मेरे हक़ में,खि़लाफ़त में, कोई तू फैसला तो दे
सज़ा-ऐ-मौत ही दे दे ,मेरे मुन्सिफ़ सज़ा तो दे
हुनर तेरा तू ही जाने ,बसाकर घर उज़ाडा है
लगाकर आग़ हाथों से,मेरे घर को ज़ला तो दे
व़फादारी तेरी आँखों में अब ढ़ूँढ़े नहीं मिलती
नज़र गद्दार है तेरी ,ज़रा इसको झुका तो दे
मेरे ही वास्ते तूने सज़ाकर जहर का प्याला
रख़ा है घोलकर कब से जरा मुझको पिला तो दे
चला में छोड़ के दुनिया मुबारक़ हो जहाँ तुझको
तसल्ली मिल गयी होगी, जरा अब मुस्क़रा तो…
Added by umesh katara on October 31, 2014 at 10:03pm — 11 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on October 31, 2014 at 8:09pm — 13 Comments
Added by Ravi Prakash on October 31, 2014 at 12:30pm — 16 Comments
आदत-मज़बूरी
जाम में फंसी गाड़ी पर उस लड़के ने कपड़ा रगड़ा और मुहँ-पेट की तरफ़ ईशारा किया तो उसने उसकी तरफ़ ध्यान ना देते हुए अपनी 5 मासी गर्भवती पत्नी से कहा –“सालों की आदत है ,भिखमंगे कहीं के “
एक बुढ़ा अगरबत्ती के पैक्ट लेकर पहुँचा और मुँह-पेट की तरफ ईशारा किया – “30 की दो ले लो - - -“
“ऊँह ,भावनाओं के नाम पर लुट रहा है बुड्ढा - - ” उसने पत्नी को देखकर धीरे से कहा |
गजरे बेचने वाली जब वो मलिन औरत आई तो पत्नी की आँखों में आई चमक को देखकर कहा
“बासी फूल हैं और जाने…
ContinueAdded by somesh kumar on October 30, 2014 at 9:30pm — 10 Comments
(1)
मोहक वन
सरि की कलकल
बहका मन
(2)
कोयल प्यारी
नित कूँ कूँ करती
जान हमारी
(3)
कार्तिक मास
झूम रही धरती
बुझेगी प्यास
(4)
यात्रा में रेल
दौड़ता सबकुछ
लगता खेल
(5)
मनवा भावे
सुन्दर है नईया
वायु हिलोर
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Pawan Kumar on October 30, 2014 at 6:00pm — 12 Comments
मधु पल ....
विरह के मारे ये लोचन
नीर कहाँ ले जाएँ
पी को पीर सुनाएँ कैसे
और स्मृति से बतियाएँ
वो स्पर्श एकांत के कैसे
अंग विस्मृत कर जाएँ
कालजयी पल अधर मिलन के
हृदय विचलित कर जाएँ
वायु वेग से सूखे पत्ते
मौन भंग कर जाएँ
बाट जोहते पगले नैना
बरबस भर-भर आएं
साँझ ढले सब पंख पखेरू
अपने नीड़ आ जाएँ
घूंघट में यूँ नैनों को पी
बार बार तरसाएँ …
Added by Sushil Sarna on October 30, 2014 at 3:00pm — 8 Comments
मैं कफ़न में लिपटी इक तस्वीर मढ़ रहा हूँ,
हुकूमत के मुंह पर इक तमाचा जड़ रहा हूँ ।
भूख की कलम से, मैं पेट के पन्नों पर,,
बेबस गरीबी की इक कहानी गढ़ रहा हूँ ।
कानून क्यों है बेबस?यही खुद से बूझते मैं,
इंसाफ की डगर पर ऐड़ी रगड़ रहा हूँ ।
आ जाएगी अमन की दुल्हन मेरे वतन में,
इसी आस में उम्मीदों की घोड़ी चढ़ रहा हूँ ।
इंक़लाब के सफर में ज़ज़्बों की पोटली ले,
हिम्मत की तेज़ आती गाड़ी पकड़ रहा हूँ…
ContinueAdded by संदेश नायक 'स्वर्ण' on October 30, 2014 at 12:53pm — 5 Comments
लोग हैं सब पत्थरों के आजकल मैं भी
बार करते ख़न्जरों के आजकल मैं भी
लुट गयीं अब तो बहारें, सब शज़र सूखे
गीत लिखता बन्जरों के आजकल मैं भी
मुफलिसी देखी कभी फुटपाथ पर रोती
लोग देखे बे-घरों के आजकल मैं भी
दर्द को गाते हुये देखा फकीरों को
हो गये जो दर-दरों के आजकल मैं भी
आसमाँ छूने चला हूँ जिद़ पुरानी है
उड़ रहा हूँ बिन परों के आजकल मैं भी
उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित
Added by umesh katara on October 30, 2014 at 9:30am — 15 Comments
जागा श्रमिक अभाव की चादर पीछे कर
चला अपने भाग्य से लड़ने डट कर
रेशमी विस्तर में सोने वालों,
तुमने कभी सुबह उठ कर देखा है ।
साहस की ईंटों को चुनता हैं अरमानों के गारे से
फिर भी खुशी चलती है दीवार पर, उसके आगे
संगमरमर के महलों में सुख से रहने वालों,
तुमने उनके भूखे पेटों को कभी देखा है ।
तारों की छांव में रोज सबसे आगे उठता
फिर भी जीवन की अरूढ़ाई ना देख पाता
तरुणाई श्रमिकों की पीने वालों,
इनके सिकुड़े…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on October 30, 2014 at 7:30am — 10 Comments
बेख़ुदी में पुकारा करेंगे
बोल कैसे गुजारा करेंगे /१
आज उनसे निगाहें लड़ीं हैं
आज जश्ने-बहारा करेंगे /२
शोरगुल में कहाँ बात होगी
कनखियों से इशारा करेंगे /३
बेतहाशा हसीं आप हैं जी
रोज सदके उतारा करेंगे /४
देखना हमसे मिलकर गये हैं
आईने को निहारा करेंगे /५
...........................................
सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित
अरकान: २१२ २१२ २१२२
Added by Saarthi Baidyanath on October 29, 2014 at 11:00pm — 21 Comments
धीरज धर कर जीवन को , पाला होता काश
पुष्प ना बनता मैं भले , बन ही जाता घास
कितने जमनों का भँवर लिपटा मेरे पाव
धूप भी अब लगती सुखद जैसे ठंडी छाव
प्यासे को पानी मिले , गर भूखे को अन्न
हर गरीब हो जाए इस , धरती पे संपन्न
आकर बैठो पास में मेरे भी , कुछ वक़्त
आगे का लगता सफ़र होने को है सख़्त
मिला मुझे जैसा भी जो , स्वीकारा बे-खोट
इसलिए शायद हृदय , पाया मेरा चोट
नींदे जगती रात भर , सोते रहते…
ContinueAdded by ajay sharma on October 29, 2014 at 10:30pm — 8 Comments
छन्न पकैया छन्न पकैया, काले धन का हल्ला ।
चोरों के सरदारों ने जो, भरा स्वीस का गल्ला ।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, कौन जीत अब लाये ।
चोर चोर मौसेरे भाई, किसको चोर बताये ।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, सपना बहुत दिखाये ।
दिन आयेंगे अच्छे कह कह, हमको तो भरमाये ।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, धन का लालच छोड़ो ।
होते चार बाट चोरी धन, इससे मुख तुम मोड़ो ।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, काले गोरे परखो ।
कालों को दो काला पानी, बात बना मत टरको ।। …
Added by रमेश कुमार चौहान on October 29, 2014 at 9:30pm — 6 Comments
क्योकि में इक नदी हूँ
मेरा कोई दोष नहीं
फिर भी मैं दोषी हूँ
करते तुम सब लोग हो
भरती मैं हूँ ..
क्योकि में इक नदी हूँ
मुझमे भी जीवन है
मेरा भी अस्तित्व है
मेरी एक पहचान है
जो लोग करते पूजा हैं
वही गंदगी भी देते हैं
चुपचाप सब सहती हूँ
क्या करूँ मैं इक नदी हूँ ...
जागो अब भी जागो
विलुप्त हो जाऊ उस से
पहले मुझे बचा लो
नहीं तो रह जाओगे प्यासे
जैसे बीन पानी मछली तरसे ,
जाने कितने दोहन हुए…
Added by Alok Mittal on October 29, 2014 at 6:00pm — 10 Comments
Added by किशन कुमार "आजाद" on October 29, 2014 at 6:30am — 6 Comments
मानसिकता
“ सुना है ,कल छठ की गजटेड छुट्टी है ? ” मिस कामिनी ने चिप्स मुँह में भरते हुए कहा
“जी |”
“ अच्छा है एक और दिन आराम को मिला पर किसी और पर्व पे करनी चाहिए थी इसीलिए तो इन लोगों की तादाद बढ़ती जा रही है दिल्ली में - - - “उन्होंने गिरे हुए चिप्स को पैरों से रौंदते हुए कहा |
“तो कहाँ जाएँगे ये लोग !क्या ये देश/शहर इनका नही हैं ?”
“वहीं रहें ,सिर्फ उतने आने दिए जाएँ जिससे गंदगी ना हो और हमे लेबर वगैरह आराम से मिलते रहें “उन्होंने खाली पैक्ट वहीं फैंक…
ContinueAdded by somesh kumar on October 28, 2014 at 11:24pm — 8 Comments
मेरे दिल से ये भी न पूछिए, कि जला कहाँ ये बुझा कहाँ,
जो शरर था आग़ था ख़ाक है लगी इसको ऐसी हवा कहाँ.
.
कई संग उठे हैं मेरी तरफ़, कई उँगलियाँ मेरी ओर हैं,
जो सज़ा मिली है गुनाह की वो गुनाह मैंने किया कहाँ.
.
मेरे लडखडाने की देर है, मुझे मयपरस्त कहेंगे सब,
उन्हें क्या पता मुझे इश्क़ है, कभी जाम मैंने छुआ कहाँ.
.
जो ख़ुदा कहे यहीं जम रहूँ, जो इशारा हो अभी चल पडूँ,
ये जो वक़्त है ये घड़ी का है, ये कभी किसी का हुआ कहाँ.
.
ये…
ContinueAdded by Nilesh Shevgaonkar on October 28, 2014 at 11:09am — 12 Comments
खुशियों की तारीख
अस्पताल के हृदय-वार्ड में वो दम्पति उदास और गमगीन बैठा था |रह-रह कर उनके गलों से आँसू नीचे ढलक रहे थे |दीवाली और तीन साल की इकलौती बेटी के जन्मदिन में शामिल ना हो पाने की कसक ने उनके अंदर चक्रवात ला दिया था |स्त्री के हृदय-आपरेशन के बाद आई विसंगतियों के कारण वे घर से 250 किमी दूर यहाँ बेटी को एक पड़ोसी के यहाँ छोडकर पड़े थे | राम जी को जब सारी स्थिति पता चली तो वो दम्पति के पास पहुँचे और पति के काँधे पर हाथ रखकर समझाया –ये सही रहीं तो जीवन की कितनी ही दिवाली…
ContinueAdded by somesh kumar on October 27, 2014 at 11:00pm — 2 Comments
Added by gumnaam pithoragarhi on October 27, 2014 at 8:20pm — 12 Comments
बात करता हूं तो बातों में मेरी तनहाई
आंसुओं की तरह आंखों में मेरी तनहाई,
मेरी दहलीज पे जलते हुए चरागों को
आंधी बन करके बुझाती है मेरी तनहाई,
बेवफाई का गिला जब भी किया है मैंने
मुस्कराती है, रुलाती है मेरी तनहाई,
मेरे हिस्से के ये इतवार इन्हें तुम ले लो
मुझे फुर्सत में सताती है मेरी तनहाई,
जिंदगी मौत की राहों पे चला करती है
आईना रोज दिखाती है मेरी तनहाई,
दुश्मनों ने तो हमें वार करके छोड…
ContinueAdded by atul kushwah on October 27, 2014 at 6:00pm — 11 Comments
चमचमाती हुई विेदेशी गाड़ी देखकर जैसे कान्ता ही चौंधिया गईं गाड़ी का दरबाजा खुला तो अन्दर से निकले बिदेशी इत्र का ज़बरदस्त झौंका उसके नथुनों से टकराया। सर से पाँव तक ज़ेवरों से लदी हुई बन्दिता नपे तुले पाँव जमीन पर रखते हुए गाड़ी से बाहर आई और कहा : “
मैने सोचा, तुम्हें शादी में अपने साथ ही ले चलूँ और इसी बहाने तुम्हारा घर भी देख लूँ । किधर हे तुम्हारा घर ?”
“वो उधर उस गली में, लेकिन उधर गाड़ी नही जाएगी। ” कान्ता ने अपने घर की तरफ इशारा करते हुए बताया ।
“गाडी वहाँ नही जा सकती, तुम…
Added by Bipul Sijapati on October 27, 2014 at 2:00pm — 8 Comments
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