आदरणीय कलाम साहब को समर्पित
सरल, सादगी की वह मूरत,
ऐसा पावन दूत हुआ,
भारत ही क्या ,उसकी छवि से,
जग सारा अभिभूत हुआ,
आकाश, नाग, पृथ्वी, त्रिशूल से,
दाता पैने तीरों का,
भारत को समृद्ध किया और
जीवन जिया फकीरों सा ।
जिसकी …
ContinueAdded by Ajay Kumar Sharma on October 27, 2015 at 11:30pm — 2 Comments
2122 2122 2122 212
कल्पना का पथ टटोलें कुछ समय की आह सुन
इस तरह निभ जाये शायद अपनी चाहत अपनी धुन
उनकी यादों की कोई सीमा कोई मंज़िल भी है
मुड़ हकीकी से मजाज़ी या जगत की पीर बुन
बेगुनाही का मज़ा इस बात से दुगना हुआ
मेरे कातिल ने कहा है खुद सजा की राह चुन
एक मिसरा उनपे भी हो जिनसे होती है ग़ज़ल
फाइलातुन, फाइलातुन ,फाइलातुन, फाइलुन
प्रेम की इस व्यंजना में इक अमिट अनुराग है
वो न मेरा नाम लेती है कहती है बस मेरे…
Added by मनोज अहसास on October 27, 2015 at 2:00pm — 18 Comments
Added by amod shrivastav (bindouri) on October 27, 2015 at 8:30am — 9 Comments
अरकान- 212 212 212 212
दर्द सीने में अक्सर छुपाती है माँ|
तब कहीं जाकर फिर मुस्कुराती है माँ|
ख़ुद न सोने की चिंता वो करती मगर,
लोरियां गा के हमको सुलाती है माँ|
रूठ जाते हैं हम जो कहीं माँ से तो,
नाज-नखरे हमारे उठाती है माँ|
लाख काँटे हों जीवन में उसके मगर,
फूल बच्चों पे अपनी लुटाती है माँ|
माँ क्या होती है पूछो यतीमों से तुम,
रात-दिन उनके सपनों में आती है…
ContinueAdded by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on October 26, 2015 at 10:30pm — 7 Comments
"सुगना, क्या यह सच है कि दशहरे की रात को तुमने चौधरी जगन्नाथ के तीनों बेटों की खलिहान में सोते हुए कुल्हाडी से हत्या की थी"!
"बिलकुल सच है ज़ज़ साब,मैंने ही मारा उन तीनों राक्षसों को , रावण के साथ उनका मरना भी ज़रूरी था, "!
"तुम्हें अपनी सफ़ाई में कुछ कहना है"!
"ज़ज़ साब, उन तीनों दरिंदों ने उसी खलिहान में मुझे भूसा लेने बुलाया था और भरी दोपहरी में मेरी इज़्ज़त तार तार कर दी!मेरा बापू चौधरी के पास शिकायत करने गया तो चौधरी बोला कि सुगना के बापू जब पेड पर फ़ल लदे होते हैं तो…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 26, 2015 at 5:00pm — 9 Comments
अंबर से मेघ नहीं बरसे
अब आँखों से ही बरसेंगे
शोक है
मनी नहीं खुशियाँ
गाँव में इस बार
दशहरा पर
असमय गर्भ पात हुआ है
गिरा है गर्भ
धान्य का धरा पर
कृषक के समक्ष
संकट विशाल है
पड़ा फिर से अकाल है
खाने के एक निवाले को
रमुआ के बच्चे तरसेंगे
व्यवस्था बहुत बीमार है
अकाल सरकारी त्योहार है
कमाने का खूब है
अवसर
बटेगी राहत की रेवड़ी
खा जाएँगे नेता,…
ContinueAdded by Neeraj Neer on October 26, 2015 at 2:51pm — 11 Comments
मूक अंतर्वेदना स्वर को तरसती रह गयी
आँख सागर आँसुओं का सोख पीड़ा सह गयी
मानकर जीवन तपस्या अनवरत की साधना
यज्ञ की वेदी समझ आहूत की हर चाहना
मन हिमालय सा अडिग दावा निरा ये झूठ था
उफ़! प्रलय में ज़िंदगी तिनके सरीखी बह गयी
मूक अंतर्वेदना....
खोज कस्तूरी निकाली रेडियम की गंध में
स्वप्न का आकाश भी ढूँढा कँटीले बंध में
दिख रही थी ठोस अपने पाँव के नीचे ज़मीं
राख की ढेरी मगर थी भरभरा कर ढह गयी
मूक…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on October 26, 2015 at 9:30am — 11 Comments
[आधार छंद : 'विधाता']
1222 1222 1222 1222
कभी अपने मुसीबत में, ज़रा भी काम आये हैं,
जिन्हें समझा नहीं था दोस्त वे नज़दीक लाये हैं।
जिसे माना, जिसे पूजा, उसे घर से भगा कर के,
बुढ़ापे में, जताकर स्वार्थ, ममता को भुलाये हैं।
तुम्हारे पास दिल रख तो दिया गिरवी भरोसे पर,
पता मुझको चला तुमने, हज़ारों दिल दुखाये हैं।
कभी वे फोन पर बातें करेंगी, स्वर बदलकर के,
कभी वे नेट पर चेटिंग, झिलाकर के बुलाये हैं।
न जाने…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 26, 2015 at 8:30am — 10 Comments
Added by Rahila on October 26, 2015 at 7:12am — 24 Comments
Added by Samar kabeer on October 25, 2015 at 10:53pm — 17 Comments
Added by amod shrivastav (bindouri) on October 25, 2015 at 9:42pm — 8 Comments
जीवन की आपाधापी में,
दिन बचपन के भूल गये,
परिवर्तित हो गयी हवायें,
मौसम भी प्रतिकूल भये।
वो शाम सुहानी,मित्रों के दल,
और किनारा नदियों का,
कूद, कबड्डी,गुल्ली डंडा,
झर झर झरना सदियों का,
खेत और खलिहान की रंगत,
लदी डाल में अमियों का,
मानचित्र…
ContinueAdded by Ajay Kumar Sharma on October 25, 2015 at 3:00pm — 8 Comments
वो ममता मयी छुवन हो
जो माँ की कोख से निकलते ही मिली
या हो उसी गोद की जीवन दायनी हरारत
या
तुम्हारी उंगलियों को थामे ,
चलना सिखाते
पिता की मज़बूत, ज़िम्मेदार हथेली हो
या हो
जमाने की भाग दौड़ से दूर , निश्चिंत
कलुषहीन हृदय से
धमा चौकड़ी मचाते , गिरते गिराते , खेलते कूदते
बच्चे
या फिर स्कूलों कालेजों की किशोरा वस्था की निर्दोष मौज मस्तियाँ
या हो वो जवानी में पारिवारिक , सामाजिक ज़िम्मेदारियों…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on October 25, 2015 at 1:48pm — 14 Comments
बहुत से फंदे है
उनके पास
छोटे-बड़े नागपाश
इन फंदों में
नहीं फंसती उनकी गर्दन
जो इसे हाथ में लेकर
मौज में घुमाते है
लहराते है
किसी गरीब को देखकर
फुंकारता है यह
काढता है फन
किसी प्रतिशोध भरे सर्प सा
लिपटता है यह फंदा
अक्सर किसी निरीह के
गले में कसता है
किसी विषधर के मानिंद
और चटका देता है
गले की हड्डियाँ
किसी जल्लाद की भांति …
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 25, 2015 at 12:26pm — 14 Comments
गुरु दक्षिणा – (लघुकथा ) -
विश्व विद्यालय के प्राचार्य डॉ टीकम सिंह शिक्षा और साहित्य जगत की जानी मानी हस्ती थे!सुगंधा का सपना था कि वह डॉ सिंह को अपनी पी. एच. डी. का गाइड बनाये!डॉ सिंह एक सनकी और सिरफ़िरे किस्म के इंसान थे!वह अविवाहित थे!वह महिलाओं को अपने अधीन लेना पसंद नहीं करते थे!
लेकिन सुगंधा भी ज़िद्दी स्वभाव की थी!एक दिन पहुंच गयी डॉ सिंह के बंगले पर!
"सर मुझे आपके अधीन पी. एच ड़ी. करनी है"!
"मैं महिलाओं को अपना शिष्य नहीं…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 25, 2015 at 11:43am — 10 Comments
२२१ २१२१ १२२१ २१२
बलवाइयों के होंसले जाकर समेट लूँ
मासूम गर्दनों पे हैं खंजर समेट लूँ
आये न बददुआ कभी मेरी जुबान पे
गलती से आ गई तो भी अन्दर समेट लूँ
उम्मीद से बनाया हैं बच्चे ने रेत का
लहरों वहीँ रुको मैं जरा घर समेट लूँ
परवाज आज भर रहा पाखी नई नई
आँखों की चिलमनों में ये मंजर समेट लूँ
जिन्दा रहे यकीन मुहब्बत के नाम पर
फेंके हैं दोस्तों ने जो पत्थर समेट…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 25, 2015 at 10:30am — 18 Comments
Added by Rahila on October 24, 2015 at 9:49pm — 14 Comments
"चाचू, अपने पास तो ट्रैक्टर है फ़िर अपने खेत में ये बुधिया,उसकी घरवाली और छोकरी, बिना बैल के इस तरह हल क्यों चला रहे हैं"!
"मुन्ना बाबू,इनको बडे दादू ने सज़ा दी है"!
"सज़ा किस बात की"!
"इन लोगों ने हमारे ट्यूबवैल के पानी की नाली में हाथ मुंह धोया और पानी पिया, तो पानी अशुद्ध हो गया"!
"वह पानी तो खेत में जा रहा था ना"!
"ये नीच जाति के लोग हैं, यह सब मना है इनके लिये, ये हमारी कोई चीज़ को नहीं छू सकते"!
“पर चाचू ये दौनों औरतें तो पहले हमारे घर के सारे काम…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 24, 2015 at 5:30pm — 8 Comments
प्रेम दीवानी होती है.....
सबको अपनी उम्र निभानी होती है.
खुद अपनी पहचान बनानी होती है.
मत उलझो आडम्बर में यदि हो इंसा,
इंसा की खुद आत्म कहानी होती है.
धर्म कर्म आहार भुनाने में उसको,
सपनों की दीवार गिरानी होती है.
मत उगलो तुम जह्र आग तूफान यहां,
जीवन पानीदार सयानी होती है.
बाल न बांका तुम मेरा कर पाओगे,
सत्य-खुदा से आंख मिलानी होती है.
मत रोना संसार रुलाता है…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 24, 2015 at 3:00pm — 5 Comments
महकती ज़िन्दगी हो फिर शिकायत कौन करता है
बिना कारण ही मरने की हिमाकत कौन करता है
तुम्हारी आँखों में सूखे हुए कुछ फूल देखे थे
तड़पकर माज़ी से इतनी मुहब्बत कौन करता है
बड़े काबिल हो तुम लेकिन तुम्हारी जेब है खाली,
भला ऐसों से भी यारा मुहब्बत कौन करता है|
कड़कती धूप भी सहते कभी बरसात ठंडी भी,
खुदा ऐसों पे तेरे बिन इनायत कौन करता है|
न पूजेगा कोई तुमको खुदा गर सामने आया ,
बिना डर और लालच के इवादत कौन…
ContinueAdded by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on October 24, 2015 at 1:30pm — 6 Comments
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