बड़े ही तैश में आकर'
उसने मेरे खत लौटा दिये...
वो अँगूठी !
वो अँगूठी भी उतार फेंकी-
जिसे आजीवन,
पास रखने का वादा किया था उसने!
कभी ईश्वर को साक्षी मानकर-
एक काला धागा,
पहनाया था उसने मुझे-
"अब तुम मेरी हो चुकी हो "
फिर ये कहकर,
बाहों मे भर लिया था...
आज,फर्श पर कुछ मोती-
औंधे पड़े हैं....
उस काले धागे के साथ !
एक तस्वीर थी जो,
साथ में -
आज उसे भी,
माँग बैठा था…
Added by रक्षिता सिंह on June 11, 2018 at 7:45am — 12 Comments
बहुत बेचैन वो पाये गए हैं ।
जिन्हें कुछ ख्वाब दिखलाये गये हैं ।।
यकीं सरकार पर जिसने किया था ।
वही मक़तल में अब लाये गए हैं।।
चुनावों का अजब मौसम है यारों ।
ख़ज़ाने फिर से खुलवाए गए हैं ।।
करप्शन पर नहीं ऊँगली उठाना ।
बहुत से लोग लोग उठवाए गये हैं ।।
तरक्की गांव में सड़कों पे देखी ।
फ़क़त गड्ढ़े ही भरवाए गये हैं ।।
पकौड़े बेच लेंगे खूब आलिम ।
नये व्यापार सिखलाये…
Added by Naveen Mani Tripathi on June 10, 2018 at 11:04pm — 13 Comments
कोई शिकवा गिला नहीं होता ।
तू अगर बावफ़ा नहीं होता ।।
रंग तुम भी बदल लिए होते ।
तो ज़माना ख़फ़ा नहीं होता ।।
आजमाकर तू देख ले उसको ।
हर कोई रहनुमा नहीं होता ।।
जिंदगी जश्न मान लेता तो ।
कोई लम्हा बुरा नहीं होता ।।
कुछ तो गफ़लत हुई है फिर तुझ से।
दूर इतना खुदा नहीं होता ।।
देख तुझको मिला सुकूँ मुझको ।
कैसे कह दूं नफ़ा नहीं होता ।।
दिल जलाने की बात छुप जाती ।
गर धुंआ कुछ उठा नहीं होता ।।
गर इशारा ही आप कर देते ।
मैं कसम…
Added by Naveen Mani Tripathi on June 10, 2018 at 2:15pm — 11 Comments
अकुलायी थाहें
कटी-पिटी काली-स्याह आधी रात
पिघल रहा है मोमबती से मोम
काँपती लौ-सा अकुलाता
कमरे में कैद प्रकाश
आँखों में चिन्ता की छाया
ऐसे में समाए हैं मुझमें
हमारे कितने सूर्योदय
कितने ही सूर्यास्त
और उनमें मेरे प्रति
आत्मीयता की उष्मा में
आँसुओं से डबडबाई तेरी आँखें
तैर-तैर आती है रुँधे हुए विवरों में
तेरी-मेरी-अपनी वह आख़री शाम
पास होते हुए भी मुख पर…
ContinueAdded by vijay nikore on June 10, 2018 at 12:13pm — 18 Comments
"स्कूल में दीदी की तरह मुझे भी मेरी मम्मी और टीचर ने सिखाया था कि कब क्या करना है और कब क्या नहीं? लेकिन मम्मी की तरह शायद दीदी भी न बच पायी!" मौक़ा पाते ही पीछे के छोटे से खपरैल वाले कमरे में लालटेन की रौशनी में अपनी आंसुओं को पीती सी हुई उसने बड़ी हिम्मत के साथ आगे लिखा -"मम्मी पर तो पूरे परिवार की ज़िम्मेदारियाँ हैं, सो वह साहब की सब सहती रही, पैसों की जुगाड़ करती रही! लेकिन जब मेरी दीदी ने साहब के 'बेड-टच' की शिक़ायत मम्मी से की, तो यही जवाब मिला था कि "किसी से कुछ मत कहना, अब तो वैसा भी आम…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on June 10, 2018 at 10:44am — 5 Comments
बिजली – लघुकथा -
"गुड्डो बेटा, क्यों इस लालटेन की रोशनी में आँखें फ़ोड़ रही है। थोड़ा इंतज़ार करले, बिजली का"।
गुड्डो के कुछ बोलने से पहले ही उसकी माँ बोल पड़ी," तुम्हारी बिजली ना आज आयेगी ना कल। छोरी को लालटेन से ही पढ़ने दो"।
"अरे भाग्यवान, मैं तो इसके भले की बात कर रहा हूँ। लड़की जात है। चश्मा लग गया तो शादी में भी अड़चन पड़ेगी"।
"कुछ ना होता।बबली इसी लालटेन से पढ़कर डाक्टर बन गयी और आँखें भी सही सलामत हैं।इस बिजली के भरोसे कब तक बैठे रहो"।
"आज पंचायत में विधायक…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on June 9, 2018 at 10:33pm — 14 Comments
है अगर कोई मुसीबत,
हम तुम्हारे साथ हैं।
है अगर कोई फजीहत, हम तुम्हारे साथ हैं॥
गूँजती हैं तूतियाँ,
नक़्क़ारखानों में मगर।
शहनाईओं की हो ज़रूरत, हम तुम्हारे साथ हैं॥
पाँव में छाले लिए वह
दूर से आया बहुत।
उठ उसे देदो नसीहत, हम तुम्हारे साथ हैं॥
आँधी औ तूफान से वह
रुक न पाएगा कभी।
संघर्ष ने की थी वसीयत, हम तुम्हारे साथ हैं॥
लौट कर आई…
ContinueAdded by SudhenduOjha on June 9, 2018 at 9:00pm — No Comments
1212 1212 1212 12
बहक गया अगर समां ख़ुदा न ख़्वास्ता
बिखर गया अगर जहाँ ख़ुदा न ख़्वास्ता
चिराग़ हम लिये खड़े यही तो सोचकर
भटक गया जो कारवाँ ख़ुदा न ख़्वास्ता
उठाना मत सनम निकाब मुझको देखकर
मचल उठा जो दिल जवां ख़ुदा न ख़्वास्ता
पता चमन का तुम उसे न देना दोस्तों
इधर मुड़ी अगर खिजाँ ख़ुदा न ख़्वास्ता
किया क्या इंतज़ाम आग को बुझाने का
अगर उठा कहीं धुआँ ख़ुदा न ख़्वास्ता
उड़ी हुई मेरी है नींद इस ख़याल से
बढ़ी जो…
Added by rajesh kumari on June 9, 2018 at 12:42pm — 22 Comments
2122 1122 1122 22
तम की रातों में कहीं दूर उजाला देखो
डूबती नाव को तिनके का सहारा देखो।१।
दिन जो तपता हो तो रोओ न उसे तुम ऐसे
धूप कोमल सी हो जिसमें वो सवेरा देखो।२।
कहने वालों ने कहा है कि ये दुनिया घर है
हो मयस्सर तो कभी घूम के दुनिया देखो।३।
आप हाकिम हो रहो दूर तरफदारी से
न्याय के हक में न अपना न पराया देखो।४।
सिर्फ कुर्सी की सियासत में रहो मत डूबे
कैसे करता है ये…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 8, 2018 at 7:00pm — 18 Comments
धीरे धीरे आओ चन्दा
धीरे धीरे आओ
होंठों पर मुस्कान सजाये
सोया है मृग छौना
आहट से तेरी टूटेगा
उसका ख्वाब सलोना
बात समझ भी जाओ चन्दा
धीरे धीरे आओ
तुम चलते हो पीछे पीछे
चलते हैं सब तारे
और तुम्हारी सुंदरता पर
इठलाते हैं सारे
तुम तो मत इतराओ चन्दा
धीरे धीरे आओ
ऐसे भी कुछ घर आँगन हैं
बसते जहाँ अँधेरे
भूख वहाँ करताल बजाये
संध्या और सबेरे
उस दर भी मुस्काओ चन्दा
धीरे…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 8, 2018 at 6:30pm — 18 Comments
उम्र के पन्नों पर....
उम्र के पन्नों पर
कितनी दास्तानें उभर आयी हैं
पुरानी शराब सी ये दास्तानें
अजब सा नशा देती हैं
हर कतरा अश्क का
दास्ताने मोहब्बत में
इक मील का पत्थर
नज़र आता है
रुकते ही
वक़्त
ज़हन को
हिज़्र का वो लम्हा
नज़्र कर जाता है
जब
किसी अफ़साने ने
मंज़िल से पहले
किसी मोड़ पर
अलविदा कह दिया
नगमें
दर्द की झील में नहाने लगे
किसी के अक्स
आँखों के समंदर
सुखाने…
Added by Sushil Sarna on June 8, 2018 at 6:24pm — 10 Comments
हाँ , हमें अभी और देखना है
टूटते शहर का मंज़र
रिश्तों में उलझी संवेदनहीनता का दंश
अपनों के बीच परायेपन का अहसास
घुट घुटकर रोज़ मरना
पीढ़ियों के अंतर की गहरी खाई में गिरना
निर्मम व्यवस्था का शिकार होना
हाँ, हमें अभी और देखना है
लालच का उफनता समुद्र
अकेलेपन के चुभते काँटें
बीमार बाप के लरजते हाथ
झुर्रियों की ख़ामोशियाँ
बेचैन माँ की प्रतीक्षा
कर्कश तरंगों का शोर
विघटन की शैतानी लकीरें
भरोसे में लालच के दैत्य
ठहरा…
Added by Mohammed Arif on June 8, 2018 at 10:00am — 14 Comments
122 122 122 122
जरूरत नहीं अब तेरी रहमतों की ।
हमें भी पता है डगर मंजिलों की ।।
है फ़ितरत हमारी बुलन्दी पे जाना ।
बहुत नींव गहरी यहाँ हौसलों की ।।
अदालत में अर्जी लगी थी हमारी ।
मग़र खो गयी इल्तिज़ा फैसलों की ।।
भटकती रहीं ख़्वाहिशें उम्र भर तक ।
दुआ कुछ रही इस तरह रहबरों की ।।
उन्हें जब हरम से मुहब्बत हुई तो ।
सदाएं बुलाती रहीं घुघरुओं की ।।
न उम्मीद रखिये वो गम बाँट लेंगे…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on June 7, 2018 at 9:45pm — 14 Comments
‘‘बिटिया की उम्र निकली जा रही है, तुम उसकी कहीं शादी क्यों नहीं करते?’’ हर कोई उससे यही सवाल करता। कल तो सुपरवाइजर ने भी टोक दिया, ‘‘कलेक्टर ढूँढ रहे हो क्या?’’
मिल में काम करने वाले उस मजदूर का सपना कोई कलेक्टर नहीं बस एक अच्छा सा लड़का था जिसे वह अपनी बेटी के लिए ढूँढ रहा था। बीमारी से बीवी के गुज़र जाने के बाद बस एक बेटी ही थी जो उसका सबकुछ थी। बीते सालों में उसने रात-दिन एक कर के कई रिश्ते देखे मगर बात कहीं बनी नहीं। आज भी वह एक ऐसी ही जगह से निराश हो कर लौटा था। ‘‘बेटी!’’…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on June 7, 2018 at 5:30pm — 16 Comments
है अँधेर नगरी चौपट का राज है.
हंसों को काला पानी, कौवों को ताज है.
आईन का मसौदा ऐसा बुना बुजन नें.
घोड़ों की दुर्गति खच्चर पे नाज है.
माज़ी के जो गुलाम हुक्काम हो गए.
शाहाना आज देखो उनके मिज़ाज है.
अंगुश्त-कशी का मुजरिम वो बादशाहे इश्क.
मुमताज जिसकी जिन्दा जमुना का ताज है.
‘हिन्दुस्तान’ कहता हरदम खरी-खरी.
लफ्जे-दलालती बस ग़ज़ल का रिवाज है.
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Ganga Dhar Sharma 'Hindustan' on June 7, 2018 at 3:30pm — 5 Comments
मुद्दतों बाद जब देखा उन्हें तो,
कुछ हुआ ऐसा-
जो रखने राज थे,
उनका भी हम इज़हार कर बैठे।।
तमाम उम्र से ज़ुल्मत भरी,
आँखों में थी लेकिन-
वो होकर रूबरू,
दीदा-ए-नम बेदार कर बैठे।।
अभी तक जो किया करते थे,
बस तक्ज़ीब उल्फत को-
पशेमाँ हो गये अब,
वो जो हमसे प्यार कर बैठे ।।
मुसलसल खुद हमें ताका किये,
वो शोख नज़रों से-
जो खोले लव,
फकत एक बोस पर तकरार बैठे ।।
बेसबब तोहबतें हम पर लगाकर,
हो गये…
Added by रक्षिता सिंह on June 7, 2018 at 2:18pm — 9 Comments
अंतिम दर्शन हेतु उसके चेहरे पर रखा कपड़ा हटाते ही वहाँ खड़े लोग चौंक उठे। शव को पसीना आ रहा था और होंठ बुदबुदा रहे थे। यह देखकर अधिकतर लोग भयभीत हो भाग निकले, लेकिन परिवारजनों के साथ कुछ बहादुर लोग वहीँ रुके रहे। हालाँकि उनमें से भी किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी कि शव के पास जा सकें। वहाँ दो वर्दीधारी पुलिस वाले भी खड़े थे, उनमें से एक बोला, "डॉक्टर ने चेक तो ठीक किया था? फांसी के इतने वक्त के बाद भी ज़िन्दा है क्या?"
दूसरा धीमे कदमों से शव के पास गया, उसकी नाक पर अंगुली रखी और…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on June 6, 2018 at 6:00pm — 17 Comments
२२२२ २२२२ २२२२ २२२
पोथा पढ़ना पंडित भूले शुभ मंगल में आग लगी
जो माथे को शीतल करता उस संदल में आग लगी।१।
जहर भरा है खूब हवा में हर मौसम दमघोटू है
पंछी अब क्या घर लौटेंगे जिस जंगल में आग लगी।२।
कैसी नफरत फैल गयी है बस्ती बस्ती देखो तो
जिसकी छाँव तले सब खेले उस पीपल में आग लगी।३।
धन दौलत की यार पिपासा इच्छाओं का कत्ल करे
चढ़ते यौवन जिसकी चाहत उस आँचल में आग लगी।४।
किस्मत फूटी है हलधर की नदिया पोखर सब…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 6, 2018 at 4:55pm — 19 Comments
2122 2122 212
लोग कब दिल से यहाँ बेहतर मिले ।
जब मिले तब फ़ासला रखकर मिले ।।
है अजब बस्ती अमीरों की यहां ।
हर मकाँ में लोग तो बेघर मिले ।।
तज्रिबा मुझको है सापों का बहुत ।
डस गये जो नाग सब झुककर मिले ।।
कर गए खारिज़ मेरी पहचान को ।
जो तसव्वुर में मुझे शबभर मिले ।।
मैं शराफ़त की डगर पर जब चला ।
हर कदम पर उम्र भर पत्थर मिले ।।
मौत से डरना मुनासिब है नहीं…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on June 6, 2018 at 3:38pm — 20 Comments
मफ ऊल _फाइलात_ मफाईल _फाइलुन
उलफत की गर नहीं तो अदावत की बात कर |
मेरे हबीब सिर्फ़ तू क़ुरबत की बात कर |
दीदार कर के आया हूँ मैं एक हसीन का
मुझ से न यार आज क़यामत की बात कर |
लोगों के बीच होने लगीं ख़त्म उलफतें
मज़हब के नाम पर न सियासत की बात कर |
तदबीर पर है सिर्फ नजूमी मुझे यकीं
तू देख कर लकीर न क़िस्मत की बात कर |
ईमान बेचता नहीं मैं हूँ सुखन सरा
मुझ से मेरे अज़ीज़ न दौलत की बात कर…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on June 6, 2018 at 3:30pm — 19 Comments
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