122 122 122 122
सुना ठीक है सिरफिरा आदमी हूँ
उसूलों का पाला हुआ आदमी हूँ।
हमेशा ही जिसने सही बेवफ़ाई
जमाने में वो बावफ़ा आदमी हूँ।
कि मौजें मुझे दूर खुद से करेंगी
अभी मैं भँवर में फँसा आदमी हूँ।
डिगायेगी कैसे मुझे कोई आफ़त
मैं चट्टान जैसा खड़ा आदमी हूँ।
रहा साथ जिसके जरूरत में अक्सर
कहा है उसी ने बुरा आदमी…
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on November 26, 2018 at 10:00am — 9 Comments
जहाँ सपने थे
लोग अपने थे
वह धरती कब की छूट गयी
भीड़ थी पर ठावँ थी
धूप थी संग छावं थी
वह धरती कब की छूट गयी
जनक थे जननी थी
बसेरा था रहनी थी
वह धरती कब की छूट गयी
जो छूट गये
जो रूठ गये
वही आस पास है
यह कैसे एहसास है ?
.
मौलिक व अप्रकाशित"
Added by amita tiwari on November 25, 2018 at 8:30pm — 3 Comments
माँ शारदा का वरदान है प्यार
[ श्री रामकृष्ण अस्पताल सेवाश्रम, कंखल (उत्तरखंड, भारत) से ]
ऐसी ही ... प्रिय
लेटी रहो न मेरे घुटने पर सर टेके
भावनायों के निर्जन समुद्र तट पर आज
बहें हैं आँसू बहुत मध्य-रात्रि के अंधेरे में
कभी अनेपक्षित बह्ते कभी रुक्ते-रुकते
पहले इससे कि तुम्हारा एक और आँसू
मेरे अस्तित्व पर टपक कर मुझको
नि:स्तब्ध,…
ContinueAdded by vijay nikore on November 25, 2018 at 7:16pm — 8 Comments
221 2121 1221 212
तुमको खबर है खूब खतावार कौन है
दो सोच कर सजाएँ गुनहगार कौन है।१।
यारो सिवा वो बात के करता ही कुछ नहीं
हाकिम से इसके बाद भी बे-ज़ार कौन है।२।
हम तो रहे जहीन कि जिस्मों पे मर मिटे
पहली नज़र का बोल तेरा प्यार कौन है।३।
सबसे बड़ा सबूत है मुंसिफ का फैसला
खाके कसम वफा की वफादार कौन है।४।
अपना तो फर्ज एक है तदबीर कर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 25, 2018 at 1:14pm — 6 Comments
2122 1212 22/112
माँ
***
माँ जिधर भी नज़र उठाती है
वो ज़मीं हँसती मुस्कुराती है//१
हर बला दूर ही ठहर जाए
माँ उसे डांट जब लगाती है //२
माँ के कदमों से दूर जाए जो
ज़िन्दगी फिर उसे रुलाती है //३
पास जब मौत आए बच्चों के
तब तो माँ जां पे खेल जाती है //४
जब कभी भूल हमसे हो जाए
माँ ही दामन में तब छुपाती है //५
भूख के साये में न हों बच्चे
खुद को माँ धूप में सुखाती है…
Added by क़मर जौनपुरी on November 25, 2018 at 1:08pm — 7 Comments
2122 2122 2122 2122
इस कदर बेबस हूँ मैं, लाचार हूँ इस ज़िन्दगी से
दोस्तों, मर भी नहीं सकता अभी, अपनी खुशी से।
क्या कहूँ, अपने लिए कुछ, दूसरों के वास्ते कुछ
कायदे तुमने लिखे है सोच बेहद दोगली से।
वक्त उन माँ-बाप को भी दे जरा, तेरे लिए
जो उभर पाये नहीं ताउम्र अपनी मुफ़लिसी से।
इश्क़ के सहरा में 'राहुल' प्यास से बदहाल यूँ हूँ
बूँद भर जल के लिए लिपटा हूँ काँटों की कली से।
मौलिक व अप्रकाशित ।
Added by Rahul Dangi Panchal on November 25, 2018 at 12:00pm — 6 Comments
2122 1122 1122 22/ 122
वह्म को खोल के हमने तो वहम कर डाला
जीभ थी ऐंठती, इस दर्द को कम कर डाला
बाज़ लफ़्ज़ों के तलफ़्फ़ुज़ को हज़म कर डाला
नर्म जो थी न सदा उसको नरम कर डाला
क़ह्र की छुट्टी करी सीधे कहर को लाकर
टेढ़े अलफ़ाज़ पे हमने ये सितम कर डाला
क्योंकि लंबी थी बहुत रस्मो क़वायद पे बहस
ख़त्म होती नहीं ख़ुद, हमने ख़तम कर…
Added by राज़ नवादवी on November 25, 2018 at 9:59am — 15 Comments
आग की तरह के शब्द,
मेरी आत्मा में जलाते है ,
मैं अपने आप को खोया पाता हूँ ,
नियंत्रण, रखना प्रतीत नहीं हो सकता है,
इरादे लटक जाते
फांसी पे एक ध्रुव की ,
और प्यार धुंधला हो जाता है,
आँखों की कालिमा से
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by narendrasinh chauhan on November 24, 2018 at 3:35pm — 5 Comments
2122 1122 1212 22
सीधे सीधे वो कलेजे पे वार करता है
खूब दिलबर है वो हँसके शिकार करता है //१
चाल होती है अज़ब उसकी मीठी बातों में
झूठी बातें वो बड़ी शानदार करता है //२
खूब हिस्सा जो दवाओं में खा रहा है वो
डॉक्टर अब तो दवा से बीमार करता है //३
जिस्म औ रूह के सुकून को मिटा डाला
और कहता है कि वो मुझसे प्यार करता है //४
ख़ून का प्यासा हुआ है ग़ज़ब का अब इंसां
ख़ून के रिश्ते को भी तार तार करता है…
Added by क़मर जौनपुरी on November 23, 2018 at 9:22pm — 7 Comments
1222 1222 1222 1222
हुआ अब तक नहीं है हुस्न का दीदार जाने क्यों ।
बना रक्खी है उसने बीच मे दीवार जाने क्यों ।।
मुहब्बत थी या फिर मजबूरियों में कुछ जरूरत थी ।
बुलाता ही रहा कोई मुझे सौ बार जाने क्यों ।।
यहाँ तो इश्क बिकता है यहां दौलत से है मतलब ।
समझ पाए नहीं हम भी नया बाज़ार जाने क्यों ।।
तिजारत रोज होती है किसी के जिस्म की देखो ।
कोई करने लगा है आजकल व्यापार जाने क्यों ।।
कोई दहशत है या फिर वो कलम…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on November 23, 2018 at 1:30am — 12 Comments
चुनावी महाकुंभ के नगाडे की टंकार में
चौतरफा राजनीति का हुआ महौल गरमागरम
ईद के चांद हुए नेता जो ,
चिराग लेकर ढूंढने पर थे नदारद
योजनाओं की बरसात होने लगी
धूल उडती गड्ढे वाली सडकों पर
चुनावी सीमेंट चढ गया
उजाड बंजर खेती पर
हरियाल करने का मरहम लगाते
कंबल, साडी, दारू, मुर्गा का
बंदरबांट का फार्मूला चलाते
नित नए तरीकों से वोटरों को रिझाते
चरणवंदन कर, घडियाली ऑंसू बहाते
खोखले वायदों की दहाड,
ना खायेंगे, ना खाने देगे
दिए प्रलोभन, दिखाई…
Added by babitagupta on November 22, 2018 at 3:19pm — 5 Comments
2122 2122 2122 212
सोचता हूँ तुझमें कब बंदा नवाज़ी आएगी
तेरे तर्ज़े क़ौल में किस दिन गुदाज़ी आएगी //१
मैं अभी बच्चा हूँ मुझको छेड़ते हो किसलिए
मैं बड़ा भी होऊँगा, क़द में दराज़ी आएगी //२
देखता तो है पलट कर वो इशारों में अभी
मुस्कुराएगा वो कल, तब-ए- तराज़ी आएगी //३
तेरा ये हुस्ने मुजस्सम और मेरी दीवानगी
मिल गए हम दोनों फिर…
Added by राज़ नवादवी on November 21, 2018 at 6:00pm — 22 Comments
( ग़ज़ल )
जहाँ का दर्द समाया सभी की आह में है।
तमाम शहर का मंज़र मेरी निगाह में है।।
जिसे भी कमियों से उसकी किया ज़रा आगाह।
बड़ा सा दाग़ दिखाता वो शख़्स माह में है।।
तमाम ख़ार में इक आध गुल कहीं दिखता।
बहार गर्दिश-ए-सहरा की ज्यूँ पनाह में है ।
बचा रहा है बशर ख़ुद को हक़ बयानी से ।
के ख़ौफ़ इतना है जैसे वो क़त्ल गाह में है।।
नहीं है कुछ भी ख़बर रोज़-ए-हस्र क्या होगा।
फँसा हर एक बशर शौक से गुनाह में है।।
जो कर रहीं हैं सभी साँस की लहरों पे…
ContinueAdded by Vivek Raj on November 21, 2018 at 5:55pm — 6 Comments
ज़िंदगी दी है खुदा ने,मुस्कुराने के लिए
भूलना लाज़िम है तुमको,याद आने के लिए
बेखयाली मे कदम फ़िर, खींच लाये है मुझे
मैं नहीं आया किसी का, दिल चुराने के लिए
यूँ ही मिल जाए कोई फ़िर, क़द्र करता ही…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on November 21, 2018 at 1:00pm — 3 Comments
122 122 122 122
हक़ीक़त न बोले बनाये फ़साना
अज़ब ये तरक्की अज़ब है ज़माना //१
नहीं आज उसमें ज़रा सी भी शफ़क़त
ग़रीबों की लाशों में ढूंढे ख़ज़ाना //२
सँवारा जिसे था बड़ी आरज़ू से
बुढ़ापा में छीना वही आशियाना //३
ज़रूरी कहाँ है गिराना ज़मीं पे
है काफ़ी उसे बस नज़र से गिराना //४
गुलों की तरह है मेरे दिल की हसरत
मसल दो न छोड़े ये ख़ुशबू लुटाना //५
क़मर जाने कब से भटक ही रहा है
तेरा शह्र दर शह्र ढूंढे ठिकाना…
Added by क़मर जौनपुरी on November 21, 2018 at 12:30am — 9 Comments
पास इतना जो मन के वे आते नहीं
स्यात नयनों से यूं दूर होते नहीं
मिल के सपनों के दुनिया बसाते न जो
काँच के ये महल चूर होते नहीं
अब तो बर्बाद हूँ लुट गया हूँ सनम
अर्धविक्षिप्त हूँ और बेहाल हूँ
सोहनी-सोहनी रट रहा हूँ मगर
गम का मारा हुआ एक महिवाल हूँ
कोई गहरी अगर चोट खाते न जो
इस कदर दिल से मजबूर होते नही
पास इतना...
हमने वादा किया साथ मरने का था
क्योंकि जीना हमें रास आया…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 20, 2018 at 12:30pm — 4 Comments
सन्नाटा - लघुकथा -
सोनू ने स्कूल से आते ही, स्कूल बैग पटक कर, सीधे दादा जी के कमरे का रुख किया, "दादा जी, ये ब्लफ मास्टर क्या होता है?"
दादाजी अपने दोस्तों के साथ वर्तमान राजनीति पर चर्चा में मशगूल थे।जिनमें कुछ लोकल लीडर भी थे| अतः सोनू को टालने के लिये कहा,"सोनू, अभी तुम स्कूल से आये हो। ड्रेस बदल कर कुछ खा पी लो। फिर बात करते हैं।"
"नहीं दादाजी, मुझे पहले यह जानना अधिक जरूरी है।"
"सोनू, अभी हम लोग देश के मौजूदा हालात के बारे में कुछ आवश्यक बात कर रहे…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on November 20, 2018 at 10:34am — 15 Comments
2122 2122 2122 212
चल गया जादू सभी अंधे औ बहरे हो गए
ज़ालिमों के ज़ुल्म के दिन अब सुनहरे हो गए //१
था किया वादा बनाएगा महल सपनों का वो
यूँ किया उसने कि गड्ढे और गहरे हो गए //२
चुप है हाकिम चुप है मुंसिफ चुप है ये सारा जहाँ
मुजरिमों की लिस्ट में मासूम चेहरे हो गए //३
हाथ में अब आ गया है ज़ालिमों के वो हुनर
राम हारे रावणों के अब दशहरे हो गए //४
झूठ बोले हर सभा में और पा जाए सनद
सच जो बोले उस ज़ुबाँ पे सख़्त पहरे हो गए //५
--…
ContinueAdded by क़मर जौनपुरी on November 20, 2018 at 8:00am — 7 Comments
प्रजातांत्रिक देश स्वतंत्र व्यक्ति
अभिव्यक्ति की आजादी
विकास यात्रा सत्तर साल की
सरकारी नक्शे पर दर्ज इलाका
हालात जस के तस
टूटे घने जंगलों में बसा वीराना सा गांव
टूटी फूटी नदी, दम तोडती पुलिया
जर्जर धूल उडाती सडकें
विकराल संकटों से जूझ रहा
जीवन से लडता
रोजीरोटी की जद्दोजहद
मैले कुचैले अर्धवदन ढके
बदहाली मे आपस में दुख बांटते
अपने गांव की पीडा समझाते
चेहरे पर पीडा झलक आती
नेताओं के झूठे वादे घडियाली ऑसू
बिना लहर के हिलोरें…
Added by babitagupta on November 19, 2018 at 7:52pm — 7 Comments
बैसाख की दुपहरी में कंचाना खुर्द मोहल्ला बड़ा शांत था I गर्मी के कारण औरतें घरों में दुबकी थीं और मर्द घर के बाहर अधिकांशतः नीम या किसी अन्य पेड़ के नीचे आराम फरमा रहे थे I फ़कीर इस मोहल्ले में बड़े कुंए की तलाश करता-करता एक बड़े से उत्तरमुख घर के पास पहुँचा, जिसकी चार दीवारी के अन्दर आम, नीम व बरगद एवं पाकड़ आदि के कुछ पेड़ थे I घर का मालिक एक अधेड़ सा व्यक्ति बरगद के नीचे बड़े से तख़्त पर नीली लुंगी और सफ़ेद बनियाइन पहने लेटा था I…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 19, 2018 at 5:25pm — 3 Comments
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