2122 2122 2122 212
स्वप्न का जो नाभिकी ये संलयन प्रारम्भ है
क्या किसी तारे का फिर से नव सृजन प्रारम्भ है
इस जगत को श्रेष्ठतम रचना समर्पित कर सकूँ
प्रति निशा मसि शब्द निद्रा का हवन प्रारम्भ है
मन-जगत घर्षण से अंतस में अनल जो है प्रकट
भावनाओं का उसी से आचमन प्रारम्भ है
लेखनी नें स्वयं से संकल्प इक धारण किया
एकता के भाव का सो संवहन प्रारम्भ है
चक्षुओं पर जो लगा कर घूमते चश्मा उन्हें
ताप…
ContinueAdded by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 5, 2018 at 5:07pm — 14 Comments
-कब फिरेंगे अपने दिन?
-फिर ही तो रहे हैं।सुबह से शाम,फिर बातें तमाम।
-अरे भइये!अच्छे दिन आनेवाले थे।सुना था कभी।
-सब दिन अच्छे होते हैं।सब ईश्वर प्रदत्त हैं।
-सो तो ठीक है,अकलू।पर यहाँ तो 'नून-तेल-तरकारी,पड़ रही है भारी।'
-ठीके बोलते हो ,बकलू।ई नयको बजटवा में तरकारी महंगी हुई है।और वनस्पति तेल भी।
-ऊपर से होरी आई है।रंग फीका हो गया भाई।
-सो तो है।
-अरे का खुसर-पुसर चल रहल बा रे तू दुनो में?' टकलू ने टिटकारी भरी।
-लो आ गया अपन टकलू।'जोरू न…
Added by Manan Kumar singh on February 4, 2018 at 11:30pm — 6 Comments
डर लगता है दुनिया से
और घर वालों के तानों से,
और कभी डर जाती हूँ मैं
प्यार के इन अफसानों से।।
कितनी मुश्किल आती है
और कितने ही गम सहते हैं,
लाखों कोशिश कर लें-
फिर भी तन्हा ही हम रहते हैं।।
रहता कुछ भी याद नहीं
जब याद किसी की आती है,
प्रेस से कपड़े जलते हैं-
काॅफी फीकी रह जाती है।।
माँ भी गुस्सा करती है
और बापू भी चिल्लाते हैं,
मगर किसी को इस दिल के
हालात समझ ना…
ContinueAdded by रक्षिता सिंह on February 4, 2018 at 5:00pm — 10 Comments
1. खोये स्वप्न ...
तमाम रात
मेरे साथ था
एक स्वप्न
भोर होते ही
वो स्वप्न
स्वप्न सा हो गया
मैं
देर तक
पलकों की दहलीज़
बुहारती रही
खोये स्वप्न को
ढूंढने के लिए
...........................
2. मन्नत ....
देर तक
रुका रहा
मेरे घर की छत पर
वो आसमान से टूटा
मन्नत का तारा
मेरे ज़ह्न में
काँपता रहा
देर तक उसका ख़्याल
मेरी आँखों के कटोरों में
कोई अपने अक्स की…
Added by Sushil Sarna on February 4, 2018 at 3:52pm — 13 Comments
221 2121 1221 212
जीने की आरज़ू तो है सब को खुशी के साथ
ग़म भी लगे हुए हैं मगर ज़िन्दगी के साथ
-
नाज़-ओ-अदा के साथ कभी बे-रुख़ी के साथ
दिल में उतर गया वो बड़ी सादगी के साथ
-
आएगा मुश्किलों में भी जीने का फ़न तुझे
कुछ दिन गुज़ार ले तू मेरी ज़िन्दगी के साथ
-
ख़ून-ए- जिगर निचोड़ के रखते हैं शेर में
यूँ ही नहीं है प्यार हमें शायरी के…
ContinueAdded by SALIM RAZA REWA on February 4, 2018 at 10:00am — 18 Comments
पहली दिल्ली यात्रा के दौरान गन्तव्य की ओर जाते समय टैक्सी इण्डिया गेट के नज़दीक़ पहुंची ही थी कि वहां दर्शकों की भीड़ देखकर उसने टैक्सी चालक से कहा - "यह तो इण्डिया गेट है न! ग़ज़ब की भीड़ है! देखने लायक ऐसा क्या है यहां? लोग तो फोटो भर उतार रहे हैं, सेल्फी ले रहे या खाने-पीने में भिड़े हुए हैं?"
"यह मॉडर्न देशप्रेम है साहब! शहीदों के नामों और कामों से कोई मतलब नहीं इन्हें! ये तो बस लोकेशन और गेटप्रेम है!" टैक्सी-चालक ने उसकी तरफ़ मुड़कर कहा -"वैसे आप कहां ठहरेंगे? आप कहें तो एक…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on February 4, 2018 at 9:00am — 14 Comments
212 212 212 212
मुद्दतों बाद फिर मुस्कुराना रहा ।
आज मौसम बड़ा आशिकाना रहा ।।
आप आये यहां ये थी किस्मत मेरी ।
इक मुलाकत से दिन सुहाना रहा ।।
मुफ़लिसी में सभी छोड़ कर चल दिये ।
इस तरह से मेरा दोस्ताना रहा ।।
वो मुकर ही गए आज पहचान से ।
जिनके घर तक मेरा आना…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on February 4, 2018 at 2:08am — 10 Comments
बीत गई सर्दी , बीत गई ठंड रे ,
दिनभर लुआर बहे गर्मी प्रचंड रे ,
चार दिन की चाँदनी सा प्यारा बसंत था,
पसीने की बूंदों से भीगा अंग-अंग रे ,
स्वेटर,कमीज,कोट लिपटे कई असन वस्त्र,
छोड़छाड़ देह को हुए खंड-खंड रे ,
गर्मी की चुभन से हाल बेहाल हुआ ,
"अज्ञात" कैसे ! कैसे करे व्यंग रे .
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Ajay Kumar Sharma on February 3, 2018 at 10:30pm — 4 Comments
तेज़ चाल से चलते हुए काउंसलर और डॉक्टर दोनों ही लगभग एक साथ बाल सुधारगृह के कमरे में पहुंचे। वहां एक कोने में अकेला खड़ा वह लड़का दीवार थामे कांप रहा था। डॉक्टर ने उस लड़के के पास जाकर उसकी नब्ज़ जाँची, फिर ठीक है की मुद्रा में सिर हिलाकर काउंसलर से कहा, "शायद बहुत ज़्यादा डर गया है।"
काउंसलर के चेहरे पर चौंकने के भाव आये, अब वह उस लड़के के पास गया और उसके कंधे पर हाथ रख कर पूछा, "क्या हुआ तुम्हें?"
फटी हुई आँखों से उन दोनों को देखता हुआ वह लड़का कंधे पर हाथ का स्पर्श…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on February 3, 2018 at 10:10pm — 10 Comments
अमर हो गए ...
मेरी हिना
बहुत लजाई थी
जब तुम्हारे स्पर्श
मेरे हाथों से
टकराये थे
मेरा काजल
बहुत शरमाया था
जब
तुम्हारी शरीर दृष्टि ने
मेरी पलक
थपथपाई थी
मेरे अधर
बहुत थरथराये थे
जब तुम्हारी
स्नेह वृष्टि ने
मेरे अधर तलों को
अपने स्नेहिल स्पर्श से
स्निग्ध कर दिया था
मैं शून्य हो गयी
जब
प्रेम के दावानल में
मेरा अस्तित्व
तुम्हारे अस्तित्व के…
Added by Sushil Sarna on February 3, 2018 at 4:35pm — 6 Comments
कभी है ऊपर कभी नीचे, यह साँप सीडी का खेल
बजट में मंत्री खेलते हैं, यह साँप सीडी का खेल |
आँकड़ों का खेल है सबकुछ, आँकड़े सब जादुई का
टैक्स घटाया सेस बढ़ाया, यह साँप सीडी का खेल |
एक थैली का मॉल निकाल, रखा दूसरी थैली में
नया बोतल शराब पुरानी, यह साँप सीडी का खेल |
सब चीजों का भाव बढ़ गए, फिर भी बजट गरीबों का
उलटी गंगा बही खेल में, यह साँप सीडी का खेल |
आशाओं के दीप जलाकर, उस पर पानी डाल…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on February 3, 2018 at 4:34pm — 2 Comments
साजन मेरे मुझे बताओ, कैसे दीप जलाऊँ
घर आँगन है सूना मेरा, किस विधि सेज सजाऊँ
इंतिजार में तेरे साजन, लगा एक युग बीता
हाल हमारा वैसा समझो, जैसे विरहन सीता
सूनी सेज चिढ़ाए मुझको, अखियन अश्रु बहाऊँ
घर आँगन है सूना मेरा, किस विधि सेज सजाऊँ
वे सुवासित मिलन की घड़ियाँ, लगता साजन भूले
बौर धरे हैं अमवा महुआ, सरसो भी सब फूले
सौतन सी कोयलिया कूके, किसको यह बतलाऊँ
घर आँगन है सूना मेरा, किस विधि सेज…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on February 3, 2018 at 11:30am — 20 Comments
इंडिया गेट पर गुलाब सिंह अपने औटो से जा रहा था। तभी वहाँ तैनात हवलदार रोशन ने उसे रोक दिया।
"आज इधर से वाहनों के लिये मार्ग बंद है। केवल पैदल यात्री ही जा सकते हैं"।
"भाई, आज अचानक ऐसा क्यों"?
"इस में इतना चोंकने वाली क्या बात है। आज मंत्री जी की रैली है"।
"वह किसलिये"?
"मंत्री जी के दामाद को गिरफ़्तार ना किया जाय, इसलिये"।
"ऐसा क्या किया है उनके दामाद ने"?
"उनका दामाद दरोगा है, उसने अपने ही मातहत एक हवलदार की पत्नी के साथ बलात्कार किया…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on February 3, 2018 at 11:00am — 16 Comments
122 122 122 122
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सियासत बिसातें बिछाने लगी है
चुनावी हवा सरसराने लगी है...
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जगा फिर से मुद्दा ये पूजा घरों का
दिलों में ये नफरत बढ़ाने लगी है।
चुनावी हवा.....
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यहाँ बाँट डाला है रंगो में मजहब
बगावत की आंधी सताने लगी है।
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कहीं नाम चंदन कहीं चाँद दिखता
ये लाशें जमीं पर बिछाने लगी है
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नही बात होती है अब एकता की
हमारी उमीदें घटाने लगी है
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क्युँ इन्सां हुआ जानवर से भी…
ContinueAdded by अलका 'कृष्णांशी' on February 3, 2018 at 10:30am — 13 Comments
ग़ज़ल (मुझको अपना बना कर दगा दे गया )
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(फाइलुन-- फाइलुन--फाइलुन--फाइलुन)
कोई उल्फ़त का बहतर सिला दे गया |
मुझको अपना बनाकर दगा दे गया |
जो खता मैं ने की ही नहीं प्यार में
उफ़ मुझे वो उसी की सज़ा दे गया |
दास्ताँ मैं तबाही की कैसे कहूँ
वो मुझे प्यार का वास्ता दे गया |
दूर यूँ मौत से कब हुई ज़िंदगी
कोई जीने की मुझको दुआ दे गया…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on February 2, 2018 at 10:43pm — 10 Comments
गौरी, पिता के स्नेहिल परिधि में एक साथी की परिभाषा का 'प' समझ पाई। उसी पिता के आँगन में एक लंबा सा साथ निभाने के लिए उसके बचपन को बांटने के लिए भाई के रिस्ते ने साथ दिया। तब वह साथी की परिभाषा के दूसरे पायदान पर 'रि' रूपी रिस्ते को समझने की कोशिश भर कर रही थी। पिता का वह आँगन गौरी की परवरिश के साथ-साथ, बेटी के पराये होने का एहसास भी कराता रहता था। उसकी शिक्षा-दीक्षा की इतिश्री मानकर पिता ने जीवन के लिए, फिर से एक साथी की तलाश शुरू कर दी। जो बेटी भाग्य विधाता होगा। पिता से भी ज्यादा अच्छे से…
ContinueAdded by Vijay Joshi on February 2, 2018 at 12:30am — 2 Comments
ज़िन्दगी की सच्चाई पन्नों पर
हरकीरत हीर जी कौन हैं -- यह मुझे पता नहीं, मैं उनसे कभी मिला नहीं, परन्तु हरकीरत हीर जी क्या हैं, यह मैं उनकी रचनाओं में ज़िन्दगी की सच्चाई से भरपूर संवेदनाओं के माध्यम बहुत पास से जानता हूँ।
ज़िदगी के उतार-चढ़ाव में गहन उदासी को हम सभी ने कभी न कभी अनुभव किया है, परन्तु भावनाओं को कैनवस पर या पन्ने पर यूँ उतारना कि…
ContinueAdded by vijay nikore on February 1, 2018 at 10:13pm — 10 Comments
उसने कहा 2=3 होता है
मैंने कहा आप बिल्कुल गलत कह रहे हैं
उसने लिखा 20-20=30-30
फिर लिखा 2(10-10)=3(10-10)
फिर लिखा 2=3(10-10)/(10-10)
फिर लिखा 2=3
मैंने कहा शून्य बटा शून्य अपरिभाषित है
आपने शून्य बटा शून्य को एक मान लिया है
उसने कहा ईश्वर भी अपरिभाषित है
मगर उसे भी एक माना जाता है
मैंने कहा इस तरह तो आप हर वह बात सिद्ध कर देंगे
जो आपके फायदे की है
उसने…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 1, 2018 at 8:45pm — 6 Comments
221 2121 1221 212
हमनें यूँ ज़िन्दगानी का नक्शा बदल लिया
देखा तुझे जो दूर से रस्ता बदल लिया
तुमने भी अपने आप को कितना बदल लिया
नज़रों की ज़द में आते ही चहरा बदल लिया
जब इस सराय फानी का आया समझ में सच
हमनें भरी दुपहर में कमरा बदल लिया
दादी की जलती उंगलियों का दर्द अब नहीं
हामिद ने इक खिलौने से चिमटा बदल लिया
दीवानगी भी ,शाइरी भी,दिल भी, शहर भी
तुमको भुलाने के लिए क्या क्या बदल लिया
कांपी तमाम रात…
ContinueAdded by मनोज अहसास on February 1, 2018 at 6:12pm — 6 Comments
आहट की प्रतीक्षा में ...
जाने
कितनी घटाओं को
अपने अंतस में समेटे
अँधेरे में
चुपचाप
बैठी रही
कौन था वो
जो कुछ देर पहले
देर तक
मेरे मन की
गहन कंदराओं में
अपने स्वप्निल स्पर्शों से
मेरी भाव वीचियों को
सुवासित करता रहा
और
मैं
ऑंखें बंद करने का
उपक्रम करती हुई
उसके स्पर्शों के आग़ोश में
मौन अन्धकार का
आवरण ओढ़े
चुपचाप
बैठी रही
आहटें
रूठ गयीं…
Added by Sushil Sarna on February 1, 2018 at 3:23pm — 13 Comments
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