Added by atul kushwah on July 16, 2014 at 10:34pm — 8 Comments
आत्मपीडा में अनुभूति सुख की लिए
दग्ध होता रहा अनुभवो में सदा
सत्य ही उस करुण के ह्रदय कोश में
पल रहा कोई जीवंत अनुराग है i
मृत्यु आती नहीं चैन मिलता नहीं
युद्ध होता है विष चेतना में प्रबल
दंश लेता है जब फिर न देता लहर
क्रुद्ध फुंकारता नेह का नाग है i
मौन बेसुध पड़ा प्राण के अंक में
याद की वेदना में सजल जो हुआ
स्वेद-श्लथ गात में कुछ चुभन सी लिए
स्नेह सोया हुआ था गया जाग है i
सिसकियो…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 16, 2014 at 8:30pm — 28 Comments
" अरे..! आओ बेटा रजनी, और सुनाओ कैसी हो..? . बड़े दिनों बाद आना हुआ.. अरे हाँ तुमने अपने बेटे , बिट्टू को नही लाई. वो वहां तुम्हारे बिन रोयेगा तो.." राधेश्याम जी ने अखबार के पन्नो की घड़ी करते हुए कहा
" प्रणाम चाचाजी....सब कुछ कुशल है.. बिट्टू तो बहुत परेशान करने लगा था , दिन भर मम्मी मम्मी ..!! . मैंने उसे टेलीविजन का ऐसा शौक लगाया है की, उसे मेरी बिलकुल भी जरुरत नहीं. शाम तक आराम से जाउंगी.." रजनी ने बड़ी चैन की सांस लेते हुए…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on July 16, 2014 at 8:26pm — 20 Comments
मील का पत्थर …
कल जो गुजरता है....
जिन्दगी में....
एक मील का पत्थर बन जाता है//
और गिनवाता है....
तय किये गये ....
सफर के चक्र की....
नुकीली सुईयों पर रखे....
एक-एक कदम के नीचे....
रौंदी गयी....
खुशियों के दर्द की....
न खत्म होने वाली दास्तान//
दिखता है ....
यथार्थ की....
कंकरीली जमीन पर....
कुछ दूर साथ चले....
नंगे पांवों…
Added by Sushil Sarna on July 16, 2014 at 7:00pm — 11 Comments
अटूट बंधन
कल रात भर आसमान रोता रहा
धरती के कंधे पर सिर रख कर
इतना फूट फूट कर रोया कि
धरती का तन मन
सब भीगने गया
पेड़ पौधे और पत्ते भी
इसके साक्षी बने
उसके दर्द का एक एक कतरा
कभी पेडो़ं से कभी पत्तों में से
टप-टप धरती पर गिरता रहा
धरती भी जतन से उन्हें
समेटती रही,सहेजती रही
और..
दर्द बाँट्ने की कोशिश करती रही
ताकि उसे कुछ राहत मिल जाए
**********************
महेश्वरी…
ContinueAdded by Maheshwari Kaneri on July 16, 2014 at 6:34pm — 8 Comments
एक गज़ल
वज्न- 122 122 122 12
मेरे दिल को तुझसे वफ़ा चाहिए
न जख्म ए जिगर फिर नया चाहिए
~
है अरसा हुआ मै हूँ अब भी वहीँ
तेरे दिल से निकली सदा चाहिए
~
जो बीमार को कर सके है भला
किसी हाथ में वो शिफ़ा चाहिए
~
ये हैं इन्तेज़ामात तेरे ख़ुदा
है किसने कहा इब्तिला* चाहिए दुःख
~
जो दिल हैं परेशां जफ़ा से यहाँ
महज़ उनके खातिर दुआ…
ContinueAdded by वेदिका on July 16, 2014 at 12:02pm — 30 Comments
२२ १२२२ २१२ २१२ २२
कोशिस मसीहा बनने की जब कर रहा है तू
तो सूलियों पे चढ़ने से क्यूँ डर रहा है तू ?
मैंने सुना तू सोने को मिट्टी बताता है
क्यूँ फिर तिजोरी सोने से ही भर रहा है तू ?
सबको दिखाया करता है तू मुक्ति के पथ ही
खुद सोच क्यूँ घुट घुट के ही यूं मर रहा है तू ?
तूने उठायी उंगली सभी के चरित्र पर है
सबको खबर रातों में कहाँ पर रहा है तू
ले नाम क्यूँ मजहब का लड़ाता सभी को…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on July 15, 2014 at 4:30pm — 21 Comments
2122 1212 22/112
हो किसी बात पर यकीं यारो
हौसला दिल में अब नहीं यारो
इक दफ़ा शोरे इन्क़िलाब उठा
दब गई फिर सदा वहीं यारो
काफिले रौशनी के दूर हुए
छुप गया चाँद भी कहीं यारो
दिल सुलगता है मेरा रह-रह के
बैठे चुपचाप हमनशीं यारो
आबले पड़ गये हैं पैरों में
गर्म होने लगी ज़मीं यारो
आइने का बिगड़ता क्या लेकिन
तर हुई खूँ से ये ज़बीं यारो
मेरा महबूब बनके इस ग़म…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on July 15, 2014 at 4:24pm — 21 Comments
मेलबोर्न, औस्ट्रेलिया यात्रा का एक सुखद संस्मरण बाँटना चाहूँगी । जैसे मै भीगी आपको भी यादों की बारिश में भिगोना चाहूँगी . बड़ी -बड़ी मिलों , कारखानों वाले क्षेत्रों को पार करते हुए , नेशनल पार्क में संरक्षित ,सड़कों के किनारे लगाई गई फेंसिंग के समीप तक आ गए कंगारुओं के झुण्ड का विहंगम अवलोकन करते हुए हम प्राचीन गाँव सोरेन्टो आ गए। . इतिहास को गर्भ में रखे हुए ऑस्ट्रेलियाई सभ्यता व् संस्कृति का भरपूर जायज़ा यहां लिया जा सकता है। यहाँ का समुद्री तट भी उतना ही रम्य.
सागर के सीने पे…
Added by mrs manjari pandey on July 15, 2014 at 2:30pm — 3 Comments
“आज तो आप कुछ ज्यादा ही देर से आईं है, आपने तीन पीरीयड मिस कर दिए" सरकारी स्कूल की अध्यापिका ने दूसरी अध्यापिका से कहा
“क्या बताऊँ, मुन्ने के स्कूल में आज ‘पेरेन्ट-टीचर मीट’ थी, सो वहाँ जाना बहुत ही जरूरी था, अब आप तो जानती ही हैं कि कान्वेंट स्कूलों में अनुशासन का कितना ध्यान रखा जाता है।”
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by Ravi Prabhakar on July 15, 2014 at 12:30pm — 7 Comments
2122 2122 2122 2122
********************************
चल पड़ी नूतन हवा जब से शहर की ओर यारो
गाँव के आँगन उदासी, भर रही हर भोर यारो
**
अब बुढ़ापा द्वार पर हर घर के बैठा है अकेला
खो गया है आँगनों से बचपनों का शोर यारो
**
ढूँढते तो हैं शिरा हम, गाँव जाती राह का नित
पर यहाँ जंजाल ऐसा मिल न पाता छोर यारो
**
हो गये कमजोर रिश्ते, अब दिलों के धन की खातिर
मंद झोंके भी चलें तो टूटती हर डोर …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 15, 2014 at 11:08am — 11 Comments
2122 2122 2122 2
कोई तो मंज़र कभी अच्छा दिखाई दे
एक तो आदम कभी सच्चा दिखाई दे
आपा धापी से लगे हैं पस्त हर कोई
कोई तो मिल जाये जो ठहरा दिखाई दे
उथलों में कब ठहरा है बरसात का पानी
ढूँढता है ताल , जो गहरा दिखाई दे
भावनायें गूंगी हो कोनों में हैं सिमटीं
शब्द क़ैदी सा लगा, पहरा दिखाई दे
कोयला जो राख के नीचे दबा था कल
ये हवा कैसी ? कि वो दहका दिखाई दे…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on July 15, 2014 at 11:00am — 21 Comments
आई बरखा झूमती
कलियों का मुख चूमती
पवन झकोरे सर-सर करते
डाली –डाली झूमती
आँगन की महके है माटी
गमले में तुलसी लहराती
बैठ झरोके टुक –टुक देखूँ
भीगी मोरें नाचती
अंबर पर मेघों का पहरा
श्याम रंग फैला है गहरा
मेघों की धड़के है छाती
पपीहा टेर सुहाती
महक उठी कृषकों की पौरें
धीमी हो गई रहट की दौड़ें
गीली हो गई दिन और रातें
नई उमंगें झाँकती
मौलिक व…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on July 14, 2014 at 11:00pm — 10 Comments
ऊपर क्या है
सुनील आसमान I
तारक , सविता , हिमांशु
सभी भासमान I
बीच में क्या है ?
अदृश्य ईथर
कल्पना हमारी I
क्योंकि
ध्वनि और प्रकाश
नहीं चलते बिना माध्यम के
वैज्ञानिक सोच है सारी I
नीचे क्या है ?
सर ,सरि, सरिता, समुद्र, जंगल, झरने
उपवन में है पंकज, पाटल ,प्रसून
आते है मिलिंद, मधु-कीट, बर्र
तितलियाँ रंग भरने I
चारो ओर मैदान, पठार .पर्वत, प्रस्तर
घाटी, गह्वर,…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 14, 2014 at 3:30pm — 21 Comments
वो घर ग़मज़दा था
ग़म का मैक़दा था
कुछ चिंगारियां थी
बाकी तो धुंआ था
हवा की सरसराहट
अजब सन्नाटा था
दरो दीवार सीली थी
वो रात भर रोया था
शक इक वज़ह थी
घर बिखर गया था
.
मुकेश इलाहाबादी ---
मौलिक/अप्रकाशित
Added by MUKESH SRIVASTAVA on July 13, 2014 at 11:00pm — 8 Comments
सुपरिष्कृत आस्था
भर्रायी आवाज़
महीने हो गए जाड़े को गए
क्यूँ इतनी ठिठुरन है आज
आस्था में, सचेतन में मेरे
आंतरिक शोर के ताल के छोर से छोर तक
ठेलती रही है आस्था मुझको, मैं इसको
पर आज बुखार में…
ContinueAdded by vijay nikore on July 13, 2014 at 8:00pm — 22 Comments
2122/ 2122/ 2122/ 212
इस ख़मोशी से कभी तो एक मुबहम शोर से
दिल धड़कने लगता है क्यूँ मेरा इतनी ज़ोर से
कौन सा है रास्ता महफूज़ जाऊँ किस तरफ़
आफ़तें तो आफ़तें हैं आयें चारों ओर से
एक झटके में बिखर जाते हैं रिश्ते टूटकर
इतना क्यूँ मुश्किल इन्हें है बाँधना इक डोर से
और कितने राज़ अँधेरा अब छुपा ही पाएगा
इक किरण उठने लगी आफ़ाक़ के उस छोर से
बेसदा टूटा है दिल मेरा ये हालत हो गई
आँसुओं के नाम पर…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on July 13, 2014 at 7:45pm — 17 Comments
२१२२ २१२२ २…
ContinueAdded by gumnaam pithoragarhi on July 13, 2014 at 1:01pm — 8 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on July 13, 2014 at 10:39am — 6 Comments
खिली रातरानी यहाँ,हुई रुपहली रात!
कानों में आ फिर कहो,वही प्यार की बात !!
अधरों से बातें करें,नयनों से आदेश!
घायल कर जाती सदा,झटके जब वे केश !!
कर में कर लेकर किया,हमने यूँ अनुबंध!
खिला रहे फूले फले,प्यारा मृदु सम्बन्ध !!
वही रुपहली रात है,सुन्दर सुखद प्रभात!
लेकिन तुम बिन हो प्रिये,किससे मन की बात !!
दीवाना कुछ यूँ हुआ,न दिवस दिखे न रात !
खुद से ही करने लगा,बहकी बहकी…
Added by ram shiromani pathak on July 12, 2014 at 6:00pm — 7 Comments
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