प्रतिशोध - ( लघुकथा ) –
"प्रधान जी, यह क्या देख रहा हूं!आज तो आप पंडित होकर भी ,अपने जानी दुश्मन, हरिज़न विधायक गंगा राम के बेटे को शराब और क़बाब की दावत दे रहे थे और बराबर में साथ बैठा कर तीन पत्ती भी खिला रहे थे"!
"बाबूलाल, यह राजनीति है,तुम्हारी समझ में नहीं आयेगी"!
"कोई काम करवाना है क्या विधायक जी से"!
"मैं उस कुत्ते की शक्ल भी देखना पसंद नहीं करता, उसकी वज़ह से तो मेरी विधायकी की सीट छिन गयी"!
"तो फ़िर इस दावत का क्या राज़ है"!
"इस राज़ को…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on January 18, 2016 at 10:26pm — 14 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on January 18, 2016 at 9:55pm — 18 Comments
२१२२ १२१२ २२
भूख हड़ताल बारहा रखिये
हुक्मरानों पे दबदबा रखिये
बह रही है हवा सियासत की
किस तरफ बस यही पता रखिये
शह्र में चैन हो न हो ठंडक
गर्म मुद्दा कोई नया रखिये
सूखने पर कोई न पूछेगा
जख्म दिल का सदा हरा रखिये
लोग मरते रहें भले पीकर
हर गली एक मयकदा रखिये
क्या करेगा धुआँ धुआँ ही तो है
आप बेख़ौफ़ सिलसिला रखिये
इश्क के साथ दिल्लगी करना
नाम फिर…
ContinueAdded by rajesh kumari on January 18, 2016 at 9:40pm — 14 Comments
‘चल अब छोड़, जाने भी दे! इसमें इतना रोने की क्या बात है, यह कोई नयी बात थोड़े ही है। हम जैसे लोगों के साथ तो ये हमेशा से ही होता आया है। तू इतने टेसुए क्यों बहा रही हो ? वैसे गल्ती भी तेरी ही है, अगर तुझे प्यास लगी थी तो अपने पीने का पानी बाहर ही तो रखा होता है फिर तू रसोईघर में क्यों गई ?’ सिसक रही अपनी पत्नी को वो दिलासा दे रहा था।
‘मैं तो यही सोच कर इनके यहां काम करने को लगी थी कि चलो पढ़-लिख कर अफसर बन गए है तो क्या हुआ, हैं तो ये हम लोगों में से ही ना। पर ये लोग... कोई और हमारे…
ContinueAdded by Ravi Prabhakar on January 18, 2016 at 9:00pm — 8 Comments
बोलते पलों का घर .....
हमारे और तुम्हारे बीच
कितनी मौनता है
एक लम्बे अंतराल के बाद हम
एक दूसरे के सम्मुख
किसी अपराध बोध से ग्रसित
नज़रें नीची किये ऐसे खड़े हैं
जैसे किसी ताल के
दो किनारों पर
अपनी अपनी खामोशी से बंधी
दो कश्तियाँ//
कितने बेबस हैं हम
अपने अहंकार के पिघलते लावे को
रोक भी नहीं सकते//
चलो छोडो
तुम अपने तुम को बह जाने दो
मुझे भी कुछ कहने को
बह जाने दो
शायद ये खारा…
Added by Sushil Sarna on January 18, 2016 at 7:50pm — 6 Comments
"अजी आधी रात होने को है, अब तो खाना खा लोI",
"मैंने कह दिया न कि मुझे भूख नहीं हैI"
"अरे मगर हुआ क्या? दोपहर को भी तुमने कुछ नहीं खायाI"
"बस मन नहीं है खाने का, तुम खा लोI"
दरअसल, कई दिनों से वे बहुत बेचैन थेI पड़ोसी के बेटे ने नया स्कूटर खरीदा था, जिसे देखकर उनके सीने पर साँप लोट रहे थेI घर के आगे खड़ा नया स्कूटर जैसे उन्हें मुँह चिढ़ाता लग रहा थाI उनकी पत्नी तीन चार बार उन्हें खाने के लिए बुला चुकीं थी, किन्तु वे हर बार कोई न कोई बहाना बनाकर टाले जा रहे थेI …
Added by योगराज प्रभाकर on January 18, 2016 at 2:30pm — 11 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
बहर - हज़ज़ मुसमन सालिम
न पूछोगे, सतायेंगी तुम्हें रुसवाइयाँ कब तक
अगर तुम जान लो पीछे चली परछाइयाँ कब तक
हैं उनकी कोशिशें तहज़ीब को बेशर्मियाँ बाटें
मुझे है फ़िक्र झेलेंगे अभी बेशर्मियाँ कब तक
ज़रा सा गौर फरमायें कसाफत है ये नदियों की ( कसाफत - गंदगी )
“समन्दर पर उठाओगे बताओ उँगलियाँ कब तक ”
शराफत की कबा कब तक बताओ बुजदिली ओढ़े
सहन करता रहेगा मुल्क ये शैतानियाँ कब…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on January 18, 2016 at 8:07am — 20 Comments
बह्र : २२ २२ २२ २२ २२ २२ २
अच्छी बात वही जिसको मर्जी अपनाती है
बात वही गंदी जो सब पर थोपी जाती है
मज़लूमों का ख़ून गिरा है, दाग न जाते हैं
चद्दर यूँ तो मुई सियासत रोज़ धुलाती है
रोने चिल्लाने की सब आवाज़ें दब जाएँ
राजनीति इसलिए प्रगति का ढोल बजाती है
फंदे से लटके तो राजा कहता है बुजदिल
हक माँगे तो, जनता बद’अमली फैलाती है
सारा ज्ञान मिलाकर भी इक शे’र नहीं होता
सुन, भेजे से नहीं,…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 17, 2016 at 11:24pm — 8 Comments
कुल्टा कौन – ( लघुकथा ) –
सीमा जब से ब्याह के आई थी,कभी भी उसकी सासुजी ने सीधे मुंह बात नहीं की!चलो कोई बात नहीं!यह तो सदियों से चली आ रही रिवाज़ का हिस्सा है!पर सीमा को जो बात अखरती थी ,वह थी सासुजी का बार बार उसे “क़ुल्टा” कह कर पुकारना!उसने एक दो बार सासूजी को समझाने का प्रयास भी किया,
"मॉ जी,आप यह शब्द बोलती हो,इसका अर्थ जानती हो,कोई बाहर वाला सुनेगा तो आप के परिवार की ही बदनामी होगी"!
सासु जी ने फ़लस्वरूप ,सीमा का बाहर जाना भी बंद कर दिया!
सासुजी को अचानक…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on January 17, 2016 at 5:13pm — 8 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 17, 2016 at 5:00pm — 5 Comments
बस खड़ी थी और उसमें कुछ सवारियाँ बैठी भी हुई थीं, कण्डक्टर उसके पास ही खड़ा होकर लख़नऊ लख़नऊ की आवाज़ लगा रहा था। मैंने किनारे कार खड़ी की और नीचे उतर गया, दूसरी तरफ से मुकुल भी उतर गया था। उसका झोला पिछली सीट पर ही पड़ा था जिसे मैंने उठाने का अभिनय किया, मुझे पता था वो उठाने नहीं देगा। झोला उठाकर वो बस की तरफ चलने को हुआ तभी मैंने उसके कन्धे पर हाथ रखा और उसे धीरे से दबा दिया, मुकुल ने पलटकर देखा और उसकी आँखे भीग गयीं।
" कुछ दिन रुके होते तो अच्छा लगता", मैं अपनी आवाज़ को ही पहचान नहीं पा रहा…
Added by विनय कुमार on January 17, 2016 at 2:51pm — 4 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on January 17, 2016 at 2:42pm — 7 Comments
Added by Samar kabeer on January 17, 2016 at 2:21pm — 14 Comments
२१२२/१२१२/२२
अपने दिल में वो राज़ रखता है,
शायरों सा मिजाज़ रखता है.
.
अब सियासत में आ गया है तो
हर किसी को नवाज़ रखता है.
.
बात करता है गर्क़ होने की,
और कितने जहाज़ रखता है.
.
दिल से देता है वो दुआएँ जब
उन पे थोड़ी नमाज़ रखता है.
.
जानें कितनों से दिल लगा होगा
दिल में ढेरों दराज़ रखता है.
.
ये सदी और ये वफ़ादारी
जाहिलों से रिवाज़ रखता है.
.
हर्फ़ उसके तो हैं ज़मीनी, पर
वो तख़य्युल…
Added by Nilesh Shevgaonkar on January 17, 2016 at 11:00am — 10 Comments
Added by Ram Ashery on January 16, 2016 at 5:00pm — 3 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on January 16, 2016 at 1:55pm — 2 Comments
शिक्षा की जब ज्योति जले, विकसित होवे लोग।
समाज को जब पंख मिले, खुशियाँ भोगें लोग ॥
भूख गरीबी जीत के, निर्भर हुआ अब देश ।
बोए बीज अब प्रेम के, प्रगति कर चला देश ॥
गलत इरादे दुश्मन के, बढ़ा रहे अब क्लेश ।
हम रखवाले वतन के, जग को दे दो संदेश ॥
परचम ऊंचा हो तभी, फैले चारों ओर ।
आन मान सम्मान सभी, करें साथ गठजोर ॥
करुणा सबके मन जगे, कोई दुखी न होय ।
हृदय से सब गले मिले, नफरत दूरी होय ॥
आतंकवाद के कष्ट को, जल्दी करेगे…
ContinueAdded by Ram Ashery on January 15, 2016 at 10:00pm — 5 Comments
सुजाता इस रोज़ रोज़ के झगड़ों से तंग आ चुकी थीI शादी के लगभग तीन साल बाद भी हर काम में सास की टोका टाकी अब उसकी बर्दाश्त से बाहर होती जा रही थीI छोटी-छोटी बात पर उसका अपमान करना, रसोई और सफाई को लेकर गलतियाँ निकालना, बात बात पर ताने देने सास का हर रोज़ का काम बन चुका थाI किन्तु अब उसने भी पक्का निश्चय कर लिया था कि वह भी सास को ईंट का जवाब पत्थर से देगीI आज जब वह सफाई कर रही थी तो हर रोज़ का सिलसिला फिर से शुरू हो गया I
"इतनी धूल काहे उड़ा रही है? ज़रा ध्यान से मार झाड़ूI तेरी माँ ने…
Added by योगराज प्रभाकर on January 15, 2016 at 3:30pm — 8 Comments
दाँस्ता- आज के इंसान की
मेरा व्यक्तित्व क्या है बोलो
स्वार्थी चाहे दम्भी बोलो
अहंकारी, कुकर्मी बोलो
जो भी बोलो सोच के बोलो
मेरा व्यक्तित्व क्या है बोलो
स्वार्थसिद्धि की, ताक की में रहता
क्षणभर की ना देरी करता
भिन्न भिन्न अपने वेश बदल के
जन भावना की बातें करता
कौन हूँ मैं, तुम कुछ तो बोलो
जो भी बोलो सोच के बोलो
रोते को, मैं खूब…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on January 15, 2016 at 9:55am — 2 Comments
दकियानूस - ( लघुकथा ) –
मनोहर की मृत्यु को आज तेरह दिन हो गये थे!उसके कर्मों का लेखा जोखा देख कर उसे स्वर्ग में ही एक सीट मिल गयी थी!यमराज़ उसकी डायरी देख बेहद प्रभावित थे!यमराज़ ने मनोहर की पीठ थपथपा कर शाबाशी दे डाली!मनोहर रोमांचित हो गया!यमराज़ का अच्छा मूड देख कर मनोहर ने एक इच्छा ज़ाहिर कर दी,
"आज मेरी तेरहवीं हो रही होगी,आपकी इज़ाज़त हो तो क्या मैं एक बार उस मौके को देख कर आ सकता हूं, थोडी तसल्ली कर लेना चाहता हूं कि कितने ज़ोर शोर से मेरा तेरहवॉ हो रहा है! "!
"देख भाई…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on January 14, 2016 at 6:43pm — 10 Comments
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