इश्क कुछ इस तरह निबाह करो ।
तुम मुझे और भी तबाह करो ।
तोड़ दो दिल तो कोई बात नहीं,
टूटे दिल मे मगर पनाह करो ।
मै अगर कुछ नहीं तुम्हारा हूँ,
दर्द पर मेरे तुम न आह करो ।
चाहना तुमको मेरी फितरत है,
तुम भले ही न मेरी चाह करो ।
तुम सजा पर सजा सुना दो पर,
मत कहो मुझसे मत गुनाह करो ।
आज कुछ यूँ मुझे सताओ तुम,
ग़ज़ल पर मेरी वाह वाह करो ।
नीरज मिश्रा
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Neeraj Nishchal on February 15, 2018 at 5:26am — 4 Comments
2211 2211 2211 22
यूँ जिंदगी के वास्ते कुछ कम नहीं है वो ।
किसने कहा है दर्द का मरहम नहीं है वो।।
सूरज जला दे शान से ऐसा भी नहीं है ।
फूलों पे बिखरती हुई शबनम नहीं है वो ।।
बेचेगा पकौड़ा जो पढ़ लिख के चमन में ।
हिन्दोस्तां के मान का परचम नहीं है वो ।।
बेखौफ ही लड़ता है गरीबी के सितम से ।
शायद किसी अखबार में कालम नहीं है वो ।।
मेहनत की कमाई में लगा खून पसीना ।
अब लूटिए…
Added by Naveen Mani Tripathi on February 15, 2018 at 12:57am — 5 Comments
221 2121 1221 212
पत्थर से चोट खाए निशानों को देखिए ।
बहती हुई ख़िलाफ़ हवाओं को देखिए ।।
आबाद हैं वो आज हवाला के माल पर ।
कश्मीर के गुलाम निज़ामों को देखिए ।।
टूटेगा ख्वाब आपका गज़वा ए हिन्द का ।
वक्ते क़ज़ा पे आप गुनाहों को देखिये ।।
गर देखने का शौक है अपने वतन को आज ।
शरहद पे ज़ह्र बोते इमामों को देखिए ।।
कुछ फायदे के वास्ते दहशत पनप रही ।
सत्ता में…
Added by Naveen Mani Tripathi on February 14, 2018 at 11:28pm — 3 Comments
शहरी छोरा देहात घूमने आया है,मौसी के यहाँ।गाँव का नाम पंडितपुर है,देहात यहाँ दिखता है। उजड्ड लोग,अनपढ़ औरतें,गिल्ली-डंडा, कबड्डी और तिलंगी में अझुराये लड़के-बच्चे।बकरी चराती, मवेशियों को सानी देती लड़कियाँ, बस।गाँव के स्कूल की पढ़ाई का आलम है कि तीन-तीन बार मैट्रिक में फेल हुए तीन मास्टर दिहाड़ी जितनी रकम पर उसे संभाले हुए हैं।रही बात विद्यार्थियों की ,तो खिचड़ी के नाम पर कुछ घर से समय निकालकर आ जाते हैं।फिर खिचड़ी खतम, स्कूल खतम।मुखियाजी से मिलकर रजिस्टर -लिखाई हो जाती है।वही झुनिया जरा…
Added by Manan Kumar singh on February 14, 2018 at 10:04pm — 8 Comments
2122 1122 1122 22
मेरा हमदम है तो हर ग़म से बचाने आए
मुश्किलों में भी मेरा साथ निभाने आए
oo
चाँद तारे भी यहाँ बन के दिवाने आए
उनकी खुश्बू के समन्दर में नहाने आए
oo
रश्क करते हैं जिन्हे देखकर सितारे भी
मस्त नज़रों से वही जाम पिलाने आए
oo
उनके दीदार से आंखों को सुकूं मिलता है
ख़ुद से कर-कर के कई बार बहाने आए
oo
उनकी निसबत से…
Added by SALIM RAZA REWA on February 14, 2018 at 8:00pm — 9 Comments
बह्र- मफऊल फाइलात मफाईल फाइलुन
संगत खराब थी तभी गुन्डा निकल गया।
अब क्या बतायें हाथ से बेटा निकल गया।
घर से निकल गया मेरे इक दिन किरायेदार,
अच्छा हुआ जो पाँव से काँटा निकल गया।
जिसको खरा समझ के खरीदा था हाट से,
किस्मत खराब थी मेरी खोटा निकल गय।
देखो तो धूल झोंक अदालत की आँख में,
होकर बरी वो ठाठ से झूठा निकल गया।
हिन्दू का घर हो या कि मुसलमान का हो घर,
घर घर अलख जगाता कबीरा निकल…
Added by Ram Awadh VIshwakarma on February 14, 2018 at 4:00pm — 9 Comments
Added by रामबली गुप्ता on February 14, 2018 at 2:28am — 6 Comments
दर्द में ऐसे जलता है दिल ।
मोम जैसे पिघलता है दिल ।
यादों में ही रहे बेकरार,
यादों में ही बहलता है दिल ।
दर बदर ठोकरें मिल रहीं,
पर भला कब सँभलता है दिल ।
कुछ कभी तो कभी है ये कुछ ,
लमहा लमहा बदलता है दिल ।
तनहा तनहा किसी शाम सा,
होके वीरान ढलता है दिल ।
प्यार का कोई दरिया सा है,
जिसमें हर वक्त घुलता है दिल ।
नीरज मिश्रा
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Neeraj Nishchal on February 14, 2018 at 12:18am — 6 Comments
वैलेंटाइन बाबा ने अपने शागिर्द से कहा," मेरा मन कर रहा है भारत भूमि का भ्रमण करूँ, सुना है वहां वैलेंटाइन डे बहुत लोग मनाते हैं|"
" सर! यह विचार आपके मन में कैसे आया? वैलेंटाइन डे तो पश्चिमी देशों का त्यौहार है और आप तो पूरब में जाने का कह रहे हो!"
"हाँ! सुना है वहाँ बच्चे एक दूसरे को लाल गुलाब देते है और अब तो वहाँ भी लिविंग -रिलेशनशिप को मान्यता मिल गयी है तो लोग इसीको प्यार का नाम..... यह कहते हुए वे चुप हो गए है|
"क्या हुआ सर? आप चुप क्यों हो गये? आपकी इच्छा है तो…
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on February 13, 2018 at 9:00pm — 10 Comments
“लगता है आपने दुनियाँ नहीं देखी और खबरों से दूर रहते हैं आप”, ज़हूर भाई ने अपनी बात तेज आवाज मे कही, गोया वह आवाज के ज़ोर पर ही अपनी बात सही बताना चाहते थे. वह नए नए पड़ोसी बने थे रफ़ीक़ के और हाल मे ही हुए कौमी दंगों पर बहस कर रहे थे. रफ़ीक़ उनको लगातार समझाने की कोशिश कर रहे थे कि वक़्त का तक़ाज़ा इन चीजों से ऊपर उठकर सोचने का है.
“आप जितनी तो नहीं देखी लेकिन कुछ तो देखी ही है ज़हूर भाई, दुनियाँ इतनी भी बुरी नहीं है. आज भी इंसानियत जिंदा है और मोहब्बत का खुलूस कायम है”, रफ़ीक़ ने मुसकुराते हुए जवाब…
Added by विनय कुमार on February 13, 2018 at 4:41pm — 8 Comments
अपने कोमल कान्धो पर
कचरे की बोरी ढोता बचपन
कहीं चाय के ढाबे पर
झूठे बरतन धोता बचपन
कहीं है भोजन की बर्बादी
कहीं भूख से रोता बचपन
तन पर फटे पुराने कपड़े…
Added by LALIT KAILASH on February 13, 2018 at 1:30pm — 7 Comments
"हुआ क्या है ? पागल! कुछ तो बता।" सुमि की बार -बार भरती - पुछती आँखे देख कर तृषा ने जोर देकर पूछा।
"मुझे लगता है माँ का किसी के साथ...!" कह कर वह अपनी सबसे नजदीकी सखी के गले लगकर रो पड़ी।"
"क्याsss किसी के साथ....? तेरा दिमाग़ तो ठिकाने पर है ? ये शक़ कैसे पनपा तेरे मन में? उसने अविश्वास जताया।
आज वेलेंटाइन डे है ,जब तक पापा रहे , वह उनके लिए फूल खरीदतीं थीं । लेकिन आज जब वह नहीं हैं तो फिर किसके लिए खरीद रहीं थीं ?"
"मतलब तूने उन्हें फूल खरीदते देखा?"
"सिर्फ…
Added by Rahila on February 13, 2018 at 10:54am — 10 Comments
होके मजबूर तेरी गलियों से जाना होगा ।
अब खुदा जाने कहाँ अपना ठिकाना होगा ।
मै मना पाया न रब को न तेरे दिल को,
अब तो तनहाई में खुद को ही मनाना होगा ।
जान मेरी मै बिना तेरे जियूँगा लेकिन,
मेरे जीने में न जीने का बहाना होगा ।
तनहा होकर भी रहूँगा न कभी तनहा,
तेरी यादों का मेरे साथ ज़माना होगा ।
हर रजा अपनी मै हारूँगा रजा पर तेरी,
प्यार जब कर ही लिया है तो निभाना होगा ।
प्यार का नाम फकत प्यार को…
ContinueAdded by Neeraj Nishchal on February 13, 2018 at 9:37am — 10 Comments
(फाइलातुन -फइलातुन- फइलातुन-फेलुन )
दूर माशूक़ से आशिक़ कहाँ जाना चाहे |
कूचये यार में वो अपना ठिकाना चाहे |
मैं ही आया हूँ नहीं सिर्फ़ परखने क़िस्मत
उन को तो अपना हर इक शख्स बनाना चाहे |
थाम के हाथ जो देता हो हमेशा धोका
कौन उस शख्स से फिर हाथ मिलाना चाहे |
फितरते शमअ जलाना है तअज्जुब है मगर
जान परवाना वहाँ फिर भी लुटाना चाहे |
मुफ़लिसी के हैं यह मारे हुए ज़ालिम वरना
तेरी दहलीज़ पे सर कौन…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on February 12, 2018 at 12:30pm — 23 Comments
अब पैमाने
तय किए जा रहे हैं
राष्ट्रीयता के
ब्रेन मेपिंग और नार्को टेस्ट के ज़रिए
उगलवाया जाएगा राष्ट्रीयता का अमृत्व
भूल से स्वप्न में भी
गांधी का चश्मा मत देख लेना
चश्में सारे सरकार बाँटेगी
भूख बाँटने के काम में भी वह दक्ष हो गई है
जंतर-मंतर पर अनशन
भूख हड़ताल की पसलियाँ बाहर निकल आई है
संसद में भेड़िये घूस आए हैं
नोच डालना चाहते हैं संविधान की प्रतियों को
बहुत भूखे हैं
खाना चाहते हैं सारी संसदीय मर्यादा को
" रघुपति राघव राजा राम "…
Added by Mohammed Arif on February 12, 2018 at 1:11am — 14 Comments
कुछ कह न सकूं राहे दिल पर बरबाद हूँ या आबाद हूँ मै ।
रहती है तेरी याद मुझे या खुद ही तेरी याद हूँ मै ।
ठुकराया भी तुमसे न गया अपनाया भी तुमसे न गया,
उल्फत के दर फरियादी की इक टूटी सी फरियाद हूँ मै ।
मैं जिस्म हूँ कोई माटी का इस जिस्म की जान तुम्ही तो हो,
कुछ भी न तुम्हारे पहले था कुछ भी न तुम्हारे बाद हूँ मै ।
ये दर्दे जुदाई भी तेरी ये इश्के खुदाई भी तेरी,
तेरे गम में गमगीन फिरूँ तेरे मद…
Added by Neeraj Nishchal on February 12, 2018 at 12:30am — 2 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
खूब नजरें जो गढ़ाये हैं पराये माल पर
है भरोसा खूब उनको दोस्तो घड़ियाल पर।१।
भूख बेगारी औ' नफरत है पसारे पाँव बस
अब भगत आजाद रोते हैं वतन के हाल पर ।२।
आज सम्मोहन कला हर नेता को आने लगी
है फिदा जनता यहाँ की हर सियासी चाल पर।३।
खुद पहन खादी चमकते पूछता हूँ आप से
दाग कितने नित लगाओगे वतन के भाल पर।४।
ऐसा होता तो सुधर जाते सभी हाकिम यहाँ
वक्त जड़ता पर कहाँ है अब तमाचा गाल…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 11, 2018 at 10:25pm — 8 Comments
बह्र:-2122-1221-22
वक्त बे वक्त का आसरा है।।
घर का टुटा हुआ जो घड़ा है ।।1
जो मुहब्बत में अपनी बिका है।
उसको दौलत ओ शुहरत से क्या है ।।2
जब समझलो की क्या माजरा है।
बोल बोलो नही कुछ बुरा है।।3…
Added by amod shrivastav (bindouri) on February 11, 2018 at 8:30pm — 2 Comments
अस्तित्व ....
एक अस्तित्व
शून्य हुआ
एक शून्य
अस्तित्व हुआ
धूप-छाँव के बंधन का
हर एक सूरज
अस्त हुआ
ज़िंदगी ज़मीन की
ज़मीन के पार
चलती रही
और
दूर कहीं
कोई चिता
धू-धू कर
जलती रही
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on February 11, 2018 at 3:15pm — 7 Comments
“भाई अरविन्द ,कब तक ताड़ते रहोगे ,अब छोड़ भी दो बेचारी नाजुक कलियाँ हैं |”
“मैंsए ,नहीं तो -----“
वो ऐसे सकपकाया जैसे कोई दिलेर चोर रंगे हाथों पकड़ा जाए और सीना ठोक कर कहे –मैं चोर नहीं हूँ |
“अच्छा तो फिर रोज़ होस्टल की इसी खिड़की पर क्यों बैठते हो ?”
“यहाँ से सारा हाट दिखता है |”
“हाट दिखता है या सामने रेलवे-क्वार्टर की वो दोनों लडकियाँ --–“
“कौन दोनों !किसकी बात कर रहे हो !देखों मैं शादी-शुदा हूँ ---और तुम मुझसे ऐसी बात कर रहे हो –“ उसने बीड़ी को झट से…
ContinueAdded by somesh kumar on February 11, 2018 at 7:30am — No Comments
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