!! आओ बैठे बात करे !!
कुछ तुम्हारे कुछ हमारे आओ बँया जज्बात करे ।
आओ बैठे बात करे, आओ बैठे बात करे ।
गुजर गये जो लम्हे प्यारे, आओ उनको याद करे ।
आओ बैठे बात करे, आओ बैठे बात करे ।
क्या याद है वो माली काका, जिसके आम चुराया करते थे ।
क्या याद है वो अब्बू चाचा, जिसकी भेड छुपाया करते थे ।
क्या याद है…
ContinueAdded by बसंत नेमा on September 10, 2013 at 12:30pm — 17 Comments
सुनो ,
व्यर्थ गई तुम्हारी आराधना !
अर्घ्य से भला पत्थर नम हो सके कभी ?
बजबजाती नालियों में पवित्र जल सड़ गया आखिर !
मैं देव न हुआ !
सुनो ,
प्रेम पानी जैसा है तुम्हारे लिए !
तुम्हारा मछ्लीपन प्रेम की परिभाषा नहीं जानता !
मैं ध्वनियों का क्रम समझता हूँ प्रेम को !
तुम्हारी कल्पना से परे है झील का सूख जाना !
मेरे गीतों में पानी बिना मर जाती है मछली !
(मैं अगला गीत “अनुकूलन” पर लिखूंगा !)
सुनो…
ContinueAdded by Arun Sri on September 10, 2013 at 11:30am — 23 Comments
ऐंड़ा पेड़ा खाय लें, लेढ़ा जूठन खात |
टेढ़े-मेढ़े साथ में, टेढ़े-टेढ़े जात |
टेढ़े-टेढ़े जात, जात में पूछ बढ़ाये |
खेड़े बेड़े नात, मात त्यौरियाँ चढ़ाए |
टाँय टाँय पर फुस्स, कहीं कुछ नहीं निबेड़ा |
रहा स्वयं ही ठूस, भरे घर रविकर-ऐंड़ा ||
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on September 10, 2013 at 11:01am — 7 Comments
वो देश जहाँ नारी महिमा, सदियों से गायी जाती है ।
Added by Anil Chauhan '' Veer" on September 10, 2013 at 9:00am — 19 Comments
जल-प्रलय
कुदरती कहर
नष्ट जीवन !!
कटते वन
प्रदूषित नदियाँ
विनाशलीला !!
लालची जन
प्राकृतिक आपदा
दोषी है कौन !!
दंगा-फसाद
मजहबी दीवार
यही है धर्म !!
कौम से प्यार
मानवता समाप्त
खून सवार !!
कुर्सी का खेल
देशभक्ति विलुप्त
दोषी को बेल !!
(मौलिक व अप्रकाशित)
प्रवीन मलिक .....
Added by Parveen Malik on September 10, 2013 at 7:30am — 14 Comments
तज़्मीन-- किसी अन्य शायर के शेर पर, शेर से पहले तीन पंक्तियाँ नई इस तरह से जोडना कि वे पंक्तियाँ उसी शेर का अविभाज्य अंग लगें। मैं डा. सत्य प्रकाश तफ़्ता ज़ारी के दो शेरों पर दो तज़्मीन पेश कर रहा हूँ। गौर फरमाईयेगा।
1.
जिन्दगी सुन्दर बगीचा फूल,चुन
कह रहे कुछ ख़्वाब तेरे,उनको सुन
तेरे अन्दर बज रही संगीत धुन-------सूबे सिंह सुजान
हो सके ग़ाफिल। अगर तू उसको सुन,
तेरे अन्दर जो तेरी आवाज़ है।। -----डा. सत्य प्रकाश तफ़्ता…
ContinueAdded by सूबे सिंह सुजान on September 9, 2013 at 11:00pm — 13 Comments
देवों में जो पूज्य प्रथम है, सबके शीघ्र सँवारे काम।
मंगल मूरत गणपति देवा, है वो पावन प्यारा नाम।
भक्ति भरा हर मन हो जाता, भादों शुक्ल चतुर्थी पर,
सुंदर सौम्य सजी प्रतिमा से, हर घर बन जाता है धाम।
भोग लगाकर पूजा होती, व्रत उपवास किए जाते,
गणपति जी की गाई जाती, आरति मन से सुबहो शाम।
चल पड़ती जब सजकर झाँकी, ढ़ोल मँजीरे साथ लिए,
झूम उठता यौवन मस्ती में, और सड़क पर लगता जाम।
फिर फिर से हर साल…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on September 9, 2013 at 8:30pm — 11 Comments
2122 1212 22
धूप हमको निचोड़ देती है ,
ठंड घुटने सिकोड़ देती है ।
पत्तियों को बड़ी शिकायत है,
ये जड़ें भूमि छोड़ देती हैं।
चर्चा मुद्दे पे जब भी आती है,
जाने क्यूँ राह मोड़…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 9, 2013 at 7:00am — 19 Comments
घर में शामो सहर पड़ी बेटी
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Sushil Thakur on September 9, 2013 at 12:00am — 11 Comments
जाने क्या क्या लोग कहेंगे , किस किस को समझाओगे ,
जिसको वफ़ा समझते हो, उस गलती पर पछताओगे ।
हँसते चेहरे ,सुंदर चेहरे , कितने भोले - भाले चेहरे ,
इस तिलिस्म में पड़े अगर तो , बाहर न आ पाओगे ।
आसमान में उड़ो परिंदे , पंखों पर विश्वास करो ,
इस से ज्यादा खिली धूप और खुली हवा कब पाओगे ।
भींगी पलकें , उतरे चेहरे , वो सपनो का गाँव , गली ,
पीछे मुड़ के नहीं देखना, पत्थर के हो जाओगे ।
चलो उठो दो चार कदम ही , उस…
ContinueAdded by ARVIND BHATNAGAR on September 8, 2013 at 9:30pm — 16 Comments
१ २ २ १ २२ १ २ २ १ २ २
अभी जो यूँ सपनो में आने लगें हे /
वो अनहोनी बातें बताने लगें हे /
पता उनके सच का कहाँ झूठ का हे,
जो हर बात पे छटपटाने लगें हे /
चलों नाम लिख दे जरा साथ उन के ,
यहाँ आते जिन को जमाने लगें हे,/
जो दिन बीत जाये दुबारा ना आये ,
कई राज दिल को लुभाने लगें हे /
यूँ शोलों की खातर जलेंगे नहीं हम ,
अँधेरों में दीये जलाने लगें हे /
"मौलिक व…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on September 8, 2013 at 5:00pm — 8 Comments
मुंह अँधेरे सुबह में तुम मुस्कुरा रहे थे,
धूप जैसे ही खिली तुम खिलखिला रहे थे.
दोपहर के ज्वाल में तुम बल खा रहे थे.
शाम को फिर क्या हुआ जो मुंह छिपा रहे थे.
फूल जैसा ये है जीवन बाल यौवन अरु जरा.
फूल की खुशबू कभी तो कील से यह पथ भरा.
पाल मत प्यारे अहम तू एक दिन तू जायेगा.
सारी दौलत संगी साथी काम न कोई आयेगा.
गर किया सद्कर्म वह तू साथ लेकर जायेगा
तेरे जाने पर भी निशदिन तेरे ही गुण गायेगा
(मौलिक व…
ContinueAdded by JAWAHAR LAL SINGH on September 8, 2013 at 5:00pm — 14 Comments
इस रचना में एक अधिवक्ता की पत्नी का दर्द फूट पड़ा है ..................
ना जइयो तुम कोर्ट हे !
मेरे दिल को लगा के ठेस ....
जब जग जाहिर ये झूठ फरेबी
बार-बार लगते अभियोग
अंधी श्रद्धा भक्ति तुम्हारी
क्यों फंसते झूठे जप-जोग
आँखें खोलो करो फैसला
ना जाओ लड़ने तुम केस .............
ना जइयो तुम कोर्ट हे !
मेरे दिल को लगा के ठेस…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on September 8, 2013 at 4:30pm — 12 Comments
सूखा दरख्त जो मेरे आँगन में था
जब तक था लड़ता रहा
कभी गर्म लू के थपेड़ों को
बरसात, खून जमाने वाली
ठंड को सहता रहा
सूखा दरख्त जो मेरे आँगन में था
उसकी शाखों को काट- काट कर
लोगों ने घरों के दरवाज़े बनाये
खिड़कियाँ बनाई खुद को छुपाने के लिये
जुल्म की आग में वो जलता रहा
सूखा दरख्त जो मेरे आँगन में था
उम्र कोई उसकी कम न कर सका
जब तक जीना था वो जिया
जब तक हरा भरा जवान था
हवा व छांव…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on September 8, 2013 at 3:30pm — 16 Comments
गणेशोत्सव- हे विघ्न विनाशक
अनाचार है, अत्याचार है, गणपति इसका निदान करें।
कुछ न सूझे तो हे बप्पा , मेरे कथन पे विचार करें॥
विघ्न डालें उनके कार्य में, जो हैं देश के भ्रष्टाचारी ।
लेकिन उन्हें निराश न करना, द्वार जो आए सदाचारी॥
नवरात्रि
न फूहड़ वस्त्र न बेशर्मी, सब कुछ शुभ हो त्योहारों में।
गरबा हो या नृत्य कोई , तन हो पवित्र त्योहारों में॥
खेल नहीं है माँ की पूजा, विधि विधान…
ContinueAdded by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 8, 2013 at 1:30pm — 4 Comments
जीवन है क्या ?
मन के यक्ष प्रश्न
सुख या दुख ।
मेरा मन
पथ भूला राही है,
जग भवर ।
देख दुनिया,
जीने का मन नही,
स्वार्थ के नाते ।
मन भरा है,
ऐसी मिली सौगात,
बेवाफाई का ।
कैसा है धोखा,
अपने ही पराये,
मित्र ही शत्रु ।
जग मे तु भी,
एक रंग से पूता,
कहां है जुदा ?
क्यों रोता है ?
सिक्के के दो पहलू
होगी सुबह ।
........‘रमेश‘.........
मौलिक अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on September 8, 2013 at 11:42am — 7 Comments
तपती वसुन्धरा में
श्रम सक्ती के समन्वय रूपी खाद में
निर्माणों के
विशालकाय पेंड़ो को रोपता है
अपने कंधो के सहारे ढोता है
गरीवी का बोझ
जिसमे उसका स्वाभिमान
दबा हैं , कुचला है
मन अनंत गहराईयों में
डूबता उतराता चुप है
शांति समर्पण की अदभुत मिशाल "मजदूर "
वर्तमान भारत में खो गया है
निर्माणों के अंधे युग में आज
निर्माण से ही दूर हो गया है
मौलिक /अप्रकाशित
दिलीप तिवारी रचना -८ /९/१ ३
Added by दिलीप कुमार तिवारी on September 8, 2013 at 1:30am — 11 Comments
मन का "सुदामा होना"लाज़मी था
तेरी आखो के कृष्ण का इतना असर हो गया
क्या होती है गरीवी
सब कुछ खो जाने के बाद समझा
नही ,आमीर आदमी था
ये मिलन का इंतजार "द्रोपदी का चीर" हो गया
"भगीरथ प्रयत्न" कर-कर
मन आज अधीर हो गया
फिर भी "अग्नि परीक्षा" मेरी अधूरी है
आज भी मेरी-तेरी दूरी है
अंतर ह्रदय "दूर्वासा"है
क्रोध के ताप मे भी मिलने की आशा है
जानता है मन मिल कर तुमसे कुबेर हो जाएगा
संताप के ताप से फिर दूर हो जाएगा …
Added by दिलीप कुमार तिवारी on September 8, 2013 at 1:00am — 8 Comments
“आज गुरूजी कुछ विचलित लग रहे हैं, जाने क्या बात है? उनसे पूछूं, कहीं क्रोधित तो नहीं हो जायेंगे?” मन ही मन सोचते हुए उज्जवल ने एक निश्चय कर लिया कि गुरु रामदास जी से उनकी परेशानी का कारण पूछना है| वो हिम्मत जुटा कर गुरूजी के पास गया और उनसे पूछ लिया कि, “गुरूजी....! आप इस तरह से विचलित क्यों लग रहे हैं? कृपा करके अगर कोई दुःख हो तो अपने इस दास को बताएं|”
गुरूजी ने दुखी स्वर में कहा, “पुत्र, क्या बताऊँ, आजकल प्रतिदिन…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on September 7, 2013 at 10:45pm — 9 Comments
सन्ता-बन्ता पर टिके, यदि जनता का ध्यान |
शठ-सत्ता की समझ ले, पुन: जीत आसान |
पुन: जीत आसान, म्यान में रख तलवारें |
जान-बूझ कर जान, आम-जनता की मारें |
इक प्रकोष्ठ तैयार, ढूँढ़ता सकल अनन्ता |
बना नया हथियार, और भी लाये सन्ता ||
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on September 7, 2013 at 7:33pm — 8 Comments
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