आँखें भर आयेंगी, ये दिल भी रो जायेगा
Added by Ajay Singh on June 7, 2012 at 12:09pm — 6 Comments
कितना झूठा, कितना साचा बाबाजी
हमने सब का चेहरा बांचा बाबाजी
अग्निपथ टू देख के दर्शक चौंक उठे
विजय से ज़्यादा हॉट है कांचा बाबाजी
जुहू तट पर अपनी अपनी आयटम संग…
Added by Albela Khatri on June 7, 2012 at 9:22am — 22 Comments
एक बड़ा आदमी अभी बोला कि वो माँगने कू नहीं गया था | उसे तो महामहिम ने अपने आप दे दिया , तो वो ले लिया | वो एकदम ई सच्ची बोला | क्यूं , इस वास्ते कि बड़ा आदमी छोटा चीज कभी नईं मांगता | बड़ा चीज भी वो एसीच्च नईं मांगता | बड़ा आदमी का माँगने का कला भी बड़ा ई अलग होता | अपुन जैसा मिडिल क्लास मांगेगा तो बोलेगा कि मिल जाएगा तो बड़ा मेहरबानी होगा , अक्खा लाईफ ओबलाईज रहेगा | थोड़ा और नीचे जायेंगा , बोले तो एकदम फटीचर क्लास में तो वो बोलेगा कि माईं बाप अपुन…
ContinueAdded by अरुण कान्त शुक्ला on June 6, 2012 at 11:30pm — 13 Comments
यूँ बदनाम अपना वतन हो रहा है
था धरती कभी अब गगन हो रहा है
जो चढ़ फूल देवों 'प' इतरा रहे हैं
बे-ईमान सारा चमन हो रहा है
जो पग में चुभा था कभी खार बनके
वो झूठा फरेबी सुमन हो रहा है
दी आहूति सपनों भरी अब युवा ने…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 6, 2012 at 6:00pm — 10 Comments
खंडेला गाँव से गौरी गंगोत्री नगर उच्च सिक्षा हेतु आई जहां उसने विवेकानंद महाविद्यालय में दांखिला लिया | तीन वर्ष की अध्ययन अवधि में उसकी सुनीला के साथ मित्रता ही नहीं, बल्कि परिवार के लोगो के साथ भी अच्छा परिचय हो गया | धीरे धीरे सुनीला का भाई धर्मेन्द्र गौरी को चाहने लगा | धर्मेन्द्र के पिताजी प्रोफ. सोमेंद्रनाथ टेगोर महाविद्यालय से सेवा निवृत होगये | उन्होंने होनहार लड़की देखकर गौरी के पिता से अपने लडके धर्मेन्द्र का रिश्ता करने का प्रस्ताव् किया, जो गौरी के पिता ने गौरी की भावनाओ को देखते…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 6, 2012 at 5:30pm — 6 Comments
होता हूँ जब अकेला चुपके से आता है
मुझे मेरा गाँव याद अब भी आता है
कभी बन आँखों में आँसू
कभी बन दिल में कसक
रातों को जगाने सपनों में
मुझे मेरा गाँव याद अब भी आता है
मैं अपने गाँव का, गाँव मेरा है
उसके सपने सारे सपने मेरा है
होता हूँ जब अकेला चुपके से आता है
मुझे मेरा गाँव याद अब भी आता है
मैं अपने गाँव को सम्हालूँगा
मैं अपने सपनों को फिर से सजाऊंगा
टूटा हुआ तारा हूँ मैं जिस गाँव का
फिर से…
Added by जगदानन्द झा 'मनु' on June 6, 2012 at 5:30pm — 12 Comments
क़त्ल करना है तो सबका करो
मुझ अकेली को मारने से क्या होगा
अगर मिटाना है मेरी हस्ती को
तो सबको मिटाओ ..............
मुझ अकेली को मिटाने से क्या होगा ..............…
Added by Sonam Saini on June 6, 2012 at 3:30pm — 12 Comments
दुश्मनों तुम सरहदों के पार मत देखा करो॥
आँख जल जाएगी ये अंगार मत देखा करो॥
ऐ मसीहा इस तरह बीमार मत देखा करो॥
आदमी में सिर्फ तुम आज़ार मत देखा करो॥…
Added by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 6, 2012 at 12:00pm — 6 Comments
यह जो शहरीकरण हो रहा बाबाजी
हरियाली का हरण हो रहा बाबाजी
चीलें, कौए, चिड़ियाँ, तोते, तीतर संग
वनजीवन का…
Added by Albela Khatri on June 6, 2012 at 12:00pm — 20 Comments
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 6, 2012 at 10:30am — 25 Comments
दोहा मुक्तिका:
पल पल हो मधुमास...
संजीव 'सलिल'
*
आसमान में मेघ ने, फैला रखी कपास.
कहीं-कहीं श्यामल छटा, झलके कहीं उजास..
*
श्याम छटा घन श्याम में, घनश्यामी आभास.
वह नटखट छलिया छिपे, तुरत मिले आ पास..
*
सुमन-सुमन में 'सलिल' को, उसकी मिली सुवास.
जिसे न पाया कभी भी, किंचित कभी उदास..
*
उसकी मृदु मुस्कान से, प्रेरित सफल प्रयास.
कर्म-धर्म का मर्म दे, अधर-अधर को हास.
*
पूछ रहा मन मौन वह, क्यों करता परिहास.
क्यों दे पीड़ा उन्हीं को,…
Added by sanjiv verma 'salil' on June 6, 2012 at 9:40am — 6 Comments
कविताओं में बाँचिये , शीतल मंद समीर
शब्दों में ही बह रहा , निर्मल निर्झर नीर
निर्मल निर्झर नीर,हरा वसुधा का आँचल…
Added by अरुण कुमार निगम on June 6, 2012 at 12:30am — 12 Comments
तेज़ हवा और एक ही तीली बाबाजी
फिर भी हमने बीड़ी पी ली बाबाजी
घर की सादी छोड़ के बाहर मत ढूंढो
रंग-रंगीली, छैल-छबीली बाबाजी…
Added by Albela Khatri on June 5, 2012 at 8:00pm — 13 Comments
५-जून ( विश्व पर्यावरण दिवस के उपलक्ष्य में)
Added by Dr.Prachi Singh on June 5, 2012 at 6:30pm — 12 Comments
भंगुरता सी प्रतीत हो रही
जब भी जिंदगी को सोचता हूँ
रोज की जद्दोजहद में फंसा मैं
मस्तिष्क पटल को नोचता हूँ
उतार चढ़ाव से उतना नहीं परेशान
लेकिन कुछ छूट रहा सा लग रहा है
डग लम्बे भर रहा लेकिन
मंजिल और दूर सी लग रही है
बहुत हिम्मत करके कभी कभी
आँगन में नए पौधे लगाता हूँ
बिखरे हुए सपनो को सामने करके
नयी दिशा को पग बढ़ाता हूँ
लेकिन परिवार और समाज में बंधा
मुल्ला की…
Added by AJAY KANT on June 5, 2012 at 5:30pm — 4 Comments
//घुप्प अँधेरा, उफनता तूफ़ान, कर्कश हवाओं कि साँय-साँय, पागल चड चडाती दरख्तों की शाखाएं. किसी भी क्षण उसके सर पर आघात करने को उदद्यत, पर उसके कदम अनवरत गति से बढ़ते जा रहे हैं. काले स्याह मेघ कोप से उत्तेजित हो परस्पर टकरा टकरा कर दहाड़ रहे हैं, जिसकी आवाज ने उन दोनों की साँसों की आवाज को निगल लिया है. दामिनी थर्रा रही है गिडगिडा रही है, उसके चेहरे को देखने को व्यग्र शनै -शनै अपना प्रकाश फेंक रही है. पर उसका मुख घूंघट से ढका है, हाँ एक नन्ही सी जान एक कपडे में लिपटी हुई उसकी छाती…
Added by rajesh kumari on June 5, 2012 at 2:30pm — 14 Comments
''''''''''''''''''''''''''''''''२ मुक्तक '''''''''''''''''''''''''''''''''''
१.
नित बातों से रस बहता है, जैसे तुम मधु हो मधुवन की
मैं देखूं मुख इक टक तेरा ,खिलती सी कली हो उपवन की
ते तन तेरा ये मन तेरा, दूरी मत देना इक पल की
तुम से ही चलती हैं साँसें, इक तुम ही जरुरत…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 5, 2012 at 1:44pm — 5 Comments
आज बनूँगा मै विद्रोही, अब विद्रोह कराऊँगा|
जो सबके ही समझ में आये, ऐसे गीत सुनाऊँगा||
बहुत हो गया अब न रुकूँगा, मै रोके इन चट्टानों के,
बहुत बुझ चुका अब न बुझूँगा मै पड़कर इन तूफानों मे।
कर के हलाहल-पान आज मै होके अमर दिखा दूँगा,
और बुलबुलों को बाजों से लड़ना आज सिखा…
Added by आशीष यादव on June 5, 2012 at 8:00am — 19 Comments
मुक्तिका:
मुस्कुराते रहो...
संजीव 'सलिल'
*
मुस्कुराते रहो, खिलखिलाते रहो
स्वर्ग नित इस धरा पर बसाते रहो..
*
गैर कोई नहीं, है अपरिचित अगर
बाँह फैला गले से लगाते रहो..
*
बाग़ से बागियों से न दूरी रहे.
फूल बलिदान के नव खिलाते रहो..
*
भूल करते सभी, भूलकर भूल को
ख्वाब नयनों में अपने सजाते रहो..
*
नफरतें दूर कर प्यार के, इश्क के
गीत, गज़लें 'सलिल' गुनगुनाते रहो..
***
Added by sanjiv verma 'salil' on June 5, 2012 at 7:34am — 9 Comments
दहशत-वहशत, ख़ूनखराबा बाबाजी
गुंडई ने है अमन को चाबा बाबाजी
काम से ज़्यादा संसद में अब होता है
हल्ला-गुल्ला, शोर-शराबा बाबाजी
मैक्डोनाल्ड में…
Added by Albela Khatri on June 4, 2012 at 11:30pm — 25 Comments
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