Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 23, 2016 at 9:43pm — 7 Comments
फाइलातुन -मफाइलुन -फेलुन
उनके चेहरे पे जो नज़र जाए |
मुस्तक़िल वो वहीं ठहर जाए |
उसपे तुमने उठा लिया खंजर
एक मुस्कान से जो मर जाए |
मैकदा है इधर नज़र है उधर
कोई जाए तो अब किधर जाए |
इक परिंदा भी जा सके न जहाँ
कौन लेकर वहाँ खबर जाए |
बात है देश की हिफ़ाज़त की
क्या गरज है हमारा सर जाए |
जो जबां कर सके न उल्फ़त में
काम वो इक निगाह कर जाए |
पानी पानी घटाएँ…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on November 23, 2016 at 9:30pm — 14 Comments
1212 1122 1212 22(112)
असर दिखा है जमाने में खास बातों का ।
मिटा है खूब खज़ाना रईसजादों का ।।
है फ़िक्र उस को नसीहत रुला गई यारों ।
गया है चैन , सुना है तमाम रातों का ।।
लुटे थे लोग जो अपने गरीबखानों से ।
हिसाब मांग रहे है वही हजारों का ।।
न पूछिए की चुनावों में हाल क्या होगा ।
बड़ा अजीब नज़ारा है इन सितारों का ।।
सफ़ेद पोश से पर्दा हटा गया कोई ।
पता चला है लुटेरों के हर ठिकानों का ।।
गरीब…
Added by Naveen Mani Tripathi on November 23, 2016 at 8:30pm — 5 Comments
सात नदियाँ मिलती हैं
गुजरात के कच्छ में
समुद्र से
उस स्थल पर
जिसे ‘रण’ कहते है
और जहां सबसे खारा होता है
समुद्र का पानी
नमक बनाने के लिए
जिसे हम लवण भी कहते है
और इसी से बनता है
एक मोहक शब्द
लावण्य
जो प्रकट करता है
मनुष्य के जीवन और उसके रंगों में
नमक की महत्ता, उपादेयता और स्वाद
पर
कभी किसी ने सोचा है गोर्की की भाँति
कि किस संत्रास में जीते है
नमक…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 23, 2016 at 8:00pm — 7 Comments
ठहाकों की आवाज़ से कमरा गूंज रहा था, आज बहुत सालों बाद रीमा का सहपाठी रोहन उससे मिलने आया था| पिछले दो घंटे से पिछले १५ सालों की बातें दोनों एक दूसरे को बता रहे थे और साथ पढ़े बाकी दोस्तों के बारे में भी एक दूसरे को बताते जा रहे थे| रीमा ने रमेश को भी बता दिया था कि ऑफिस से जल्दी आ जाना और उसने हामी भर दी थी|
अचानक बात का सिलसिला कॉलेज के जमाने के शौक के बारे में चल निकला| रोहन ने एक गहरी सांस ली और अपने सर पर हाथ फेरते हुए बोला "यार, तुम्हारी एक आदत मुझे अब भी नहीं भूलती| कितना चिढ़ती थी…
Added by विनय कुमार on November 23, 2016 at 7:00pm — 4 Comments
2122 2122 212
जिन्दगी फिर जिन्दगी लगने लगी,
तुम मिले दुनिया नयी लगने लगी,
तुमने सींचा जब वफ़ा और प्यार से,
फिर जमीं दिल की हरी लगने लगी,
रात के कोसे में चमका चाँद जब,
हर घड़ी तेरी कमी लगने लगी,
तुमने देखा जब नज़र भर प्यार से,
रूह अपनी अज़नबी लगने लगी,
कबसे आँखों ने सहर देखी नहीं,
दीद तेरी लाजिमी लगने लगी..... !!अनुश्री!!
मौलिक और अप्रकाशित...
Added by Anita Maurya on November 23, 2016 at 4:30pm — 9 Comments
1222 1222 1222
उसे कह दो जहाँ हूँ मैं वहाँ समझे
ज़मीं हूँ मैं, न मुझको आसमाँ समझे
हो किससे गुफ़्तगू इस दश्ते वीराँ में
कोई तो हो, जो मेरी भी ज़बाँ समझे
हक़ीक़त आशना है क्यूँ भला वो भी
है राहे संग उसको कहकशाँ समझे
छिनी रोटी तो छायी बद हवासी है
मुझे मयख़्वार क्यूँ सारा जहाँ समझे
मुहज़्ज़ब जो दबा लेता है नफरत, को
सही समझे अगर, आतिशफ़िशाँ समझे
तू वो ही है , जो सच में है तेरे…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on November 23, 2016 at 11:05am — 26 Comments
221 2121 1221 212
किस ओर जाएँ हम कि हमें रास्ता मिले
फ़िरक़ापरस्ती का न कहीं फन उठा मिले
दिल इस जहान का अभी इतना बड़ा नहीं
हर हक़बयानी पर मेरा ही सर झुका मिले
नाज़ुक है मसअला ये अक़ीदत का…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on November 23, 2016 at 11:00am — 17 Comments
221 2121 1221 212
ये सिलसिले भी इश्क के हमसे खफा मिले ।
अक्सर मेरे रकीब जमानत रिहा मिले ।।
किस्मत की बेवफाई जरा देखिये हुजूर ।
जितने सनम मिले सभी शादी शुदा मिले ।।
जब भी उठे नकाब हिदायत के नाम पर ।
क्यों लोग आईने में हक़ीक़त ज़ुदा मिले ।।
चर्चा , लिहाज़ उम्र का , उसको नही रहा ।
कुछ तितलियों के फेर में अक्सर फ़िदा मिले।।
अक्सर हबस के नाम पे मरता है आदमी ।
मासूम सी अदा में ढ़ले बेवफा मिले ।।…
Added by Naveen Mani Tripathi on November 22, 2016 at 11:30pm — 15 Comments
Added by gaurav kumar pandey on November 22, 2016 at 5:10pm — 6 Comments
लाडो ....
माँ
मैं तो
लाडो ही रहना चाहती थी
तुम्हारी लाडो
नाचती
कूदती
प्यारी सी लाडो
समय ने कब
बचपन की दीवारों में सेंध मारी
पता ही न चला
ज़माने की निगाहों ने
कब ज़िस्म को
छीलना शुरू किया
ख़बर ही न हुई
मैं
तिल तिल करती
मेहंदी की दहलीज़ तक
आ पहुँची
किसी के हाथों में
तेरी लाडो
कैद सी हो गयी
कोई रस्म
तेरी लाडो की
तक़दीर बदल…
Added by Sushil Sarna on November 22, 2016 at 4:34pm — 10 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 22, 2016 at 1:15pm — 10 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on November 22, 2016 at 11:21am — 9 Comments
Added by Manan Kumar singh on November 22, 2016 at 10:16am — 7 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 22, 2016 at 7:00am — 6 Comments
व्यथित मन .....
कहते हैं
अंतर्मन की व्यथा को
कह देने से
हल्का हो जाता है
मन
कहा
आईने से
तो बिम्ब देख
और भी
व्यथित हो गया
मन
कहा
एकांत से
तो अंधेरों में
अट्टहास करती
असंख्य ध्वनियों ने
चीर डाला
व्यथित
मन
कहा
स्वप्न से
तो स्मृतियों के
सागर पर
मिल गया
मुझ जैसा ही
एक और
तन्हा
व्यथित
मन
देखा उसे
तो…
Added by Sushil Sarna on November 21, 2016 at 9:02pm — 10 Comments
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on November 21, 2016 at 6:30pm — 6 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 21, 2016 at 3:30pm — 7 Comments
2122 2122 2122 212
बुलबुला है इक फ़कत ये जिस्म जाँ कुछ भी नहीं
जिंदगानी से कजा की दूरियाँ कुछ भी नही
बागबाँ की है कमी या पस्त है आबो हवा
पाक नकहत फूल के अब दरमियाँ कुछ भी नही
मोल उसका गर न समझे तो बशर की भूल है
हम को कुदरत दे रही जो रायगाँ कुछ भी नही
आशिकों की मौत पे जो शम्मअ के दिल से उठे
नफरतों से जो निकलता वो धुआँ कुछ भी नही
फिक्र-ए-शाइर नापती कब से अज़ल की दूरियाँ
उसके आगे…
ContinueAdded by rajesh kumari on November 21, 2016 at 12:00pm — 16 Comments
Added by नाथ सोनांचली on November 21, 2016 at 5:30am — 7 Comments
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