मेरे जीवन में वो मौसम, वो दिन और रात कहाँ,
जो भिगो दे मुझे वो प्यार की बरसात कहाँ।
तेरी बातों में हर इक बात भूल जाते थे,
भला अब तुझमे वो पहली सी हंसीं बात कहाँ।
यूँ तो अब भी तू वही है, ये शब-ओ-रोज़ वही,
दरमियाँ अपने मगर पहले से हालत कहाँ।
देखके तुझको बस तुझमे ही सिमट जाते थे,
अब सिमटने के लिए दिल में वो जज़बात कहाँ।
प्यार के नाम पे चुनते रहे कांटे हरदम,
मेरे दामन में कोई फूलों की सौगात…
ContinueAdded by Usha Pandey on December 29, 2014 at 3:21pm — 7 Comments
संक्रमित संस्कृति हमारी, सभ्यता गतिमान है |
सद्कथाएँ मिथ न हों इसका हमे ना भान है |
पर्यावरण दूषित हुआ यह क्या नही प्रमाण है ?
लुप्तप्राय कुछ जंतु जिसमें गरुण का अवसान है |
अंधानुकर विज्ञान का यह क्या हमारी भूल है ?
उस कृत्य से वंचित हुए हम जो जीवन का मूल है ?
सारा जहाँ ही देखिये जिस कृत्य में मसगूल है,
भौतिकता की चाह में सर्वत्र चुभता शूल है |
कल्पतरु मेरी ये वसुधा अनगिनत उपहार देती,
थोड़ा भी यदि श्रम करें…
ContinueAdded by SHARAD SINGH "VINOD" on December 29, 2014 at 3:00pm — 14 Comments
ग्रीष्म में भी लू गरीबो को ही लगती है
ठंढ में भी उन्ही की आत्मा सिहरती है.
रिक्त उदर जीर्ण वस्त्र छत्र आसमान है
हाथ उनके लगे बिना देश में न शान है
काया कृश सजल नयन दघ्ध ह्रदय करती है
ठंढ में भी उन्ही की आत्मा सिहरती है.…
ContinueAdded by JAWAHAR LAL SINGH on December 29, 2014 at 1:00pm — 14 Comments
Added by Rahul Dangi Panchal on December 29, 2014 at 10:00am — 39 Comments
2122 2122 2122
खूब बोला ख़ुद के हक़ में, कुछ हुआ क्या ?
तर्क भीतर तक तुझे ख़ुद धो सका क्या ?
खूब तड़पा , खूब आँसू भी बहाया
देखना तो कोई पत्थर नम हुआ क्या ?
मिन्नतें क्या काम आई पर्वतों से
तेरी ख़ातिर वो कभी थोड़ा झुका क्या ?
जब बहलना है हमें फिर सोचना क्यों
जो बजायें, साज क्या है, झुनझुना क्या ?
लोग सुन्दर लग रहे थे मुस्कुराते
वो भी हँस पाते अगर, इसमें बुरा क्या…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on December 29, 2014 at 9:30am — 40 Comments
तुम आए नहीं
तुम आए नहीं-आएगें कहकर
और एक हम थे चले आए कुछ नही कहकर
इसी उम्मीद से की तुम आओगे ज़रूर
चाहे हो जितना मज़बूर |
वक्त जाता रहा,निगाह ठहरी रही
दिल धड़कता रहा ,सोच ठहरी रही
तुम आ गए लगा यूँ ही रह –रहकर
तुम आए नहीं –आएगें कहकर,
कॉल बजती रही नाद आया नही
प्रश्न उठते रहे ,जवाब आया नही
मायुस होता रह मन सितम सह-सहकर
तुम आए नहीं-आएगें कहकर |
शाम जाती रही ,यकीं जाता रहा
क्यों किया यकीं ,अफ़सोस आता…
ContinueAdded by somesh kumar on December 29, 2014 at 12:28am — 7 Comments
२२१ १२२२ २२१ १२२२
महबूब ख़ुदा मेरा ,उल्फ़त ही इबादत है
है दीन बड़ा मुश्किल ,आसान मुहब्बत है
तेजाब छिड़कते हो कलियों के तबस्सुम पर
कहते हो इसे मज़हब ,क्या ख़ूब इबारत है
ये खून खराबा क्यूं ,ये शोर शराबा क्यूं
मैं किसको झुकाऊँ सिर ,इसमें भी सियासत है
इक सब्ज़ पैराहन पर , है खून के कुछ छीटें
दहशत में लड़कपन है ,नफ़रत की वज़ाहत है वज़ाहत=विस्तार \पराकाष्टा
बारूद की बदबू है ,बच्चों के खिलौनों…
ContinueAdded by khursheed khairadi on December 28, 2014 at 11:00pm — 10 Comments
तू प्यार की राहों में चलना
बस प्यार ही जिंदगी होवे
तू यार तो सच्चा न हो
पर प्यार तो सच्चा होवे,-2
तू देख के लगे फकीरा
पर दिल का फ़कीर न होवे,
तू यार तो सच्चा न हो
पर प्यार तो…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on December 28, 2014 at 10:00pm — 14 Comments
स्वागतम नव वर्ष का
हर्ष से आओ करें मिल, स्वागतम नव वर्ष का ।
आश जो हर मन जगाये, आज कारक हर्ष का ।।
कर्म को मुखरित करे वह, लक्ष्य नव उत्कर्ष का ।
शोध अभिनव जो कराये, साक्ष्य दृढ निष्कर्ष का ।१।…
ContinueAdded by Satyanarayan Singh on December 28, 2014 at 7:00pm — 3 Comments
मजदूरों की बस्ती में दो कँपकँपाती हुई आवाज़ें
“सुना है घर वापसी के 5 लाख दे रहे हैं”
“हाँ भाई मैं भी सुना”
“हम तो घर में ही रहते हैं, कुछ हमें भी दे देते”
-मौलिक व अप्रकाशित
Added by शिज्जु "शकूर" on December 28, 2014 at 6:56pm — 24 Comments
ग़ज़ल : शुभ सजीला आपका नव साल हो.
गर्व से उन्नत सभी का भाल हो.
शुभ सजीला आपका नव साल हो.
कामना मैं शुभ समर्पित कर रहा,
देश का गौरव बढ़े खुश हाल हो.
आसमां हो महरबां कुछ खेत पर,
पेट को इफरात रोटी दाल हो.
मुल्क के हर छोर में छाये अमन,
हो तरक्की देश मालामाल हो.
आदमी बस आदमी बनकर रहे,
जुल्म शोषण का न मायाजाल हो.
मन्दिरों औ मस्जिदों को जोड़ दें,
घोष जय धुन एक ही…
ContinueAdded by harivallabh sharma on December 28, 2014 at 5:30pm — 29 Comments
“वर्मा साहब, एक बात समझ में नहीं आयी, आपने फ़िल्म प्रोडक्शन पर अधिक और फ़िल्म प्रमोशन एवं मिडिया मैनेजमेंट पर मामूली बजट का प्रावधान किया है, जबकि आजकल तो प्रमोशन पर प्रोडक्शन से कहीं अधिक बजट खर्च किये जा रहे हैं.”
“डोंट वरी दादा ! कम प्रमोशनल बजट में भी फ़िल्म हिट करवाई जा सकती है.”
“अच्छा अच्छा, मतलब आप फ़िल्म में आइटम डांस वगैरह डालने वाले है.”
“नो नो, इटिज वेरी ओल्ड ट्रेंड”
“तो अवश्य कोई किसिंग या बोल्ड बेड सीन दिखाने को सोच रहे हैं.”
“अरे नहीं दादा इसमें नया क्या…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 28, 2014 at 4:30pm — 57 Comments
22 22 22 22
शब ही नहीं सहर भी तू है।
मेरी ग़ज़ल बहर भी तू है।।
मेरे ज़ख्मों पे यूँ लगती।
मरहम साथ असर भी तू है।।
बहुत खूबसूरत है दुनियाँ।
ऐसी एक नज़र भी तू है।।
जीवन के हर पथ में मेरे।
मंजिल और सफ़र भी तू है।।
शाहिल तक पहुचाने वाली।
मेरी वही लहर भी तू है।।
**********************
-राम शिरोमणि पाठक
मौलिक/अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on December 28, 2014 at 4:00pm — 18 Comments
‘कवियों से मुझे नफरत है
घिन आती है उनके वजूद से
जैसे सच्चे मुसलमान को
मूलधन के सूद से’
मुझसे कुबेर ने कहा
मैंने आघात को सहा
‘कवि तो मै भी हूँ
अँधेरे का रवि मै ही हूँ
जहाँ नहीं जाता रवि
वहां पहुँच जाता कवि
फिर आपको घिन क्यों है ?’
‘वो बात जरा यों है,
कवि को गरीब ही दिखते है
उन पर ही लिखते हैं
उन्हें दिखता है –काली रात,…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 28, 2014 at 3:20pm — 19 Comments
Added by Rahul Dangi Panchal on December 28, 2014 at 2:10pm — 22 Comments
जीवन लड़कैया से, सपनो की नैया से
तारों के पार चलें, आओं ना यार चले
उतनी ही प्यास रहे, जितना विश्वास रहे
मन की तरंगों से पुलकित उमंगों से
आशा के विन्दु से जीवन विस्तार चले........
क्या था जो पाया था, क्या था जो खोया था
था कुछ समेटा जो सारा ही जाया तो
खुशियों की टहनी को थोड़ा सा झार चले.......
डोली पे फूल झरे, दो दो कहार चले
सुन्दर सी सेज सजी, तपने को देख रही
मन की अगनिया को थोड़ा सा बार चले…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on December 28, 2014 at 10:30am — 19 Comments
2122 1212 22/112
तू मुहब्बत न आजमा मेरी
है तेरे वास्ते वफ़ा मेरी
यूँ कहे पर न जा ज़माने के
गाह चौखट तलक तो आ मेरी
अश्क़ चाहें निकलना आँखों से
रोकती है उन्हें अना मेरी
कौन रखता हिसाब ज़ख़्मों का
खुद मैं कातिब हयात का मेरी
रेत में दफ़्न हो गया कतरा
जो ज़बीं से अभी गिरा मेरी
ज़ख़्म देते हैं वो मुझे पहले
फिर वही करते हैं दवा मेरी
हर सफर में उदास राहों…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on December 28, 2014 at 9:00am — 20 Comments
वसुंधरा की त्रासदी,
कारण था पतझार !
वसन्त आगमन हुआ,
उपवन में आया निखार !!
प्रफुल्लित हुई नव कोपल,
पल्लव मुस्करा रहे !
सतरंगी सुमनों पर,
भ्रमर हैं मंडरा रहे !!
प्रकृति की सात्विक सुन्दरता,
अपनी प्रकृति मैं उतार लें !
आस्था, विश्वास के सूखे,
पल्लव को फिर संवार लें !!
संस्कारों की पौध लगा,
धरा को निखार लें !
प्रकृति के सन्देश को,
जन-जन स्वीकार लें…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on December 28, 2014 at 4:30am — 10 Comments
वक़्त के थपेड़ो में.... खर्च आशिकी अपनी
आज फिर मुहब्बत ने हार मान ली अपनी
लफ्ज़ भी किसी के थे, दर्द भी किसी का था
गैर की ग़ज़ल थी तू... सिर्फ सोच थी अपनी
भूख की गुजारिश में रात भर बिता कर के
बेच दी चराग़ों ने........ आज रौशनी अपनी
आजकल कहीं अपना जिक्र भी नहीं मिलता
वक़्त था कभी अपना, बात थी कभी अपनी
आशना तसव्वुर में........ कुर्बते मयस्सर है
फिर किसी परीवश से जान जा लगी अपनी
आसमान की…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on December 28, 2014 at 12:52am — 16 Comments
सुन लो नयन अबोले मेरे
सुन लो नयन अबोले मेरे
कितना कुछ कहने को आकुल
चिर-प्रतिक्षित हृदय-द्वार की
खड़काते हैं कब से सांकल !
सुनो खड़कती उर की पीड़ा
क्रन्दन करता रहा वियोगी
तुम संजीवन सुषेण तुम्हीं हो
में अमोध का मारा रोगी |
जहाँ-जहाँ पे पट में भिती
तहाँ-तहाँ से किरने खोजूँ
अवचेतन को चेतन करने
के उपाय निरंतर सोचूँ |
सोच रहा हूँ क्या मैं गाऊँ
तू भी भीतर से अकुलाए
पट हृदय के खोल…
ContinueAdded by somesh kumar on December 28, 2014 at 12:12am — 3 Comments
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