221 2121 1221 212
बेबस पे और जुल्म न ढाने की बात कर।
गर हो सके तो होश में आने की बात कर ।।
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क्या ढूढ़ता है अब तलक उजड़े दयार में ।
बेघर हुए हैं लोग बसाने की बात कर ।।
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खुदगर्ज हो गया है यहां आदमी बहुत ।
दिल से कभी तो हाथ मिलाने की बात कर ।।
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मुश्किल से दिल मिले हैं बड़ी मिन्नतों के बाद ।
जब हो गया है प्यार निभाने की बात कर…
Added by Naveen Mani Tripathi on April 28, 2018 at 9:00am — 5 Comments
212 212 212 212
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उससे नज़रें मिलीं हादसा हो गया,
एक पल में यहाँ क्या से क्या हो गया ।
ख़त दिया था जो कासिद ने उसका मुझे,
"बिन अदालत लगे फ़ैसला हो गया" ।
दरमियाँ ही रहा दूर होकर भी गर,
जाने फिर क्यूँ वो मुझसे ख़फ़ा हो गया ।
गर निभाने की फ़ुर्सत नहीं थी उसे,
खुद ही कह देता वो बेवफ़ा हो गया।
दर्द सीने में ऱख राज़ उगला जो वो,
यूँ लगा मैं तो बे-आसरा हो गया…
Added by Harash Mahajan on April 27, 2018 at 7:00pm — 13 Comments
"बेटा, फल के आने से वृक्ष तक झुक जाते हैं, वर्षा के समय बादल झुक जाते हैं, संपत्ति के समय सज्जन भी नम्र हो जाते हैं। परोपकारियों का स्वभाव ही ऐसा होता है! कह गए अपने तुलसीदास जी, समझे!" महाविद्यालय की कैंटीन में राजनीतिक गुफ़्तगु करते छात्र-समूह में से एक ने दूसरे की बात सुनकर हिदायत देने की कोशिश कर डाली!
"अबे, यह सब क़िताबों में ही रहने दे और आज की दुनिया की बात कर!" दूसरे छात्र ने चाट का दोना वेस्टबिन में डालते हुए कहा - "फल आने के अहंकार से संस्कार झुक जाते हैं, धनवर्षा के…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on April 27, 2018 at 8:15am — 4 Comments
मोहब्बत ...
गलत है कि
हो जाता है
सब कुछ फ़ना
जब ज़िस्म
ख़ाक नशीं
हो जाता है
रूहों के शहर में
नग़्मगी आरज़ूओं की
बिखरी होती
ज़िस्म सोता है मगर
उल्फ़त में बैचैन
रूह कहाँ सोती है
मेरे नदीम
न मैं वहम हूँ
न तुम वहम…
Added by Sushil Sarna on April 25, 2018 at 7:16pm — 10 Comments
"लोकतंत्र ख़तरे में है!"
"कहां?"
"इस राष्ट्र में या उस मुल्क में या उन सभी देशों में जहां वह किसी तरह है!"
"अरे, यह कहो कि वही 'लोकतंत्र' जो कि कठपुतली बन गया है तथाकथित विकसितों के मायाजाल में!"
"हां, तकनीकी, वैज्ञानिकी विकास में या ब्लैकमेलिंग- व्यवसाय में!"
"सच तो यह है कि जो धरातल, स्तंभों से दूर हो कर खो सा गया है कहीं आसमान में!"
"हां, दिवास्वप्नों की आंधियों में!"
"... और अजीबोग़रीब अनुसंधानों में!"
"भाई, इसी तरह यह क्यों नहीं कहते कि इंसानियत…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on April 25, 2018 at 7:00pm — 2 Comments
घर की सुखमयी ,वैभवता की ईटें सवारती,
धरा-सी उदारशील,घर की धुरी,
रिश्तों को सीप में छिपे मोती की तरह सहेजती,
मुट्ठी भर सुख सुविधाओं में ,तिल-तिल कर नष्ट करती,
स्त्री पैदा नही होती,बना दी जाती,
ममतामयी सजीव मूर्ति,कब कठपुतली बन…
ContinueAdded by babitagupta on April 25, 2018 at 6:00pm — 4 Comments
मैं लिख नहीं सकता l
मैं लिख नहीं सकता
वाणी के पर खोलकर
अम्बुधि के उर्मिल प्रवाह पर
उत्कंठित भावभंगिमा से
नीरवता का भेदन करके
घन तिमिर बीच में बन प्रभा
मधुकरी सदृश गुंजित रव से
अविरल नूतनता भर देता
मैं लिख नहीं सकता l
भू अनिल अनल में
उथल पुथल
अनृत प्रवाद का मर्दन कर
इतिवृत्तहीन विपुल गाथा
मुख अवयव से
पुष्कल निनाद
हो अनवरुद्ध
झंकृत करता
मैं…
ContinueAdded by डॉ छोटेलाल सिंह on April 25, 2018 at 12:31pm — 7 Comments
१२२२/१२२२/१२२२/१२२२
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बहुत आसाँ है दुनिया में किसी का प्यार पा लेना,
बहुत मुश्किल है ऐबों को मगर उस के निभा लेना.
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नज़र मिलते ही उस का झेंप कर नज़रें चुरा लेना,
मचलती मौज का जैसे किसी साहिल को पा लेना.
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बहुत वादे वो करता है मगर सब तोड़ देता है,
ये दावा भी उसी का है कि मुझ को आज़मा लेना.
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मलंगों सी तबीयत है सो अपनी धुन में रहता हूँ
पिये हैं रौशनी के जाम फिर ग़ैरों से क्या लेना.
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मिलन होगा मुकम्मल जब मिलेगी बूँद सागर से…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 25, 2018 at 12:09pm — 14 Comments
Added by Kumar Gourav on April 25, 2018 at 12:13am — 4 Comments
तन की बात - लघुकथा –
नंदू स्कूल का बैग पटक कर चिल्लाया,"माँ, मैं खेलने जा रहा हूँ। आज स्कूल की छुट्टी होगयी"।
"अरे रुक तो सही, क्या हुआ। अभी गया था और तुरंत वापस आगया। बता तो,क्यों हो गयी छुट्टी"? ममता रसोईघर से हाथ पौंछते हुई निकली|
"माँ, स्कूल की एक लड़की ने स्कूल में आत्म हत्या कर ली"।
इतना बोलकर नंदू खेलने दौड़ गया।
ममता यह खबर सुनकर बेचैन हो गयी।वह भी तुरंत स्कूल पहुंच गयी ।भीड़ लगी हुई थी।पुलिस वाले भी आ चुके थे।लोगों में कानाफ़ूसी चल रही थी।
कोई…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on April 24, 2018 at 6:03pm — 14 Comments
"मुझे हमेशा लगता है कि कोई मुझे जान से मारने की कोशिश कर रहा है!"
"मुझे हमेशा लगता है कि कोई मुझे जड़ से ख़त्म करने की कोशिशें कर रहा है!"
"मुझे हमेशा लगता है कि कोई मुझे अपनी नौकरी से हटाने के की कोशिश कर रहा है या फिर मेरा तबादला कराने की कोशिशें कर रहा है!"
"हां, मुझे तो हमेशा यह भी लगता है कि मेरे अपनों को सता-सता कर या मुझे ब्लैकमेल कर मुझे दिग्भ्रमित करने की कोशिशें की जा रही हैं!"
दुनिया के मंच पर भिन्न-भिन्न किरदारों की अदायगी देख कर 'ईमानदारी' ने आंसू…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on April 24, 2018 at 2:30am — 12 Comments
शांत चेहरे पर होती अपनी एक कहानी,
पर दिल के अंदर होते जज्बातों के तूफान,
अंदर ही अंदर बुझे सपनों के पंख उडने को फडफडाते,
पनीली ऑंखों से अनगिनत सपने झांकते
जीवन का हर लम्हा तितर वितर क्यों होता,
जीवन का अर्थ कुछ समझ नहीं आता,
लेकिन इस भाव हीन दुनियां में सोचती,
खुद को साबित करने को उतावली,
पूछती अपने आप से,
सपने तो कई हैं, कौन सा करू पूरा,
आज बहुत से सवाल दिमाग को झकझोरते,
खुद से सवाल कर जवाब…
ContinueAdded by babitagupta on April 23, 2018 at 3:30pm — 5 Comments
चाँद बन जाऊंगी ..
कितनी नादान हूँ मैं
निश्चिंत हो गई
अपनी सारी
तरल व्यथा
झील में तैरते
चाँद को सौंपकर
हर लम्हा जो
एक शिला लेख सा
मेरे अवचेतन में
अंगार सा जीवित था
निश्चिंत हो गई
उसे
झील में तैरते
चाँद को सौंपकर
उम्र कैसे फिसल गई
अपने तकिये पर
तुम्हारी गंध को
सहेजते -सहेजते
कुछ पता न चला
निश्चिंत हो गई
अपनी चेतना के जंगल में व्याप्त …
Added by Sushil Sarna on April 23, 2018 at 11:30am — 10 Comments
लोकशाही क़माल है साहिब
लोक में ही बवाल है साहिब
काम इनके कभी नहीं रुकते
कौन इनका दलाल है साहिब
फिर से मिलने लगे हैं झुक झुक के
खेल करने का साल है साहिब
पूछने पर हमेशा कहते हैं
नेक सा ही ख़्याल है साहिब
अनगिनत हैं सवाल आंखों में
दिल में थोड़ा मलाल है साहिब
- -नंद कुमार सनमुखानी
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Nand Kumar Sanmukhani on April 23, 2018 at 10:00am — 7 Comments
सोने की बरसात करेगा
सूरज जब इफ़रात करेगा
बादल पानी बरसाएंगे
राजा जब ख़ैरात करेगा
जो पहले भी दोस्त नहीं था
वो तो फिर से घात करेगा
कुर्सी की चाहत में फिर वो
गड़बड़ कुछ हालात करेगा
जो संवेदनशील नहीं वो
फिर घायल जज़्बात करेगा
जो थोड़ा दीवाना है वो
अक्सर हक़ की बात करेगा
नंद कुमार सनमुखानी.
-
"मौलिक और अप्रकाशित"
Added by Nand Kumar Sanmukhani on April 23, 2018 at 10:00am — 21 Comments
ख़ामोश रहें तो भी मुश्किल
कुछ बात कहें तो भी मुश्किल..
जो राज़ छुपे हैं सीने में
खुल जाएं तहें, तो भी मुश्किल..
वादा था किया ख़ुश रहने का
आंसूं जो बहें तो भी मुश्किल..
वो दर्द मुसलसल दें चाहे
हम दर्द सहें तो भी मुश्किल ..
विपरीत बहें हम धारों के
जो साथ बहें तो भी मुश्किल ..
- नंद कुमार सनमुखानी
"मौलिक और अप्रकाशित"
Added by Nand Kumar Sanmukhani on April 23, 2018 at 10:00am — 11 Comments
प्रसंग था 'दशा और 'बोध ' किसे कहते हैं ? जिज्ञासु और दार्शनिक के बीच इस विषय को लेकर काफी वाद-विवाद चला । जिज्ञासु दार्शनिक के तर्कों से संतुष्ट नहीं हो रहा था । अंत में दार्शनिक ने जो सांकेतिक जवाब दिया उसे सुनकर जिज्ञासु अभिभूत हो गया । दार्शनिक ने उंगली से चींटियों के जाते हुए झुण्ड की ओर इशारा कर दिया ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।
Added by Mohammed Arif on April 23, 2018 at 9:00am — 16 Comments
222222 2
नाम बड़ा है उस घर का
पहरा जिस पर है डर का
प्यास बुझाना प्यासे की
कब है काम समंदर का
बिना बात बजते बर्तन
दृश्य यही अब घर-घर का
बोल कहे और जय चाहे
क्या है काम सुख़नवर का?
महल दुमहले जिसके हैं
वही भिखारी दर-दर का।
'राणा' सच कहते रहना
रंग न छूूटे तेवर का।
मौलिक/अप्रकाशित
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on April 23, 2018 at 6:30am — 12 Comments
ग़ज़ल (कैसी ये मज़बूरी है)
22 22 22 22 22 22 22 2
गदहे को भी बाप बनाऊँ कैसी ये मज़बूरी है,
कुत्ते सा बन पूँछ हिलाऊँ कैसी ये मज़बूरी है।
एक गाम जो रखें न सीधा चलना मुझे सिखायें वे,
उनकी सुन सुन कदम बढ़ाऊँ कैसी ये मज़बूरी है।
झूठ कपट की नई बस्तियाँ चमक दमक से भरी हुईं,
उन बस्ती में घर को बसाऊँ कैसी ये मज़बूरी है।
सबसे पहले ऑफिस आऊँ और अंत में घर जाऊँ,
मगर बॉस को रिझा न पाऊँ कैसी ये मज़बूरी है।
ऊँचे घर…
ContinueAdded by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on April 22, 2018 at 3:30pm — 13 Comments
2122 2122 212
ओस की बूंदें भी' प्यासी हैं अभी
परकटी चाहें अधूरी हैं अभी।1
नश्तरों का हाल अब मत पूछना
बुत बनी रातें यूँ तारी हैं अभी।2
क्या करोगे जानकर सब सिलसिला?
सच मरा है, बातें' टेढ़ी हैं अभी।3
औरतों के नाम लेके आजकल
नख चले,घातें यूँ' माती हैं अभी।4
लाइलाजों का करो कुछ तो जतन
इल्म वाली बाँहें' बाकी हैं अभी।5
नर्म बिस्तर के सिवा झपकी नहीं?
नाखुदाओ! लपटें' खासी हैं अभी।6
"मौलिक व अप्र का शि त"
Added by Manan Kumar singh on April 22, 2018 at 8:49am — 9 Comments
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2012
2011
2010
1999
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