"पापा ,आपको अब हमारे यहाँ दो महीने हो गए हैं, अब छोटू का नंबर है !आपकी टिकट करवा दी है !"
"ठीक है ,बेटा !"
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Added by Neeles Sharma on October 14, 2014 at 7:00am — 13 Comments
1.
नफरतों का सिलसिला चारों तरफ है
फिर चुनावों की हवा चारों तरफ है
दौर फिर हैवानियत का आ गया लो
आदमीयत गुमशुदा चारों तरफ है
है मुकर्रर दिन क़यामत का सुना था
हाँ इसी की इब्तदा चारों तरफ है
छिड़ गई है जंग फिर से भाइयों में
इक महाभारत नया चारों तरफ है
दानवों ने शोर कितना फिर मचाया
मौनधारी देवता चारों तरफ है
ज़िंदगी से भागकर जायें कहाँ हम
मौत से बढ़कर कज़ा चारों तरफ…
ContinueAdded by khursheed khairadi on October 13, 2014 at 10:30pm — 7 Comments
उसका मानना था उसमे और बांकी की औरतो में कोई खास फरक नहीं है बल्कि उसकी स्थिति उनसे कहीं बेहतर है । उसके पास कम से कम चॉइस है किसके साथ जाना है किसके साथ नहीं वो उसका चुनाव खुद करती है लेकिन उसके जैसो के अलावा के पास कोई चॉइस नहीं है और उनको ये सब करके कोई खास ख़ुशी नहीं मिलती, मज़बूरी में करती है । लेकिन जिस काम को करके कोई ख़ुशी नहीं मिलती उसमे आत्मा मर जाती है रह जाता है सिर्फ शारीर; पैसा पॉवर और प्रमोशन ऐसी बहुत सी जिजिबिषा है जिसके लिए उन्हें अपनी आत्मा को मारना पड़ता है और जिंदगी भर ढोते है…
ContinueAdded by priyanka om prakash on October 13, 2014 at 7:00pm — 2 Comments
Added by seemahari sharma on October 13, 2014 at 5:34pm — 14 Comments
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 13, 2014 at 3:30pm — 25 Comments
ज़िंदगी की आखिरी करामात हो जाए ,
चलो आज मौत से मुलाकात हो जाए ।
इस उम्मीद में निकला हूँ, मिल जाए कोई इंसां ,
बरसों चुप रहा, अब किसी से बात हो जाए ।
बरसात आ गई है, कुछ बीज मैं भी बो दूँ ,
शायद हरी-भरी फिर ये क़ायनात हो जाए ।
अक्सर ही पूछता हूँ, मैं ये सवाल खुद से ,
क्या करूँ कुछ ऐसा , कि वो खुशमिज़ाज़ हो जाये।
उम्र से ही पहले दिखने लगा हूँ बूढ़ा ,
चलो सफ़ेद बालों में, अब ख़िज़ाब हो जाए ।
पीठ…
ContinueAdded by संदेश नायक 'स्वर्ण' on October 13, 2014 at 1:30pm — No Comments
प्रथम प्यार की आस में
मैने किया प्रयास
सजनी एट्टीट्यूड में
तनिक न डाले घास
पोथी पढ़कर प्यार की
तनिक न असर बुझाय
जब-जब भी कोशिश किया
चप्पल-जूताखाय
हर महफिल हर रंग में
चेहरा जिसका भाय
उसने राखी बाँध के
भाई लिया बनाय
घरवालों की मान के
डाल दिया जयमाल
दो दो मेरे सालियाँ
पकड़ के खीचें गाल
मारा-मारा फिर रहा
जबसे हुआ विवाह
बीबी ऐसी मिल गई
रहती…
Added by Pawan Kumar on October 13, 2014 at 12:00pm — 8 Comments
एक ओर हैं ,
जनरल की बोगीं।
जिसमें बैठते हैं...
दमघोंटू माहौल में जीने की कला सीखे,
कुछ योगी,
और सरकारी बीमारियों से पीड़ित,
असंख्य रोगी।
दूसरी ओर हैं ,
उन्हीं बोगी से लगी हुईं कुछ ख़ास बोगीं।
जिनमें बैठते हैं...
भोगों से घिरे हुए,
भोग भोगते भोगी,,
और ग़रीबी से अछूते,
कई निरोगी।
कितना अनोखा,
यहाँ सुख-दुख का तालमेल है,,
जनता की सुविधा के लिए बनाई गई,
ये सरकार…
ContinueAdded by संदेश नायक 'स्वर्ण' on October 13, 2014 at 10:00am — 6 Comments
पूरे मोहल्ले में केवल बब्लू के घर की ही पक्की छत थी, बाकि सारे मकान कच्चे थे. बब्लू को बचपन से ही पतंगबाजी का बड़ा शौक था. हमेशा छत पर चढ़कर पतंग उड़ाकर वो मोहल्ले के लोंगो, जो कि अपने आँगन से पतंगबाजी करते थे, सभी की पतंग काट दिया करता था. अभी चार माह पहले ही पतंग उड़ाते हुए ,छत से बुरी तरह से नीचे जमीन पर गिर जाने के बाद भी बब्लू का पतंग उड़ाने का शौक तो नही गया, किन्तु अब छत की हद को बार-बार ध्यान में रखता है, और एक दिन में कई पतंगें कटवा देता…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on October 13, 2014 at 8:00am — 20 Comments
मेरा सूरज है तू...!
मंदिरों में दिये सजाए जाते
नित्य सुबह और शाम!
जला दी जाती हैं बातियॉं
ज्ञान की राह में,
रोशनी की आस में,
बेटों की कतार में,
चिरागों की मृगतृष्णा,
ताख को काला कर देती है।
बातियां,
सारी उम्र जल कर
रोशनी देती,
खुशियां बांटती।
दीपक,
पल-पल तेल सोखता
चतुर महाजन सा
ब्याज पहले और मूलधन बाद में
स्वयं के होने का एहसास कराता।
बातियां भ्रूण सी,…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 12, 2014 at 5:30pm — 2 Comments
Added by Dr. Rakesh Joshi on October 12, 2014 at 5:27pm — 7 Comments
बहुत दिनों की खोजबीन के बाद परा -वैज्ञानिक उस औरत में घुसने वाले भूत पर सिर्फ इतना निष्कर्ष निकाल पाये , कि जिस रात इसका पति इसे बेहिसाब मारता है ,अगली सुबह इस औरत में वो भूत आता है !
.
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Added by Neeles Sharma on October 12, 2014 at 3:00pm — 6 Comments
हुस्न को दर्पण का ...
प्रीत को समर्पण का ..
विरह को क्रंदन का ....
इंतज़ार रहता है//
भोर को अभिनन्दन का ...
बाहों को बंधन का ...
भाल को चन्दन का ...
इंतज़ार रहता है//
धड़कन को चाहत का ...
यौवन को आहट का ...
घायल को राहत का ...
इंतज़ार रहता है//.
तिमिर को प्रात का ...
वृद्ध को साथ का...
चाँद को रात का ...
इंतज़ार रहता है//
आस को विशवास का…
ContinueAdded by Sushil Sarna on October 12, 2014 at 2:53pm — 6 Comments
"बाबू जी, दीये ले लो, बहुत सस्ते हैं, इतना बड़ा त्यौहार है ! "
आठ साल की फटी हुई फ्रॉक ने एक रेशम के कुर्ते को पीछे से खींचते हुए पूछा !
"अच्छा, बड़ा त्यौहार है ! पता भी है क्यों मनाते हैं बड़ा त्यौहार ?"
" हाँ, भगवान रामचन्दर ने बहुत सारे दीये ख़रीदे थे !"
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Added by Neeles Sharma on October 12, 2014 at 2:39pm — 11 Comments
नौ महीने तक सींच रक्त से, जिसको कोख में पाला,
आज उसी बेटे ने माँ को, अपने घर से निकाला।
जर्जर होती देह लिए, माँ ने बेटे को निहारा,
मानो उसके जीने का अब, छूट रहा हो सहारा॥
भूल गया गीली रातें, जब रोता था चिल्लाता था,
हाथ पैर निष्क्रिय थे तेरे, पड़े-पड़े झल्लाता था।
तब त्याग नींद! तेरी जगह लेट, सूखे में तुझे सुलाती थी,
अपने सीने से लिपटा, बाँहों में तुझे झुलाती थी॥
भूल गया वो सूखे दिन, जब गर्मी से घबराता था,
सन्नाटे की चादर ओढ़े,…
Added by संदेश नायक 'स्वर्ण' on October 12, 2014 at 2:33pm — 8 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on October 12, 2014 at 12:32pm — 5 Comments
१-कहा था मैंने
क़र्ज़ न ले उससे
मुफलिशी बेशर्म है
कपडे उतार लेती है
२-वो फिर से चला ढूँढने
दो रोटी
बजबजाते कूड़े के ढेर में
३-नदी के किनारे वाला पेड़
आज प्यास से मर गया
४-मैं मोम था
शायद इसीलिए
धूप में बैठा गयीं मुझे
५-मैं तुमसे हाँथ जरूर मिलाऊंगा
मेरा कद मुकम्मल हो जाने दो
६-मुझे पाने की अजीब हवस है उन्हें
रेत में गिरा आँसू हूँ
फिर भी ढूँढ़ रही हैं
७-तुझे भी…
Added by ram shiromani pathak on October 12, 2014 at 11:59am — 6 Comments
अहसास
मधुप की ट्रेन खुल चुकी था। छुट्टियों के बाद वह वापस नौकरी पर जा रहा था। माधवी से मोबाइल पर बात होते –होते रह गयी, माधवी का गला जैसे रुँध गया हो। कुछ देर की चुप्पी के बाद वह ‘ठीक है ....’ ही कह पायी थी।मधुप भी अतीत की स्मृतियों में खोने लगे, ‘कितना खयाल रखती है माधवी उसका तथा परिवार के सभी लोगों का ? वह तो छोटी –छोटी बातों पर भी चिढ़ जाता है। तब माधवी कितने शांत लहजे में कहती है कि भला ऐसा क्या हो जाता है उन्हें कभी –कभी? बच्चों की तकलीफ जरा भी बर्दाश्त नहीं आपको।…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on October 12, 2014 at 10:30am — 2 Comments
तलाश एक कथा की
तलाश,
फिर-फिर तलाश,
हर पल,हर पहर,
तलाशा है तुझे,
इस उम्मीद के साथ कि
तू मिल जायेगी मुझे,
कभी-न-कभी,कहीं-न-कहीं।
सब कुछ तो साथ लिए चलता रहा,
भाव,अभिव्यक्ति,
कामना तेरे मिल जाने की,
उमंगें हसरतें खिल जाने की,
शब्दों के जिंदा रहने के,
दूरस्थता-बोध सहने के,
अहसास अभी जिंदा हैं,
रहेंगे भी तबतक शायद
जबतक तू अवतरित न हो
शब्दों का बन…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on October 12, 2014 at 10:30am — No Comments
1212 1122 1212 112/22
सफर ये राहगुज़र और ये मुकाम नया
हयात देती है अक्सर मुझे यूँ काम नया
अगर नसीब से बच पाये तो गनीमत है
यहाँ हर एक कदम पर है एक दाम नया (दाम=जाल)
न जी सके अभी तक चलिये कोई बात नहीं
करें अब के कोई जीने का एहतमाम नया
ये ज़िन्दगी हो फ़ना रोज़ और रोज़ शुरू
ग़ुरूबे शम्स हो तो चाँद निकले शाम नया
बहुत हुये गमे दौराँ की…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on October 12, 2014 at 10:22am — 12 Comments
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