बेकार अख़बारों की ढेरी जैसा
खाली दूध की थैली व बोतल -सा
मन की उपलब्धियों का -
माल बिक सकता है ?
कोई कबाड़ी वाला आएगा।
ये सब ले जाएगा,
पूरा-का-पूरा कबाड़ उठ जाएगा
सच्ची सजावट सुथरी हो कर निखरेगी
हर चीज यथावत रखी हुई चमकेगी ।
मन की उपलब्धियों की इस ढेरी में
टूटे-फूटे शीशों और कनस्तर जैसा-
मुरझाया हुआ विश्वास,
फटे-पुराने जूतों सा-
बदरंग स्वाभिमान ,
टूटी -फूटी काँच की बोतल…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on May 3, 2014 at 4:00pm — 14 Comments
1222/ 1222/ 1222/ 1222
यूँ ही सोचा ज़माने की रविश भी जान ली जाये
पसे तस्वीर सूरत किसकी है पहचान ली जाये पसे तस्वीर= तस्वीर के पीछे
ज़रा देखूँ कि सच कितना है तेरे इन दिखावो में
चलो कुछ देर को तेरी कही भी मान ली जाये
कभी तो आप अपने तज़्रिबे से तौलें सच्चाई
ज़रूरी तो नहीं है हाथ में मीज़ान ली जाये मीज़ान =तराजू
नहीं लगती मुझे अनुकूल मौसम की तबीयत क्यूँ
बरस जायें न…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on May 3, 2014 at 12:30pm — 23 Comments
जयकारी/चोपई छंद (१५ मात्राओं के इस छंद में चरणान्त गुरु लघु से)
राष्ट्र सृजन में जिनका योग, उनको कहे पुरोधा लोग
जनता का मिलता सहयोग, खुशहाली का होता योग |
कानूनन जन हित का भान, सफल प्रशासक उसको मान
योग्य प्रशासक का सम्मान, तभी देश का हो उत्थान ||
जड़ चेतन का जिसको भान, उसमे ही आध्यात्मिक ज्ञान
परम पिता ने डाले प्राण, इसके मिलते बहुत प्रमाण |
जिसमे हो सेवा का भाव, मन में वह रखता सद्भाव
जिसमे भी जिज्ञासा जान, गुरुवर का वह…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 3, 2014 at 10:00am — 12 Comments
तुम आये
मै खुश था
बहुत खुश /
मुझे घेर लेते थे
या कहो
कोशिश करते थे
घेर लेने की /
कुछ अहसास
उल्लास ,दर्प , ईर्ष्या ,द्धेष
सम्मान / कुछ मखमली से
कुछ अनजाने से भी
और मैं उड़ता था / परी कथाओं के
नायक की तरह
पंखों वाले सफ़ेद घोड़े पर
खुशगवार मौसम में
चमकीली धूप में
नीले आसमान में /
सर-सर चलती हवाएं से आगे
और आगे ।
और फिर
जैसा कि सुनता आया था सबसे/
कि ऐसा ही होता है /…
Added by ARVIND BHATNAGAR on May 3, 2014 at 8:00am — 11 Comments
ऋतु गर्मी की आई
छन्न पकैया छन्न पकैया, ऋतु गर्मी की आई|
आँधी धूल उडाते चलती, बहे गर्म लू भाई|१|
छन्न पकैया छन्न पकैया, नीम सिरिष हैं फूले |
हवा सुगंध बिखेरे उनकी, खुशबू से मन झूले|२|…
ContinueAdded by Satyanarayan Singh on May 2, 2014 at 9:30pm — 24 Comments
तमाम गैर जरूरी चीजें
गुम हो जाती हैं घर से चुपचाप
हमारी बेखबर नज़रों से
जैसे मम्मी का मोटा चश्मा
पापा जी का छोटा रेडियो
उन दोनों के जाने के बाद
गुम हो जाता है कहीं
पुराने जूते, फाउंटेन पेन, पुराना कल्याण
हमारी जिंदगी की अंधी गलियों से ....
हर जगह पैर फैलाकर कब्जा करती जाती है
हमारी जरूरतें, लालसाए
आलमारी में पीछे खिसकती जाती है
पुरानी डायरी, जीते हुये कप
मम्मी का भानमती का…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on May 2, 2014 at 7:59pm — 11 Comments
बह्र : 2122/2122/212
बिंदी, काजल, झुमके, बेसर, चूड़ियां
पास वो रखतीं हैं कितनी बिजलियां
आज फिर उसने किया है मुझको याद
आज फिर अच्छी लगीं हैं हिचकियां
खुशबू तेरी लाएगी बाद-ए-सबा [बाद-ए-सबा = सुब्ह की हवा]
खोल दी कमरे की मैंने खिड़कियां
तेरी जुल्फों से उलझती है हवा
काश मैं भी करता यूं अठखेलियां
दिल तो तेरे नाम से मंसूब था [मंसूब= निर्दिष्ट, Assign]
यूं बहुत आई थी दर पे लड़कियां
जब…
Added by शकील समर on May 2, 2014 at 6:00pm — 15 Comments
केदार के मरने की खबर सुनते ही एक मिनट को राय साहब चौंके फिर अपने को सामान्य करते हुये बस इतना ही कहा अरे अभी उसी दिन तो आफिस में आया था पेंशन लेने तब तो ठीक ठाक था। ‘हां, रात हार्ट अटैक पड गया अचानक डाक्टर के यहां भी नही ले जा पाया गया’ राय साहब ने कोई जवाब नहीं दिया बस हॉथो से इशरा किय, सब उपर वाले की माया है, और चुपचाप चाय की प्याली के साथ साथ अखबार की खबरों को पढने लगे। खबर क्या पढ रहे थे। इसी बहाने कुछ सोच रहे थे।
चाय खत्म करके राय साहब ने अपनी अलमारी खोल के देखा पचपन हजार…
Added by MUKESH SRIVASTAVA on May 2, 2014 at 1:30pm — 12 Comments
ऐसे नेता को क्या कहिए
जो पीटे हिन्दू मुस्लिम राग
सांप्रदायिकता का बिगुल
बजा कर लगाये देश मे आग
ऐसे नेता .......
जिनका कोई ईमान नहीं
धर्म से कोई प्रेम नहीं
राष्ट्र प्रेम का ढोंग दिखाएँ
बेबस जनता को लूटें खाएं
ऐसे नेता .......
गिरगिट से होते नेता
पल मे रंग बदलते नेता
पल मे तोला पल मे माशा
खूब दिखाते रोज तमाशा
ऐसे नेता .......
हाथ जोड़ ये दौड़े आते
झोली…
ContinueAdded by annapurna bajpai on May 2, 2014 at 1:30pm — 18 Comments
रात अंधड़ में
छितराए फूस के छप्पर को
करना है दुरस्त
लेकिन समय कहाँ
अभी तो जाना है काम पर
फिरसे फूल आये पेट में
कुलबुला रहा है जीव
अनमनी सी कराह रही घरवाली
रांध नही पाती भात...
भूखे पेट पैडल मारता भूरा
टुटही साइकिल खींच रहा
ससुरी चैन साईकिल की
काहे उतरती बार-बार
भूरा बेबस-लाचार,
ठीकेदार का मुंशी भगा देगा उसे
जो देर से पहुंचा वो...
लड़ भी तो नही सकता
भगा दिया गया तो
डूब…
Added by anwar suhail on May 2, 2014 at 9:37am — 9 Comments
1
जारी है कवायद
शब्दों को रफ़ू करने की
बुलाये गए हैं
शब्दों के खिलाड़ी
शब्द
काटे जोड़े और
मिलाये जा रहे हैं
रचे और रंगे जा रहे हैं
शब्दों का सौंदर्यीकरण जारी है
2
शब्द
कभी चाशनी में
घोले जा रहे हैं
तो कभी छौंके जा रहे हैं
कढ़ाई में
फिर जारी है खिलवाड़
हमारे सपनों का
3
भाँपा जा रहा है मिजाज़
हर शख्स का
अचानक…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on May 2, 2014 at 8:30am — 11 Comments
एक नज़्म
रतजगे
इक खयाल दिल मे उठा
रात के सन्नाटे मे
मेरी नींदों को उड़ाकर
क्या वो भी जागी है
मैं ही बुनता हूँ उसके
ख्वाब या फिर
मेरे ख़याल से
वाबस्ता वो भी है
मेरे अश्कों के लबों पे
है बस सवाल यही
उसके तकिये पे भी
थोड़ी सी नमी है कि नहीं
रतजगों से है परेशान
अब मेरा बिस्तर
उसने भी काटी है क्या
कोई शब जगकर
मेरे ज़ेहन के दरीचों से…
ContinueAdded by Gajendra shrotriya on May 2, 2014 at 6:00am — 13 Comments
2122 2122
दस्तो बाज़ू खोल लें क्या
फिर परों को तोल लें क्या
शब्दों में धोखे बहुत हैं
मौन में ही बोल लें क्या
दोस्त के क़ाबिल नहीं वो
दुश्मनी ही, मोल लें क्या
और कितना हम लुटेंगे
हाथ में कश्कोल लें क्या ------ कश्कोल - भिक्षापात्र
दिल हमारा ,साफ है तो
रंग, कुछ भी घोल लें क्या
नीम है , हर बात उनकी
हम ही मीठा ,बोल लें…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on May 1, 2014 at 4:30pm — 47 Comments
छंद मदन/रूपमाला
(चार चरण: प्रति चरण २४ मात्रा,
१४, १० पर यति चरणान्त में पताका /गुरु-लघु)
मजदूर दिन
मजदूर दिन जग मनाता, शान से है आज।
कर्म के सच्चे पुजारी, तुम जगत सर ताज।।
प्रतिभागिता हर वर्ग की, देश आंके साथ।
राष्ट्र के उत्थान में है, हर श्रमिक का हाथ।१।
श्रम करो श्रम से न भागो, समझ गीता सार।
सोया हुआ भाग्य जागे, जानता संसार।।
श्रम स्वेद पावन गंग सम, बहे निर्मल धार।
श्रम दिलाता मान जीवन, श्रम प्रगति का द्वार।२।…
Added by Satyanarayan Singh on May 1, 2014 at 4:00pm — 13 Comments
उठो हे स्त्री !
पोंछ लो अपने अश्रु
कमजोर नही तुम
जननी हो श्रृष्टि की
प्रकृति और दुर्गा भी,
काली बन हुंकार भरो
नाश करो!
उन महिसासुरों का
गर्भ में मिटाते हैं
जो आस्तित्व तुम्हारा,
संहार करो उनका जो
करते हैं दामन तुम्हारा
तार-तार,
करो प्रहार उन पर
झोंक देते हैं जो
तुम्हें जिन्दा ही
दहेज की ज्वाला में,
उठो जागो !
जो अब भी ना जागी
तो मिटा दी जाओगी और
सदैव के लिए इतिहास
बन कर रह जाओगी…
Added by Meena Pathak on May 1, 2014 at 2:10pm — 19 Comments
चौपई छंद - प्रति चरण 15 मात्रायें चरणान्त गुरु-लघु
==================================
ऋतु चुनाव की जब आ जाय। यहाँ वहाँ नेता टर्राय॥
सज्जन दिखते, मन में खोट। दांत निपोरें, माँगे वोट॥
जिसकी बन जाती सरकार। सेवा नहीं, करते व्यापार॥
नेता अफसर मालामाल। देश बेचने वाले दलाल॥
जब अपनी औकात दिखांय। बिना सींग दानव बन जांय॥
नख औ दांत तेज हो जाय। देश नोंचकर कच्चा खांय॥
है इनमें कुछ अच्छे लोग। न लोभी हैं, न कोई…
ContinueAdded by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on May 1, 2014 at 1:00pm — 16 Comments
मुहब्बतों की ज़मीन पर ....
वो जागती होगी
यही सोच हम तमाम शब सोये नहीं
चुरा न ले सबा नमीं कहीं
हम एक पल को भी रोये नहीं
वो रुख़्सत के लम्हात,वो अधूरे से जज़्बात
बंद पलकों की कफ़स में कैद वो बेबाक से ख्वाब
क्या वो सब झूठ था
क्यों पल पल के वादे हकीकत की धूप में
हरे होने से पहले ही बेदम हो कर झरने लगे
अटूट बंधन के समीकरण बदलने लगे
खबर न थी कि हमारी खुद्दारी
हमें इस…
Added by Sushil Sarna on May 1, 2014 at 12:30pm — 14 Comments
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण
तभी तो ये दोनों मोड़ देते हैं दिक्काल के धागों से बुनी चादर
कम कर देते हैं समय की गति…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 1, 2014 at 10:30am — 12 Comments
2122 2122 2122 212
***
हर खुशी हमको हुई है अब सवालों की तरह
और दुख आकर मिले हैं नित जवाबों की तरह
***
चाँद निकला तो नदी में देख छाया खुश रहे
रोटियाँ अब हम गरीबों को खुआबों की तरह
***
यूं कभी जिसमें कहाये यार हम महताब थे
उस गली में आज क्यों खाना खराबों की तरह
***
एक भी आदत नहीं ऐसी कि तुझको गुल कहूँ
पास काँटें क्यों रखो फिर तुम गुलाबों की तरह
***
है हमें तो जिन्दगी में साँस-धड़कन यार ज्यों
आप…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 1, 2014 at 9:30am — 13 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |