22 22 22 22 22 2
गंग-जमन मिल जायें ये इच्छा भी है
बम-बन्दूकें लेकर वो बैठा भी है
ठक ठक करते रहना पड़ता है, लाठी
अब शहरों मे सापों का डेरा भी है
सूरज की चाहत पर मर जाने वाला
घुप्प अँधेरों के रिश्ते जीता भी है
जिसे मंच ने कल नदिया का नाम दिया
क्या सच में उसमें पानी बहता भी है ?
बेंत नुमा हर शब्द शब्द है झुका झुका
अर्थ मगर उसका ऐंठा ऐंठा भी है
तू भी तो कुछ…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on June 25, 2016 at 8:00am — 17 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on June 25, 2016 at 7:53am — 8 Comments
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 24, 2016 at 9:21pm — 13 Comments
Added by kanta roy on June 24, 2016 at 2:38pm — 4 Comments
२१२२ २१२२ २१२२
याद उसको आज जब मैं कर रहा था
हिचकियाँ उसको न आयें डर रहा था
जिस जगह पर हुक्मरानों का महल है
हम गरीबो का वहाँ कल घर रहा था
जिस ग़ज़ल के दाम लाखों में लगे थे…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on June 24, 2016 at 12:00pm — 8 Comments
‘‘महामात्य ! यह मैं क्या सुन रही हूँ ?’’ कैकेयी के स्वर में असंतोष झलक रहा था।
कैकेयी को विवाह होकर अयोध्या आये हुये 8 बरस बीत गये थे। अब वह सत्रह वर्षीय किशोरी से एक परिपक्व साम्राज्ञी में परिवर्तित हो गयी थी। समय के साथ-साथ दशरथ के हृदय और अयोध्या के प्रशासन पर भी उसकी पकड़ सुदृढ़ होती गयी थी। उसे समाज और राजनीति की गुत्थियाँ सुलझाने में आनन्द आने लगा था। इस समय वह अपने प्रासाद में अयोध्या के महामात्य जाबालि के साथ बैठी हुई थी।
‘‘क्या महारानी जी ? मैं समझ नहीं पाया।’’ आमात्य जाबालि…
Added by Sulabh Agnihotri on June 24, 2016 at 9:05am — No Comments
२१२२ ११२२ २१२२ २२ /११२
हाय वो कसमे वो वादे क्यूँ भुलाये तूने
क्या सबब रो के यूं आंसू भी बहाये तूने
खून से लिख्खे खतों में थी मेरी जान बसी
बेरहम हो के सभी ख़त वो जलाये तूने…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on June 23, 2016 at 1:30pm — 3 Comments
Added by Manan Kumar singh on June 23, 2016 at 12:08pm — 10 Comments
कैकसी तीन साल के रावण को लेकर आई हुई थी। साल भर का कुंभकर्ण भी उसकी गोद में था। विवाह के बाद पहली बार वह आई थी। ऐसा नहीं था कि इस बीच उसका इन सबसे कोई सम्पर्क नहीं रहा था। सौभाग्य से विश्रवा का आश्रम सुमाली के ठिकाने से एक प्रहर की दूरी पर समुद्र में एक छोटे से टापू पर था। प्रत्येक दो-तीन माह के अन्तराल पर प्रहस्त आदि में से कोई भी भाई नाव लेकर जाता था और उससे मिल आता था। सुमाली कभी भी मिलने नहीं गया था, उसे डर था कि कहीं विश्रवा उसे पहचान न लें। कैकसी भी मुनि के साथ व्यवहार में पूर्ण…
ContinueAdded by Sulabh Agnihotri on June 23, 2016 at 11:07am — 2 Comments
'करूं या न करूं?' अनिर्णय की स्थिति में वह बंद कमरे में आइने के सामने आराम कुर्सी पर बहुत ही तनावग्रस्त बैठा हुआ था। तभी शैतान उसके दिमाग़ पर हावी होते हुए बोला- "अब क्या हुआ बंधु! इन्टरनेट पर सत्य कथायें पढ़कर भी कोई तरीक़ा नहीं अपना सके! मेरी बात मान लो, फाँसी ही सबसे उत्तम तरीक़ा है! आजकल इसी का ट्रैंड है युवा पीढ़ी में!"
"सही कह रहे हो तुम! देखो मैंने पूरी तैयारी भी कर ली थी, फाँसी लगाता या इस पाँचवीं मंज़िल से कूंद कर काम तमाम कर लेता, लेकिन ..."
"लेकिन क्या?" शैतान ने कुछ…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on June 23, 2016 at 6:30am — 13 Comments
Added by Neeraj Nishchal on June 23, 2016 at 12:21am — 2 Comments
सभी अपने पैने नख और दन्त अंदर समेटे पण्डित जी की श्राद वाली बात बैचेनी के साथ सुन रहे हैं।एक सुप्त ज्वालामुखी जो बिना वज़ह के अंदर ही अंदर धधक रहा है।साल भर में श्मशान वैराग्य खत्म हो चुका है और मानवीय विराग मुँह फाड़े निगलने को आतुर बैठा है। अभी अंतिम बंटवारा होना बाकि है।
" बड़े शहरों में ये सब करना मुश्किल है, न पण्डित मिलते हैं। न समय है।कब श्राद आये कब गए। मालूम ही नहीं चलता, मुझसे कोई उम्मीद मत रखना। " माँ और पिता का सबसे लाड़ला छोटा दो टूक बोला।
खिड़की से बाहर देखते मंझले को…
Added by Janki wahie on June 22, 2016 at 6:30pm — 10 Comments
केकय नरेश अश्वपति ब्रह्मज्ञानी के रूप में विख्यात थे। बड़े-बड़े ऋषि-मुनि भी इस संबंध में उनसे राय लेने आते रहते थे। कहते तो यहाँ तक हैं कि उन्हें पशु-पक्षियों की बोलियाँ भी आती थीं। एक कथा प्रचलित है कि एक बार अश्वपति महारानी के साथ बगीचे में टहल रहे थे। बगीचे में पक्षियों की चहचहाहट एक स्वाभाविक ध्वनि होती है। अचानक महाराज हँस पड़े। महारानी असमंजस से पूछ बैठीं -
‘‘महाराज मैंने कोई हास्यास्पद बात तो नहीं की जो आप हँस रहे हैं।’’
महाराज ने हाथ से उन्हें शान्त रहने का इशारा किया और बड़े…
Added by Sulabh Agnihotri on June 22, 2016 at 9:38am — 4 Comments
22 22 22 22 22 22
वुसअतें दिल मे समा जायें तो जहाँ अपना
वगरना खून का रिश्ता भी है कहाँ अपना
अहले तक़रीर की आतिश बयानी तुम ले लो
रहे जो सुन के भी ख़ामोश-बेज़ुबाँ, अपना
ये कैसा रास्ता है सिर्फ अँधेरा है जहाँ
कहीं भटका तो नहीं देख कारवाँ अपना
फड़फड़ा कर मेरे पर बोलते यही होंगे
ये ज़मीं सारी तुम्हारी है , आसमाँ अपना
इसे नादानी कहें या कि कहें मक्कारी
समझ रहे हैं दुश्मनों को पासबाँ…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on June 22, 2016 at 8:50am — 21 Comments
बह्र: २२ २२ २२ २२ २२ २२ २
रदीफ़: चाहता हूँ , काफिया : ना (अना )
दिल के धड़कनों को कम करना चाहता हूँ
आज घटित घटना को विसरना चाहता हूँ |
जीवन में घटी है कुछ घटनाएँ ऐसी
सूखे घावों को नहीं कुतरना चाहता हूँ |…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on June 22, 2016 at 7:30am — 4 Comments
बिना कोई ख़ास सफलता हासिल किए हुए भी 'सच' सदैव ख़ुद पर अभिमान कर रहा था। 'झूठ' के सामने वह हमेशा की तरह अपने ही गुणगान करते हुए बोला- "मैं हूं न ! सब समस्याओं का समाधान चुटकियों में करवा देता हूँ! जिसने मुझे समझा और अपनाया वह धन्य हो गया और महान कहलाया!"
'झूठ' जो पहले उसकी बचकानी बातें सुनकर मुस्करा रहा था, अब ठहाके मारकर हँसने लगा।
"अरे, इतना ही सुनकर ख़ुश होने लगे, अभी और भी तो सुनो!" - 'सच' ने शेख़ी मारते हुए कहा-" पुलिस विभाग हो या न्यायालय, परिवार हो या दुकान, उत्पाद हो या उसका…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on June 22, 2016 at 6:00am — 5 Comments
हम के अस्तित्व से ....
बड़ा लम्बा सफर
तय करना पड़ता है
अंतस की व्यथा को
अधरों तक आने में
स्मृतिकोष के
पृष्ठों से किसी की
याद को मिटाने में
अनकहा
कुछ नहीं रहता
अवसाद के पलों में
अभिव्यक्ति
पलकों के पालने से
कपोलों पर
हौले हौले सरकती
किसी स्पर्श के इंतज़ार में
ठहर जाती है
शायद कोई
अपनत्व का परिधान ओढ़ कर
इक बूंद में समाये
विछोह के लावे को
अपनी उंगली के पोरों से उठा…
Added by Sushil Sarna on June 21, 2016 at 5:16pm — 4 Comments
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on June 21, 2016 at 5:05pm — 2 Comments
21.06.2016 कल से आगे .....
महाराज दशरथ की आयु प्रायः 35 वर्ष की हो चुकी थी। महारानी कौशल्या से विवाह किये 11 वर्ष गुजर गये थे किंतु अयोध्या को अभी तक उत्तराधिकारी प्राप्त नहीं हुआ था। एक दिन सोते हुये अचानक वे चैंक कर उठ बैठे। उन्होंने अजीब स्वप्न देखा था। उनकी माता इन्दुमती और पिता अज उन्हें प्रताड़ित कर रहे थे कि वे अभी तक पितृ ऋण नहीं चुका पाये हैं। माता की तो वस्तुतः उन्हें कतई याद ही नहीं थी, बस चित्रों में ही उन्हें देखा था। पिता बताते थे कि बहुत छोटे बालक थे तभी माता स्वर्गवासी…
ContinueAdded by Sulabh Agnihotri on June 21, 2016 at 10:14am — 5 Comments
मात्रिक बहर
२२/२२/२२/२२/
.
अपना ग़म ख़ुद ही से छुपा कर,
जब निकलो,, मुस्कान सजा कर.
.
ग़ैरों से इतना न खुला कर,
दिल नौचेंगे ...मौका पा कर.
.
नया तज़्रबा है हर धोका,
जश्न मनाओ बोतल ला कर.
.
तुम समझे लोबान जला है,
मैं रक्साँ था ज़ख्म जला कर.
.
मैंने ख़ुद को तर्क किया है,
तेरी मर्ज़ी हाँ कर...ना कर.
.
शायद कोई राह छुपी हो,
देख ज़रा दीवार ढहा कर.
.
यादों को हम याद आएं हैं,
लौट आयी हैं वापस,…
Added by Nilesh Shevgaonkar on June 21, 2016 at 8:58am — 10 Comments
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