क्यों आज तुम्हे अब चैन नहीं है महलों में?,
Added by आशीष यादव on January 24, 2012 at 3:00pm — 27 Comments
ख़ुशी के कितने लमहे हैं, जीस्त जिनसे संवारी है,
मेरे गम का मगर ये पल, मेरे जीने पे भारी है.
कोई भी ख्वाब अब आता नहीं, जो दे सुकूं मुझको,
मुलाजिम हूँ, रातों पर मेरे, अब पहरेदारी है.
जलाए कितने ही घर, कितने ही दुश्मन मिटा डाले,
नहीं आती कोई भी चीख, ये कैसी खुमारी है.
हो कोई सामने, पर बढ़ना है सर काटकर मुझको,
जिसे ठहराते हो जायज, वो जीने की बीमारी है.
मेरी जेबें भरी हैं, खूँ सने सिक्कों से अब, लेकिन,
कोई…
Added by Arvind Kumar on January 23, 2012 at 3:22pm — No Comments
छरहरा सा वदन उसका श्वेत वस्त्र धारण किये ।
था पीत किरीट भाल की शोभा तन वहुत नाजुक लिए।
खोल के जो कपाट घर के देखा उसको गौर से ।
शर्म से नज़रें झुका लीं प्रिय सी चंचलता लिए ।
थाम के उसको लगाया होंठ से अपने जभी ।
इश्क की गर्मी से मेरी खुद ही खुद वह जल उठी ।
खेंच कर सांसों को उसकी जब मै उसको पी गया ।
आग सीने में लगी जल कर कलेजा रह गया ।
धुंए का गुब्बार निकला और फिजा…
ContinueAdded by Mukesh Kumar Saxena on January 23, 2012 at 11:34am — 2 Comments
निशा के आँचल को समेट
खुद को किरणों में लपेट
क्षितिज पार फैली अरुणाई
बहने लगी पवन बौराई
कोहरे का आवरण हटा
सूरज ने खोले नयन कोर l
नीड़ में दुबके बैठे आकुल
भोर हुई तो चहके खगकुल
खुले झरोखे हवा की सनसन
आकर तन में भरती सिहरन
है नव प्रभात, संदेश नवल
नव उमंग, मन में हलचल
कमल सरोवर पर अलि-राग
काँव-काँव कहीं करते काग
हर्ष से तरु-पल्लव विभोर l
संक्रांति मनाते हैं हिलमिल…
ContinueAdded by Shanno Aggarwal on January 23, 2012 at 3:30am — 9 Comments
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 22, 2012 at 1:30pm — 37 Comments
चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता अंक १० में आदरणीय सौरभ बड़े भईया द्वारा अनुष्टुप छंद के विषय मे दी गयी बहुमूल्य जानकारी के आधार पर यह व्यंग्य प्रयोग प्रस्तुत है...
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समय है चुनावों का, गाल सब बजा रहे |
राम युग बसाएंगे,…
ContinueAdded by Sanjay Mishra 'Habib' on January 22, 2012 at 11:30am — 8 Comments
अकेला .......
अकेला
एक शब्द
स्वयं मे अकेला|
हजारों कि भीड़ मे
एक अहसास
अकेले होने का
इंसान को अकेला कर देता है
समाज मे,स्वयं कि सोच मे|
कितना अजीब सा है
यह अहसास
अकेलेपन का ?
कभी सोचा है तुमने
किसी सुखी मनुष्य का बारे मे
क्या उसे सालता है अहसास
अकेलेपन का
अथवा यह है अनुभूति
केवल दुखी मनुष्य के साथ?
अकेलापन किसी कि बपौती नहीं
यह है मात्र अहसास
विचारों के साथ|
कभी कभी अच्छा लगता…
ContinueAdded by dr a kirtivardhan on January 21, 2012 at 11:00pm — 3 Comments
Added by Nazeel on January 21, 2012 at 7:45pm — 6 Comments
नहीं जो हौंसला होता,
न तू काफ़िर हुआ होता |
सभी को भूल जाती मैं,
न कोई रतजगा होता |
न दी आवाज़ ही होती,
न कोई सिलसिला होता |
कहानी कौन कर पाता,
किसे कब कुछ पता होता |
ग़ज़ल तो बस ग़ज़ल होती,
न कोई ज़लज़ला होता |
न आती मौत इंसां को
न सोने को मिला होता |
बड़ी उलझन है उलझी सी,
न होती मैं तो क्या होता |
Added by Nutan Vyas on January 21, 2012 at 3:00pm — 9 Comments
हमको यह गुमा था की हम है दिलो के खरेदार…
ContinueAdded by Kiran Arya on January 20, 2012 at 3:19pm — 4 Comments
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 19, 2012 at 11:09am — 3 Comments
चल झूठ रूठना है तेरा
आंखें सब बतलातीं है
कोयलिया जब गाती है
याद मीत की आती है
आँखों से अब ना आस गिरा
बातों पे रख विश्वास जरा
जाने दे मत रोक मुझें
सर पे दुनियां दारी है
कोयलिया जब गाती है
याद मीत की आती है
न तू भूलीं न मैं भुला
जब झूलें थे सावन झुला
मौसम अब के बरसातीं है
कोयलिया जब गाती है
याद मीत की आती है
चलतें थे तट पे साथ प्रिये
नटखट हाथों में हाथ…
ContinueAdded by shashiprakash saini on January 19, 2012 at 4:00am — 2 Comments
मैं कौन हूँ ?
ये ही पूछा हैं न ?
ये मेरी ही दस्तक है
जो फैलाती हैं सुगंध
बनती है मकरंद.
जो काफी है
भौरों को मतवाला बनाने को
और कर देती है लाचार
बंद होने को पंखुड़ियों में ही
तुम नहीं देख पाए मुझको
उन परवानों के दीवानेपन में
जो झोंक देते हैं प्राण शमा पर
क्या मैं नहीं होता हूँ
उन ओस की बूंदों में
जो गुदगुदाती हैं
प्रेमियों को
रिमझिम फुहार में
बस…
ContinueAdded by Dr Ajay Kumar Sharma on January 18, 2012 at 4:00pm — 12 Comments
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 18, 2012 at 2:52am — 2 Comments
रिश्तॆ,,,,,, -----------------
दूर जब सॆ दिलॊं कॆ मॆल हॊ गयॆ ।
रिश्तॆ जैसॆ राई का तॆल हॊ गयॆ ॥१॥
जिननॆ दी रिश्वत नौकरी मिली,
डिग्रियां लॆ खड़ॆ थॆ फ़ॆल हॊ गयॆ ॥२॥
इरादॆ बहुत नॆक मगर क्या करॆं,
मंहगाई मॆं दब कॆ गुलॆल हॊ गयॆ ॥३॥
बॆमानी भ्रष्टाचार न मरॆंगॆ कभी,
बढ़ रहॆ हैं जैसॆ अमरबॆल हॊ गयॆ ॥४॥
बात की बात मॆं बदल जातॆ लॊग,
वादॆ जैसॆ बच्चॊं, कॆ खॆल हॊ गयॆ ॥५॥
नर और नारी रचॆ थॆ नारायण…
ContinueAdded by कवि - राज बुन्दॆली on January 18, 2012 at 2:50am — 3 Comments
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 17, 2012 at 7:32pm — 3 Comments
सुबह-सुबह लाउडस्पीकर पर बजरंगबली के गोलगप्पा ले के कूद पडने वाले गाने को सुन कर मेरा मन भी बजरंगबली की तरह कूदने को होने लगा. यों मैं बताता चलूँ कि इस गाने या भजन (?) की कोई तुक समझ में नहीं आती है. लेकिन बजता है तो कुछ जरूर होगी. या तो ये गीत है या भजन है.
लेकिन सुबह-सुबह मेरे घर के बगल की खाली जमीन पर गोलगप्पा खिलाये बिना कुदाने वाले कौन लोग आ गये ? यही जानने समझने के लिये मैं हडबडा कर…
ContinueAdded by Shubhranshu Pandey on January 17, 2012 at 5:30pm — 10 Comments
ये क्या किया तन्हाई !
क्यूँ संजोया तुमनें उन पलों को
जो बन चुके हैं
घाव से नासूर
ढूंड पाओगी
कभी मेरा कसूर ?
गहरी साँसों का मंजर
अधूरे ख्वाबों का खंजर
जो धंस गया है दिल में
चुभनें लगा है फिर से
तुम्हारे आते ही.
कर रहा है मंथन
भावों में
अब रिस रहा है
धीरे धीरे चीस्ते से
घावों में .
हाए वो अनलिखे मजमून
जो ख़त नहीं बन पाए
क्यों रख दिए तुमनें
तह बना कर
दिल…
ContinueAdded by Dr Ajay Kumar Sharma on January 17, 2012 at 3:25pm — 2 Comments
काश !
कोई दिन मेरा घर में गुजरता
बेवजह बातें बनाते
हँसते – हँसाते
गीत कोई गुनगुनाते
पर नही मुमकिन
मैं दिन घर में बिताऊँ!
एक नदी प्यासी पड़ी घर में अकेले
और रेगिस्तान में मैं जल रहा हूँ
थक चुका पर चल रहा हूँ
ढूढता हूँ अंजुली भर जल
जिसे ले
शाम को घर लौट जाऊँ
प्यास को पानी पिला दूँ !
मेरे आँगन की बहारों पर
जवानी छा गई है
और मैं
धूप के बाज़ार में बैठा हुआ…
ContinueAdded by Arun Sri on January 17, 2012 at 1:30pm — 2 Comments
मुश्किल में एजद की रहमत साथ दे अगर |
तो छू लें बुलंदी हम ,किस्मत साथ दे अगर ||
मिट जाएगा झूठ हमारी कायनात से ,
बस हमको इक बार सदाकत साथ से अगर…
Added by Nazeel on January 17, 2012 at 12:30pm — 4 Comments
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