है करता कौन समाज ध्वस्त?
किसने माहौल बिगाड़ा है?
किसकी काली करतूतों से
यह देश धधकता सारा है?
चिल्लाते जो जनतन्त्र-तन्त्र
"जन" को ही बढ़कर मारा है
बरगला "अशिक्षित" लोगों को
शिक्षा से किया किनारा है
है अकरणीय कर्मों के वश
अब शहर सुलगता सारा है
विद्यालय की पवित्र धरण
बनती जा रही अखाड़ा है
विद्वेष भरें अपनों में ही
जनता की दौलत नष्ट करें
लेते बापू का नाम मगर,
हिंसा का बजे नगाड़ा है
वह नहीं…
Added by Usha Awasthi on February 26, 2020 at 8:30am — 2 Comments
जिस रास्ते जाना नहीं
हर राही से उस रास्ते के बारे में पूछता जाता हूँ।
मैं अपनी अहमियत ऐसे ही बढ़ाता हूँ।
जिस घर का स्थापत्य पसंद नहीं
उस घर के दरवाज़े की घंटी बजाता हूँ।
मैं अपनी अहमियत ऐसे ही बढ़ाता हूँ।
कभी जो मैं करता हूं वह बेहतरीन है
वही कोई और करे - मूर्ख है - कह देता हूँ।
मैं अपनी अहमियत ऐसे ही बढ़ाता हूँ।
मुझे गर्व है अपने पर और अपने ही साथियों पर
कोई और हो उसे तो नीचा ही दिखाता…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on February 25, 2020 at 12:40pm — 2 Comments
221 2121 1221 212
मज़ारे मुसम्मन अख़रब मक्फूफ़ महज़ूफ़
मफ़ऊलु फ़ाइलातु मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
.
तेरे फ़रेब-ओ-मक्र सभी जानता हूँ मैं
'शाहिद' हूँ ज़िन्दगी तुझे पहचानता हूँ मैं
काफ़िर न जानिए है ये कुछ अस्र-ए-बद-दुआ
शह्र-ए-बुतां की धूल जो अब छानता हूँ मैं
जी भर के ज़िन्दगी न जिया ख़ुद से है गिला
जीने की रोज़ सुब्ह यूँ तो ठानता हूँ मैं
इक़बाल-ए-जुर्म मेरा मुसव्विर भी तो करे
ख़ुद की तो ख़ामियाँ सभी गर्दानता हूँ…
Added by रवि भसीन 'शाहिद' on February 25, 2020 at 1:00am — 5 Comments
शख्स उसको भी तो दीवाना समझ बैठे थे हम l
जो था अच्छा उस को बेचारा समझ बैठे थे हम l
अब न जीतेगा ज़माना भी हमेशा की तरह,
जिस तरह का था उसे वैसा समझ बैठे थे हम l
गीत गाया था बहारों पर सुनाया था कहाँ,
जब ख़िज़ाँ को भी अगर अपना समझ बैठे थे हम l
फूल ये बिखरा तो खुशबू सा शजर बनता मिला,
"इस ज़मीन ओ आसमां को क्या समझ बैठे थे हम l"
ये जहाँ बदला मगर ये जिंदगानी क्यूँ नहीं,
झूठ दुनिया जिस कहे सच्चा समझ बैठे थे हम…
Added by मोहन बेगोवाल on February 25, 2020 at 12:00am — 1 Comment
जीवन्तता
माँ
कहाँ हो तुम ?
अभी भी थपकियों में तुम्हारी
मैं मुँह दुबका सकता हूँ क्या
तुम्हारा चेहरा सलवटों भरा
मन शाँत स्वच्छ निर्मल
पथरीले…
ContinueAdded by vijay nikore on February 24, 2020 at 5:30am — 4 Comments
2122 / 2122 / 2122 / 212
**
उनका वादा राम का वादा समझ बैठे थे हम
हर सियासतदान को सच्चा समझ बैठे थे हम।१।
**
कह रहे थे सब यहाँ जम्हूरियत है इसलिए
देश में हर फैसला अपना समझ बैठे थे हम।२।
**
गढ़ गये पुरखे हमारे बीच मजहब नाम की
क्यों उसी दीवार को रस्ता समझ बैठे थे हम।३।
**
आस्तीनों में छिपे विषधर लगे फुफकारने
यूँ जिन्हें जाँ से अधिक प्यारा समझ बैठे थे हम।४।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 22, 2020 at 8:28am — 9 Comments
मारो रे स्साले को, जब हम लोगो का पर्व होता है तभी ये सूअर बिजली काट देता है, दूसरों के पर्व पर तो बिजली नही काटता !
संबंधित बिजली कर्मी जब तक कुछ कहता, तब तक भीड़ से कुछ उत्साहित युवा उस कर्मचारी को पीट चुके थे । बेचारा कर्मचारी गिड़गिड़ाते हुए बस इतना ही कह पाया...
"बड़े साहब के आदेश से बिजली कटी है ।"
"चलो रे....आज उ बड़े साहब को भी देख लेते हैं, बड़ा आया आदेश देने वाला"
भीड़ बड़े साहब के चेम्बर की तरफ बढ़ गयी ।
"क्यों जी, आज हम लोगो का पर्व का दिन है, जुलूस…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 21, 2020 at 2:00pm — 2 Comments
प्यार का प्रपात
प्यार में समर्पण
समर्पण में प्यार
समर्पण ही प्यार
नाता शब्दों का शब्दों से मौन छायाओं में
आँखों और बाहों का हो महत्व विशाल
बह जाए उस उच्च समर्पण में पल भर…
ContinueAdded by vijay nikore on February 21, 2020 at 3:30am — 4 Comments
Added by MUKESH SRIVASTAVA on February 20, 2020 at 5:30pm — 1 Comment
रमल मुसम्मन महज़ूफ़
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
2 1 2 2 / 2 1 2 2 / 2 1 2 2 / 2 1 2
सारी दुनिया से ख़फ़ा तू ही नहीं मैं भी तो हूँ
हादसों का सिलसिला तू ही नहीं मैं भी तो हूँ
दौड़ता जाता है ख़ामोशी से बिन पूछे सुने
वक़्त से दहशत-ज़दा तू ही नहीं मैं भी तो हूँ
ज़िन्दगी है लम्हा लम्हा जंग अपने-आप से
अपने अंदर कर्बला तू ही नहीं मैं भी तो हूँ
दिल के अंदर गूंजती हैं चीख़ती ख़ामोशियाँ
एक साज़-ए-बे-सदा तू ही नहीं मैं भी…
Added by रवि भसीन 'शाहिद' on February 20, 2020 at 12:44am — 7 Comments
झूठी बातें कह कर दिनभर जब झूठे इठलाते हैं
हम सच के झण्डावरदारी क्यों इतना शर्माते हैं।१।
***
अफवाहों के जंगल यारो सभ्य नगर तक फैल गये
क्या होगा अब विश्वासों का सोच सभी घबराते हैं।२।
***
कैसे सूरज चाँद सितारे अब तक चुनते आये हम
बात उजाले की कर के जो नित्य अँधेरा लाते हैं।३।
***
नित्य हादसे होते हैं या उन में साजिश होती है
छोटा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 17, 2020 at 11:00am — 8 Comments
2122 2122 2122 22
जनाब क़तील शिफ़ाई साहब की एक ग़ज़ल 'अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको' जिसे जगजीत सिंह साहब ने गाया है उसी ग़ज़ल को गुनगुनाते हुए ये ग़ज़ल हुई है बहर थोड़ी परिवर्तित हुई है
तमाम दोस्तों को सादर समर्पित
स्वीकारें
कुछ हसीं फूलों से जीवन को सजा ले अब तो,
खुद को गुमनामी के पतझड़ से बचा ले अब तो.
मेरे जख्मों पे बड़ी तेरी इनायत होगी,
संग हाथों में कोई तू भी उठा ले अब तो.
अपनी गुल्लक को दिखा माँ को…
ContinueAdded by मनोज अहसास on February 16, 2020 at 10:00pm — 4 Comments
मज़ारे मुसम्मन अख़रब मक्फूफ़ महज़ूफ़
मफ़ऊलु फ़ाइलातु मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
2 2 1 / 2 1 2 1 / 1 2 2 1 / 2 1 2
फूलों के सीने चाक हैं बुलबुल फ़रार है
सब दाग़ जल उठे हैं ये कैसी बहार है
कैसी बहार शहर में क्या मौसम-ए-ख़िज़ाँ
कारें इमारतें हैं दिलों में ग़ुबार है
कुछ बस नहीं बशर का क़ज़ा पर हयात पर
लेकिन ग़ुरूर ये है कि ख़ुद-इख़्तियार है
हाकिम है ख़ूब ख़्वाब-फ़रोशों पे मेहरबां
भाता नहीं उसे जो हक़ीक़त-निगार है
क्या ख़ूब है…
ContinueAdded by रवि भसीन 'शाहिद' on February 16, 2020 at 7:41pm — 4 Comments
अतुकांत कविता : मैं भी लिखूंगा एक कविता
मैं भी लिखूंगा
एक कविता
चार पांच सालों बाद..
जब मेरे हाथों द्वारा लगाया हुआ
पलास का पौधा
बन जायेगा पेड़
उसपर लगेंगे
बसंती फूल
आयेंगी रंग बिरंगी तितलियाँ
चिड़िया बनायेंगी घोंसला...
मैं भी लिखूंगा
एक कविता
चार पांच सालों बाद..
जब मेरे घर आयेगी
नन्ही सी गुड़िया
जायेगी स्कूल
मेरी उँगली पकड़
और पढ़ेगी
क ल आ म .. कलम
गायेगी…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 15, 2020 at 11:30pm — 3 Comments
Added by amita tiwari on February 15, 2020 at 7:30pm — 5 Comments
एक
-----
मुझे,
मालूम है आप
मेरी लापरवाहियां और बेतरतीबी की लिए
ऊपर ऊपर डांटते हुए भी
अंदर अंदर खुशी से और मेरे लिए प्रेम से भरपूर रहती हो
मेरे बिखरे हुए कपड़ों व किताबों को सहेजना अच्छा लगता है
पर यहाँ हॉस्टल में आ कर अब मुझे अपने कपडे खुद तह कर के रखना सीख लिया है
वहां तो आप सुबह ब्रश में टूथ पेस्ट भी आप लगा के देती थी
टोस्ट में मक्खन भी लगा के हाथ में पकड़ा देती थी
और प्यार भरी झिड़की से जल्दी से खाने की हिदायत देती थी
पर…
Added by MUKESH SRIVASTAVA on February 15, 2020 at 5:30pm — No Comments
गुज़ारिश
मुहब्बत में मज़हब न हो
मज़हब में हो मुहब्बत
मुहब्बत ही हो सभी का मज़हब
तो सोचो, हाँ, सोचो तो ज़रा
कैसी होगी यह कायनात
कैसी होगी यह ज़मीन
खुश होगा कितना…
Added by vijay nikore on February 15, 2020 at 4:00pm — 4 Comments
प्रेम पत्र - लघुकथा -
आज वीरेंद्र पिता की मृत्योपरांत तेरहवीं की औपचारिकतायें संपन्न करने के पश्चात पिताजी के कमरे की अलमारी से पिता के पुराने दस्तावेज निकाल कर कुछ काम के कागजात छाँट रहा था।
तभी उसकी नज़र एक गुलाबी कपड़े की पोटली पर पड़ी।उसने उत्सुकता वश उसे खोल लिया।वह अचंभित हो गया।वह जिस पिता को एक आदर्श और सदाचारी पिता समझता था उनकी चरित्र हीनता का एक दूसरा ही चेहरा आज उसके सामने था।उस पोटली में पिता के नाम लिखे प्रेम पत्र और एक सुंदर सी महिला के साथ तस्वीरें…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on February 15, 2020 at 11:30am — 6 Comments
डूब गया कल सूरज
कल ही तो था जो आई थी तुम
बारिश के मौसम की पहली सुगन्ध बनी
प्यार की नई सुबह बन कर आई थी तुम
मेरे आँगन में नई कली-सी मुस्कराई थी तुम
याद है मुझको वसन्त रजनी में
कल…
ContinueAdded by vijay nikore on February 15, 2020 at 6:30am — 4 Comments
कितना क़ायदा, कितना सलीका
ले आये हैं हम दुनिया में
दिन हैं मुक़र्रर सब कामों के
माँ और बाप को
उस्तादों को, और वतन को
यादों में लाने के लिए और
कितनी इज़्ज़त कितनी अक़ीदत
उनके लिए है दिल में हमारे
सबको बतलाने के लिए
और इक दिन है इश्क़ के नाम भी
वैलेनटाइन डे कहते हैं जिसको
जब भी आता है ये दिन तो
एक अजब एहसास सा दिल में भर जाता है
सोचता हूँ कि एक ही दिन क्यों रक्खा गया है
इश्क़, मुहब्बत, प्यार के नाम
प्यार भी…
Added by रवि भसीन 'शाहिद' on February 14, 2020 at 5:20pm — 3 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |