212 212 212 212
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दरमियाँ अब तेरे मेरे क्या रह गया,
फासला तो हुआ पर नशा रह गया ।
उठ चुका तू मुहब्बत में इतना मगर
मैं गिरा इक दफ़ा तो गिरा रह गया ।
ज़ह्र मैं पी गया, बात ये, थी नहीं,
दर्द ये, मौत से क्यों ज़ुदा रह गया ।
मौत से, कह दो अब, झुक न पाऊँगा मैं,
सर झुकाने को बस इक खुदा रह गया ।
टूट कर फिर से बिखरुं, ये हिम्मत न थी,
इस जहाँ को बताता,…
ContinueAdded by Harash Mahajan on March 3, 2018 at 4:00pm — 14 Comments
प्रतिज्ञा - लघुकथा –
एक खूँखार आतंकी संगठन के सिरफ़िरे मुखिया ने राज्य के मुख्यमंत्री को खूनी चुनौती भरा संदेश भेज कर पूरे राज्य में दहशत फ़ैला दी थी। उसने हिदायत की थी कि इस बार होली पर लाल चौक पर एक भी बंदा गुलाल या किसी भी प्रकार के रंग के साथ दिखा तो लाल चौक को खून से रंग दिया जायेगा। यह हमारा त्यौहार नहीं है इसलिये हम हमारे राज्य में किसी को भी होली खेलने की इज़ाज़त नहीं देंगे। मुख्यमंत्री की नींद उड़ चुकी थी।
आपातकालीन बैठक बुलाई गयी थी। पूरे राज्य में रेड अलर्ट तथा अघोषित…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on March 3, 2018 at 1:38pm — 8 Comments
होली पर चन्द कुंडलियां
मधुशाला में भीड़ है , होली का उल्लास ।
बुझा रहे प्यासे सभी अपनी अपनी प्यास ।।
अपनी अपनी प्यास पड़े नाली नालों में ।
लगा रहे अब रंग वही सबके गालों में ।।
नशे बाज पर आप , लगा कर रखना ताला ।
कभी कभी विषपान कराती है मधुशाला ।।
सूखा सूखा चित्त है , उलझा उलझा केश ।
होली बैरन सी लगे कंत बसे परदेश ।।
कंत बसे परदेश बिरह की आग जलाये ।
यौवन पर ऋतुराज ,किन्तु यह रास न आये ।।
कोयलिया का गान लगे अब बान…
Added by Naveen Mani Tripathi on March 2, 2018 at 11:43pm — 9 Comments
होली
समता ममता प्यार मुहब्बत, हिलमिल बाँटे होली में
समरसता औ सत्य अहिंसा,छलके मीठी बोली में
होली की सतरंगी आभा,कण कण में फैलाएंगे
वैर भाव का बीज कहीं पे,हरगिज नहीं उगाएंगे
कूड़े का अम्बार उठाकर,दहन करेंगे होली में
कटुता और विषमता का मिल,हवन करेंगे होली में
रंग गुलाल भाल पर शोभित,प्रेम सहित हो होली में
सहिष्णुता का पाठ पढ़ाएं,करें सभी हित होली में
सब मिलकर हुड़दंग मिटाएँ,मचे रार ना होली में
ताना बाना बुने कर्म का,जुड़े तार इस होली…
Added by डॉ छोटेलाल सिंह on March 2, 2018 at 10:57pm — 5 Comments
होरी खेलें लखनौआ , गंज माँ होरी खेलें लखनौआ
कुर्ता पहिन पजामा पहनिन, सुरमा लग्यो निराला
अच्छे-अच्छे रंग छांड़ि के रंग पुताइन काला
खाक छानि कै गली-गलिन कै मस्त लगावें पौआ
गंज माँ होरी खेलें लखनौआ
चौराहन पर मटकी फोरें भर मारें पिचकारी
फगुआ गावैं बात-बात पर मुख से निकसै गारी
भौजी तो हैं भारी भरकम देवर हैं कनकौआ
गंज माँ होरी खेलें लखनौआ
गली -मुहल्ले के लड़के हैं सब लखनौआ बाँके
प्यासी आँखों से तिरिया के अंतर्तन…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 2, 2018 at 7:17pm — 5 Comments
ग़ज़ल ,(तेरे चहरे की जब भी अर्गवानी याद आएगी।)
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तेरे चहरे की रंगत अर्गवानी याद आएगी,
हमें होली के रंगों की निशानी याद आएगी।
तुझे जब भी हमारी छेड़खानी याद आएगी
यकीनन यार होली की सुहानी याद आएगी।
मची है धूम होली की जरा खिड़की से झाँको तो,
इसे देखोगे तो अपनी जवानी याद आएगी।
जमीं रंगीं फ़ज़ा रंगीं तेरे आगे नहीं कुछ ये,
झलक इक बार दिखला दे पुरानी याद आएगी।
नहीं कम ब्लॉग में मस्ती…
ContinueAdded by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on March 2, 2018 at 11:30am — 9 Comments
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मुझे ढ़ाल दे अपने ही ढंग से अब
सराबोर कर खुद के ही रंग से अब
ज़रूरी है ख़श्बू फ़िज़ाओं में बिखरे
बदन की तुम्हारे मेरे अंग से अब
न मुझसे चला जा रहा होश में है
तू मदहोश कर रूप की भंग से अब
है महफ़िल में भी मन हमारा अकेला
उमंगें इसे दे तेरे संग से अब
न जाने है कैसी जो मिटती नहीं है
मनस सींच तू प्रीत की गंग से अब
मौलिक अप्रकाशित
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on March 2, 2018 at 10:30am — 8 Comments
होली के दोह
मन करता है साल में, फागुन हों दो चार
देख उदासी नित डरे, होली का त्योहार।१।
चाहे जितना भी करो, होली में हुड़दंग
प्रेम प्यार सौहार्द्र को, मत करना बदरंग।२।
तज कृपणता खूब तुम, डालो रंग गुलाल
रंगहीन अब ना रहे, कहीं किसी का गाल।३।
फागुन में गाते फिरें, सब रंगीले फाग
उस पर होली में लगे, भीगे तन भी आग।४।
घोट-घोट के पी रहे, शिव बूटी कह भाँग
होली में जायज नहीं, छेड़छाड़ का…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 1, 2018 at 7:43pm — 23 Comments
2122 2122 2122 2122
इन बहारों में भी गुल ये हो गये हैं ज़र्द साहिब
चढ़ गई वहशत कि इनपर क्यूँ अभी से गर्द साहिब
जब जहाँ चाहा किसी ने सूँघ कर फिर फेंक डाला
पूछने वाला न कोई नातवाँ का दर्द साहिब
जो रफू कर दें किसी औरत के आँचल को नज़र से
अब कहाँ हैं ऐसी नजरें अब कहाँ वो मर्द साहिब
हो गये पत्थर के जैसे फ़र्क क्या पड़ता इन्हें कुछ
हो झुलसता दिन या कोई शब ठिठुरती सर्द साहिब
क्या बचा है मर्म इसमें क्या करोगे इसको…
Added by rajesh kumari on March 1, 2018 at 6:35pm — 14 Comments
रूठो न दिलदार कि होली आई है
झूम उठा संसार कि होली आई है
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साजन हैं परदेस न भाए रंग-अबीर
गोरी के आँखों से बहता झर-झर नीर
ख़त में साजन को ये लिखकर भेजा है
तुम बिन नहीं क़रार कि होली आई है
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होली के दिन बदला हर रुख़सार लगे
रंग-बिरंगा होली का श्रंगार लगे
पिए भांग हैं मस्त फाग की टोली में
बरसे रंग-फुहार कि होली आई है
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होली के दिन बड़ों का आशीर्वाद रहे
छोटो के संग होली का पल याद रहे
हर मज़हब के लोग खुशी मे खोए हैं
रंगो का…
Added by SALIM RAZA REWA on March 1, 2018 at 5:51pm — 25 Comments
समय का काला
क्रूर धुआँ
आख़िरकार
तैर गया आँखों में
बन के मोतियाबिंद
बड़ा चुभता है आठों पहर
उन दिनों आँखें
बड़ी व्यस्त रहती थी
किसी के दिल को लुभाती थी
किसी के मन को भाती थी
सारा संसार समाया था इनमें
लेकिन धीरे-धीरे
इनका यौवन फीका पड़ गया
पहले जैसा कुछ भी नहीं रहा
अब ये आँखें
पथराई-सी
डबडबाई-सी
लाचार-सी रहती है
बस यही पहचान रह गई है इनकी ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।
Added by Mohammed Arif on March 1, 2018 at 5:00pm — 16 Comments
1222 1222 1222 1222
अभी इग्नोर कर दो, पर, ज़बानी याद आयेगी
अकेले में तुम्हें मेरी कहानी याद आयेगी
चढ़ा फागुन, खिली कलियाँ, नज़ारों का गुलाबीपन
कभी तो यार को ये बाग़बानी याद आयेगी
मसें फूटी अभी हैं, शोखियाँ, ज़ुल्फ़ें, निखरता रंग
इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आएगी
मुबाइल नेट दफ़्तर के परे भी है कोई दुनिया
ठहर कर सोचिए, वो ज़िंदग़ानी याद आयेगी
कभी पगडंडियों से राजपथ के प्रश्न मत पूछो
सियासत की उसे हर…
Added by Saurabh Pandey on February 28, 2018 at 2:30am — 28 Comments
कभी सोचता हूँ यदि ईश्वर-अल्लाह इत्यादि एक ही है
तो हम सबको अलग-अलग पैदा क्यों किया ?
इस बारे में क्या सोचते है आप ?
और माना कि पैदा किया भी तो फिर बीच में
कहाँ से आ टपके हमारे माँ-बाप ?
और पर्वत-पहाड़ नदियाँ तो बनते बिगड़ते है अपने आप
फिर इन सबको भी ऊपर वाले ने बनाया क्यों कहते है आप ?
और कभी सड़क पर आपको ड्राईवर टक्कर से बचा भी दें
तो आप पूरा श्रेय देते हैं भगवान को !
और मर गए तो आफत आती है ड्राईवर की जान को !
थोडा सोचो…
ContinueAdded by Naval Kishor Soni on February 27, 2018 at 12:30pm — 3 Comments
गीत
कंटक ही कंटक हैं, जीवन के पथ में !
प्राणों पर संकट है, काया के रथ में !
क्षण-क्षण यह चिंतन
जीवन बीहड़ वन !
इस वन में एकाकी
प्राणों का विचरण…
Added by नन्दकिशोर दुबे on February 27, 2018 at 11:30am — 7 Comments
मुक्तक
(आम आदमी)
1.सारी फिक्रें अभी उलझी हुईं हैं एक सदमें में
मैं मर जाऊँ तो क्या !मैं खो जाऊँ तो क्या !
2.मैं रोज़ मरता हूँ कोई हंगामा नहीं होता
सब सदमानसी है मुमताज़ की खातिर |
(इस्तेमाल )
3.खम गज़ल लिखता हूँ दिल तोड़ कर उसका
हुनर ज़ीना चढ़ता है बुलंदी हासिल होती है |
(वापसी )
4.शराब ने टूटकर घर का पानी गंगा कर दिया
उसने कपड़े उतारे मेरी सोच को नंगा कर दिया |
…
ContinueAdded by somesh kumar on February 27, 2018 at 10:58am — 5 Comments
Added by Kumar Gourav on February 27, 2018 at 1:49am — 6 Comments
मफ़ऊल फ़ाइलातुन मफ़ऊल फ़ाइलातुन
वो प्यार का हमारे, इस्बात चाहते हैं।
बेइंतहा जिन्हें हम, दिन रात चाहते हैं।।
होकर खड़े हुए हैं, बेदार सरहदों पर,
जो अम्न-ओ-चैन वाले, हालात चाहते हैं।।…
Added by प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप' on February 26, 2018 at 11:00pm — 9 Comments
Added by Rahila on February 26, 2018 at 10:58pm — 8 Comments
लूटकर घर का खजाना भाग जाता आदमी
चंद सिक्कों के लिए भी मार खाता आदमी।1
बिक रहे कितने पकौड़े,चुस्कियों में प्यालियाँ,
और ठगकर आपसे भी मुस्कुराता आदमी।2
योजनाएँ चल रहीं पर हो रहीं नादानियाँ
देखकर यूँ हाल अपना खुद लजाता आदमी।3
सच कहा जाता नहीं,कह दे अगर,बदकारियाँ
तिलमिलाती बात है फिर थरथराता आदमी।4
रोक सकता दुश्मनों को देख लो जाँबाज दिल
भेदियों से घर में लेकिन मात खाता आदमी।5
खेत में होते हवन से हाथ जलते हैं बहुत
कर चुकाने में फसल…
Added by Manan Kumar singh on February 26, 2018 at 9:00pm — 7 Comments
2122 1122 22
पहले ग़लती तो बता दे मुझको
फिर जो चाहे वो सज़ा दे मुझको
oo
सारी दुनिया से अलग हो जाऊँ
ख़ाब इतने न दिखा दे मुझको
oo
हो के मजबूर ग़म-ए-दौरां से
ये भी मुमकिन है भुला दे मुझको
oo
या खुदा वक़्त-ए-नज़ा से पहले
उसका दीदार करा दे मुझको
oo
साथ चलना हो 'रज़ा' नामुमकिन
ऐसी शर्तें न सुना दे मुझको
_____________________
मौलिक व अप्रकाशित
Added by SALIM RAZA REWA on February 26, 2018 at 8:00pm — 10 Comments
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