221 2121 1221 212
डूबा मिला है आज वो गहरे खयाल में ।
मिलता कहाँ सुकून है उलझे सवाल में ।।
बरबादियों का जश्न मनाते रहे वो खूब ।
फंसते गए जो लोग मुहब्बत के जाल में ।।
आनी थी हिज्र आ गयी शिकवा खुदा से क्या ।
रहते मियां हैं आप भी अब क्यों मलाल में ।।
करता है ऐश कोई बड़े धूम धाम से ।
डाका पड़ा है आज यहां फिर रिसाल में…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on February 23, 2018 at 6:50pm — 5 Comments
221 2121 1221 212
...
गम पे उठी ग़ज़ल तो वो दिल में उतर गयी,
खुशियों का ज़िक्र आया कयामत गुज़र गयी ।
इतनी थी खुशनसीब मेरी ज़िंदगी मगर,
इक प्यार की लकीर न जाने किधर गयी ।
वो छोटी- छोटी बातों पे रहने लगे खफा,
कहने लगे थे लोग कि किस्मत सँवर गयी ।
वो गैर सा हुआ मुझे अफसोस था मगर,
वो अजनबी हुआ मेरी दुनियाँ बिखर गयी ।
निकली जो आह दिल से असर कब कहां हुआ,
दिल से निकल के रूह के अंदर उतर गयी…
ContinueAdded by Harash Mahajan on February 23, 2018 at 3:00pm — 6 Comments
उस औरत की बगल में लेट कर
सोचता हूँ तुम्हारे बारे में अक्सर
रोज जिंदगी का एक पेज भरा जाता है
दिमाग अधूरे पेज़ पर छटपटाता है
सोचता हूँ अगर वह औरत तुम होती
तो कहानी क्या इतनी भर होती !
या तब भी अटका होता किसी अधूरे पन्ने पर
भटक रहा होता पूरी कहानी की तलाश में |
सोचता हूँ इस कहानी के अंत के बारे में
सोचता हूँ उस अनन्त के बारे में
सोचता हूँ प्यार अगर अधूरेपन की तलाश है
तो ये कहानी कभी पूरी ना हो !
कई बार एक…
ContinueAdded by somesh kumar on February 23, 2018 at 9:30am — 4 Comments
बह्र -212-212-212-212
मैने कह तो दिया जिंदगी आपकी।।
अब समझ में नहीं आ रही बेरुख़ी ।।
धड़कनें दिल की अपनी जवां गिन कहो।
क्या बदलती न मेरे लिए आज भी।।
आप समझें मुझे गर खिलौना न गम।
मुझको स्वीकार है ना समझ आशिक़ी।।
प्यार अहसास जुल्मों सितम रख लिए।
आगे चलकर मिले न मिले यह सभी।।
जिसकी रग में मुहब्बत की स्याही बहे।
वो कलम क्या बगावत लिखेगी कभी।।
कितना छांटो या काटो या मोड़ो…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on February 23, 2018 at 8:30am — 3 Comments
अरकान: फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
जब उठी उनकी नज़र, इफ़रात घर जलने लगे।
ख़ुद नहीं हमको ख़बर, किस बात पर मरने लगे।।
आपकी काबिल मुहब्बत, सीख हमको दे गई,
राह में आईं अगर, आफा़त हर सहने लगे।।
यह ज़मीं ज़न्नत नज़र आएगी इक दिन खुद-ब-खुद,
बाप-माँ की हर बशर ख़िदमात गर करने लगे।।
मिल गई इक बार अब नुसरत उसे फिर से वहाँ,
आजकल वो ज़र जिधर ख़ैरात कर चलने…
Added by प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप' on February 22, 2018 at 11:00pm — 4 Comments
Added by Kumar Gourav on February 22, 2018 at 8:26pm — 1 Comment
राजनीति करते वोटों की
कुत्सित चाल चला करते
अपना स्वार्थ सिद्ध करने को
आपस में झगड़ा करते
भीड़ जुटाकर आग उगलते
वाक्-वाण वे चलवाते
धर्म जाति का जहर घोल
भड़काकर नफरत फैलाते
कर दें विफल योजना इनकी
जो जन धन लूटा करते
इन्हें नहीं है प्यार राष्ट्र से
यह अपना ही घर भरते
जाने कितने शकुनि यहाँ पर
अनगिन चालें चलवाते
लड़वाते जन को आपस में
खुद बेदाग निकल जाते
इनके…
ContinueAdded by Usha Awasthi on February 22, 2018 at 6:40pm — 4 Comments
झूमी सरसों
धरती इतरायी
फगुनाहट
बसंत आया
ओढ़ पीली चुनर
खेत बौराया
बौर आम के
फैल गयी सुगंध
झूमा बसंत
टेसू क्या फुले
अंगड़ाया पलाश
फागुन आया
.... मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Neelam Upadhyaya on February 22, 2018 at 4:47pm — 3 Comments
ख्याल-1
1 तुम मेरी ज़िन्दगी से निकल जाओ
तुम्हारे रहते दिल सम्भाला ना जाए
रोशनी कोई कैसे कोई जले अंगने में
यादों का जब तक उजाला ना जाए
खुशबुएँ तर हो महके कोना कोना
किताबों से वो फूल निकाला ना जाए
प्यार है उसे रिश्ते का नाम ना दो
सितम हद करे नाम उछाला ना जाए |
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ख्याल-2
यूँ जो चुपके से तुम अब भी बात करती हो
मुझे महसूस होता है अब भी…
ContinueAdded by somesh kumar on February 22, 2018 at 11:32am — 3 Comments
1222 1222 1222 1222
ज़मीन-ओ-आसमाँ के दरमियाँ रस्ता बनाता हूँ
इसी दुनिया में अपनी मुख़्तसर दुनिया बनाता हूँ
चढ़ाकर चाक पर मिट्टी कहा कुम्हार ने मुझसे
जहाँ जैसी ज़रूरत है इसे वैसा बनाता हूँ
बना लेता है अपने आप ही ये मुख़्तलिफ़ शक्लें
मेरा फ़न सिर्फ़ इतना है कि आईना बनाता हूँ
गुज़श्ता ज़िंदगी के तज़्रबों से वाकिए चुनकर
अकेला होता हूँ जब भी, कोई किस्सा…
Added by शिज्जु "शकूर" on February 22, 2018 at 11:24am — 5 Comments
(मफाईलुन-मफाईलुन-फऊलन )
जो अज़मे तर्के उल्फ़त कर रहा है|
ये दिल फिर उसकी हसरत कर रहा है |
लगाए ज़ख़्म देने वाला मरहम
ये दिल यूँ ही न हैरत कर रहा है |
वफ़ा मिलती कहाँ है हुस्न में वो
जिसे पाने की जुरअत कर रहा है |
दिले नादां दगा जिसकी है फ़ितरत
उसी से तू महब्बत कर रहा है |
मरीज़े इश्क़ की लौटी हैं साँसें
कोई शायद अयादत कर रहा है |
मिलेंगे हश्र में यह बोल कर वो
मुझे कूचे…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on February 21, 2018 at 8:30pm — 12 Comments
२१२२/२१२२/२१२
.
खेल सारे, हर तमाशा छोड़ कर
सब को जाना है ये मेला छोड़ कर.
.
एक क़िस्सा-गो अचानक मर गया
अपने कुछ क़िरदार ज़िंदा छोड़ कर.
.
था बहुत जिन को समुन्दर पर यकीं
अब वो पछताते हैं दरिया छोड़ कर.
.
मोड़ कोई इक ग़लत मुडने के बाद
याँ तलक पहुँचे हैं रस्ता छोड कर.
.
उस ख़ुदा का मत दिया कर वास्ता
जा चुका जो कब से दुनिया छोड़ कर.
.
बात मेरी मान कर तो देखिये
आप अपना ये रवैया छोड़ कर.
.
चाँद…
Added by Nilesh Shevgaonkar on February 21, 2018 at 8:02pm — 12 Comments
कोई चाभे खूब मलाई,कोई रोटी-नून।
सभी बराबर भारत में हैं,फिर क्यों चूसें खून।
कोई ऋण ले चंपत होता,कोई देता जान।
कलम बताने वाली मेरी, कैसा हिंदुस्तान।।
पीयूष कुमार द्विवेदी 'पूतू'
Added by पीयूष कुमार द्विवेदी on February 21, 2018 at 6:00pm — 5 Comments
शिकार की तलाश में घूमते-घूमते अंगुलिमाल को एक साधु दिखा| उनको देखकर उसने कहा," तैयार हो जाओ तुम्हारी मृत्यु आयी है|"
साधु ने निडर होकर कहा," मेरी मौत! या तुम्हारी...?"
साधु का ऐसा उत्तर सुन कर अंगुलिमाल थोड़ा विचलित हुआ,उसने साधु से पूछा," तुमको मुझसे डर नहीं लगता? मेरे हाथ में हथ्यार देखकर भी नहीं?"
"न .... मैं क्यों डरूँ तुमसे, पर तुम हो कौन और यह माला कैसे पहनी है, इतनी सारी उँगलियाँ .......?"
"हाहाहाहाहा! हाँ यह उँगलियाँ ही हैं और मैं अंगुलिमाल…
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on February 21, 2018 at 5:30pm — 5 Comments
1222,1222,1222,1222
ज़रूरी है अगर उपवास, रोज़ा भी ज़रूरी है।
रवाज़ों का ज़रा होना अलहदा भी ज़रूरी है।।
हमें ये फ़ख़्र होता है कि हम हिंदौस्तानी हैं,
हमारे बीच हमदर्दी का सौदा भी ज़रूरी है।
मनाने रूठ जाने के लिखे हों क़ाइदे जिसमें,
मुहब्बत के लिए ऐसा मसौदा भी ज़रूरी है।
किसानों के लिए बिजली ओ पानी ही नहीं काफ़ी,
उन्हें ख़सरा,…
Added by Balram Dhakar on February 21, 2018 at 12:23pm — 12 Comments
आप सही हैं,
वह भी सही है ,
हर एक सही है ,
फिर भी कुछ भी
सही नहीं है।
कुछ गिने चुने
लोग बहुत खुश हैं ,
यह भी सही नहीं है।
सच जो भी है ,
सब जानते हैं ,
बस मानते नहीं ,
यह भी सही नहीं है।
ऊँट सामने है ,
देखते नहीं,
हड़िया में ढूँढ़ते है ,
यह भी सही है।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dr. Vijai Shanker on February 21, 2018 at 8:40am — 13 Comments
रंगों से सराबोर गीली साड़ियों से लिपटी कुछ ग्रामीण मज़दूर महिलायें टोली में गली से गुजरीं।
"उधर देखो और बताओ कि उनके अंग-अंग रंगीन हैं या वस्त्र?" एक रंगीन मिज़ाज पुरुष ने अपने साथी से कहा।
"वस्त्र गीले और रंगीन हैं और अंग सूखे और रंगहीन! समझ में नहीं आता तुम्हें?" साथी ने उसकी आंखों के सामने चुटकी बजाते हुए कहा।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by Sheikh Shahzad Usmani on February 20, 2018 at 11:30pm — 14 Comments
कब तक ताकोगी पर मुख को, बनो सिंहनी आज।
श्याम नहीं अब आने वाले, स्वयं बचाओ लाज।
खड़े दुःशासन गली-गली पर, और सभा है मौन।
सहन हमेशा नारी करती,पीर समझता कौन।।
पीयूष कुमार द्विवेदी 'पूतू'
Added by पीयूष कुमार द्विवेदी on February 20, 2018 at 7:30pm — 6 Comments
221 2121 1221 212
ढूढा हूँ मुश्किलों से सलामत गुहर को मैं।
समझा हूँ तेरे हुस्न के जेरो जबर को मैं ।।
यूँ ही नहीं हूं आपके मैं दरमियाँ खड़ा ।
नापा हूँ अपने पाँव से पूरे सफर को मैं ।।
मारा वही गया जो भला रात दिन किया ।।
देखा हूँ तेरे गाँव में कटते शजर को मैं ।।
मत पूछिए कि आप मेरे क्या नहीं हुए ।।
पाला हूँ बड़े नाज़ से अहले जिगर को मैं ।।
शायद…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on February 20, 2018 at 7:28pm — 2 Comments
मफ़ऊल फ़ाइलातुन मफ़ऊल फ़ाइलातुन
ख़ुशियों का इस जहाँ में फ़ुक़दान हो न जाये
ग़म अपनी ज़िन्दगी का उन्वान हो न जाये
नफ़रत का आज कंकर जो तेरी आँख में है
इक रोज़ बढ़ते बढ़ते चट्टान हो न जाये
मज़लूम की कहानी सुनकर तू हँस रहा है
तेरा भी हाल ऐसा नादान हो न जाये
सारे अदू लगे हैं,यारो इसी जतन में
पूरा हमारे दिल का अरमान हो न जाये
दोनों तरफ़ की फ़ौजें होने लगीं…
ContinueAdded by Samar kabeer on February 20, 2018 at 5:55pm — 17 Comments
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