For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,116)

ये परेशानियाँ तो आनी-जानी है

ये परेशानियाँ तो आनी-जानी है

मधुमेह तो कभी दिल की बीमारी है

 

गम है तो खुशी की वजहें भी हैं

रोते गुज़रे तो क्या जिंदगानी है

 

दिल के ज़ख़्मों से यूँ न घबराओ

बीते वक़्त की ये हसीं निशानी है

 

वक़्त बे वक़्त कुछ नहीं होता

जो मिला सब खुदा की मेहरबानी है

 

हर काम कल पर न छोड़ा करो

बर्बादिये वक़्त भी एक बीमारी है

 

गम की वजहें समझ नहीं आती

यही तो हमारी तुम्हारी कहानी है 

Added by नादिर ख़ान on October 4, 2012 at 6:32pm — 4 Comments

शब्द

आज फिर बदली सी हवा है, 
उदास मन फिर आज अकेला है.


सावन की रिमझिम और ये तन्हाई,
आज रुसवाई को उनका जमाना हुआ है.

स्याह रातो में पसरा ये सन्नाटा ,
ये चाँद के रूठ जाने की सजा है.

राज शब्दों में ढूंढता है जिंदगी का मतलब.
ये खुद को बहलाने की इक दवा है .

Added by RAJESH BHARDWAJ on October 4, 2012 at 6:00pm — 3 Comments

कहानी अपनी अपनी सोच

 
मैं जैसे ही अपने एक पुराने मित्र के घर पहुंचा तो उसकी दयनीय हालत देखकर दंग रह गया.....ऐसा लग रहा था की बरसों का मरीज़ हो  अपने कालेज के समय में हमेशा हीरो जैसे टिप टॉप  रहनें वाला मेरा मित्र आज फटे हाल सी जिंदगी बसर कर रहा था I जगह जगह से कटे,फटे मैले कुचैले कपड़े.....और तो और बनियान में भी इतने छेद थे…
Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on October 4, 2012 at 2:30pm — 4 Comments

फूल शहरों के

गगनचुम्बी अट्टालिकाओं के

कटिंगदार झरोखों से लटक कर

धुंआयुक्त वातावरण में बीमार, खाँसते

अपने चेहरे की धूल को

कृत्रिम फुहारों से धोने की कोशिश में

बड़े दयनीय लगते हैं

छोटे से पात्र में कैद जड़ों के सहारे…

Continue

Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on October 4, 2012 at 10:57am — 6 Comments

वो कॉलेज की दुनिया

वो कॉलेज की दुनिया

दोस्तों का फ़साना

बड़ा याद आता है

कॉलेज का जमाना .........

सब दोस्तों का इंतजार करना

थोडा लेट होने पर भी

कितना झगड़ना

सुबह- सुबह पहली क्लास में

सबसे आगे पहली बेंच पर बैठना

कितना याद आता है

लास्ट लेक्चर में थ्योरी सुनते- सुनते

चुपके से सो जाना .........

वो कॉलेज की दुनिया

दोस्तों का फ़साना ..............



वो मोटी-मोटी सी किताबे

अकाउन्ट्स की भाषा

आँखों में पलते बड़े बड़े सपने

मगर फिर…

Continue

Added by Sonam Saini on October 4, 2012 at 10:44am — 10 Comments

मुट्ठी भर रेत

ये जीवन मानों -
मुट्ठी भर रेत
झरती हैं खुशियाँ
झरते हैं सपने
इक पल
 हँसना तो
दूजे पल
क्लेश
ये....................

 रेतघड़ी समय की
चलती ही रहती
लम्हों की पूंजी
हाथ से फिसलती
बस स्मृतियों के
रह जाते अवशेष
ये....................

किसी से हो मिलना
किसी से बिछड़ना
जग के मेले में
बंजारे सा फिरना
दुनिया आनी जानी -
 सत्य यह अशेष
ये .......................




Added by Vinita Shukla on October 4, 2012 at 10:31am — 8 Comments

हाल अच्छा बताना पड़ेगा

हाल कैसा भी हो, पर जहाँ को,

हाल अच्छा बताना पड़ेगा |

अश्क पलकों पे ठहरे जो आकर,

हैं ख़ुशी के, बताना पड़ेगा ||



दिल है तोडा किसी बेवफा ने,

यह न कहना, ज़माना हसेगा |

है यही वक़्त का अब तकाज़ा,

दर्द, दिल में छुपाना पड़ेगा ||



साथ जी लेंगे, पर न मरेंगे,

बात सच्ची है, मत भूल जाना |

झूठ को झूठ कहना पड़ेगा,

सच को सच ही बताना पड़ेगा ||



फिर मिलेंगे ये वादा न करना,

ज़िन्दगी का भरोसा नहीं है |

वरना दोज़ख नुमाँ इस ज़मीं पर,…

Continue

Added by Shashi Mehra on October 4, 2012 at 8:30am — 2 Comments

हम स्वछंद हैं कवि .....

हम स्वछंद हैं कवि .....

हमको नहीं छंद अलंकार का है ज्ञान ,

हम स्वछंद हैं कवि बस भाव हैं प्रधान .



आचार्य गिन मात्रा कहते लिखो निर्धन ,

लिखा अगर गरीब तो क्या हो जायेगा श्रीमान !



हालात जो देखे सीधे सीधे लिख दिए ,

पढ़कर ''वे'' बोले व्याकरण का कुछ तो रखते ध्यान .



कहते अलंकार से कविता का कर श्रृंगार ,

हम 'रबड़ के छल्ले ' देते न उनको कान .



है नहीं कविता में अपनी प्रतीक ,बिम्ब,गुण ,

जूनून है बस…

Continue

Added by shikha kaushik on October 4, 2012 at 2:30am — 6 Comments

कुंडलिया छंद

1....

शीतल मीठे नर्म से ,शब्दों को दो पाँव 

सद्भावों की ईंट से ,रचो प्रीत के गाँव 

रचो प्रीत के गाँव, फसल खुशियों की बोना 

नेह सुधा से सिक्त, रहे हर मन का कोना 

कंचन शुचिता धार ,अहम् का तज कर पीतल 

हरो ताप-संताप ,सलिल बन निर्मल शीतल ..

2.........…

Continue

Added by seema agrawal on October 4, 2012 at 2:30am — 4 Comments

बटवारा आसमान का......

आज डूबते हुए सूरज को एक बार फिर देखा,

लालिमा से भरा सूरज अलविदा कहता हुआ,

अब सूरज छुप जाएगा बस कुछ ही पलों में,

और आकाश में दिखने लगेगा चाँद वो सुंदर सा,



कभी कभी ये भ्रम भी होने लगता है,

की क्या चाँद और सूरज अलग अलग हैं,

या सूरज ही रूप रंग बदल लौट आता है,

और दो किरदार निभाता है अलग अलग तरह के,

जैसे फिल्मों में एक ही आदमी दो हो जाता है एक होते हुए भी,

आखिर क्यों नहीं ये दोनों एक साथ दिखते हैं,

ये सोचते सोचते ही नज़र खोजने लगी आकाश…

Continue

Added by पियूष कुमार पंत on October 3, 2012 at 9:30pm — 2 Comments

ये हादसे -- - - - -

 
ये हादसे 
मीडिया की 
टी आर पी के वास्ते 
लोगो के मनोरंजन 
के रास्ते
बतलाते 
मुनीम और गुमास्ते |
ये…
Continue

Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 3, 2012 at 5:57pm — 6 Comments

जिसे भी आइना दिखाया है

वो मेरे सामने न आया है

जिसे भी आइना दिखाया है



मुसलसल चोट हर घडी खा के

सनम में ये निखार आया है



जिगर क्या तार तार करने को

ये किस्सा दर्द का सुनाया है



फरेबी बे-अदब चरागों ने…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 3, 2012 at 4:00pm — 1 Comment

अपनी प्रिया को छोड़ के

अपनी प्रिया को छोड़ के प्रीतम अगर गया |
नन्हा सा कैमरा कहीं चुपके से धर गया ||

आया हमारे मुल्क में व्यापार के लिए
सोने की चिड़िया लेके जाने किधर गया ||

रुपये की खनक गूंजती बाज़ार में अभी
डालर के सामने मगर चेहरा उतर गया ||

बनकर मसीहा गाँव में घूमे जो माफिया ,
दस्खत कराना आज उसका सबको अखर गया ।।

कोयले से आजकल हम दांतों को रगड़ते-
तपकर दुखों की आंच में कुछ तो निखर गया ।।

Added by रविकर on October 3, 2012 at 2:00pm — 2 Comments

अच्छा लगता है

"अच्छा लगता है" के तारतम्य में कुछ मुक्तक पेश हैं दोस्तों



कुछ लोगों को गंजे पर मुस्काना अच्छा लगता है

झड़ते अपने बालों को सहलाना अच्छा लगता है

इक दिन वो भी ऐसे ही हो जायेंगे हँसने लायक

लेकिन हँसते हँसते मन बहलाना अच्छा लगता है



टपरे पे जा सौ का नोट…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 3, 2012 at 11:23am — 4 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ३८ (मुद्दत हुई कि रात गुज़ारी है घर नहीं)

मुद्दत हुई कि रात गुज़ारी है घर नहीं

बच्चे सयाने हो गए मुझको खबर नहीं

 

वो प्यार क्या कि रूठना हँसना नहीं जहां

ऐसा भी क्या विसाल कि ज़ेरोज़बर नहीं

 

दरिया में डूबने गए दरिया सिमट गया

तेरे सताए फर्द की कोई गुज़र नहीं

 

उनके लिए दुआ करो उनका फरोग हो

जिनपे तुम्हारी बात का होता असर नहीं   

 

रहता हूँ मैं ज़मीन पे ऊँची है पर निगाह

रस्ते के खारोसंग पे मेरी नज़र नहीं

 

सबको खुदाका है दिया कोई न…

Continue

Added by राज़ नवादवी on October 3, 2012 at 9:59am — 3 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
शुद्ध मनस कर श्राद्ध करें

नतमस्तक हो 
श्रद्धानत हो 
निर्विकार हर भाव करें...
प्रश्नातीत हुए 
अपनों का 
शुद्ध मनस कर श्राद्ध करें l
.
स्थाई प्रतिक्रिया-
हीनता, ओढ़ 
अबोल जो बिम्ब हुए...
उनके ओजस 
की चादर, अदृश्य 
मगर, एहसास करें l
.
चेतन से
अवचेतन की
सीमा रेखाएं जुड़ती…
Continue

Added by Dr.Prachi Singh on October 3, 2012 at 9:30am — 16 Comments

कौन है वो बूढ़ी .....

आज चाँद दिखा आसमान में पूरा,

और वो बुढिया भी जो कात रही है,

सूत कई वर्षों से बैठी हुई तन्हा,

मैं हैरान हूँ, और परेशान भी,

क्या चाँद पर भी लोग हम जैसे ही रहते हैं,

क्या वहाँ भी बूढ़ों को यूं ही छोड़ दिया जाता है,

अकेला और तन्हा, विज्ञान कहता है कि,

कोई बुढ़िया नहीं रहती है चाँद पर,

पर मुझको तो मेरी माँ ने तो बचपन बताया था ,

सूत कातती उस बुढ़िया के बारे में,

वो चाँद मामा है हमारा हमने ये बचपन से सुना है,

तो…

Continue

Added by पियूष कुमार पंत on October 2, 2012 at 9:00pm — 7 Comments

सम्पूर्ण ओबीओ परिवार की ओर से आप सभी को शास्त्री/गाँधी जयन्ती की बधाई !

अमर 'शास्त्री'

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

छंद: कुकुभ

(प्रति पंक्ति ३० मात्रा, १६, १४ पर यति अंत में दो गुरु)  

'लाल बहादुर' लाल देश के, काम बड़े छोटी…

Continue

Added by Er. Ambarish Srivastava on October 2, 2012 at 4:00pm — 24 Comments

कृतज्ञ दुनिया इस दिन की .

एक की लाठी सत्य अहिंसा एक मूर्ति सादगी की,

दोनों ने ही अलख जगाई देश की खातिर मरने के .
जेल में जाते बापू बढ़कर सहते मार अहिंसा में ,
आखिर में आवाज़ बुलंद की कुछ करने या मरने की .
लाल बहादुर सेनानी थे गाँधी जी से थे प्रेरित ,
देश प्रेम में छोड़ के शिक्षा थामी डोर आज़ादी की .
सत्य अहिंसा की लाठी ले फिरंगियों को भगा दिया ,
बापू ने अपनी लाठी से नीव जमाई भारत की .
आज़ादी के लिए…
Continue

Added by shalini kaushik on October 2, 2012 at 2:39pm — 4 Comments

पुढील स्टेशन (लघु कथा)

तेज लोकल में मध्यम ध्वनि गूँजी, “पुढील स्टेशन अँधेरी”.

“यार ये पुढील स्टेशन का मतलब पुलिस स्टेशन है क्या”? देव ने अजय से पूछा.

अजय बोला, “पता नहीं यार. मैंने कभी इस ओर ध्यान ही नहीं दिया”.

तभी उनके बगल में खड़ा एक लड़का बोला, “तुम साला भैया लोग यहाँ बस तो जाता है, लेकिन यहाँ का लैंग्वेज सीखने में तुम्हारा नानी मरता है”.

“ए छोकरा ये बातें नेता लोग…

Continue

Added by SUMIT PRATAP SINGH on October 2, 2012 at 11:30am — 10 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज जी इस बह्र की ग़ज़लें बहुत नहीं पढ़ी हैं और लिख पाना तो दूर की कौड़ी है। बहुत ही अच्छी…"
5 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. धामी जी ग़ज़ल अच्छी लगी और रदीफ़ तो कमल है...."
5 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"वाह आ. नीलेश जी बहुत ही खूब ग़ज़ल हुई...."
5 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय धामी जी सादर नमन करते हुए कहना चाहता हूँ कि रीत तो कृष्ण ने ही चलायी है। प्रेमी या तो…"
6 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय अजय जी सर्वप्रथम देर से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।  मनुष्य द्वारा निर्मित, संसार…"
6 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
21 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
yesterday
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service