काफिया : आला . रदीफ़ : है
बह्र : २१२ १२२२ २१२ १२२२
हाथ में वही अंगूरी सुरा,पियाला है
रहनुमा का’ मन काला, शक्ल पर उजाला है |
छीन ली गई है आजीविका, दिवाला है
ढूंढ़ते रहे हैं सब, स्रोत को खँगाला है ||
आसमान पर जुगनू, चाँद सूर्य धरती पर
धर्म कर्म सब कुछ, भगवान का निराला है |
सब गड़े हुए मुर्दों को, उखाड़ते नेता
अब चुनाव क्या आया, भूत को उछाला है |
राज नीति में रिश्तेदार ही, अहम है सब
वो…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on November 6, 2017 at 7:30am — 2 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 5, 2017 at 10:35pm — 6 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on November 5, 2017 at 10:00pm — 10 Comments
Added by Gajendra shrotriya on November 5, 2017 at 7:00pm — 20 Comments
उनकी यादों की ....
ये
कैसे उजाले हैं
रात
कब की गुजर चुकी
दूर तलक
आँखों की
स्याही बिखेरते
तूफ़ां से भरे
आरिज़ों पर ठहरे
ये
कैसे नाले हैं
शब् के समर
आँखों में ठहरे हैं
लबों की कफ़स में
कसमसाते
संग तुम्हारे जज़्बातों के
लिपटे
कुछ अल्फ़ाज़
हमारे हैं
हर शिकन
चादर की
करवटों की ज़ुबानी है
जुदा होकर भी
अब तलक
ज़िंदा हैं हम
ख़ुदा कसम
ये…
Added by Sushil Sarna on November 4, 2017 at 8:30pm — 10 Comments
Added by Hariom Shrivastava on November 4, 2017 at 12:21pm — 6 Comments
Added by Gurpreet Singh jammu on November 4, 2017 at 11:30am — 12 Comments
Added by Ram Awadh VIshwakarma on November 3, 2017 at 10:39pm — 14 Comments
Added by Mohammed Arif on November 3, 2017 at 10:10pm — 15 Comments
Added by Hariom Shrivastava on November 3, 2017 at 3:23pm — 10 Comments
गीत - मुखड़ा -
करे तमस को दूर दीप ही, दूर भागता अँधियारा |
दीप निभाये धर्म सदा ही, जलकर करता उजियारा ||
सूर्य किरण उठ भोर झाँकती, नित्य सदा ही खिड़की से
दीन करे विश्राम डरे बिन, सदा मेघ की घुड़की से ।।
दीन-हीन के द्वार जहाँ भी, घिरने लगता अँधियारा
दीप निभाये धर्म सदा ही, जलकर करता उजियारा ।
दीप जलाएं द्वारें जाकर, छँटे दीन का अन्धेरा ।
सबको दे उजियार दीप ही,पर खुद का नही सवेरा ।।
दुख दर्दों की मार झेलता, दीन हीन सा…
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 3, 2017 at 2:00pm — 9 Comments
Added by Manan Kumar singh on November 3, 2017 at 10:13am — 10 Comments
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 2, 2017 at 6:00pm — 28 Comments
Added by Gurpreet Singh jammu on November 2, 2017 at 1:30pm — 9 Comments
मात-पिता पर स्वतंत्र दोहे :
मात-पिता का जो करें, सच्चे मन से मान।
उनके जीवन का करें , ईश सदा उत्थान !!1!!
जीवन में मिलती नहीं ,मात-पिता सी छाँव।
सुधा समझ पी लीजिये , धो कर उनके पाँव!!2!!
मात-पिता का प्यार तो,होता है अनमोल।
उनकी ममता का कभी, नहीं लगाना मोल !!3!!
बच्चों में बसते सदा, मात पिता के प्राण।
बिन उनके आशीष के, कभी न हो कल्याण!!4!!
सुशील…
Added by Sushil Sarna on November 2, 2017 at 12:30pm — 11 Comments
“तुमने ठीक से शूट किया न?”रियान ने पूछा|
“येस येस ऑफकोर्स बड्डी, पूरा शूट कर लिया" कैमरा दिखाते हुए डोडो ने कहा |
" लेकिन एक बात बता व्हाई डिड यू चूज हिम ओनली? इसे ही क्यों चुना तुमने?”डोडो ने आगे पूछा |
“ ही वाज़ एन इन्डियन यार.... क्या फर्क पड़ता है कोई अपना थोड़े ही था और मेरे इस लास्ट टास्क में यही ऑर्डर था कि विदेशी होना चाहिए पर ये शूट करना अब तो बंद कर यार अभी भी क्यूँ ऑन किया हुआ है कैमरा” रियान बोला|
ठांय ठांय ठांय...”सॉरी बड्डी मेरा भी…
ContinueAdded by rajesh kumari on November 2, 2017 at 11:06am — 8 Comments
काफिया आम, रदीफ़ : बहुत है
बह्र : २२१ १२२१ १२२१ १२२ (१)
अकसीर दवा भी अभी’ नाकाम बहुत है
बेहोश मुझे करने’ मय-ए-जाम बहुत है |
वादा किया’ देंगे सभी’ को घर, नहीं’ आशा
टूटी है’ कुटी पर मुझे’ आराम बहुत है |
प्रासाद विशाल और सुभीता सभी’ भरपूर
इंसान हैं’ दागी सभी’, बदनाम बहुत हैं |
है राजनयिक दंड से’ ऊपर, यही’ अभिमान
शासन करे स्वीकार, कि इलज़ाम बहुत है |
साकी की’ इनायत क्या’ कहे,दिल का…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on November 2, 2017 at 8:24am — 2 Comments
(22 22 22 22)
क्यूँ है तू बीमार मेरे दिल
गम से यूँ मत हार मेरे दिल
तय है इक दिन मौत का आना
इस सच को स्वीकार मेरे दिल
पहले ही से दर्द बहुत हैं
और न ले अब भार मेरे दिल
सुनकर भाषण होश न खोना
ये सब है व्यापार मेरे दिल
कौन यहाँ पर कब बिक जाए
रहना तू हुशियार मेरे दिल
झूठ खड़ा है सीना ताने
सच तो है लाचार मेरे दिल
दिल के कोने में रहने दे
प्यार…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on November 2, 2017 at 12:30am — 7 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 1, 2017 at 7:51pm — 4 Comments
उसका बेहद अपनेपन से आना
नज़ाकत से छूना
अपनी सधी हुई उँगलियों से थामना
महसूस करना तपिश को
सुबह शाम जब चाहे...
दूर न रह पाने की
उसकी दीवानगी,
ये चाह कि उसके बिन पुकारे ही
सुन ली जाए उसकी हर उसकी धड़कन,
न न नहीं पसंद उसे अनावश्यक मिठास
न ही कृत्रिमता भरा कोई भी मीठापन
चाहे फीकी हो…
Added by Dr.Prachi Singh on November 1, 2017 at 2:00pm — 9 Comments
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