बह्र - मफाईलुन मफाईलुन मफाईलुन मफाईलुन
बुढ़ापा आ गया लेकिन समझदारी नहीं आई।
रहे बुद्धू के बुद्धू और हुशियारी नहीं आई।
किया ऐलान देने की मदद सरकार ने लेकिन
हमेशा की तरह इमदाद सरकारी नहीं आई।
पड़ोसी के जले घर खूब धू धू कर मगर
साहब,
खुदा का शुक्र मेरे घर मे चिंगारी नहीं आई।
ढिंढोरा देश भक्ति का भले ही हम नहीं पीटें,
मगर सच है लहू में अपने गद्दारी नहीं आई।
बहुत से लोग निन्दा रोग से बीमार हैं…
ContinueAdded by Ram Awadh VIshwakarma on February 26, 2018 at 6:34pm — 7 Comments
221 2121 1221 212
सुनता खुदा न यार सदाएँ तो क्या करें
करती असर न आज दुआएँ तो क्या करें ।१।
इक दिन की बात हो तो इसे भूल जाएँ हम
हरदिन का खौफ अब न बताएँ तो क्या करें।२।
इक वक्त था कि लोग बुलाते थे शान से
देता न कोई आज सदाएँ तो क्या करें।३।
शाखों लचकना सीख लो पूछे बगैर तुम
तूफान बन के टूटें हवाएँ तो क्या करें।४।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 26, 2018 at 6:30pm — 6 Comments
....................ऑंखें...........................
आँखों में आप काज़ल जरा कम लगाइए.
तारीकियों को इनकी न इतना बढाइए.
हिन्दोस्तां की दुनिया रोशन इन्हीं से है.
अँधेरों से आज इसको वल्लाह बचाइए.
गंगा धर शर्मा 'हिन्दुस्तान'
अजमेर (राज.)
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by Ganga Dhar Sharma 'Hindustan' on February 26, 2018 at 5:46pm — 2 Comments
तेरी अधखुली सी आँखें, भंवरे कँवल में जैसे.
मदहोश सो रहे हों , अपने महल में जैसे.
चुनरी पे तेरी सलमा-सितारे हैं यूँ जड़े.
सरसों के फूल खिलते, धानी फसल में जैसे.
शर्मो-हया है इनकी वैसी ही बरक़रार.
देखी थी इनमें मैंने पहली-पहल में जैसे.
जुर्मे-गौकशी को कानूनी सरपनाही.
जी रहे हैं अब भी, दौरे-मुग़ल में जैसे.
वैसे ही होना होश जरूरी है जोश में.
है अक़ल का होना कारे-नक़ल में जैसे.
बहके बहर…
ContinueAdded by Ganga Dhar Sharma 'Hindustan' on February 26, 2018 at 5:35pm — 3 Comments
221 2121 1221 212
...
हम भी तो अपने दौर के सुल्तान हैं सनम,
कुछ भी कहो युँ पहले तो इंसान हैं सनम ।
माना मरीज़ आज मुहब्बत के हो गए,
पर अपनी ज़िन्दगी के सुलेमान हैं सनम ।
ये जो हमारी आंखों में हैं अश्क़ देखिए,
आँसू न इनको समझो ये तूफान हैं सनम ।
हम भूल जाएँगे तुम्हें मुमकिन नहीं मगर,
ऐसा लगे समझना परेशान हैं सनम ।
अब छोड़ दर्द-ए-इश्क़ कभी दर्द-ए-आश्की
इस ज़िन्दगी में अपने भी…
ContinueAdded by Harash Mahajan on February 26, 2018 at 3:00pm — 16 Comments
ग़ज़ल : कुत्तों से सिंह मात जो खाएँ तो क्या करें.
बहने लगी हैं उल्टी हवाएँ तो क्या करें.
कुत्तों से सिंह मात जो खाएँ तो क्या करें.
वो ही लिखा है मैंने जो अच्छा लगा मुझे.
नासेह सर को अपने खपाएँ तो क्या करें.
जल्लाद हाथ में जब खंजर उठा चुका.
खौफे अजल न तब भी सताएँ तो क्या करें.
इल्मे-अरूज पर पढ़ कर के लफ़्ज चार. .
खारिज बहर ग़ज़ल को बताएँ तो क्या करें.
कह तो रहें आप कि रंजिश नहीं मगर.…
ContinueAdded by Ganga Dhar Sharma 'Hindustan' on February 26, 2018 at 1:29pm — 3 Comments
दो जिस्मों के मिलने भर से
दो जिस्मों के मिलने भर से
प्यार मुकर्रर होता तो
टूटे दिल के किस्सों का
दुनियाँ में बाज़ार न होता
सागर की बाँहों में जाने
कितनी नदियाँ खो जाती हैं
एक मिलन के पल की खातिर
सदियाँ तन्हा हो जाती हैं
तस्वीरें जो भर सकती
इस घर के खालीपन को
उसके आने की खुशबू से
दिल इतना गुलज़ार ना होता |
दो जिस्मों के मिलने भर से---
बाँहों में कस लेना…
ContinueAdded by somesh kumar on February 26, 2018 at 12:41pm — 6 Comments
मुफाइलुन मुफाइलुन मुफाइलुन मुफाइलुन
बिसात-ए-गैर क्या है जब, नदीम कर सका नहीं।
मरीज़-ए-इश्क़ की दवा हकीम कर सका नहीं।।
अदीब से हुए नहीं कुछ एक काम आज तक,
असीर कर गया जिसे फ़हीम कर सका नहीं।।
लिखीं पढ़ीं भले कई, कहानियाँ ज़हान की,
मगर क़सूर क्या रहा अज़ीम कर सका नहीं।।
मिलान चश्म, चश्म और, क़ल्ब, क़ल्ब का हुआ,
कमाल जो हुआ कभी कलीम …
ContinueAdded by प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप' on February 25, 2018 at 11:11pm — 7 Comments
(मफऊल -फाइलात -मफाईल -फाइलुन )
.
शौक़े वफ़ा में ग़म न उठाएँ तो क्या करें |
वादा वफ़ा का हम न निभाएँ तो क्या करें |
.
मजबूर हो के हो गया दीवाना जिनका दिल
अब जान भी न उनपे लुटाएँ तो क्या करें |
.
गैरों की बात हो तो उसे कर दें दर गुज़र
पर हम पे ज़ुल्म अपने ही ढाएँ तो क्या करें|
.
उम्मीद जिसके आने की न ज़िंदगी में हो
उसको न अपने दिल से भुलाएँ तो क्या करें |
.
बैठे हुए हैं सामने महफ़िल में गीब्ती
उन…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on February 25, 2018 at 9:00pm — 6 Comments
मफ़ऊल फ़ाइलात मफ़ाईल फ़ाइलुन
(हुस्न-ए-मतला और उसके बाद का शे'र क़ित'अ बन्द हैं)
जब इम्तिहान-ए-शौक़-ए- शहादत रखा गया
इनआम उसका दोस्तो जन्नत रखा गया
पहले तो इसमें नूर-ए-सदाक़त रखा गया
फिर इसके बाद जज़्ब-ए- उल्फ़त रखा गया
तकलीफ़ दूसरों की समझ पाएँ इसलिये
दिल में हमारे दर्द-ए-महब्बत रखा गया
कोई भी शय फ़ुज़ूल नहीं इस जहान में
हर एक शय को हस्ब-ए-ज़रूरत रखा गया
लेता नहीं है रोज़ वो आमाल…
ContinueAdded by Samar kabeer on February 25, 2018 at 2:32pm — 22 Comments
भुजंग प्रयात छन्द (122 -122-122-122)
बड़ा तंग करता वो करके बहाने,
बड़ी मुश्किलों से बुलाया नहाने।
किया वारि ने दूर तंद्रा जम्हाँई,
तुम्ही मेरे लल्ला तुम्ही हो कन्हाई।
कभी डाँटके तो कभी मुस्कुरा के,
करे प्यार माता निगाहेँ चुराके।
बड़े कौशलों से किया मातु राजी,
पढ़ो लाल जीतोगे जीवन की बाजी।
सुना जी हिया-उर्मि के नाद को…
Added by SHARAD SINGH "VINOD" on February 25, 2018 at 12:37pm — 3 Comments
हल्की फुल्की गीतिका(गजल)(16-16)
सर्दी की हैं जान पकौड़े
और बारिश की शान पकौड़े
पढ़-लिखकर अब क्या करना है?
जब देते सम्मान पकौड़े।
रोटी गर तुम पाना चाहो
तलो कढ़ाई तान पकौड़े।
बख्श के इज्जत हम लोगों को
करते हैं अहसान पकौड़े।
तेज मसाला प्याज हो महँगा
खा ले क्या इंसान पकौड़े।
'राणा' मय के साथी अच्छे
बस जुमला ना मान…
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on February 25, 2018 at 12:30pm — 3 Comments
सबक
देश खोखला होता जाता,आज यहाँ मक्कारों से
सदा कलंकित होता भारत, भीतर के गद्दारों से
लाज शर्म है नहीं किसी को, अपना नाम डुबाने में
मटियामेट करे इज्जत को, देखो आज जमाने में
देश धरा के जो हैं दुश्मन, सबको नाच नचाते हैं
सारी अर्थव्यवस्था को वे, तितर वितर कर जाते हैं
अपनी मर्जी के हैं मालिक, अपना हुक्म चलाते हैं
लूट लूट कर भरे तिजोरी, फिर ये गुम हो जाते हैं
आज व्यवस्था जमीदोज है, हर जुर्मी हैवानों से
कैसे मुक्ति मिले भारत को, इन पाजी…
Added by डॉ छोटेलाल सिंह on February 25, 2018 at 9:21am — 10 Comments
हमें अब मरना होगा
अपने आदर्शों के साथ
गला घोंटना होगा
अपने ही सिद्धांतों का
सूली पर चढ़ाना होगा मान्यताओं को
इन सबका औचित्य समाप्त - सा हो गया है
सच की अँतड़ियाँ निकल आई है
काल के दर्पण पर कुछ भद्दे चेहरें
मुँह चिढ़ा रहे है खोखले मानव को
दिन सारे दहशत में झुलसते रहते हैं
दोपहर को लू लग गई है
कँपकँपी-सी लगी रहती है शाम को
रातें आतंकी के विस्फोट -सी लगती है
हमें अब मरना होगा अपने आंदोलनों के साथ
भूख हड़ताल और आमरण अनशन…
Added by Mohammed Arif on February 25, 2018 at 8:00am — 5 Comments
1222 1222 122
किसी पर जां निसारी हो रही है ।
नदी अश्कों से खारी हो रही है ।।
सुकूँ की अब फरारी हो रही है ।
अजब सी बेकरारी हो रही है ।।
तुम्हारे हुस्न पर है दाँव सारा ।
यहाँ दुनियां जुआरी हो रही है ।।
शिकस्ता अज़्म है कुछ आपका भी ।
सजाये मौत जारी हो रही है ।।
जली है फिर कोई बस्ती वतन की ।
फजीहत फिर हमारी हो रही है…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on February 24, 2018 at 10:57pm — 5 Comments
पर मोहब्बत---
वह आदमी जो अभी-अभी
मेरे जिस्म से खेल कर
बेपरवाह उघड़ के सोया है
और जिसके कर्कश खर्राटे
कानों में गर्म शीशे से चुभते है
और जो नींद में भी अक्सर
मेरी छातियों से खेलता है
सिर्फ मेरी बात करता है
मैं उससे नफ़रत तो नहीं करती
पर मोहब्बत ----------------
मेरी तकलीफ़ उसे बर्दाश्त नहीं
एक खाँसी भी उसकी साँस टाँग देती है
मेरे आँसू सलामत रहें इसलिए
वो प्याज काटने लगा…
ContinueAdded by somesh kumar on February 24, 2018 at 10:31pm — 5 Comments
"वाह, नया घर तो बहुत अच्छा है! लेकिन ये खिड़कियां और दरवाज़े हमेशा बंद ही क्यों रखती हो?" दो साल बाद आये भाई ने अपनी बहिन से पूछा।
"तुम्हारे जीजाजी के कहे मुताबिक़ सब करना पड़ता है!" बहिन ने भाई को सुंदर बेडरूम दिखाते हुए कहा।
"बेडरूम में ये डंडा और रॉड क्यों है दरवाज़े के पीछे?" मुआयना करते हुए भाई ने हैरत से पूछा।
"तरह-तरह के लोग आते रहते हैं यहां, उनके अॉफिस के अलावा! मारपीट की गुंजाइश भी रहती है उनके वक़ालत के काम में न!" बहिन कुछ उदास हो कर बोली,…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on February 24, 2018 at 10:30pm — 5 Comments
बह्र:- 2122-2122-2122-212
होश खोकर मैं न पल्लू में सिमट जाऊं कहीं।।
'इस तरह बहकूँ न होटों से लिपट जाऊँ कहीं'।।
'डरते डरते आज अपनी उम्र के इस खेल में ।
इश्क़ के दो बोल सुनकर ही न पट जाऊँ कहीं'।।
'ये फ़ज़ाएँ शौख़ कमसिन छेड़ती हैं जिस्म को।
कांपते हैं ये क़दम मैं न रपट जाऊँ कहीं'।।
एक जर्रा चाहता हूँ प्यास से झुलसा हुआ।
कि समंदर बावला ले कर उलट…
Added by amod shrivastav (bindouri) on February 24, 2018 at 2:00pm — 4 Comments
वैश्वीकरण और अंतरराष्ट्रीय व्यापार के दौर में स्वार्थपरक समझौतों और गतिविधियों के ज़रिये एक-दूसरे की 'नेकी' और 'दरिया' नये रूप में परिभाषित हो रहे थे। चर्चा चल रही थी :
विकसित देश (विकासशील देश से) - "नेकी कर दरिया में डाल। हम आपके दोस्त हैं!"
विकासशील देश (अपने नेताओं, व्यापारियों और उद्योगपतियों से) - "घोटाले कर और विदेश (दोस्त) में डाल। हम कर्ज़दार हैं।"
नेता, व्यापारी और उद्योगपति (अपने सत्ताधारी राजनैतिक दल से) - "हमसे ले, फिर हमको…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on February 24, 2018 at 1:00am — 2 Comments
अंधा कानून – लघुकथा –
"वक़ील साब, आप म्हारे गाँव के हो और जाति बिरादरी के भी हो, इसीलिये आप के पास बड़ी उम्मीद लेकर आये हैं"।
"बोलो सरजू भाई, बात क्या है"?
"चौधरी रामपाल के छोरे ने म्हारी छोरी की इज्जत लूट ली"।
"पूरी बात खुलकर बताओ। क्या हुआ,कैसे हुआ, कहाँ हुआ"?
"म्हारी छोरी बकरी चरा रही थी, चौधरी के आम के बगीचे के पास। नीचे ज़मींन पर दो चार कच्चे आम पड़े दिखे तो छोरी बीनने लग गयी। पीछे से चौधरी के छोरे ने उसे दबोच लिया और इज्जत लूट ली"।
"फ़िर क्या किया…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on February 23, 2018 at 8:30pm — 10 Comments
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