ग़ज़ल (आज फैशन है)
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लतीफ़ों में रिवाजों को भुनाना आज फैशन है,
छलावा दीन-ओ-मज़हब को बताना आज फैशन है।
ठगों ने हर तरह के रंग के चोले रखे पहने,
सुनहरे स्वप्न जन्नत के दिखाना आज फैशन है।
दबे सीने में जो शोले जमाने से रहें महफ़ूज़,
पराई आग में रोटी पकाना आज फैशन है।
कभी बेदर्द सड़कों पे न ऐ दिल दर्द को बतला,
हवा में आह-ए-मुफ़लिस को उड़ाना आज फैशन है।
रहे आबाद हरदम ही अना की बस्ती…
ContinueAdded by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on May 2, 2018 at 8:30am — 13 Comments
करे सुबह से शाम तक, काम भले भरपूर।
निर्धन का निर्धन रहा, लेकिन हर मजदूर।१।
कहने को सरकार ने, बदले बहुत विधान।
शोषण से मजदूर का, मुक्त कहाँ जहान।२।
हरदम उसकी कामना, मालिक को आराम।
सुनकर अच्छे बोल दो, करता दूना काम।३।
वंचित अब भी खूब है, शिक्षा से मजदूर।
तभी झेलता रोज ही, शोषण हो मजबूर।४।
आँधी वर्षा या रहे, सिर पर तपती धूप।
प्यास बुझाने के लिए, खोदे हर दिन कूप।५।
पी लेता दो घूँट मय, तन जब थककर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 1, 2018 at 7:39pm — 13 Comments
है मज़हब भले अलग मेरा, पर मैं भी तो इंसान हूँ
खान पान पहनावा अलग, पर बिलकुल तेरे सामान हूँ
ऊपर से चाहे जैसा भी, अन्दर से हिंदुस्तान हूँ
अपने न समझे अपना मुझे, इस बात मैं परेशान हूँ
अपने ही मुल्क में ढूंढ रहा, मैं अपनी पहचान हूँ
मैं भारत का मुसलमान हूँ-२
जब कोई धमाका होता है, लोग मुझ पर उंगली उठाते हैं
आतंक सिखाता है मज़हब मेरा, ये तोहमत हम पर लगाते हैं
दंगों में…
Added by Ranveer Pratap Singh on May 1, 2018 at 4:30pm — 6 Comments
एक बार फिर कंधे पर,
लैपटॉप बैग लटकाये,
वह अलस्सुब्ह निकल पड़ा.
रात को देर से आने पर,
हमेशा की तरह
नींद पूरी नहीं हुई थी,
जलती हुई आँखों,
और ऐठन से भरे शरीर,
को घसीटता हुआ वह,
जल्दी जल्दी बस स्टॉप की तरफ
भागने की कोशिश कर रहा था.
कल रात की बॉस की डांट,
उसे लाख चाहने के बाद भी,
भुलाते नहीं बन रही थी.
कहाँ सोचा था उसने पढ़ते समय,
कि यह हाल होगा नौकरी में.
कहाँ वह सोचता था कि उसे,
मजदूरी नहीं करनी…
Added by विनय कुमार on May 1, 2018 at 4:30pm — 2 Comments
कह-मुकरियाँ
जाऊँ जहाँ वहीं वह होले,
संग संग वह मेरे डोले,
जीवन उसके बिना अलोन,
क्यों सखि साजन ? ना सेल फोन !
हाल चाल सब रखता मेरा,
हमदम सा वह मीत घनेरा,
मै कश्ती तो वह है साहिल,
क्यों सखि साजन ? ना मोबाइल !
चहल पहल वह रौनक लाये,
महफिल में भी रंग जमाये,
उसके बिन जीवन है काहिल,
क्यों सखि साजन ? ना मोबाइल !
.
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Satyanarayan Singh on May 1, 2018 at 3:00pm — 6 Comments
चिथड़े कपड़े,टूटी चप्पल,पेट में एक निवाला नहीं,
बीबी-बच्चों की भूख की आग मिटाने की खातिर,
तपती दोपहरी में,तर-वतर पसीने से ,कोल्हू के बैल की तरह जुटता,
खून-पसीने से भूमि सिंचित कर,माटी को स्वर्ण बनाता,
कद काठी उसकी मजबूत,मेहनत उसकी वैसाखी,…
ContinueAdded by babitagupta on May 1, 2018 at 1:30pm — 4 Comments
ज़िन्दगी में जो हुआ सूद-ओ-ज़ियाँ गिनता रहा
बैठ कर मैं आज सब नाक़ामियाँ गिनता रहा
बाग़बाँ को और कोई काम गुलशन में न था
फूल पर मंडराने वाली तितलियाँ गिनता रहा
और क्या करता बताओ इन्तिज़ार-ए-यार में
तैरती तालाब में मुर्ग़ाबियाँ गिनता रहा
रोकता कैसे मैं उनको नातवानी थी बहुत
बे अदब लोगों की बस गुस्ताख़ियाँ गिनता रहा
लोग भूके मर रहे थे और यारो उस…
ContinueAdded by Samar kabeer on May 1, 2018 at 10:49am — 19 Comments
विवाह में शामिल होने आए दोस्त , रिश्तेदार क़रीबी और परिवार के सदस्य सभी यह जानने के बड़े उत्सुक थे कि आख़िर राहुल मंच से ऐसी क्या घोषणा करेगा जिससे उसकी शादी हमेशा-हमेशा के लिए यादगार बन जाएगी । प्रीतिभोज से निवृत्त होकर सभी मेहमान मंच के सामने एकत्रित हो गए । राहुल अपनी जीवन संगिनी वर्षा का हाथ थामे मंच पर उपस्थित हुआ । हाथ जोड़कर दोनों ने सबका अभिवादन किया और कहा-" साथियों , आप सभी का आभारी हूँ कि आपने अपनी गरिमामयी उपस्थित देकर मेरा मान बढ़ाया । ज़्यादा कुछ नहीं कहूँगा । आज के इस विवाह आयोजन को…
ContinueAdded by Mohammed Arif on May 1, 2018 at 10:30am — 10 Comments
".. और सुनाओ, कैसे हो? हाउ आss यूss?"
"मालूम तो है न! ठीक-ठाक हूं!"
"ओके, मैं भी! लेकिन यह तो बताओ कि सब कुछ अच्छा ही है या अच्छा है सब कुछ 'ठोक-ठाक' के!"
"जानती तो हो ही तुम! घूम रहा हूं तुम्हारी तरह! लेकिन फ़र्क है!"
"फ़र्क! किस तरह का!"
"मेरा घूमना तुम्हारी तरह प्राकृतिक या ब्रह्मंड वाला कक्षा-चक्रीय नहीं है! मैं वैश्वीकरण के कारण घूम रहा हूं; यायावर सा हो गया हूं मैं!"
"हां, जानती तो हूं ही मैं भी!"
"तो…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on April 30, 2018 at 8:26pm — 3 Comments
रवि और गीता फर्स्ट ईयर से ही एक दूसरे को पसंद करते थे अतः उनमे दोस्ती हो गई और बाद में प्यार परवान चढ़ा। फाइनल ईयर तक आते आते उन दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया। रवि को गीता में उसका भावी जीवन साथी दिखता था। रवि ने गीता को अपने दिल के मंदिर में बैठा लिया था। वो तो सपने भी देखने लगा कि गीता ही उसकी और उसके मां बाप की देखभाल करेगी और उसकी गरीबी उन दोनों के बीच नही आएगी।
रवि मिडिल क्लास फैमिली से था और गीता एक फैक्ट्री के मालिक की बेटी थी।
फाइनल ईयर के एग्जाम शुरू होने वाले थे। रवि…
Added by Rajesh Mehra on April 30, 2018 at 6:00pm — 2 Comments
2122 2122 2122 212
दर्द दिल के आशियाँ में इस क़दर पाले गये
आँख से लाली गई ना पांव से छाले गये
रोटियों से भूख की इतनी अदावत बढ़ गई
पेट में सूखे निवाले ठूंस के डाले गये
इस क़दर उलझे हुये हैं आलम-ए-तन्हाई में
मकड़ियां यादों की चल दी भाव के जाले गये
मुफ़लिसी की आँधियाँ थीं याद के थे खंडहर
नीव भी कमजोर थी सो टूट सब आले गये
ख़्वाब की आँखों से 'ब्रज' घटती नहीं हैं दूरियां
बात दीगर है सभी पलकों तले पाले गये…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 30, 2018 at 4:00pm — 9 Comments
आपने भी तो कहाँ ठीक से जाना मुझ को
खैर जो भी हो, मुहब्बत से निभाना मुझ को.
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जीत कर मुझ से, मुझे जीत नहीं पाओगे
हार कर ख़ुद को है आसान हराना मुझ को.
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मैं भी लुट जाने को तैयार मिलूँगा हर दम
शर्त इतनी है कि समझें वो ख़ज़ाना मुझ को.
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आप मिलियेगा नए ढब से मुझे रोज़ अगर
मेरा वादा है न पाओगे पुराना मुझ को.
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ओढ़ लेना मुझे सर्दी हो अगर रातों में
हो गुलाबी सी अगर ठण्ड, बिछाना मुझ को.
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मुख़्तसर है ये तमन्ना कि अगर जाँ निकले…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 30, 2018 at 10:42am — 26 Comments
जाति-पाती पूछे हर कोई
“हो गईल चन्दवा क शादी |” पत्नी मोबाईल कान से लगाए मेरी तरफ देखते हुए बोली
मैं दफ्तर से लौटा तो समझ गया की पत्नी जी अपनी माता से फ़ोन पर लगी पड़ी हैं |मैंने बिना कोई रूचि दिखाए अपना बैग रखा और हाथ-मुँह धोने चला गया |
थोड़ी देर बाद पत्नी चाय लेकर आई और सामने बैठ गयी |मैं समझ गया कि वो मुझे कुछ बताने के लिए बेताब है और यह भी कि यह चंदा के विषय में है पर सिद्ध-पुरुष की तरह मैं प्लेट से कचरी उठाकर खाने लगा और अपने व्हाट्सएप्प को…
ContinueAdded by somesh kumar on April 29, 2018 at 5:26pm — 4 Comments
1222 1222 122
बड़ी मुद्दत से टाला जा रहा है ।
किसी का जुल्म पाला जा रहा है ।। 1
मुझे मालूम है वह बेख़ता थी ।
किया बेशक हलाला जा रहा है ।।2
लगीं हैं बोलियां फिर जिस्म पर क्यूँ ।
यहाँ सिक्का उछाला जा रहा है ।।3
कहीं मैं खो न जाऊं तीरगी में ।
मेरे घर से उजाला जा रहा है ।।4…
Added by Naveen Mani Tripathi on April 29, 2018 at 4:30pm — 7 Comments
"आज कुछ बदलाव सा लग रहा है हर बात में, क्या बात है? सब कुछ मेरी पसंद का!"
"ये मत सोचना जानूं कि देश के बदलाव के साथ ख़ुद को बदल रही हूं! दरअसल तुम्हारी गोली मुझे अंदर तक घायल कर गई, कल रात!"
इतना कह कर पत्नि ने शरमाते हुए पति की लिखी नई ग़ज़ल वाली पर्ची उसके सीने वाली बायीं जेब में डाल दी!
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by Sheikh Shahzad Usmani on April 29, 2018 at 3:30pm — 6 Comments
करनी है जब मन की साहब
क्यों पूछे हो हमरी साहब ।
पानी भरने मैं निकला हूँ
ले हाथों में चलनी साहब ।
पढ़े फ़ारसी तले पकौड़े
किस्मत अपनी अपनी साहब ।*
आटा से डाटा है सस्ता
सब माया है उनकी साहब ।*
शौचालय का मतलब तब ही
जन जब खाए रोटी साहब ।
नही सुरक्षित घर में बेटी
धरम-करम बेमानी साहब ।
सच्ची सच्ची बात जो बोले
आज वही है 'बाग़ी' साहब ।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
*संशोधित
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 29, 2018 at 2:30pm — 23 Comments
(फ ऊलन -फ ऊलन-फ ऊलन-फ ऊलन )
मुहब्बत में धोका उठाने चले हैं।
हसीनों से वह दिल लगाने चले हैं।
सज़ा जुर्म की वह न दे पाए लेकिन
मेरा नाम लिख कर मिटाने चले हैं।
लगा कर त अस्सुब का आंखों पे चश्मा
वो दरसे मुहब्बत सिखाने चले हैं ।
अदावत भी जिनको निभाना न आया
वो हैरत है उल्फ़त निभाने चले हैं ।
बहुत नाम है ऐबगीरों में जिनका
हमें आइना वो दिखाने चले हैं ।
अचानक इनायत न उनकी हुई है
वो…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on April 29, 2018 at 12:30pm — 8 Comments
221---2121---1221---212
.
तू मुश्किलों को धूल चटाने की बात कर
तूफ़ाँ में भी चराग़ जलाने की बात कर
.
तू मीरे-कारवाँ है तो ये फ़र्ज़ है तिरा
भटके हुओं को राह दिखाने की बात कर
महफ़िल में जब बुलाया है मुझ जैसे रिन्द को
आँखों से सिर्फ़ पीने पिलाने की बात कर
.
ऐशो-तरब की चाह भी कर लेना बाद में
पहले उदर की आग बुझाने की बात कर
.
मुद्दत से मुन्तज़िर हूँ तिरा ऐ सुकूने-दिल
ख़्वाबों में ही सही कभी आने की बात कर
.
बस पैरहन…
Added by दिनेश कुमार on April 29, 2018 at 6:30am — 18 Comments
चाहे जितने लेख लिखें हम
और लिखें कितनी कविता
नहीं समझ आती कामी को
अब कोई भी मर्यादा
रोगी मन का शब्दों से
उपचार नहीं होने वाला
सद्गुण , संस्कार के बिन
उद्धार नहीं…
Added by Usha Awasthi on April 28, 2018 at 7:30pm — 9 Comments
बुजुर्ग यानि हमारे युवा घर की आधुनिकतावाद की दौड़ में डगमगाती इमारत के वो मजबूत स्तम्भ होते हैं जिनकी उपस्थिति में कोई भी बाहरी दिखावा नींव को हिला नही सकता.उनके पास अपनी पूरी जिन्दगी के अनुभवों का पिटारा होता हैं जिनके मार्ग दर्शन में ये नई युवा पीढ़ी मायावी दुनिया में भटक नही सकती,लेकिन आज के दौर में बुजुर्गों को बोझ समझा जाने लगा हैं.उनकी दी हुई सीखे दकियानूसी बताई जाती हैं .ऐसा ही मैंने एक लेख में पढ़ा था जिसमे बुजुर्गों को पराली की संज्ञा दी गई.पराली वो होती…
ContinueAdded by babitagupta on April 28, 2018 at 4:46pm — 7 Comments
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