ऑफिस से आकर सबसे पहले टीवी ऑन किया तो गलती से दूरदर्शन लग गयाI इसे देख कर लगा की देश अपनी रफ़्तार से प्रगति कर रहा हैI चारों और शांति हैI सब अपना अपना काम कर रहे हैI हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सब एकता की मिसाल दे रहे हैI और भारत दुनिया के अग्रसर देशो में शुमार होने जा रहा हैI लेकिन जैसे ही निजी न्यूज़ चेंनलो की और बढ़ा तो लगा, देश में साम्प्रदायक माहौल बिगड़ गया हैI चारो और हत्याए हो रही हैI हर जगह दंगे भड़क गए हैI चारो और धारा144 लगी हुई हैI सवर्ण दलितों को मार रहे हैI जगह जगह बलात्कार हो…
ContinueAdded by harikishan ojha on November 2, 2015 at 2:10pm — 7 Comments
वो कहते हैं तू कट्टर (पत्थर) है
बहर:-1222-1222-1222-1222
नहीं मिलती तबीयत तो ,वो कहते हैं तू पत्थर है
मगर जाना नही उसने, की कितना मन समंदर है
हुई हरकत बुरी हमसे ,बदलने की जो कोशिस की
तभी मालुम हुआ हमको, खिलाड़ी तो सितमगर है
सिला अपनी मुहब्बत का,लिखा पन्ने पे जब मैंने
खुदा भी रो पड़ा बोला, धरा का तू सिकंदर है
जो मुंसिफ घर गया उनके, उधारी में दिया लेने
चिरागां हंस के बोला तब,अँधेरा तेरे अंदर है
बताओ रास्ता मुझको…
Added by amod shrivastav (bindouri) on November 2, 2015 at 1:30pm — 11 Comments
नवेली बहू और बेटे के साथ आँगन में मेहमान जमे थे I तभी जोर जोर से तालियाँ और मर्दानी आवाजों में गाते , चार हिजड़े घर में आ गए I घबरा कर वो अन्दर आ गई I तालियों की आवाज़ चेतना में हथौड़े चला रही थी I
"बहू वो नेग लेने आये हैं I तू भी बाहर आ जा ,दूल्हे की अम्मा है तू " सास अन्दर आ गई थी I "क्या हुआ ? थक गई है ?रहने दे ,आराम कर " I
सास के बाहर जाते ही वो पलंग पर गिर गई Iआँखों से यादें बहकर चादर भिगोने लगीं Iपचास साल पहले उसके घर भी आये थे ये ,तालियाँ बजाते नेग लेने नहीं , छोटे…
ContinueAdded by pratibha pande on November 2, 2015 at 1:00pm — 9 Comments
221—2122—221--2122 |
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संसार हो गया है, अब अंगहीन जैसे |
सब लोग सोचते है, केवल मशीन जैसे |
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ये जात ही जुदा है, बस नाम ‘लोकसेवक’… |
Added by मिथिलेश वामनकर on November 1, 2015 at 11:00pm — 14 Comments
Added by Manan Kumar singh on November 1, 2015 at 10:00pm — 11 Comments
Added by Janki wahie on November 1, 2015 at 6:40pm — 13 Comments
221 2121 1221 212
उनके खजाने जैसे ही वोटों से भर गये नकली लगे हुए वो मुखौटे उतर गये
आकाश में उड़े न उड़े फिक्र क्या उन्हें ,जाते हुए गरीब के वो पर कुतर गए … |
Added by rajesh kumari on November 1, 2015 at 6:30pm — 15 Comments
लकीरें खींच कर सब लोग,
मुझसे पूछते हैं जब,
असम के हो ,या जम्मू के,
या राजस्थान के हो तुम ,
मैं कहता हूँ, वहाँ का हूँ,
जहाँ की, सोना है माटी,
जहाँ सौहार्द का मेला,
जहाँ की प्रेम परिपाटी ,
वो कहते हैं…
ContinueAdded by Ajay Kumar Sharma on November 1, 2015 at 3:54pm — 2 Comments
Added by amod shrivastav (bindouri) on November 1, 2015 at 2:57pm — 6 Comments
Added by दिनेश कुमार on November 1, 2015 at 2:55pm — 4 Comments
Added by amod shrivastav (bindouri) on November 1, 2015 at 11:37am — 9 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 1, 2015 at 10:46am — 10 Comments
Added by MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी) on November 1, 2015 at 8:37am — 6 Comments
"क्या मम्मी आप भी जरा-जरा सी बातों पर तुनक पड़ती हो,पूरा आसमान सिर पर उठा लेती हो.पापा के दोस्तों के बीच में ही तो थीं आप वे लोग कोई जानवर तो नहीं,हँसी-मजाक ही तो किया चीर हरण तो नहीं.."सुनकर खून उतर आया था उसकी आँखों में,अपनी ही लाठी,अपने पर वार,तिलमिलाते हुए पलकें बंद कर ली तो दर्द आंसू बन बह निकला.वह सोचने लगी,
'उम्र की पहली फसल बाबा की अँगुलियों में अटक गई,सतरंगी सपने उड़े भी न थे कि उम्र की दूसरी फसल बिन हवा-पानी घूँघट में उजड़ गई और तीसरी को तो…
ContinueAdded by asha jugran on October 31, 2015 at 11:30pm — 17 Comments
साफ़ नीला आसमान
सफेद रूई सा हल्का
बिलकुल हल्का ,
हल्का वाला सफेद बादल
कभी बहुत भारी सा हो जाता है
वक्त रेशम सी ,
रेशम सी मुलायम वक्त
फिसलती हुई ,सरकती हुई
रेशमी सा एहसास देती हुई गुजर जाती है
वक्त के वजूद में
जाने क्यों पहिए होते है
जो दिखाई नहीं देते पर ब्रेक नहीं होते है
शायद ब्रेक भी रहें हो कभी लेकिन
आजकल वक्त नहीं रूकता
यहाँ बाजार में बहुत भीड़ है
यह भीड़ कभी खत्म नहीं…
ContinueAdded by kanta roy on October 31, 2015 at 10:09am — 6 Comments
जब थी उठी बरसात से,
पहले पहल भीनी महक,
था मन तरंगित हो उठा,
सुन पक्षियों की चह चहक,
गुमशुदा, अब बाग से,
क्यों कली कोमल हो गयी।
बीते पलों को याद कर,
आँख, बोझल हो गयी।
पत्थरों की शगल में,
सड़क सौतन क्या…
ContinueAdded by Ajay Kumar Sharma on October 30, 2015 at 7:04pm — 3 Comments
२२१ १२२२ २२१ १२२२
कितने ही यहाँ जिनके घर अपने नहीं होते
क्या होता खुदा जग में गर अपने नहीं होते
हर जुल्म सहा उसने लेकिन न कहा कुछ भी
पाले हुए पंछी के पर अपने नहीं होते
था जंगली वो हाथी देता ही कुचल हमको
गर पास धनुष अपना शर अपने नहीं होते
बिगड़े न अगर होते बेटे तो यकीनन ही
रातों में भटकते क्यूँ घर अपने नहीं होते
चोरी से कहाँ बचते चोरों से बचाते क्या
मजबूत घरों के गर दर अपने नहीं…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on October 30, 2015 at 4:36pm — 7 Comments
ओढ़नी ओढ़ कर मैं पिया प्रेम की
प्रार्थना कर रही, चाँद वरदान दे
मन महकता रहे प्रीत की गंध से
दो हृदय एक हों प्रेम के बंध से
प्रीत अक्षय सदा भाग्य अनुपम मिले
जिस्म दो हैं मगर एक ही जान दे...
ओढ़नी ओढ़ कर...
मैं पिया के हृदय में सदा ही रहूँ
वो ही सागर मेरे, मैं नदी सी बहूँ
चाँद, हर इक नज़र से बचाना उन्हें
दीर्घ आयु सदा मान-सम्मान दे
ओढ़नी ओढ़ कर...
मेंहदी हाथ में रच महकती रहे
और लाली…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on October 30, 2015 at 2:30pm — 18 Comments
रात के तीसरे पहर में
खिड़की पर यादें लिए बैठा हूँ
बारिश की बुँदे
तेरी आँसुओ से लगते है
दिल में कई अरमान से जगते है
गलियों में भागते हुए
एक झलक देखी है ख्वाबों की
कई रतजगा किये, कई दिन बीते खाली सा
कड़ी धूप में नंगे पैर जलाये है
मेरे संग आज भी तेरे साये है
एक रंग चुना है आँखों ने
एक गंध बसी है साँसों में
अज़ब सा नशा है
नज़रे भागती है हरदम
ज़ुल्फों पर चमकती है शबनम
पानी की टंकी पर बैठ…
Added by राकेश on October 30, 2015 at 2:00pm — No Comments
हृदय को विक्षिप्त करते,
शूल हैं, दंश हैं कुछ,
घावों को कुरेदते,
बीते पलों के अंश हैं कुछ।
अतीत की स्मृति भला,
मस्तिष्क से हो दूर कैसे,
कसक भी है, ठेस भी,
चुभन है भरपूर ऐसे,
वेदनाएं मिट रही हैं शनैः शनैः,
अभी भी पल…
ContinueAdded by Ajay Kumar Sharma on October 30, 2015 at 8:09am — No Comments
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