मन में आत्मा में आॅंखों में,
मीठी-मीठी बातों में,
चरित्र गिर रहा है,
मत गिरने दो।
स्नेह में ममत्व में भावनाओं में,
मूल्यों में सम्मान में दुआओं में,
हर क्षेत्र हर दिशाओं में,
चरित्र गिर रहा है,
मत गिरने दो।
वादों में इरादों पनाह में,
विश्वास में परवाह में,
वांछितों की चाह में,
चरित्र गिर रहा है,
मत गिरने दो।
आवाज में अंदाज में,
प्रजा में सरताज में,
कल में आज में,
हर रूप में हर राज में,
चरित्र गिर रहा…
Added by Manoj kumar shrivastava on November 19, 2017 at 9:30pm — 14 Comments
Added by Rahila on November 19, 2017 at 6:39pm — 6 Comments
मुक्त हृदय से आज करूँ मैं, सबका ही सत्कार,
माँ वीणा सद्ज्ञान मुझे दो, जग में करूँ प्रसार ||
माँ-बापू के सद्कर्मों से, आया माँ की गोद।
मिला छत्र छाया में उनके,जीवन का आमोद।।
किये बहत्तर वर्ष पार ये, बिना किसी अवसाद
स्वर्गलोक से मिलता मुझको,उनका आशीर्वाद।।
माँ-बापू से पाया मैंने,जीवन में संस्कार।
मिला सनातन धर्म रूप में, मुझको भारत वर्ष ।
ऋषि-मुनियों का देश यही है,इसका मुझको हर्ष ||
वन-उपवन में रोप सकूँ मै, कुछ सुन्दर से…
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 19, 2017 at 7:30am — 14 Comments
Added by santosh khirwadkar on November 18, 2017 at 11:30am — 13 Comments
*1222 1222 1222 122*
ज़माना फिर न जाने क्यों ख़फ़ा होने लगा है।
मुहब्बत भी निभाना अब सज़ा होने लगा है।।
कभी वादे किये जिसने कसम खाकर ख़ुदा की,
वही फिर अब न जाने क्यों ज़ुदा होने लगा है।।
वहाँ पर हाल कैसा है, वही बस जान पाया,
यहाँ पर ज़ख़्म, ज़ख़्मों की दवा होने लगा है।।
समझ बैठा था' तुमको मैं, मुहब्बत का समंदर,
गुमाँ मेरा यहाँ आकर, रफ़ा होने लगा है।।
मुहब्बत का हमेशा ही यही अंज़ाम होता,
शमा से…
ContinueAdded by प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप' on November 17, 2017 at 5:30pm — 14 Comments
(फाइलातुन -फ़इलातुन-फ़इलातुन-फेलुन )
जिन से आबाद हर इक गोशा है वीराने का |
नाज़ कब वो भी उठा पाते हैं दीवाने का |
इंतज़ारी में कटी उम्र नहीं इसका गम
रंज है आपका वादे से मुकर जाने का |
कमसे कम मेरे ख़यालों में ही आ जाया करो
वक़्त कब मिलता है तुम को मेरे घर आने का |
लाख तू मेरी वफ़ाओं को भुला दे दिल से
अज़्म मुहकम है मेरा प्यार तेरा पाने का |
कोई इक बूँद को तरसे कोई भर भर के पिए
खूब दस्तूर…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on November 17, 2017 at 11:00am — 24 Comments
2122 2122 2122 212
चांद का टुकड़ा है या कोई परी या हूर है
उसके चहरे पे चमकता हर घड़ी इक नूर है
-
हुस्न पर तो नाज़ उसको ख़ूब था पहले से ही …
Added by SALIM RAZA REWA on November 17, 2017 at 10:30am — 14 Comments
शंख बजे ज्यों ही ठण्डी के,
मौसम ने यूं पलट खाया,
शीतल हो उठा कण-कण धरती का,
कोहरे ने बिगुल बजाया!!
हीटर बने हैं भाग्य विधाता,
चाय और कॉफी की चुस्की बना जीवनदाता,
सुबह उठ के नहाने वक्त,
बेचैनी से जी घबराता!!
घर से बाहर निकलते ही,
शरीर थरथराने लगता,
लगता सूरज अासमां में आज,
नहीं निकलने का वजह ढूढ़ता!!
कोहरे के दस्तक के आतंक ने,
सुबह होते ही हड़कंप मचाया,
शंख बजे ज्यों ही ठण्डी के
मौसम ने यूं पलटा…
Added by Sushil Kumar Verma on November 17, 2017 at 10:00am — 4 Comments
शादी की महफिल में,
हाइलोजन के भार से,
दबा कंधा,
ताशे और ढोल का,
वजन उठाये हर बंदा,
हाइड्रोजन भरे गुब्बारे,
सजाने वालों का पसीना,
स्टेज बनाने गड्ढे खोदने का,
तनाव लिये युवक,
चूड़ीदार परदों पर,
कील ठोंकता शख्श,
पूड़ी बेलती कामगर,
महिलाओं की एकाग्रता,
कुर्सियाॅं सजाते,
युवकों का समर्पण,
कैमरा फलैश में,
चमकते लोगों की शान,
कहीं न कहीं,
इन सबका होना जरूरी है,
किसी की खुशी,
किसी की मजबूरी है,
ये…
Added by Manoj kumar shrivastava on November 16, 2017 at 10:00pm — 8 Comments
बने-बनाये शब्दों पर
तू क्यों फंदे!
कलम सलामत है तेरी,
तू लिख बंदे,
उम्मीद मत कर कि कोई,
आयेगा तुझे,
तेरे दर पे सिखाने,
इंसां को देख,
तू खुद सीख बंदे,
बुराई लाख चाहे भी,
तुझे फॅंसाना,
अच्छाई को पूज,
खुद मिट जाएंगे,
विचार गंदे।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Manoj kumar shrivastava on November 16, 2017 at 9:30pm — 4 Comments
Added by नाथ सोनांचली on November 16, 2017 at 7:43pm — 8 Comments
Added by Rahila on November 16, 2017 at 12:30pm — 11 Comments
मधुर दोहे :
मन के मधुबन में मिले, मन भ्र्मर कई बार।
मूक नयन रचते रहे, स्पंदन का संसार।।
थोड़ा सा इंकार था थोड़ा सा इकरार।
सघन तिमिर में हो गयी , प्रणय सुधा साकार।।
बाहुपाश से देह के, टूटे सब अनुबंध।
स्वप्न सेज महका गयी ,मधुर बंध की गंध।।
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on November 15, 2017 at 9:22pm — 12 Comments
Added by Mohammed Arif on November 15, 2017 at 6:26pm — 14 Comments
Added by प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप' on November 15, 2017 at 3:34pm — 17 Comments
212 212 212 212, 212 212 212 212
-
जब तुम्हारी महब्बत में खो जाएंगे बिगड़ी क़िस्मत भी इक दिन संवर जाएगी /
लब तुम्हारी महब्बत में खो…
Added by SALIM RAZA REWA on November 15, 2017 at 9:00am — 21 Comments
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 14, 2017 at 6:30pm — 23 Comments
काफिया : अन ; रफिफ ; की आजमाइश है
बहर : १२२२ १२२२ १२२२ १२२२
चनावी दंगलों में स्याह धन की आजमाइश है
इसी में रहनुमा के मन वचन की आजमाइश है |
सभी नेता किये दावा कि उनकी टोली’ जीतेगी
अदालत में अभी तो अभिपतन की आजमाइश है |
खड़े हैं रहनुमा जनता के’ आँगन जोड़कर दो हाथ
चुने किसको, चुनावी अंजुमन की आजमाइश है |
लगे हैं आग भड़काने में’ स्वार्थी लोग दिन रात और
सरल मासूम जनता की सहन की आजमाइश है…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on November 14, 2017 at 7:30am — 8 Comments
बंद दरवाज़ा देखकर
लौटी है दुआ
आँख खुली तो जाना ख़्वाब और सच है क्या
धीमे-धीमे दहक रहे है
आँखों में गुजरे प्यार वाले पल
राख हो कर भी सपने
गर्म है
बुझे आँच की तरह
बर्फ में जमे अहसास
मानो धुव में ठहरे
दिन –रात की तरह
चुपी ओढे बैठी मैं
चेहरे पर सजाए मुस्कुराहट
प्यार का…
ContinueAdded by Rinki Raut on November 13, 2017 at 10:42pm — 4 Comments
३००वीं कृति .... श्रृंगार दोहे ...
मन चाहे करती रहूँ , दर्पण में शृंगार।
जब से अधरों को मिला, अधरों का उपहार।1।
अब सावन बैरी लगे, बैरी सब संसार।
जब से कोई रख गया, अधरों पे अंगार।2।
नैंनों की होने लगी , नैनों से ही रार।
नैन द्वन्द में नैन ही, गए नैन से हार।3।
जीत न चाहूँ प्रीत में , मैं बस चाहूँ हार।
'दे दे मेरी देह को', स्पर्शों का शृंगार।4।
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on November 13, 2017 at 8:00pm — 14 Comments
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