कितने ही द्रव्य और निधियाँ,
वह अपने गर्भ संजोती है
पर पल में मानव नष्ट करे
धरणी भी आख़िर रोती है
काटे नित हरे वृक्ष , पर्वत
माँ की काया श्री हीन करे
अपनी ही विपुल संपदा को
वह काँप-काँप कर खोती है
धरणी भी आख़िर रोती है
उसके ही सीने पर चढ़कर
जो भव्य इमारत खड़ी हुईं
उन बोझों से दबकर,थककर
अपनी कराह को ढोती है
धरणी भी आख़िर रोती है
उद्योग और कारखाने
हैं कचरा नदियों में डालें
इनमें घुल गए रसायन में
मारक क्षमता तो…
Added by Usha Awasthi on February 14, 2020 at 4:59pm — 6 Comments
7 फेलुन 1 फ़ा
मेरी यादों से वो यारो जब भी घबराते हों गे
माज़ी के क़िस्सों से अपने दिल को बहलाते हों गे
काले बादल शर्म से पानी पानी हो जाते हों गे
बाम प आकर जब वो अपनी ज़ुल्फ़ें लहराते हों गे
जैसे हमको यार हमारे समझाने आ जाते हैं
उसके भी अहबाब यक़ीनन उसको समझाते हों गे
हम तो उनके हिज्र में तारे गिनते रहते हैं शब भर
वो तो अपने शीश महल में चैन से सो जाते हों…
ContinueAdded by Samar kabeer on February 13, 2020 at 5:55pm — 20 Comments
कुछ ख्वाबों के बीज लाकर
मैंने दिल के गमले में बोये थे।
पसीने का पानी पिलाकर
पौधे भी उगा दिये।
वो बात और है कि
गमले की मिट्टी मेरे दिल में भर गई।
और दिल भर देख भी नहीं…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on February 13, 2020 at 1:38pm — 6 Comments
प्रेम गली अति सांकरी
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सुमी,
सुना है, किसी सयाने ने कहा है। ' प्रेम गली अति सांकरी, जा में दुई न समाय'
जब कभी सोचता हूँ इन पंक्तियों के बारे में तो लगता है, ऐसा कहने वाला, सयाना
रहा हो या न रहा हो, पर प्रेमी ज़रूर रहा होगा,जिसने प्रेम की पराकष्ठा को जाना होगा
महसूस होगा रोम - रोम से , रग - रेशे से, उसके लिए प्रेम कोई शब्दों का छलावा न
रहा होगा, किसी कविता का या ग़ज़ल का छंद और बंद न रहा होगा, किसी हसीन
शाम की यादें भर न रही होगा,…
Added by MUKESH SRIVASTAVA on February 12, 2020 at 1:58pm — 4 Comments
2×15
बीच सफर में धीरज टूटा,हाथों से पतवार गई.
मेरे मन की लाचारी से मेरी कोशिश हार गई.
एक अधूरा ख्वाब जो मुद्दत से आंखों में जिंदा है,
उसको लिखने की कोशिश में स्याही भी बेकार गई.
पिछले साल में और कोई था अब के साल में और कोई,
एक नए इजहार को चाहत फूलों के बाजार गई.
बरसों पहले जिसको चाहा उसकी यादें साथ रहें,
एक दुआ के आगे मेरी हर इक ख्वाहिश हार गई.
पापा की आंखों ने उसको जाने क्या क्या समझाया,
बेटी जब…
Added by मनोज अहसास on February 12, 2020 at 1:10pm — 5 Comments
हिन्दी की रीतिमुक्त धारा के शीर्षस्थ कवि थे i उनकी प्रेमिका थी सुजान. जो दिल्ली के बादशाह मुहम्मदशाह 'रंगीले' के दरबार में तवायफ थी i इनके मार्मिक प्रेम की अनूठी दास्तान पर आधारित है-उपन्यास 'बिसासी सुजान ' i पेश है उसका एक अंश ----घनानन्द
[48]
जून का महीना I शुक्ल पक्ष की नवमी I दिन का अंतिम प्रहर I सूर्यास्त का समय I यमुना नदी का काली घाट I घाट पर सन्नाटा I चंद्रमा की किरणें यमुना की लहरों से खेलती हुयी I हल्की आनंददायक हवा I आनंद…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 10, 2020 at 11:43am — 1 Comment
221 2121 1221 212
आएगा जब तलक नहीं मौसम गुलाब का,
बदला रहेगा मूड मेरे आफताब का।
मज़बूरियों में जल गई इक उम्र की वफ़ा,
उसने दिखाया मुझको सलीका नकाब का।
मैं ऐसी शाइरी की तमन्ना में कैद हूँ ,
इक शेर में जो कह दे फसाना किताब का।
वो बेहिसाब बातों से भर देंगे सबका पेट,
जिनको समझ रहा है तू पक्का हिसाब का।
तासीर क्या है होठों से छूकर पता करो,
इक जाम ही बहुत है सुखन या शराब…
Added by मनोज अहसास on February 9, 2020 at 11:30pm — 2 Comments
Added by amita tiwari on February 9, 2020 at 9:00am — 2 Comments
संस्कृति देश की है प्राचीनतम,
यह कथा गल्प अथवा कहानी नहीं
है ये अविराम थोड़ा लचीली भी है
पर पयस है महज स्वच्छ पानी नहीं
यह पली है सहनशीलता धैर्य में
ऐसी उद्दाम कोइ रवानी नहीं
हैं उदात्त हम तो ग्रहणशील भी
और अध्यात्म की कोई सानी नही
दूर भौतिक चमक से रहे हम सदा
ऐसी धरती कहीं और धानी नही
दे गए पूर्वज जो हमें सौंपकर
वैसी अन्यत्र जग में निशानी नहीं
वन्दे मातरम् I {मौलिक व…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 9, 2020 at 8:30am — 2 Comments
२२१/२१२१/२२२/१२१२
**
जो भी वतन में दोस्तो दिखते कलाम हैं
हर वक्त उसकी शान में कहते सलाम हैं।१।
**
दुत्कार उनको हम रहे केवल सुनो यहाँ
जयचन्दी नीयतों में जो रहते इमाम हैं।२।
**
उनका भी मान है नहीं केवल लताड़ है
रखके जो नाम राम का रावण से काम हैं।३।
**
नेता सभी हैं एक से जो फूट चाहते
समझेंगे क्या कभी इसे जो लोग आम हैं।४।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 8, 2020 at 4:48am — 8 Comments
नया साल चढ़ा है
कुछ बुदबुदाता हुआ
आया है नया साल
ओढ़े बबूलपन के संग
बुद्धी की सचाई की
मुरझाई पुष्पलता
हो सकता है यह पहनावा
नया…
ContinueAdded by vijay nikore on February 6, 2020 at 6:30am — 4 Comments
दो क्षणिकाएँ
========
(1) थप्पड़
मुझे पता भी न था
उस शब्द का अर्थ
गुस्से में किसी को बोल दिया था
'साला....'
गाल पर झन्नाटेदार थप्पड़ के साथ
माँ ने समझाया था
गाली देना गंदी बात !
काश,
उनकी माँ ने भी
लगाया होता
थप्पड़
तो आज...
नहीं देते वे
माँ, बहन को इंगित
गालियाँ ।
(2) बारुद
उनको दिखाई देता है
बारूद
मेरी दीया-सलाई की काठी में,
जिससे जलता है
हमारे घर का…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 5, 2020 at 8:30am — 5 Comments
हर शासन अब गद्दारों को यार बहुत हितकारी है
जो करता है बात देश की उसको बस लाचारी है।१।
**
सर्द हवाओं के चंगुल में ठिठुराती आशाएँ बैठी
सुन्दर सपनों की खेती पर पाला पड़ता भारी है।२।
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पहले लगता था हम जैसा गम का मारा कोई नहीं
पर जब देखा पाया दुनिया हमसे भी दुखियारी है।३।
**
तुमको भी पत्थर आयेंगे वक्त जरा सा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 3, 2020 at 5:30am — 4 Comments
वो एक नींद ही तो थी
कि जिसमे
मै जाग रहा था /
सपने
तितलियों से कोमल
हथेलिओं की कोटर में
छुपा कर
चला था मैं
कि
बिखेर दूंगा इन रंगों को
चुपचाप
आसमान के कोने कोने में,
और चल दूंगा
अपने झोले में
कुछ मुस्कुराहटें
कुछ खुशियां
कुछ उम्मीदें
कुछ शरारतें लेकर
एक खुशनुमा सफर पर
एक बंजारे सा भटकता हुआ
गांव - गांव
शहर - शहर
कि
शायद मेरा होना
किसी के होठों की…
Added by ARVIND BHATNAGAR on February 2, 2020 at 3:30pm — 4 Comments
आँख-मिचौनी
साँझ के रंगीन धुँधलके ...
आँख-मिचोनी खेलते
एक दूसरे को टटोलते
मद्धम रोशनी में उभरती रही
कोई पवित्र विलुप्त लालसा
आवेगों में खो जाने की…
ContinueAdded by vijay nikore on February 2, 2020 at 2:30pm — 4 Comments
फाइलुन फाइलुन फाइलुन
212 212 212
हम हैं नाकाम-ए-राह-ए-वफ़ा
काम आई तेरी बद-दुआ ।
इश्क़ की है अभी इब्तिदा ,
यार मुझ को न तू आज़मा।
रात भर जागता रहता है,
चाँद क्यों इतना है ग़म-ज़दा ।
वो पता पूछे तो बोलना
"कुछ दिनों से हूँ मैं लापता"
आखरी बार मुझ से मिलो ,
आखरी बार है इल्तिजा ।
अब नही देखता तुझ को मैं,
रायगाँ है सवरना तेरा ।
जा रहा हूँ तेरे दर से मैं
दिलरुबा ग़म छुपा,,मुस्कुरा |
- शेख ज़ुबैर अहमद
(मौलिक…
Added by Shaikh Zubair on February 1, 2020 at 4:33pm — 4 Comments
प्रधान संपादक, आदरणीय योगराज प्रभाकर जी की टिप्पणी के आलोक में यह रचना पटल से हटायी जा रही है ।
सादर
गणेश जी बाग़ी
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 1, 2020 at 9:30am — 30 Comments
2122 2122 2122 212
जब सफलता मिल गई खुद का किया लिक्खा गया,
अपनी हारों को खुदा का फैसला लिक्खा गया।
आपके शफ्फाक दामन को बचाने के लिए,
कत्ल मुझ बदबख्त का इक हादसा लिक्खा गया।
दर ब दर होते रहे वो सारे खत खुशियों भरे ,
जिन पर तेरा नाम और मेरा पता लिक्खा गया।
चार भाई साथ रहकर कितने खुश थे हम कभी,
टूटकर बिखरे तो फिर दिल भी जुदा लिक्खा गया।
अब हमारी जिंदगी में एक उलझन ये भी है,
उसके दिल में…
Added by मनोज अहसास on February 1, 2020 at 12:07am — 2 Comments
देख लोगो को रोते हुए
ज़ोर से लाश एक हँस पड़ी
जीते जी तो जीने दिया ना
गुस्से में वो बिफर पड़ी ||
खरी-खोटी मुझे रोज सुनाते
तनिक भी ना परवाह थी
दिल पे मेरी क्या गुजरती
घुट-घुट के मैं रोती थी ||
खुदा बक्शे अगर, जिंदगी
औकात दिखा दे अभी सभी
घड़ियाल से आँसू जो बहाते
असलियत आ जाए सामने अभी ||
भूल जायेंगें कुछ ही दिन में
याद ना आयें मेरी कभी
अच्छी-बुरी मेरी बातें कर
सहानुभूति…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on January 31, 2020 at 5:00pm — 2 Comments
221 2121 1221 212
दिल से सवाल होठों से ताले नहीं गए.
दुनिया के ज़ुल्म खाक में डाले नहीं गए
.
जिस दिन से इंतज़ार तेरा दिल से मिट गया,
उस दिन से मेरे दिल में उजाले नहीं गए.
अपनी समझ से कैसे बने बच्चों का वजूद,
अपनी समझ से शेर तो ढाले नहीं गए.
कल रात उसने ख़्वाब में आकर कहा मुझे,
रिश्तें तो आपसे भी संभाले नहीं गए.
बरसों पुरानी बातों ने दिल को जकड़ लिया,
कुछ दोस्त जिंदगी से निकाले नहीं…
Added by मनोज अहसास on January 31, 2020 at 12:07am — 1 Comment
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