“वो देख सामने जहां सूरज निकल रहा है , वहीँ अपना घर है, बेकार में भटका मैं दर –दर, सबने कितना समझाया था, मां - पिता और पत्नी कितना रोई थी, पर मुझे तो भगवान की तलाश करनी थी, पर कहीं नहीं मिला बल्कि लोगों ने कभी भिखारी तो कभी ढोंगी समझा, अरे भगवान् कहीं होगा तो घर में भी मिल जाएगा, अब चल वहीँ काम और ध्यान करेंगे ,चल बेटा अब घर चलें ,तूने भी बड़ा साथ निभाया , वो देख सामने नाव भी आ रही है चल तेज़ चल, और आज ही ये गेरुआ वस्त्र इसी गंगा माँ को समर्पित कर दूंगा !”
“इतना सुनते ही उस साधु का…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on May 15, 2015 at 9:00pm — 14 Comments
Added by shree suneel on May 15, 2015 at 5:02pm — 35 Comments
प्यासी देह .....
मन की कंदराओं में किसने .......
अभिलाषाओं को स्वर दे डाले .......
किसकी सुधि ने रक्ताभ अधरों को ......
प्रणय कंपन के सुर दे डाले//
मधुर पलों का मुख मंडल पर ........
मधुर स्पंदन होने लगा .........
मधुर पलों के सुधीपाश में ........
मन चन्दन वन होने लगा//
नयन घटों के जल पर किसकी .......
स्मृति से हलचल होने लगी ........
भाव समर्पण का लेकर काया .......
मधु क्षणों में खोने लगी//
किसको…
ContinueAdded by Sushil Sarna on May 15, 2015 at 9:53am — 26 Comments
आ दुआ करें
आ दुआ करें मिलजुल,
निःस्वार्थ हो बिलकुल,
प्रभु!रचना तेरी चुलबुल,
हँसने दे अभी खुलखुल।…
Added by Manan Kumar singh on May 15, 2015 at 8:30am — 3 Comments
“पापा, मुझे ज्वाइंट और न्युक्लियर फ़ैमिली के मेरिट्स-डिमेरिट्स के बारे में पढ़ना है.” राजू ने अपने पापा से कहा.
फिर, चहकते हुये पूछा, "पापा, ज्वाइंट फ़ैमिली में बडा मजा आता होगा न.. सब एक साथ रहते होंगे. खेलने को बाहर भी नहीं जाना पड़ता होगा”,
“हाँ, बेटा मजा तो बहुत आता था. तेरे दादा-दादी, चाचा-चाची, हमसभी एक साथ रहते थे.. हरतरह से सुख-दुःख में एक साथ.. पर तेरे जन्म के बाद से हम भी न्युक्लियर फ़ैमिली हो गये.”
तभी किचेन से राजू की…
Added by Shubhranshu Pandey on May 14, 2015 at 10:30pm — 23 Comments
Added by मनोज अहसास on May 14, 2015 at 6:00pm — 5 Comments
ईश्वर तुम हो कि नहीं हो
इस विवाद में मन उलझाये बैठी हूँ
‘हाँ’ ‘ना’ के दो पाटों के बीच पिसी
कुछ प्रश्न उठाए बैठी हूँ
कि अगर तुम हो तो इतने
अगम, अगोचर और अकथ्य क्यों हो
विचारों के पार मस्तिष्क से परे
‘पुहुप बास तै पातरे’ क्यों हो
तुम्हें खोजने की विकलता ने
जब प्राप्य ज्ञान खँगाला
तो द्वैत, अद्वैत और द्वैताद्वैत ने
मुझको पूरा उलझा डाला
तुम सुनते हो यदि
या कि मुझे तुम सुन पाओ
एक प्रार्थना…
ContinueAdded by Tanuja Upreti on May 14, 2015 at 4:35pm — 9 Comments
१२१२ ११२२ ११२२ २२
तमाम मोती हैं सागर में मगर मुझको क्या
घिरा जो तम में मेरा घर तो सहर मुझको क्या
हमें वो हीन कहें दींन कहें या मुफलिस
बशर तमाम जुदा सब कि नजर मुझको क्या
बहार आयी चमन में है ये तो तुम देखो
खिजाँ नसीब है; मैं हूँ वो शजर, मुझको क्या
जो नंगे पाँव ही चलना है मुकद्दर मेरा
बिछे हों गुल या हो खारों की डगर मुझको क्या
मेरा नसीब तो फुटपाथ जमाने से रहे
नसीब उन को महल हैं…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on May 14, 2015 at 3:33pm — 10 Comments
"समीर जी , क्या रूतबा है भई आपका ...!!! जहाँ भी जाते हो ..यार , छा जाते हो ! " --- अजय को गर्व था अपने दोस्त पर । समीर का जलवा तो उसके हर अंदाज़ से ही झलकता था। उसकी बातों से ही मंत्रालय में उसकी पद प्रतिष्ठा का अनुमान चल जाता है। जब साले साहब को मंत्रालय में जरूरी काम करवाने की जरूरत आन पडी तो अजय बडे गर्वित हो साले साहब के साथ मंत्रालय की ओर निकल लिए ।आजतक मंत्रालय के दर्शन भी नही किये थे उसने । दोस्त की मेहरबानी से यहाँ तक आने का अवसर भी प्राप्त हुआ । मन गदगद हुआ जा रहा था । मंत्रालय के…
ContinueAdded by kanta roy on May 14, 2015 at 12:30pm — 20 Comments
“सुन री छोटी ! सीख कुछ मुझसे. जब देखो मुंह उघारे घूमती रहे है, घूँघट काढ़ा कर |” “ना जीजी हम नही बन सके तुम्हारे जैसे पर्देदार ! देखी हैं हम तुम्हारी नजर.. घूँघट के पीछे से घूरे है छुटके देवर जी का शरीर जब देखो तब |” “का फायदा ऐसे घूँघट का..?” देवरानी ने पलट जवाब दे मारा जेठानी पर |
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sudhir Dwivedi on May 14, 2015 at 11:39am — 19 Comments
"बाबा आप अकेले यहाँ क्यों बैठे हैं, चलिए आपको आपके घर छोड़ दूँ | "
बुजुर्ग बोले:
"बेटा जुग जुग जियो तुम्हारे माँ -बाप का समय बड़ा अच्छा जायेगा | और तुम्हारा समय तो बड़ा सुखमय होगा |"
"आप ज्योतिषी हैं क्या बाबा |"
हंसते हुय बाबा बोले - "समय ज्योतिषी बना देता हैं | गैरों के लिय जो इतनी चिंता रखे वह संस्कारी व्यक्ति दुखित कभी नही होता | " आशीष में दोनों हाथ उठ गये |
"मतलब बाबा ? मैं समझा नहीं | "
"मतलब बेटा मेरा समय आ गया | अपने माँ बाप के समय में मैं समझा नहीं कि…
Added by savitamishra on May 14, 2015 at 11:30am — 20 Comments
गागा लगा लगा/ लल/ गागा लगा लगा
आवारगी ने मुझ को क़लन्दर बना दिया
कुछ आईनों ने धोखे से पत्थर बना दिया.
.
जो लज़्ज़तें थीं हार में जाती रहीं सभी
सब जीतने की लत ने सिकंदर बना दिया.
.
नाज़ुक से उसने हाथ रखे धडकनों पे जब
तपता सा रेगज़ार समुन्दर बना दिया.
.
एहसास सब समेट लिए रुख्सती के वक़्त
दीवानगी-ए-शौक़ ने शायर बना दिया.
.
जो उस की राह पे चले मंज़िल उन्हें मिले
बाक़ी तो बस सफ़र ही…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 14, 2015 at 11:29am — 35 Comments
“ मैंने यह सब कुछ अपनी मजबूरी में किया है, जज साहब. मृतक मेरा सगा भाई ही था, उसने मेरा जीना हराम कर दिया था. धोखे से मेरी जमीन हड़प ली और मैं अपने पत्नी और बच्चों के साथ सड़क पर आ गया था. भूखों मरने की नौबत आ गई थी, साहब..” उसने अपने भाई की हत्या का गुनाह कुबूल करते हुए अदालत में अपना बयान दिया
“ लेकिन, पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के अनुसार तुमने अपने भाई को सुबह ५ बजे ही खेत पर, गला घोंटकर मार डाला फिर तुम दोपहर में उस लाश को खीचकर कहा ले जा रहे थे..” सरकारी वकील ने कटघरे में खड़े,…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on May 14, 2015 at 10:18am — 36 Comments
रोक नदिया
तोड़ पर्वत
तू धरा को क्या बनाता
पूछता है , अब विधाता
देख कुल्हाड़ी चलाता
कौन अपने पाँव में ही
कंटकों के बीज बोता
रास्तों में , गाँव मे ही
व्यर्थ सपनों के लिये क्यों आज के सच को गवांता
तू धरा को क्या बनाता , पूछता है अब विधाता
इक नियम ब्रम्हाण्ड का है
ग्रह सभी जिसमें चले हैं
है धरा की गोद माँ की
खेल जिसमे सब पले हैं
माँ पहनती उस वसन में , आग कोई है लगाता
तू धरा…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on May 14, 2015 at 9:21am — 21 Comments
*मैं वह और तुम*
मैं पुरुष हूँ,
वह स्त्री,
तुम तुम हो--
श्रोता,पाठक, निर्णायक
सबकुछ।
मैंने उसे अपने को कहने
यानी लिखने के लिए
प्रेरित करना चाहा,
अपना युग-धर्म निबाहा,
बोली-मुझे हिंदी में लिखना
नहीं आता,है मुझे सीखना।
'सीखा दूँगा सब', मैंने कहा,
मामला बस वहीं तक रहा।
एक दिन एक कथा आयी-
'मेरी सहेली ने ड्राइविंग
सीखना चाहा,
उसके बॉस ने हामी भर दी,
कहा, 'सीखा दूँगा सब',
फिर ड्राइविंग शुरू होती
कि…
Added by Manan Kumar singh on May 14, 2015 at 8:47am — 6 Comments
सुनो ...प्यार बड़ी चीज़ है
सबके काम आता है ये
डूबतों का तिनका
दुखियों का सहारा है ये
रोते हुओं के आँसू पोंछ
टूटे हुए दिलों को जोड़ जाता है ये
रूठों को मना लाता है
रिश्तों को शहद बनाता है ये
'इंतज़ार' कम ही लोगों को
करना आता है ये
इसकी तहज़ीब सीख लीजिये
वर्ना सोने वालों की
नीद उड़ा ले जाता है ये
उमंगों को भड़का
ज़िंदगी का मकसद बन जाता है ये
सुनो ...एहसासों का बुलबुला है ये
कांटा लगा ......तो
हवा हो जाता है ये…
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on May 14, 2015 at 7:18am — 14 Comments
मेरी कल्पनाये हर पल सोचतीं है, व्यथित हो विचरतीं हैं
बैचेन हो बदलतीं हैं, दम घुटने तक तेरी बाट जोहती हैं
लेकिन फिर ना जाने क्यूँ, तुझ तक पहुँच विलीन हो जातीं है
सारी आशाएं पल भर में सिमट के, दूर क्षितिज में समा जातीं है
एक नारी मन की भावनाएं उसकी कल्पनाओं में सजती और संवरती है और उन कपोल कल्पित बातों को एक कवि ही अपनी रचना में व्यक्त कर सकता है मेरे कवी मन ने भी कुछ ऐसा ही लिखने की सोची और फिर शुरू हुई कलम और कल्पना की सुरमई ताल ! लेकिन मन ना लगा तो मैं बाहर निकल आई…
Added by sunita dohare on May 14, 2015 at 12:30am — 7 Comments
Added by Samar kabeer on May 13, 2015 at 10:44pm — 22 Comments
Added by Nirmal Nadeem on May 13, 2015 at 7:45pm — 13 Comments
Added by somesh kumar on May 13, 2015 at 4:44pm — 7 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |