देख दुर्दशा यार वतन की, गीत रुदन के गाता हूँ
कलम चलाकर कागज पर मैं, अंगारे बरसाता हूँ
कवि मंचीय नहीं मैं यारों, नहीं सुरों का ज्ञाता हूँ
पर जब दिल में उमड़े पीड़ा, रोक न उसको पाता हूँ
काव्य व्यंजना मै ना जानूँ, गवई अपनी भाषा है
सदा सत्य ही बात लिखूँ मैं, इतनी ही अभिलाषा है
आजादी जो हमे मिली है, वह इक जिम्मेदारी है
कलम सहारे उसे निभाऊं, ऐसी सोच हमारी है
काल प्रबल की घोर गर्जना, लो फिर मैं ठुकराता हूँ
देख…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on February 11, 2018 at 6:18am — 9 Comments
"बहुत हो गये फोटो! अब मैं तुम्हें बिकनी में देखना चाहता हूं!" अंततः शरीर की भूख उसके शब्दों से ज़ाहिर हो गई थी। दोस्ती से तन तक के फार्मूले से बचकर अगली बार जब उसने मुहब्बत बरसाने वाले शादीशुदा आदमी के साथ वेलेंटाइन डे मनाया तो दो शरीर एक हो ही गये थे और बरसने वाली मुहब्बत चंद दिनों में ही रफूचक्कर हो गई थी। शादीशुदा मर्द से धोखा खाने के बाद इस बार वेलेंटाइन डे पर वह एक साहित्यकार की आगोश में थी।
"तुमने विवाह क्यों नहीं किया?" अपनी लिखी कुछ काव्य रचनाएं सुनाकर साहित्यकार ने…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on February 10, 2018 at 9:30pm — 7 Comments
1222 1222 122
मुहब्बत के सफ़र की दास्ताँ है,
तू मेरी जान है मेरा जहाँ है,
मेरी मुस्कान होठों पर सजी और,
मेरा ग़म मेरी आँखों में निहां है,
शबे -ग़म हिज्र का तुझको सताये,
वो मेरी ज़िन्दगी में भी रवां है,
सफ़र में साथ मेरे तुम हो जानां,
मेरे कदमों के नीचे आसमां है,
लबों से कुछ नहीं कहता कभी वो,
बस उसके लम्स से सबकुछ अयाँ है..
मौलिक व् अप्रकाशित
Added by Anita Maurya on February 10, 2018 at 6:41pm — 4 Comments
212 212 212
आप फिर याद आने लगे ।
क्या हुआ जो सताने लगे।।
दिल तो था आपके पास ही ।
आप क्यूँ आजमाने लगे ।।
क्या कमी थी मेरे हुस्न में ।
गैर पर दिल लुटाने लगे ।।
रफ्ता रफ्ता नजर से मेरी ।
आप दिल में समाने लगे ।।
क्या हुआ आपको आजकल…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on February 10, 2018 at 2:44pm — 3 Comments
22 22 22 22
मुद्दत से उलझा रहता है ।
यह मन कब तन्हा रहता है ।।
मिलता है अक्सर जो हंसकर ।
वो गम को पीता रहता है ।।
जो गुलाब भेजा था तुमने ।
वो दिल मे खिलता रहता है ।।
कब आओगे मेरे घर तुम ।
खत में वो लिखता रहता है ।।
मुझसे मेरा हाल न…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on February 10, 2018 at 2:36pm — 6 Comments
आशियाँ
"मैं मानता हूँ सुम्मी। मुझे तुम्हें यहां नहीं बुलाना चाहिए था लेकिन यदि आज मैं अपनी बात नहीं कह पाया तो फिर कभी ऐसा अवसर नहीं आएगा।" ढलती शाम के साये में वह अपनी बचपन की मित्र के सामने खड़ा,अपनी बात कह रहा था।
"मैं जानती हूँ यार, तुम 'जॉब' के लिये बाहर जा रहे हो।" सुम्मी हल्का सा मुस्करायी। "और ये भी जानती हूँ कि तुम क्या कहना चाहते हो? लेकिन हमारे बीच ये कभी संभव नहीं था, और अब तो बिलकुल भी नहीं।"
"नहीं सुम्मी, मुझे अपनी…
Added by VIRENDER VEER MEHTA on February 10, 2018 at 12:00pm — 11 Comments
मापनी :-
1212-1122-1212-112
शुरू कहाँ से करूँ ओऱ कहाँ से बात करूँ।।
नजर से वार करूँ या जुबाँ से बात करूँ।।
मुझे तो इतना तज्ज्रिबा नहीं मुहब्बत की।
फ़िसल वो जाएं शुरू मैं जहां से बात करूँ।।
कोई हसीन सा किरदार जिंदगी से जुड़े।
यही है चाह की उल्फत की हाँ से बात करूँ ।।
समझ समझ के समझ को समझ न पाए हमीं।
की किससे कौन अदा से जुबाँ से बात करुं।।
मेरे हबीब मेरे रब मेरी अना में अभी।
है इतनी चाह जमीं आसमाँ से बात…
Added by amod shrivastav (bindouri) on February 9, 2018 at 6:22pm — 3 Comments
2212 2212 2212 12
शायद तेरी नज़र को मिला इंतखाब है ।
उगने लगा मगरिब में कोई आफताब है ।।
उड़ते परिंदे खूब हैं इस जश्ने प्यार में ।
छाया मुहब्बतों में कोई इन्क्लाब है ।।
मुद्दत से मैं था मुन्तज़िर अपने सवाल पर ।
ख़त में किसी का आज ही आया जबाब है ।।
कुछ दिन से वह भी होश में मिलता नहीं मुझे ।
कैसा नशा है इश्क़…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on February 9, 2018 at 12:09pm — 6 Comments
22 22 22 22 22 22 2
जब भी तेरी यादें जानां कम हो जाती हैं
मेरी आँखें और जियादा नम हो जाती हैं
दर्द संभालूँ आहें रोकूँ दिल को समझाऊँ
अश्क़ों की बरसातें बेमौसम हो जाती हैं
राह तुम्हारी तकते तकते आँखें पथराईं
साँसें भी चलते चलते मद्धम हो जाती हैं
रफ़्ता रफ़्ता रात चली और सवेरा आया
फिर ये होता है सोचें बरहम हो जाती हैं
उस दर पे दम तोड़ गई हर एक सदा मेरी
और सभी उम्मीदें 'ब्रज' बेदम हो जाती…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 8, 2018 at 7:30pm — 14 Comments
आज वह बहुत खुश थी, सारे गुलाब बिक गए थे. रात काफी हो चली थी और एक आखिरी गुलाब को पास रखकर वह पैसे गिनने में तल्लीन थी तभी एक कार उसके पास रुकी.
"वो गुलाब देना", अंदर से एक नवयुवक ने आवाज लगायी. उसने एक उड़ती हुई नजर युवक पर डाली और उसकी बात अनसुना करते हुए वापस पैसे गिनने में लग गयी.
"अरे सुना नहीं क्या, वो गुलाब तो दे, कितने पैसे देने हैं", युवक ने इस बार थोड़ी ऊँची आवाज में कहा, उसके स्वर में झल्लाहट टपक रही थी.
उसने सर उठाकर युवक को देखा और पैसे अपनी थैली में रखते हुए बोली…
Added by विनय कुमार on February 8, 2018 at 6:00pm — 14 Comments
बहर :-1212-1122-1212-22
गरीब वो हैं कि जिनका मकां नहीं मिलता।।
अमीर वो जो कभी खामखां नहीं मिलता।।
कोई भी शख़्स मुझे खुश नुमां नहीं मिलता।।
मुझे तो दर्द भी हँस कर मियां नहीं मिलता।।
मैं ढूंढता हूँ खुद का निशाँ नहीं मिलता।।
शह्र में तेरे मिरा हम जुबाँ नहीं मिलता।।
मिले बहुत से मगर और बात है तुम में।।
तुम्हारे जैसा कोई खुशनुमां नहीं मिलता।।
कसम भी प्यार में खाई कसम को तोड़ा भी।
हाँ यार…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on February 8, 2018 at 5:55pm — 8 Comments
हौले से हिला कर के
नींद से जगा कर के
बहती है पवन जैसे
वो छू के गई ऐसे |
प्यारी सी एक लड़की
थी सांवले कलर की
एक ख़्वाब जगा करके
मुझे अपना बता कर के
वो छू के गई ऐसे-----
रात भर मुझे जगाना
बिन बात मुस्कुराना
सिर मेरा ही खाना
कहने पे रूठ जाना
वो छू के गई ऐसे----
दुनियाँ भली लगी थी
वो जब मुझे मिली थी
शायद थी भागवत वो
था मुझको गुनगुनाना |
वो छू के गई…
ContinueAdded by somesh kumar on February 8, 2018 at 9:30am — 4 Comments
अरकान-1212 1122 1212 22
तुम्हारे ख़त जो मेरे नाम पर नहीं आते
तो दुश्मनों के भी चहरे नज़र नहीं आते
सतर्क आप रहें हर घड़ी निगाहों से
लुटेरे दिल के कभी पूछ कर नहीं आते
भला भी वक़्त तुम्हारे लिये बुरा होगा
सलीक़े जीने के तुमको अगर नहीं आते
बदल दिए हैं हमीं ने मिजाज मौसम के
भिगोने अब्र हमें बाम पर नहीं आते
हमेशा पीछे भी क्या देखना जमाने में
समय जो बीत गए लौट कर नहीं…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on February 7, 2018 at 6:51pm — 8 Comments
कभी पेट पर लेकर अपने, हमें सुलाते पापा जी
कभी बिठा काँधे पर हमको, खूब घुमाते पापा जी
छाया देते घने पेड़ सी, लड़ते वो तूफानों से
हो निष्कंटक राह हमारी, उनके ही बलिदानों से
विपरीत रहें हालात मगर, कभी नहीं घबराते हैं
ओढ़ हौसलों की चादर को, हँसते और हसाते हैं
हँसकर तूफानों से लड़ना, हमें सिखाते पापा जी
कभी बिठा काँधे पर हमको, खूब घुमाते पापा जी
बोझ लिए सारे घर का वो, दिन भर दौड़ लगाते हैं
हम सबके सपनो की…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on February 7, 2018 at 6:16pm — 14 Comments
-मेरी तो पक गयी।
-मेरी भी छन गयी।
-तो चल सब को छकाया जाय',पकौड़ी और छकौड़ी छहकती हुई एक साथ बोलीं।
-लेकिन उसके लिए चाय चाहिए,जो मेरे ही पास है',केतली ने कहर भरी नजर से दोनों को देखा।
-आ जा राम प्यारी! चल साथ-साथ चलते हैं',छकौड़ी और पकौड़ी केतली को गले लगाने लगीं।
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Manan Kumar singh on February 7, 2018 at 10:06am — 1 Comment
221 2121 1221 212
हमने तुम्हारे वास्ते क्या क्या नहीं किया
अफ़सोस तुमने हमपे भरोसा नहीं किया
oo
आया है जब से नाम तुम्हारा ज़बान पर
होटों ने फिर किसी का भी चर्चा नहीं किया
oo
ज़ुल्मों सितम ज़माने के हंस हंस के सह लिए
लेकिन कभी ईमान का सौदा नहीं किया
oo
अमनो अमां से हमने गुज़ारी है ज़िंदगी
मज़हब के नाम पर कभी झगड़ा नहीं किया
oo
उम्मीद उस बशर से करें क्या वफ़ा की हम
जिसने किसी के साथ भी अच्छा नहीं किया…
Added by SALIM RAZA REWA on February 6, 2018 at 10:30pm — 14 Comments
आत्मा के
कल-कल छल-छल जल में
शब्दों की ध्वनियाँ तैरती है
देर तक गूँजती रहती है
तब बहुत बेईमानी लगता है
इस युग के मुहाने की छाती पर
नंगे पैर खड़े होकर चलना
समझौतों के ताबीज पहनना
मक्कारी का मंत्र जाप करना
रोज़ आत्मा का गला घोटना
खंडित-खंडित होकर
अखंडित समाधि बनना
बहुत बेईमानी लगता है
इस युग के रिश्तों में जीना
जहाँ रिश्तों में डाका पड़ा है
ख़ूनी हाथ अट्टहास करते हैं
अकेलेपन की साँसें थम गई है
रातरानी को लकवा हो गया है
गुलाब…
Added by Mohammed Arif on February 6, 2018 at 9:08pm — 15 Comments
221 2121 1221 212
गर बीज है जमीन में अंकुर भी आयेगा
,जागेगी ये अवाम तग़य्युर भी आयेगा
'ज़ह्नों में लाज़मी है तहय्युर भी आयेगा
बदलाव आयेगा तो तफ़क्कुर भी आयेगा
इंसानियत का आज कोई गीत गा रहा
,जब साज है नया तो नया सुर भी आयेगा
आना न मेरी जिन्दगी में तुम कभी सनम
,आए तो फुर्कतों का तसव्वुर भी आयेगा
'कमसिन रहे वो नाज़नीं यारो दुआ करो
आया अगर शबाब तकब्बुर भी आयेगा'
लिखदी ग़ज़ल समाज पे शाइर ने इक…
Added by rajesh kumari on February 6, 2018 at 5:30pm — 16 Comments
जनाब साहिर लुधियानवी के मिसरे पर तरही ग़ज़ल।
1222 1222 1222 1222
रहे गर्दिश में जो हरदम, उन_अनजानों पे क्या गुजरी,
किसे मालूम ऐसे दफ़्न अरमानों पे क्या गुजरी।
कमर झुकती गयी वो बोझ को फिर भी रहें थामे,
न जाने आज की औलाद उन शानों पे क्या गुजरी।
अगर हो बात फ़ितरत की नहीं तुम जानवर से कम,
*जब_इंसानों के दिल बदले तो इंसानों पे क्या गुजरी।*
मुहब्बत की शमअ पर मर मिटे जल जल पतंगे जो,
खबर किसको कि उन नाकाम परवानों…
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on February 6, 2018 at 4:04pm — 9 Comments
गरम कड़ाही में वे नाच रहे थे। नहीं, उन्हें नचाया जा रहा था। उबलते तेल में एक झारे से उन्हें पलटा जा रहा था। रंग बदलते ही उन्हें कड़ाही से बाहर कर थाली में और फिर दीवाने ग्राहकों को दोनों में चटनी के साथ पेश किया जा रहा था। उनमें से एक युवक की निगाहें कभी कड़ाही में, कभी हाथों में थामे गये 'दोनों' पर, तो कभी ग्राहकों के चलते जबड़ों पर जा रहीं थीं, तो कभी झारा चलाते युवा पकोड़ेवाले पर।
"यूं क्या देख रहे हो? क्या सोच रहे हो भाई? आपको कितने के चाहिए?" कुछ पकोड़े थाली में उड़ेलते…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on February 5, 2018 at 6:00pm — 8 Comments
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