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November 2016 Blog Posts (119)

रिश्ते कबाड़ मन में पड़े सड़ रहे थे सब- पंकज द्वारा ग़ज़ल

मस्तिष्क की गली से तू गुज़रा अभी अभी
सोया था दिल जो मेरा वो धड़का अभी अभी

रिश्ते कबाड़, मन में पड़े सड़ रहे थे सब
दीपोत्सव से पहले बहाया अभी अभी

उस्से मिला तो जाना भला कोहेनूर क्या
भटका पथिक मैं राह पे लौटा अभी अभी

सब वक्त का तकाज़ा है सत्ता औ सुल्तनत
सबको सिखा गया है रुपैया अभी अभी

अब नींद आ रही है चलो फिर मिलेंगे कल
सन्देश सबको मैंने ये भेजा अभी अभी

मौलिक अप्रकाशित

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 23, 2016 at 9:43pm — 7 Comments

ग़ज़ल ( एक मुस्कान से जो मर जाए )

फाइलातुन -मफाइलुन -फेलुन

उनके चेहरे पे जो नज़र जाए |

मुस्तक़िल वो वहीं ठहर जाए |

उसपे तुमने उठा लिया खंजर

एक मुस्कान से जो मर जाए |

मैकदा है इधर नज़र है उधर

कोई जाए तो अब किधर जाए |

इक परिंदा भी जा सके न जहाँ

कौन लेकर वहाँ खबर जाए |

बात है देश की हिफ़ाज़त की

क्या गरज है हमारा सर जाए |

जो जबां कर सके न उल्फ़त में

काम वो इक निगाह कर जाए |

पानी पानी घटाएँ…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on November 23, 2016 at 9:30pm — 14 Comments

ग़ज़ल: असर दिखा है जमाने में खास बातों का

1212 1122 1212 22(112)



असर दिखा है जमाने में खास बातों का ।

मिटा है खूब खज़ाना रईजादों का ।।



है फ़िक्र उस को नसीहत रुला गई यारों ।

गया है चैन , सुना है तमाम रातों का ।।



लुटे थे लोग जो अपने गरीबखानों से ।

हिसाब मांग रहे है वही हजारों का ।।



न पूछिए की चुनावों में हाल क्या होगा ।

बड़ा अजीब नज़ारा है इन सितारों का ।।



सफ़ेद पोश से पर्दा हटा गया कोई ।

पता चला है लुटेरों के हर ठिकानों का ।।



गरीब…

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Added by Naveen Mani Tripathi on November 23, 2016 at 8:30pm — 5 Comments

नमक का विधाता

सात नदियाँ मिलती हैं

गुजरात के कच्छ में

समुद्र से

 

उस स्थल पर

जिसे ‘रण’ कहते है

और जहां सबसे खारा होता है 

समुद्र का पानी

नमक बनाने के लिए

जिसे हम लवण भी कहते है

और इसी से बनता है

एक मोहक शब्द

लावण्य

जो प्रकट करता है

मनुष्य के जीवन और उसके रंगों में

नमक की महत्ता, उपादेयता और स्वाद

 

पर

कभी किसी ने सोचा है गोर्की की भाँति

कि किस संत्रास में जीते है

नमक…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 23, 2016 at 8:00pm — 7 Comments

चाँद का मिलना - व्यंग्य

ठहाकों की आवाज़ से कमरा गूंज रहा था, आज बहुत सालों बाद रीमा का सहपाठी रोहन उससे मिलने आया था| पिछले दो घंटे से पिछले १५ सालों की बातें दोनों एक दूसरे को बता रहे थे और साथ पढ़े बाकी दोस्तों के बारे में भी एक दूसरे को बताते जा रहे थे| रीमा ने रमेश को भी बता दिया था कि ऑफिस से जल्दी आ जाना और उसने हामी भर दी थी|

अचानक बात का सिलसिला कॉलेज के जमाने के शौक के बारे में चल निकला| रोहन ने एक गहरी सांस ली और अपने सर पर हाथ फेरते हुए बोला "यार, तुम्हारी एक आदत मुझे अब भी नहीं भूलती| कितना चिढ़ती थी…

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Added by विनय कुमार on November 23, 2016 at 7:00pm — 4 Comments

ग़ज़ल - जिन्दगी फिर जिन्दगी लगने लगी

2122 2122 212 

जिन्दगी फिर जिन्दगी लगने लगी,
तुम मिले दुनिया नयी लगने लगी,

तुमने सींचा जब वफ़ा और प्यार से,
फिर जमीं दिल की हरी लगने लगी,

रात के कोसे में चमका चाँद जब,
हर घड़ी तेरी कमी लगने लगी,

तुमने देखा जब नज़र भर प्यार से,
रूह अपनी अज़नबी लगने लगी,

कबसे आँखों ने सहर देखी नहीं,
दीद तेरी लाजिमी लगने लगी..... !!अनुश्री!!

मौलिक और अप्रकाशित...

Added by Anita Maurya on November 23, 2016 at 4:30pm — 9 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल - तू वो ही है , जो सच में है तेरे अंदर ( गिरिराज भंडारी )

1222    1222    1222   

उसे कह दो जहाँ हूँ मैं वहाँ समझे

ज़मीं हूँ मैं, न मुझको आसमाँ समझे

 

हो किससे गुफ़्तगू इस दश्ते वीराँ में

कोई तो हो, जो मेरी भी ज़बाँ समझे

 

हक़ीक़त आशना है क्यूँ भला वो भी

है राहे संग उसको कहकशाँ समझे

 

छिनी रोटी तो छायी बद हवासी है

मुझे मयख़्वार क्यूँ सारा जहाँ समझे

 

मुहज़्ज़ब जो दबा लेता है नफरत, को

सही समझे अगर, आतिशफ़िशाँ समझे 

 

तू वो ही है , जो सच में है तेरे…

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Added by गिरिराज भंडारी on November 23, 2016 at 11:05am — 26 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
किस ओर जाएँ हम कि हमें रास्ता मिले

221 2121 1221 212

किस ओर जाएँ हम कि हमें रास्ता मिले

फ़िरक़ापरस्ती का न कहीं फन उठा मिले

 

दिल इस जहान का अभी इतना बड़ा नहीं

हर हक़बयानी पर मेरा ही सर झुका मिले

 

नाज़ुक है मसअला ये अक़ीदत का…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on November 23, 2016 at 11:00am — 17 Comments

ग़ज़ल- जितने सनम मिले सभी शादी शुदा मिले

221 2121 1221 212



ये सिलसिले भी इश्क के हमसे खफा मिले ।

अक्सर मेरे रकीब जमानत रिहा मिले ।।



किस्मत की बेवफाई जरा देखिये हुजूर ।

जितने सनम मिले सभी शादी शुदा मिले ।।



जब भी उठे नकाब हिदायत के नाम पर ।

क्यों लोग आईने में हक़ीक़त ज़ुदा मिले ।।



चर्चा , लिहाज़ उम्र का , उसको नही रहा ।

कुछ तितलियों के फेर में अक्सर फ़िदा मिले।।



अक्सर हबस के नाम पे मरता है आदमी ।

मासूम सी अदा में ढ़ले बेवफा मिले ।।…



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Added by Naveen Mani Tripathi on November 22, 2016 at 11:30pm — 15 Comments

मुद्दतों की आरजू तब तुम कही जाकर मिले

मुद्दतों की आरजू तब तुम कहीं जाकर मिले।
प्यास बढ़ने की तड़प से ज्यो नदी-सागर मिले।।

सर्द आहों को लिये तकते रहे रस्ता तेरा।
इक नज़र पाने को तेरी हम वहाँ अक़्सर मिले।।

किस्मतों का फैसला ऐसा किया तूने ख़ुदा।
एक के हिस्से में गुल,दूजे को बस पत्थर मिले।।

दो निवाले मुश्किलों से ,चैन भी दिल को नही।
तंगहाली में मगर हम बारहा क़ैसर मिले।।

तीरगी में बा ग़रज हम चल दिये यह सोचकर।
इस दफ़ा ही मुद्दतों के बाद वो रहबर मिले।।
मौलिक तथा अप्रकाशित

Added by gaurav kumar pandey on November 22, 2016 at 5:10pm — 6 Comments

लाडो ....

लाडो ....

माँ

मैं तो

लाडो ही रहना चाहती थी

तुम्हारी लाडो

नाचती

कूदती

प्यारी सी लाडो

समय ने कब

बचपन की दीवारों में सेंध मारी

पता ही न चला

ज़माने की निगाहों ने

कब ज़िस्म को

छीलना शुरू किया

ख़बर ही न हुई

मैं

तिल तिल करती

मेहंदी की दहलीज़ तक

आ पहुँची

किसी के हाथों में

तेरी लाडो

कैद सी हो गयी

कोई रस्म

तेरी लाडो की

तक़दीर बदल…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 22, 2016 at 4:34pm — 10 Comments

हसरत को दफनाया जाए-पंकज द्वारा ग़ज़ल

इक ताबूत मंगाया जाए
हसरत को दफनाया जाए

पतझर से पहले पतझर को
उपवन में बुलवाया जाए

ऐसा कर अब चल रे पंकज
मन का ताप बढ़ाया जाए

परिवर्तन का दौर चला है
रिश्तों को ठुकराया जाए

मोती रोको, गर्द जमेगी
पत्तों को समझाया जाए

बहुत हुआ अब शोर शराबा
धड़कन को समझाया जाए

मौलिक अप्रकाशित

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 22, 2016 at 1:15pm — 10 Comments

बचपन (कविता)

बचपन



आज के जीवन शैली में

बचपन कहीं नहीं हैं

अल्हड़पन नहीं है

मासूमियत कहीं खो गयी है ।

मोबाइलों ने छीन ली है

खुले मैदानों की चिल्लाहट

टीवी कॉम्प्यूटर चल पड़े हैं

गुल्ली डंडे की जगह पर

खेल हुए है क़ैद स्कूलों में

उनके लिए ही ट्रॉफी जितने

कॉलेज में राजनीती की निति

बच्चों के मन के गलियारों में ।

बचपन बैठा है पिंजरों में

अपने ख्वाबों की उड़ान भरने को ।

खुले आकाश से बातें करता

अपने वजूद को तलाशता ।

बचपन शायद फिर…

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on November 22, 2016 at 11:21am — 9 Comments

गजल(सबकुछ....)

22 22 22 22
सच होता कब कहना सबकुछ
लाख करो क्या बनता सबकुछ?1

ढाते सब बेमतलब बारिश
झूठ कहाँ हो जाता सबकुछ?2

शमशीरें ले हाथ खड़े हैं
कर सकते क्या बौना सबकुछ?3

पंथ पता बेढ़ंग चले हैं
कौन कुपथ हो सकता सबकुछ?4

कितनों ने दी कुर्बानी, पर
याद भला कब रहता सबकुछ?5

खींच रहे बस रोज लकीरें
कोई कह दे, लिखता सबकुछ?6

मिहनत की ताबीर 'मनन'मय
हो सकता क्या जीना सबकुछ?7
मौलिक व अप्रकाशित@मनन

Added by Manan Kumar singh on November 22, 2016 at 10:16am — 7 Comments

रेट का टैग लगा रिश्तों का बाज़ार मिला- पंकज द्वारा ग़ज़ल

2122 1122 2122 112



ढूँढने प्रीत चला स्वार्थ का उपहार मिला

रेट का टैग लगा रिश्तों का बाज़ार मिला



आदमीयत भी दिखावे की कोई चीज़ हुई

कैमरा ऑन था, दुखिया को बहुत प्यार मिला



न्याय के घर में भी पैसे की खनक हावी हुई

नाचता नोट की गड्डी पे ख़बरदार/जिरहदार मिला



ये अलग बात है तुम ज़िद पे अड़े हो तो मिलो

पर मुझे भूल नहीं पाया जो इक बार मिला



देख दर्पण में हक़ीक़त को चुराता है नज़र

लोभ की कीच में पंकज भी तो बीमार मिला



मौलिक… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 22, 2016 at 7:00am — 6 Comments

व्यथित मन .....

व्यथित मन .....

कहते हैं

अंतर्मन की व्यथा को

कह देने से

हल्का हो जाता है

मन

कहा

आईने से

तो बिम्ब देख

और भी

व्यथित हो गया

मन

कहा

एकांत से

तो अंधेरों में

अट्टहास करती

असंख्य ध्वनियों ने

चीर डाला

व्यथित

मन

कहा

स्वप्न से

तो स्मृतियों के

सागर पर

मिल गया

मुझ जैसा ही

एक और

तन्हा

व्यथित

मन



देखा उसे

तो…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 21, 2016 at 9:02pm — 10 Comments

ग़ज़ल (बना है बोझ ये जीवन।)

1212 1122 1212 1122

(मुज़तस मुसम्मन मखबून)



बना है बोझ ये जीवन कदम थमे थमे से हैं,

कमर दी तोड़ गरीबी बदन झुके झुके से हैं।



लिखा न एक निवाला नसीब हाय ये कैसा,

सहन ना भूख ये होती उदर दबे दबे से हैं।



पड़े दिखाई नहीं अब कहीं भी आस की किरणें,

गगन में आँख गड़ाए नयन थके थके से हैं।



मिली सदा हमें नफरत करे जलील जमाना,

हथेली कान पे रखते वचन चुभे चुभे से हैं।



दिखी कभी न बहारें मिले सदा हमें पतझड़,

मगर हमारे मसीहा कमल खिले खिले… Continue

Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on November 21, 2016 at 6:30pm — 6 Comments

आ भी जाओ परी- पंकज द्वारा गीत

तेरे दीदार को ये निगाहें मेरी

कब से व्याकुल हैं विह्वल ये धड़कन मेरी

आ भी जाओ परी

आ भी जाओ परी।



आ भी जाओ परी

आ भी जाओ परी।।



कितने अरमान मन में सँजोये हूँ मैं

नींद तेरे लिए ही तो खोए हूँ मैं



इस अँधेरे नगर में बिछे चाँदनी

घोल दे ज़िन्दगी में मधुर रागिनी



राग पायल की छम छम सुना सांवरी

आ भी जाओ परी

आ भी जाओ परी।



आ भी जाओ परी

आ भी जाओ परी।।1।।



तेरे काजल सजे दोनों चंचल नयन

फूल सा खूबरू… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 21, 2016 at 3:30pm — 7 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
बुलबुला है इक फ़कत ये जिस्म जाँ कुछ भी नहीं (तरही ग़ज़ल )

2122   2122   2122   212

बुलबुला है इक फ़कत ये जिस्म जाँ कुछ भी नहीं

जिंदगानी  से   कजा की दूरियाँ कुछ भी नही

 

बागबाँ की है कमी या पस्त है आबो हवा

पाक  नकहत फूल के अब दरमियाँ कुछ भी नही

 

मोल उसका गर न समझे तो बशर की भूल है

हम को कुदरत दे रही जो  रायगाँ कुछ भी नही

 

आशिकों की मौत पे  जो शम्मअ के दिल से उठे

नफरतों से जो निकलता वो धुआँ कुछ भी नही

 

फिक्र-ए-शाइर नापती कब  से अज़ल की दूरियाँ

उसके आगे…

Continue

Added by rajesh kumari on November 21, 2016 at 12:00pm — 16 Comments

गर्दिश में पैमाना है

*22 22 22 22 22 22 22 2*



आज बहुत सुनसान पड़ा क्यूँ, दिल का ये मैखाना है

साकी रूठ गया है मुझसे, गर्दिश में पैमाना है।



जश्न मनाते लोग यहाँ अब, बंद कपाटो के पीछे

होटल में ले जाते उनको, जब भी पड़े खिलाना है।।



देते खबर पडोसी की अब, हमको भी अखबार यहाँ।

कैद हुए है घर में सारे, सीमित हुआ ठिकाना है।।



भरी पड़ी है फ्रेंड लिस्ट भी फेसबुकी दिलदारों से

कांधा लोग नहीं देंगे पर, खुद ही बोझ उठाना है।।



नुक्कड़ पर अब लोग नही है, मिलती है… Continue

Added by नाथ सोनांचली on November 21, 2016 at 5:30am — 7 Comments

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