फ़इलातु फ़ाइलातुन फ़इलातु फ़ाइलातुन
ये जो राबिता है अपना फ़क़त एक शे'र का है।
कोई इक रदीफ़ है तो कोई उसका क़फ़िया है।
है अजीब ख़ाहिश-ए-दिल कि रहूँ गा साथ ही में,
मैं हबीब हूँ हवा का मेरा आश्ना दिया है।
कभी मुझ से आके पूछो सर-ए-शाम बुझ गया क्यों,
कभी उस तलक भी जाओ कि जो दिन में भी जला है।
कभी कश्तियों को छोड़ो दिले आबजू में उतरो,
मेरे पास आके देखो मेरे दिल में क्या छिपा है।
मेरा क्या है मेरी मंज़िल मुझे ढूँढ…
ContinueAdded by रोहिताश्व मिश्रा on November 22, 2017 at 11:30am — 4 Comments
212 1222 212 1222
तेरे प्यार में दिल को बेक़रार करते हैं
रात - रात भर तेरा इंतज़ार करते हैं
-
तुमको प्यार करते थे तुमको प्यार करते हैं
जाँ निसार करते थे जाँ निसार करते हैं
-
ख़ुश रहे हमेशा तू हर ख़ुशी मुबारक हो
ये दुआ खुदा से हम बार - बार करते हैं
-
उँगलियाँ उठाते हैं लोग दोस्तों पर भी
हम तो दुश्मनों पर भी ऐतबार करते हैं
-
वादा उसका सच्चा है लौट के वो आएगा
इस उमीद पर अब भी इंतज़ार करते…
ContinueAdded by SALIM RAZA REWA on November 22, 2017 at 8:30am — 6 Comments
जब तुमने की होगी आत्महत्या,
तब कितना कठोर किया होगा मन,
कितनी सही होगी वेदना,
संभवतः तुम्हारे अंगों ने भी,
तुमसे कहा होगा कि,
‘एक बार फिर सोच लो‘,
परंतु तुमने निष्ठुरता का
प्रमाण देते हुए,
अनदेखा कर दिया होगा,
कदाचित तुमने यह भी
नहीं सोचा होगा कि,
तुम्हारे मृत शरीर को
देखकर अवस्थाहीन
हो जाएगी तुम्हारी ‘जननी‘,
जिसका अंश है तुम्हारा शरीर,
तब, चहुंदिशि होगी,
करूणा और क्रंदन
जो चीख-चीख कर
कह रहे होंगे-‘‘आखिर
क्यों की…
Added by Manoj kumar shrivastava on November 22, 2017 at 7:30am — 4 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on November 21, 2017 at 11:00pm — 8 Comments
Added by पंकजोम " प्रेम " on November 21, 2017 at 7:12pm — 4 Comments
२१२२ १२१२ २२
कोंचती है ये धूल कहता है
किस नफ़ासत से फूल कहता है
मख़मली ये लिबास चुभते हैं
रास्ते का बबूल कहता है
जिन्दगी से निबाह करती हूँ
आइना जब क़ुबूल कहता है
अपने दम पे मक़ाम हासिल कर
मुझसे मेरा उसूल कहता है
चाहो मंजिल तो आबले न गिनो
हर कदम पे रसूल कहता है
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by rajesh kumari on November 21, 2017 at 11:46am — 25 Comments
खामोश आखें
होली आयी और चली गयी,
पिछले साल से भली गयी,
पर किसी ने देखा!
किसका क्या जला?
मैंने देखा,
’उसकी डूबती खामोश आॅंखें’
और भीगी पलकों को,
और वह खड़ा,
एकटक देख रहा था,
’होली को जलते’
जैसे उसे मालूम न हो,
अपनी ‘आॅंखों ’ के कारनामे
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Manoj kumar shrivastava on November 20, 2017 at 10:00pm — 5 Comments
Added by नाथ सोनांचली on November 20, 2017 at 5:40pm — 20 Comments
काफिया : आन ,रदीफ़ : है
बह्र : २२१ २१२१ १२२१ २१२
राजाधिराज का गिरा’ दुर्जय कमान है
सब जान ले अभी यही’ विधि का विधान है |
अदभूत जीव जानवरों का जहान है
नीचे धरा, समीर परे आसमान है |
संसार में तमाम चलन है ते’री वजह
हर थरथरी निशान ते’री, तू ही’ जान है |
जो भी जमा किये यहाँ’ रह…
Added by Kalipad Prasad Mandal on November 20, 2017 at 3:37pm — 9 Comments
Added by Ram Awadh VIshwakarma on November 20, 2017 at 2:53pm — 5 Comments
बंद किताब ...
ठहरो न !
थोड़ी देर तो रुक जाओ
अभी तो रात की स्याही बाकी है
सहर की दस्तक से घबराते हो
प्यार करते हो
और शरमाते हो
कभी नारी मन के
सागर में उतर के देखो
न जाने कितने गोहर
सीपों में
किसी के लम्स के मुंतज़िर हैं
देहाकर्षण के परे भी
एक आकर्षण होता है
जहां भौतिक सुख के बाद का
एक दर्पण होता है
नशवरता से परे
अनंत में समाहित
अमर समर्पण होता है
पर रहने दो
तुम ये…
Added by Sushil Sarna on November 20, 2017 at 1:30pm — 14 Comments
212 212 212 212
छोड़कर दर तेरा हम किधर जाएँगे
बिन तेरे आह भर-भर के मर जाएँगे
-
चाँद भी देख कर उनको शरमाएगा
मेरे महबूब जिस दम संवर…
Added by SALIM RAZA REWA on November 20, 2017 at 10:00am — 15 Comments
मन में आत्मा में आॅंखों में,
मीठी-मीठी बातों में,
चरित्र गिर रहा है,
मत गिरने दो।
स्नेह में ममत्व में भावनाओं में,
मूल्यों में सम्मान में दुआओं में,
हर क्षेत्र हर दिशाओं में,
चरित्र गिर रहा है,
मत गिरने दो।
वादों में इरादों पनाह में,
विश्वास में परवाह में,
वांछितों की चाह में,
चरित्र गिर रहा है,
मत गिरने दो।
आवाज में अंदाज में,
प्रजा में सरताज में,
कल में आज में,
हर रूप में हर राज में,
चरित्र गिर रहा…
Added by Manoj kumar shrivastava on November 19, 2017 at 9:30pm — 14 Comments
Added by Rahila on November 19, 2017 at 6:39pm — 6 Comments
मुक्त हृदय से आज करूँ मैं, सबका ही सत्कार,
माँ वीणा सद्ज्ञान मुझे दो, जग में करूँ प्रसार ||
माँ-बापू के सद्कर्मों से, आया माँ की गोद।
मिला छत्र छाया में उनके,जीवन का आमोद।।
किये बहत्तर वर्ष पार ये, बिना किसी अवसाद
स्वर्गलोक से मिलता मुझको,उनका आशीर्वाद।।
माँ-बापू से पाया मैंने,जीवन में संस्कार।
मिला सनातन धर्म रूप में, मुझको भारत वर्ष ।
ऋषि-मुनियों का देश यही है,इसका मुझको हर्ष ||
वन-उपवन में रोप सकूँ मै, कुछ सुन्दर से…
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 19, 2017 at 7:30am — 14 Comments
Added by santosh khirwadkar on November 18, 2017 at 11:30am — 13 Comments
*1222 1222 1222 122*
ज़माना फिर न जाने क्यों ख़फ़ा होने लगा है।
मुहब्बत भी निभाना अब सज़ा होने लगा है।।
कभी वादे किये जिसने कसम खाकर ख़ुदा की,
वही फिर अब न जाने क्यों ज़ुदा होने लगा है।।
वहाँ पर हाल कैसा है, वही बस जान पाया,
यहाँ पर ज़ख़्म, ज़ख़्मों की दवा होने लगा है।।
समझ बैठा था' तुमको मैं, मुहब्बत का समंदर,
गुमाँ मेरा यहाँ आकर, रफ़ा होने लगा है।।
मुहब्बत का हमेशा ही यही अंज़ाम होता,
शमा से…
ContinueAdded by प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप' on November 17, 2017 at 5:30pm — 14 Comments
(फाइलातुन -फ़इलातुन-फ़इलातुन-फेलुन )
जिन से आबाद हर इक गोशा है वीराने का |
नाज़ कब वो भी उठा पाते हैं दीवाने का |
इंतज़ारी में कटी उम्र नहीं इसका गम
रंज है आपका वादे से मुकर जाने का |
कमसे कम मेरे ख़यालों में ही आ जाया करो
वक़्त कब मिलता है तुम को मेरे घर आने का |
लाख तू मेरी वफ़ाओं को भुला दे दिल से
अज़्म मुहकम है मेरा प्यार तेरा पाने का |
कोई इक बूँद को तरसे कोई भर भर के पिए
खूब दस्तूर…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on November 17, 2017 at 11:00am — 24 Comments
2122 2122 2122 212
चांद का टुकड़ा है या कोई परी या हूर है
उसके चहरे पे चमकता हर घड़ी इक नूर है
-
हुस्न पर तो नाज़ उसको ख़ूब था पहले से ही …
Added by SALIM RAZA REWA on November 17, 2017 at 10:30am — 14 Comments
शंख बजे ज्यों ही ठण्डी के,
मौसम ने यूं पलट खाया,
शीतल हो उठा कण-कण धरती का,
कोहरे ने बिगुल बजाया!!
हीटर बने हैं भाग्य विधाता,
चाय और कॉफी की चुस्की बना जीवनदाता,
सुबह उठ के नहाने वक्त,
बेचैनी से जी घबराता!!
घर से बाहर निकलते ही,
शरीर थरथराने लगता,
लगता सूरज अासमां में आज,
नहीं निकलने का वजह ढूढ़ता!!
कोहरे के दस्तक के आतंक ने,
सुबह होते ही हड़कंप मचाया,
शंख बजे ज्यों ही ठण्डी के
मौसम ने यूं पलटा…
Added by Sushil Kumar Verma on November 17, 2017 at 10:00am — 4 Comments
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