*धुआँ (सरसी छःन्द)*
आसमान में धुआँ धुआँ है, हुए सभी बेहाल |
व्याकुलता बढ़ती जाती है, जीना हुआ मुहाल ||
काली धुंध सड़क पे छायी, मुश्किल चलनी राह |
नर नारी सबके ही मुख से, निकल रही है आह ||
अस्त व्यस्त सारा जन जीवन, सुनता कौन पुकार |
आपस में कर खींचातानी,बढ़ा रहे तकरार ||
जिम्मेदारी भूल गए हैं, सभी बजाते गाल |
दिल के भीतर कालापन है, बिगड़ गयी है चाल ||
धुँधलायी नित बढ़ती जाती,उठता रोज सवाल |
फिक्र नहीं है यहाँ किसी…
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Added by डॉ छोटेलाल सिंह on November 13, 2017 at 5:51pm —
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दिल ए नादान से हरगिज़ न संभाली जाए
आरजू ऐसी कोई दिल में न पाली जाए
जान मांगी है तो अपनी भी यही कोशिश है
ऐ मेरे दोस्त तेरी बात न खाली जाए
अपने हाथों के करिश्मे पे भरोसा करके
अपनी सोई हुई तक़दीर जगा ली जाए
आज फिर छत पे मेरा चाँद नज़र आया है
क्यूँ न फिर आज चलो ईद मना ली जाए
घर में दीवार उठी है तो कोई बात नहीं
ऐसा करते हैं कि छत अपनी मिला ली जाए
जब किसी और के बस में नहीं है खुश रखना
खुद ही…
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Added by Alok Rawat on November 13, 2017 at 2:30pm —
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“क्या पढ़ रही हो बेटा, लैपटॉप पर इस कदर आखें गडाये?”-साहित्यकार मनमोहन ने अपनी बेटी रूपा से सवाल किया
“कुछ नहीं पापा, साहित्य सेवा मंच पर प्रकाशित रुपेश जी की कहानी पढ़ रही हूँ, लेकिन पापा इस शानदार रचना पर किसी की कोई भी प्रतिक्रिया नहीं है” रूपा ने जवाब देते हुए प्रश्न किया
“शानदार रचना! नहीं बेटा बड़ी कमियाँ हैं इसके लेखन में“
“कमियाँ हैं! कमियां हैं तब तो आपको निश्चित रूप से मंच से जुड़े हर सदस्य को इस पर प्रतिक्रिया करनी चाहिए थी”
“ हाँ, बेटा तुम सही कह रही हो, लेकिन ये…
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Added by Dr Ashutosh Mishra on November 13, 2017 at 11:41am —
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2122 1122 1122 22
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मुझसे रूठा है कोई उसको मनाना होगा
भूल कर शिकवे-गिले दिल से लगाना होगा
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जिन चराग़ों से ज़माने में उजाला फैले
उन चराग़ों को हवाओ से बचाना…
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Added by SALIM RAZA REWA on November 13, 2017 at 11:00am —
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पढ़े-लिखे हैं आप तो आपको
पढ़े-लिखे दिखना चाहिए।
मोटर कार हो सब ,फिर भी अक्ल से ,
आपको , बिलकुल पैदल दिखना चाहिए।
कपड़े अजीब, चाल अजीब , हाव-भाव अजीब ,
बातचीत में अजीब होना और दिखना चाहिये।
रचनात्मक होना तो बहुत कठिन होता है ,
विध्वंस और क्रान्ति की बात करनी आनी चाहिए।
सबसे बड़ी बात आपको
घर फूंक तमाशा देखना आना चाहिए।
अपनी बुनियाद को निरंतर हिलाना और
मौक़ा लगते ही उखाड़ देना चाहिए।
आपको वो तो लपक लेंगे ही
जो उकसा रहे हैं…
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Added by Dr. Vijai Shanker on November 13, 2017 at 10:57am —
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सरसी छंद
शिल्प-16,11 पर यति, चार चरण और दो पद, पदांत में गुरु-लघु।
भाव शब्द-कल गुरु लघु यति का, रखकर समुचित ध्यान।
दोहा तोटक रोला सरसी, रचिये छंद सुजान।।1।।
सोलह ग्यारह पर यति प्रति पद, गुरु-लघु पद के अंत।
चार चरण दो पद का सरसी, गायें सुर-नर-संत।।2।।
मुख-शशि उज्ज्वल औ' धनु-भौहें, तिरछे नैन-कटार।
हाय! डसें लट-अहि केशों के, हिय पर बारम्बार।।3।।
अरुण अधर-कोमल किसलय नव, दृग-मद पूर्ण तड़ाग।
यौवन-पुष्प खिला ज्यों लेकर घट भर…
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Added by रामबली गुप्ता on November 13, 2017 at 8:07am —
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“उफ्फ़... थक गया ऐसे भाषणों, नारों और झांकियों से!” हांफते हुए वह एक सूखे से पेड़ की शाखा पर जा बैठा। स्वाधीनता दिवस समारोह में सरे आम अपने कुछ साथियों के साथ क़ैद रहा ‘शांति का प्रतीक’ वह कबूतर लम्बे इन्तज़ार के बाद साथियों के साथ गगन में मुक्त तो कर दिया गया था, लेकिन उसने एक अलग उड़ान भरी और धोखे से क़ब्रिस्तान जा पहुंचा था।
“परेड मैदान और मंच पर मौजूद लोगों में से कोई तो तोता, शेर, गधा, बंदर, कुत्ता, गिद्ध या गीदड़ नज़र आ रहा था, तो कोई पप्पू जैसा।” यह सोचते हुए अभी भी उसके कानों…
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Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 13, 2017 at 12:00am —
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२१२२ २१२२ २१२
थोड़े थोड़े में गुजारा हो गया
मुश्तभर किस्सा हमारा हो गया
कहकशाँ में ढूँढती बेबस नज़र
ख़्वाब अपना इक सितारा हो गया
चाँद की चाहत कभी हमने न की
एक जुगनू ही सहारा हो गया
छटपटाती देख बेघर सीपियाँ
दिल समन्दर का किनारा हो गया
बेवफा इस जिन्दगी ने फिर ठगा
इश्क इससे क्यूँ दुबारा हो गया
बातों बातों हार बैठे दिल को हम
बेखुदी में बस ख़सारा हो…
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Added by rajesh kumari on November 12, 2017 at 8:29pm —
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फ़ाइलातुन मफ़ाइलुन फ़इलुन/फेलुन
मेरे ग़म का है सद्दे बाब कोई
आपके पास है जवाब कोई
सुनके मेरी ग़ज़ल कहा उसने
अपने फ़न में है कामयाब कोई
उतनी भड़केगी आतिश-ए-उल्फ़त
जितना बरतेगा इज्तिनाब कोई
सबसे उनको छुपा के रखता हूँ
तोड़ डाले न मेरे ख़्वाब कोई
पास है जिनके दौलत-ए-ईमाँ
उन पर आता नहीं अज़ाब कोई
कोई उस पर यक़ी नहीं करता
अच्छा बन जाए जब ख़राब कोई
आमने सामने हों जब दोनों
उनको देखे कि माहताब…
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Added by Samar kabeer on November 12, 2017 at 3:06pm —
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- 1212 1122 1212 22
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हरेक ज़ुल्म गुनाह-ओ- ख़ता से डरते हैं.
जिन्हे है ख़ौफ़-ए-ख़ुदा वो ख़ुदा से डरते हैं
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न…
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Added by SALIM RAZA REWA on November 12, 2017 at 10:00am —
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तु देश का भविष्य है,
ऐ कैसा तेरा भेष है,
जिस कंधों पर होना चाहिए बस्ता,
उस कंधों पर कितना बोझ है !!
तु उन चारदीवारों से क्यों दूर है,
शिक्षा की मन्दिर से कहां गुम है,
जिस हाथ में होना चाहिए कलम,
उस हाथ को चाय बेचने का काम है !!
ज़िन्दगी का अध्ययन का पल तुमसे क्यों दूर है,
आखिर तू भी उसी अल्लाह का नूर है,
जिस आंखों में होना चाहिए ख्वाब,
उन आँखों में दर्द आंसूओं का सैलाब है !!
सरकार और परिवार चुप क्यों है,
ये बच्चे…
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Added by Sushil Kumar Verma on November 12, 2017 at 9:33am —
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तालिका छंद
सगण सगण(112 112)
दो-दो चरण तुकांत
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दिन रात चलें
हम साथ चलें
सह नाथ रहें
सुख दर्द सहें
बिन बात कभी
झगड़े न सभी
मन प्रेम भरें
हरि कष्ट हरें
शुभ काम करो
तब नाम करो
सब वैर तजो
हरि नाम भजो
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on November 12, 2017 at 7:43am —
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" विजेश ! विजेश ! हू इज़ विजेश ।"
" आई एम विजेश सर ।" डरता-डरता विजेश सिर झुकाकर खड़ा हो गया ।
" व्हेरी गुड ! यू आर विजेश । तुम्हारी कई दिनों से शिकायतें आ रही है कि तुम क्लास और स्कूल परिसर में गुटखा-पाऊच खाते हो । क्या यह सच है ? जवाब दो ।"
थोड़ी चुप्पी के बाद वह साहस जुटाकर बोला-" सॉरी सर , बट आज के बाद कभी नहीं खाऊँगा । प्रॉमिस सर !"
" ओके ! सीट डाउन एण्ड मैण्टेन यूअर एटीकेट्स । अब सभी बुक निकालकर रीडिंग शुरू करें ।" पूरी क्लास लेसन रीडिंग में तल्लीन हो गई । थोड़ी ही देर में…
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Added by Mohammed Arif on November 11, 2017 at 11:17pm —
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*1222 1221
न बदले गर ये' हालात।
फिर आ जायेगी बरसात।।
भले ही कुछ दिनों बाद
मगर होगी करामात।।
तुम आशिक हो ही' बदनाम
दिखा दी अपनी' औकात।।
मुझे कोई न इतराज़
कभी कर लो मुलाकात।।
करूँ कैसे अब इतिबार,
तुम आये हो अकस्मात।।
किसी से कुछ न अब उम्मीद,
सुनो मेरे खयालात।।
फ़ना तुझपे दिलो जान
करूँ तो फिर बने बात।।
ज़वानी जोश में आज
न कर बैठे कुछ उत्पात।।
नहीं है 'दीप'…
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Added by प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप' on November 11, 2017 at 10:50pm —
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पीला माहताब ...
ठहरो न !
बस
इक लम्हा
रुक जाओ
मेरे शानों पे
जरा झुक जाओ
मेरे अहसासों की गठरी को
जरा खोलकर देखो
जज्बातों के ज़जीरों पे
हम दोनों की सांसें
किस क़दर
इक दूसरे में समाई हैं
मेरे नाज़ार जिस्म के
हर मोड़ पर
तुम्हारी पोरों के लम्स
मुझे
तुम्हारे और करीब ले आते हैं
थमती साँसों में भी
मैं तुम्हारी नज़रों की नमी से
नम हुई जाती हूँ
देखो
वो अर्श के माहताब को
हिज़्र…
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Added by Sushil Sarna on November 11, 2017 at 8:33pm —
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सब कहते हैं शहर में भी सहर होता है
पर शहर में बसर कहाँ बशर होता है
दूर दूर जहाँ तक नज़र जाती है
धुँआ धुँआ शहर ये ज़हर ढोता है
दाग़ ग़ालिब का ये जो पुराना शहर है
बात बात में गालियों का हर्जाना भरे है
क्या हो गया है इस नए ज़माना ए नस्ल को
रिश्तों को सरेआम सरेबाज़ार करे हैं
शब ओ सहर ए उजाला ए फ़साना
शहर ए ग़म की कहानी कहे है
क्या कहूँ अब किस्सा ज़िंदगी का
सब अपनी अपनी कहानी कहे हैं
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
Added by anamika ghatak on November 11, 2017 at 11:04am —
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लघुकथा - गिरगिट –
"गुरूजी, आपकी इस अपार सफलता का भेद क्या है? पिछले बाईस साल से राजनीति में आपका एक छ्त्र राज है"?
गुरूजी ने दाढ़ी खुजलाते हुए, गंभीर मुद्रा बनाने का नाटक करते हुए उत्तर दिया,
"मित्रो, राजनीति बड़ी बाज़ीगरी का धंधा है। अपनी लच्छेदार बातों से लोगों को मंत्र मुग्ध करना होता है| इसमें सफल होना इतना सरल नहीं जितना दिखता है"।
"गुरूजी, हम तो आपके अंध भक्त हैं, कुछ गुरूमंत्र दीजिये जो भविष्य में हमारे काम आ सके"?
"पहली चीज़ तो यह गाँठ बाँध लो कि इसमें…
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Added by TEJ VEER SINGH on November 11, 2017 at 10:53am —
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“भाभी, उस तरफ़ मत देखो; इस तरफ़ देखो! यह देखो कितना सुन्दर बच्चा! बिल्कुल वैसा ही, जैसा बैडरूम में भैया के लगाये पोस्टर में है, है न!”
“हां, बहू अच्छे चेहरे देखती रहो, अच्छी फिल्में देखो, भगवान ने चाहा तो तू भी मुझे ज़ल्दी ही सुंदर सा पोता देगी!”
सरकारी अस्पताल के महिला वार्ड के आख़री बैड पर अपनी मां के सिरहाने बैठी सम्मो अगले पलंग के पास बैठे किसी परिवार के सदस्यों की बातें सुन कर अपनी मां को और दूध पीती अपनी नन्हीं बहन को बड़ी दया से देखने लगी। मां का उतरा हुआ पीला सा…
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Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 10, 2017 at 10:59pm —
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हमेशा जिसने मेरे साथ बस जफ़ा की है
उसी के वास्ते दिल ने मेरे दुआ की है
शराब लाने में ताख़ीर क्यों भला की है
ये इंतज़ार की शिद्दत भी इंतहा की है
तुम्हारे शेर से बेहतर हमारे शेर कहाँ
कि शेर ग़ोई की हमने तो इब्तदा की है
हर एक लफ्ज़ संवर जाये शेर के मानिंद
किसी ने आज ख़ुदा से इल्तजा की है
बड़ी कशिश है मेरे यार तेरे जलवों में
इसी लिए तो मेरे दिल ने भी खता की है
क़सम जो खाई है मजबूर हो के उल्फत में
क़सम तुम्हारी नहीं ये क़सम…
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Added by MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी) on November 10, 2017 at 10:53pm —
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2122 2122 212
हो गई पूरी तमन्ना बस करो ।
बेसबब यूँ मुस्कुराना बस करो ।।
फिक्र किसको है यहां इंसान की ।
फिर कोई ताज़ा बहाना , बस करो ।।
होश में मिलते कहाँ मुद्दत से तुम।
इस तरह से दिल लगाना, बस करो ।।
बेवफा की हो चुकी खातिर बहुत ।।
राह में पलकें बिछाना, बस करो ।।
घर मे कंगाली का आलम देखिये ।
गैर पर सब कुछ लुटाना ,बस करो ।।
रंजिशों से कौन जीता इश्क़ में।हार कर अब तिलमिलाना, बस करो ।।
कर गई दीवानगी…
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Added by Naveen Mani Tripathi on November 10, 2017 at 5:11pm —
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