प्रगति पथ पर चलो निरंतर
न किसी का भय न कोई डर
करना है कुछ अलग सा काम
चाहे हो जाए जीवन तमाम
पर चले चलो अ-विराम
कांटो सी राह पर चलते है जाना
सूरज की आग में जलते है जाना
रोशन करना है जग में नाम
चाहे हो जाए जीवन तमाम
पर चले चलो…
ContinueAdded by Ranveer Pratap Singh on August 7, 2012 at 11:33pm — 5 Comments
Added by Ashish Srivastava on August 7, 2012 at 9:00pm — 8 Comments
धोती मुनिया फर्श को, मुन्ना माँजे प्लेट |
कल का भारत देख लो, ऐसे भरता पेट ||
ऐसे भरता पेट, और ये नेता सारे,
चलते सीना तान, लगा के जमकर नारे |
नहीं तनिक है शर्म, कहाँ है जनता सोती,…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 7, 2012 at 6:00pm — 18 Comments
हरी-हरी धरती भई.....
Added by AVINASH S BAGDE on August 7, 2012 at 2:00pm — 7 Comments
यहाँ आजाद है हर सख्स थोपा जा रहा है क्यूँ
लडूं अधिकार की गर जंग रोका जा रहा है क्यूँ
हुआ है आज का हर आदमी अब तो सलामत-रौ
बदन पे आज कपडा तंग होता जा रहा है क्यूँ
नहीं बेफिक्र है लोगो जिसे हालात है मालुम
जवाँ फिर आज मूंदे आँख सोता जा रहा है क्यूँ
सलीका इश्क करने का कभी आया नहीं लेकिन
जिसे देखो दिलों में आग बोता जा रहा है क्यूँ
खुदी मसरूफ है फिर भी शिकायत वक़्त से करता…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 7, 2012 at 11:44am — 14 Comments
"कील चुभी वो नहीं विलग "
वे कहते हैं सब भूल गये
हम कहते कुछ भी याद नहीं
कारण मैंने भी किया वही
जो उसने पिछले साल किये
अब उसके भी एक आगे है
मेरे भी पीछे बाँध दिए !!
रस्में पूर्ण समाज…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 7, 2012 at 1:02am — 19 Comments
कह-मुकरी
(1)
पल में सारा गणित लगाये
इन्टरनेट पर फिल्म दिखाये
मेरे बच्चों का वह ट्यूटर.
ऐ सखि साजन? नहिं कम्प्यूटर..
(2)
बड़ों-बड़ों के होश उड़ाये
अंग लगे अति शोभा पाये
डरती जिससे दुनिया सारी
क्या वो नारी? नहीं कटारी!!
(3)
रहे मौन पर साथ निभाये
मैडम का हर हुक्म बजाये
नहीं आत्मा रहता बेमन
ऐ सखि रोबट? नहिं मन मोहन!!
(4)
मोहपाश में नित्य फँसाये
सास-बहू हैं घात…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on August 7, 2012 at 12:30am — 25 Comments
रात की सन्नाटगी बोलने लगी है, कानों की वीरानियाँ सुनने. कालोनी की सडकों पे तन्हाईयों के डेरे लग चुके हैं और घरों में लोग अपने अपने बिस्तर पे कटे दरख्तों की मानिंद बिछ से गए हैं. किसी किसी घर से टीवी के चलने की आवाज़ भी आ रही है, पता नहीं देखने वाला जाग भी रहा है या सो रहा है. लोग इक समूचे दिन को पीछे छोड़ आए हैं और रोज़मर्रा की तमाम कदोकाविश (भाग दौड़) जैसे उनके कपड़ों के साथ आलमीरों में टंग गई है इक रात के आराम के लिए. जूते मेज के किनारे चुपचाप पड़े हैं, उनके तस्में (फीते) लहराते अंदाज़ में…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on August 7, 2012 at 12:28am — No Comments
१. नहीं किसी से हूँ चिढ़ा, आता खुद पे रोष |
मुझमें ही सारी कमी, मुझमें सारा दोष ||
२. मैं ही पूरा आलसी, सोता हूँ दिन-रात |
नहीं ठहरती जीत तो, कौन अनोखी बात ||
३. मुझमें ही है वासना, मुझमें है आवेश |
मक्कारी की खान मैं, धर साधू का वेश ||
४. मन को कलुषित कर लिया, लाता नहीं सुधार |
हरा दिया हठ ने मुझे, कर डाला लाचार ||
५. करने थे सत्कर्म पर, किये बहुत से पाप |
इतना नीचे हूँ गिरा, सोच न सकते आप ||
६. जीत गई हैं इन्द्रियाँ, मिली मुझे है हार…
ContinueAdded by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 6, 2012 at 11:08pm — 10 Comments
भाव निर्झरणी बहे बस है विनत यह कामना
जब लिखे दिल से लिखे कवि,सत्य हो या कल्पना
परख सत्यासत्य की रख ,सृजन पथ गढ़ते रहें
त्याग व्यष्टि समष्टि हित ,शब्द नद भरते रहें
कर नवल,चिंतन,मनन शुभ ,गूंथ माला काव्य की
शारदे माँ की हृदय से कवि करो तुम अर्चना
भाव निर्झरणी बहे बस है विनत यह कामना
जब लिखे दिल से लिखे कवि,सत्य हो या कल्पना …
Added by seema agrawal on August 6, 2012 at 11:00pm — 17 Comments
आज मुझ पे हसीं इल्ज़ाम लगाया उसने,
मेरे सोते हुए बातिन को जगाया उसने।
मुझसे बोला के ये क्या रोग लगा बैठा है,
धूप निकली है अन्धेरे में छुपा बैठा है?
तुझको दुनिया की जो तकलीफ का हो अन्दाज़ा,
अपनी मायूसियों के खोल से बाहर आ जा।…
ContinueAdded by इमरान खान on August 6, 2012 at 3:33pm — 7 Comments
नेताजी (कुण्डलिया-2)
Added by Dr.Prachi Singh on August 6, 2012 at 2:30pm — 15 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 6, 2012 at 12:30pm — 7 Comments
कविताये कैसे बनती है
Added by Sonam Saini on August 6, 2012 at 12:00pm — 16 Comments
सावन नभ पर छा गया, हरियाए सब खेत/
हरियाली छा ने लगी, ओझल बालू रेत//
ओझल बालू रेत, हरित होते सब जंगल/
कल कल नदी का शोर, बहे झरने भी…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on August 6, 2012 at 12:00am — 9 Comments
तृष्णा की कोख से जन्मा
वासनाओं के साये में पला
एक मनोभाव है दुःख ;
सांसारिक माया से भ्रमित
षटरिपुओं से पराजित
अंतस की करुण पुकार है दुःख ;
स्वार्थ का प्रियतम
घृणा का सहचर
भोगलिप्सा की परछाई है दुःख ;
वैमनस्य का मूल्य
भेदभाव का परिणाम
आलस्य का पारितोषिक है दुःख ;
अधर्म से सिंचित
अमानवीय कृत्यों की
एक निशानी है दुःख ;
कलुषित मन की
कुटिल चालों का
सम्मानित अतिथि है दुःख ;
निरर्थक संशय से उपजी
मानसिक स्थिति का
एक नाम…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 5, 2012 at 8:23pm — 22 Comments
ये जो शहरेवीराँ ये बस्तीएतन्हाई है
आदमोहव्वाकी यही दौलतेआबाई है
चलिए रखके अपनी रफ़्तार पे काबू
ख्यालोंका शह्र है आबादीहीआबादी है
कोई रोटी चाहे फूली, या न फूली हो
तवे से आखिर उतार ही दी जाती है
ख्वाबोंसे लाख बनाऊं घरौंदे जीने के
सफ़र लंबाहै और मुकाम इब्तेदाई है
तू फ़िक्रज़दा होती है तो यूँ लगता है
एक चिड़या है, बिल्ली से घबराती है
नसही तू तेरे नामसे वाबस्तगी सही
तुझसे…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on August 5, 2012 at 7:00pm — 4 Comments
कोई दिन यूँ ही उदास सा बारिश का, इक नीम के दरख्त सा खड़ा, बिना परिंदों का, न ही कोई फूल महकते, न ही कोई चिड़िया चहकती, बस बारिश की बूंदों को टपकाते ख्यालों से चुप, ऊँचाइयों को छूते शज़र, पानी और नमी से झुके-झुके.
सुबह से बादलों के काले सायों का आँचल ओढ़ रखा है फ़ज़ा ने, घरों ने भी जैसे खामोशी की बरसाती ओढ़ रखी है, पहचाने घर भी पराए से लगते हैं. गली में कुत्ते भी भागते छुपते शायद ही नज़र आते, लोग भी कम ही दीखते हैं नुक्कड़ की दूकानों के इर्द गिर्द, गाड़ियों ने भी गोया आज…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on August 5, 2012 at 3:30pm — 2 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 5, 2012 at 2:00pm — 14 Comments
नेताजी का हो गया, कवियित्री से ब्याह,
नेतानी कविता लिखें, उनकी निकले आह,
उनकी निकले आह, सुनें जब भी वो दोहा,
लिखना विखना छोड़ पकाना सीखो पोहा,
चलो डार्लिंग किटी, रमी में जीतो बाजी,
समझाते हैं मस्त, नेतानी को नेताजी .......
Added by Dr.Prachi Singh on August 5, 2012 at 1:30pm — 28 Comments
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