका बिटवा को देख लेने दियो ,फिर चलत हैं " I
मृत्यु भी मुस्कुरा पड़ी पल भर को -' सच !! जीवन…
ContinueAdded by meena pandey on May 2, 2015 at 3:00pm — 11 Comments
Added by मनोज अहसास on May 2, 2015 at 2:00pm — 10 Comments
२ १ २ २
इश्क क्या है?
इक दुआ है
दिल इबादत
कर रहा है
अपना अपना
कायदा है
पत्थरों में
भी खुदा है
कौन किसका
हो सका है
नाम की ही
सब वफा है
बस मुहब्बत
आसरा है
बिन पिये दिल
झूमता है
आँख उसकी
मैकदा है
फूल कोई
खिल रहा है
कातिलाना
हर अदा…
ContinueAdded by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 2, 2015 at 11:30am — 39 Comments
Added by Samar kabeer on May 2, 2015 at 10:31am — 24 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on May 2, 2015 at 10:09am — 20 Comments
चाहा है तुमने मुझे हर रंग में, हर रूप में ।
साथ दिया है तुमने हर छाँव में, हर धूप में ।
सोचती हूँ लेकिन कभी यूँ ही बैठकर , ..
जब जिंदगी की गोधूली बेला आएगी,
चेहरे पर झुर्रियां और बालो में सफ़ेदी छायेगी,
जब मेरे अधर न होंगे गुलाबों जैसे,
आँखें न होंगी गहरी झील जैसी ,
क्या तुम तब भी इन आँखों में खो जाओगे?
क्या अधरों पर प्रेम चिन्ह दे पाओगे ?
क्या कई दिनों से उलझी जुल्फों को सुलझा पाओगे ?
सोचती हूँ बस यूँ ही…
Added by Mala Jha on May 2, 2015 at 9:30am — 5 Comments
२१२२/१२१२/२२ (११२)
याद हम को तभी ख़ुदा आया
जब कोई सख्त मरहला आया
.
उम्र भर सोचते रहे तुझ को
अब कहीं जा के सोचना आया
.
और करता भी क्या उसे रखकर
साथ ख़त ही के, दिल बहा आया.
.
डूबने कब दिया अनाओं ने
तर्क करते ही डूबना आया.
.
चाहता था सँवरना ताजमहल
मैं वहाँ आईना लगा आया.
.
तू उफ़क़ अपना देख ले आकर
मैं तेरा आसमां झुका आया.
.
सोचता है अगरचे कब्र में है
‘नूर’ दुनिया में ख़्वाह-मख़ाह…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 2, 2015 at 8:00am — 25 Comments
1222/1222/1222/1222
मेरे दिल के हर इक कोने से पोशीदा अलम निकले
सो जो अल्फ़ाज़ निकले दिल से बाहर वो भी नम निकले
गुजश्ता* वक्त का कोई निशाँ बाकी नहीं लेकिन *गुज़रा हुआ
उसी की जुस्तजू में दिल से खूँ ही दम ब दम निकले
किया जिस वास्ते किस्मत से शिकवा मैंने ऐ ग़मख़्वार
हकीकत में वो सारे ज़ख्म तो तेरे सितम निकले
किसी खूँख्वार* को मतलब नहीं ईमानो दीं से…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on May 1, 2015 at 11:30pm — 48 Comments
" राहुल अभी आकर सोफे पर बैठा ही था कि उसके पापा भीतर से बाहर आये I
" बड़ी देर कर दी बेटा आने में आज !! सब ठीक है न !! "
" पापा आप चाहते थे न कि मैं शादी कर लूँ , मैं इस लड़की से शादी करना चाहता हूँ " उसने अपने मोबाइल में उसका फोटो दिखाते हुए कहा I
" ये साँवली सी साधारण लड़की !! कहाँ तुम , कहाँ ये !! कहाँ मिली तुम्हे ये ? और ये इसके साथ कौन है ? " एक साथ ढेरो सवाल पूछ लिए उसके पिता ने I
" पापा ,इसका साँवला और साधारणपन भले ही दुनियावी खूबसूरती के मापदंड पर खरा न उतरे ,पर…
Added by meena pandey on May 1, 2015 at 11:30pm — 15 Comments
"माननीय न्यायाधीश महोदय, मेरे बाहर जाने का फायदा उठा कर, मेरे छोटे भाई ने घर के बीच की दीवार बनाते समय मेरी तरफ छः इंच ज्यादा खींच ली, और मेरे भाग पर कब्ज़ा कर लिया|"
"नहीं आदरणीय महोदय, जो स्थान मैनें लिया, उस पर मेरा ही अधिकार है|"
"यह दीवार कब बनायी गयी?" न्यायाधीश महोदय ने पूछा
"एक माह पूर्व हमारे पिताजी की मृत्यु के कुछ दिनों के…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on May 1, 2015 at 9:30pm — 10 Comments
-नहीं।
-क्यों?
-डरती हूँ,कुछ इधर-उधर न हो जाए।
-अब डर कैसा?बहुत सारी दवाएँ आ गयी हैं,वैसे भी हम शादी करनेवाले हैं न।
-कब तक?
-अगले छः माह में।
-लगता है जल्दी में हो।
-क्यों?
-क्योंकि बाकि सब तो साल-सालभर कहते रहे अबतक।
लड़के की पकड़ ढीली पड़ गयी।दोनों एक-दूसरे को देखने लगे। फिर लड़की ने टोका
-क्यों,क्या हुआ?तेरे साथ ऐसा पहली बार हुआ है क्या?
'मौलिक व अप्रकाशित' @मनन
Added by Manan Kumar singh on May 1, 2015 at 8:30pm — 12 Comments
आवश्यकता नहीं ‘खबर’ अब
है मनोरंजन
ओढ़ चुनरिया गाँव गाँव
कूल्हे मटकाती
चिंता चिंतन झोंक भाड़ में
मन बहलाती
शर्त मगर
नाचेगी बैरन
बस तब तक ही
पैरों पर जब तक सिक्कों की
है खन खन खन
कुशल अदाकारों के
जैसी रंग बदलती
मौसम जैसा हो वैसे ही
रोती हँसती
धता बताती घोषित कर
कठहुज्जत जिसको
निमिष मात्रा मे ही
करती उसका…
ContinueAdded by seema agrawal on May 1, 2015 at 8:00pm — 9 Comments
“हैलो! क्या चल रहा है ?”
“सर! अभी प्रमुख नेताओं का भाषण बाकी है, लगता है लम्बा चलेगा । भीड़ भी काफी है।“
"ओके!"
“हैलो! , सर ! मंच के ठीक सामने कुछ दूरी पर एक पेड़ है, उस पर एक आदमी फांसी लगाने की कोशिश कर रहा है।“
“अरे! “सोच क्या रहे हो ? , कैमरा घुमाओ उसकी तरफ !, फोकस करो! , हिलना भी मत जबतक................!”
मौलिक व अप्रकाशित
Added by MAHIMA SHREE on May 1, 2015 at 7:02pm — 20 Comments
एक सर्प ने समझ मूषिका
ज्यों पकड़ा एक छछुंदर को
उसी समय एक मोर झपट
कर दिया चोंच उस विषधर को |
फिर मोर भी हुआ धराशायी
घायल जो किया व्याध-शर ने
पर व्याध निकट जैसे पहुँचा
डस लिया व्याध को फणधर ने |
शेष रही बस छद्म-सुन्दरी
सृष्टि-रूप धर जीवन-थल पर
और सभी अंधे हो-होकर
नियति-भक्ष बन गए परस्पर |
(मौलिक व अप्रकाशित)
-- संतलाल करुण
Added by Santlal Karun on May 1, 2015 at 6:00pm — 10 Comments
किसने कहा प्रेम अंधा होता है
****************************
किसने कहा प्रेम अंधा होता है
रहा होगा उसी का , जिसने कहा
मेरा तो नहीं है
देखता है सब कुछ
वो महसूस भी कर सकता है
जो दिखाई नहीं देता उसे भी
वो जानता है अपने प्रिय की अच्छाइयाँ और
बुराइयाँ भी
वो ये भी जानता है कि ,
उसका प्रेम, पूर्ण है ,
बह रहा है वो तेज़ पहाड़ी नदी के जैसे , अबाध
साथ मे बह रहे हैं ,
डूब उतर रहे हैं साथ साथ
व्यर्थ की…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on May 1, 2015 at 12:20pm — 8 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |