हिम बसंत ...
प्रथम प्रणय का
प्रथम पंथ हो
हिय व्यथा का
तुम ही अंत हो
शिशिर ऋतु का
शिशिरांशु हो
विरह पलों का
शिशिरांत हो
शीत पलों की
मधुर सिहरन हो
नयन सिंधु का
मौन कंपन्न हो
मधु पलों में
मेरे प्रिय तुम
मधु स्मृतियों का
हिम बसंत हो
सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on January 9, 2017 at 8:40pm — 8 Comments
2122 2122 2122 212
किसने होंटों पे तबस्सुम को सजाया कौन था
छुप के दिल में वस्ल का दीपक जलाया कौन था
साँसे मेरी जीस्त मेरी मेरा अपना था वजूद
धडकनों पे मेरी जिसने हक जमाया कौन था
जब कभी भीगी तख़य्युल में कहीं पलकें मेरी
शबनमी उन झालरों से मुस्कुराया कौन था
गुफ्तगू के उस सलीके पर मेरा तन मन निसार
बातों बातों में मुझे अपना बनाया कौन था
जब तेरी फ़ुर्कत…
ContinueAdded by rajesh kumari on January 9, 2017 at 3:00pm — 18 Comments
Added by Manan Kumar singh on January 9, 2017 at 7:00am — 8 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on January 8, 2017 at 4:09pm — 8 Comments
Added by Manan Kumar singh on January 8, 2017 at 12:30pm — 11 Comments
221 2121 1221 212
तंग आ गया हूँ हालते क़ल्ब-ओ-ज़िगर से मैं
उकता गया हूँ ज़िंदगी, तेरे सफर से मैं
होश ओ हवास ओ-बेख़ुदी की जंग में फ़ँसे
दिल सोचने लगा है कि जाऊँ किधर से मैं
मंज़िल मेरी उमीद में जीती है आज भी
पर इलतिजाएँ कर न सका रहगुज़र से मैं
ऐसा नहीं गमों से है नाराज़गी कोई
उनकी ख़बर तो लेता हूँ शाम-ओ-सहर से मैं
अब नफरतों, की शक़्ल भी आतिश फिशाँ हुईं
डर है झुलस न जाऊँ कहीं इस शरर से…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on January 8, 2017 at 10:00am — 19 Comments
Added by नाथ सोनांचली on January 7, 2017 at 9:00pm — 13 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on January 7, 2017 at 8:46pm — 12 Comments
बर्फ़ीला मौन रिश्ते की आत्मा के फूलों पर
झुठलाती-झूठी अजनबी हुई अब बातें
स्नेह के सुनहरे पलों में हाथों में वेणी लिए
शायद बिना सोचे-समझे कह देते थे तुम ...
" फूलों-सी हँसती रहो, कोयल-सी गाती रहो "
" अब आज से तुम मेरी ज़िम्मेवारी हो "
और मैं झुका हुआ मस्तक लिए
श्रधानत, कुछ शरमाई, मुस्करा देती थी
कोई बातें कितनी जल्दी
इ..त..नी पुरानी हो जाती हैं
जैसे मैं और हम और हमारी
आपस में घुली एकाकार साँसें…
ContinueAdded by vijay nikore on January 7, 2017 at 5:22pm — 9 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on January 7, 2017 at 2:15am — 8 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 7, 2017 at 12:30am — 6 Comments
ग़ज़ल(दीप जला कर रखना)
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फाइलातुन -फइलातुन-फइलातुन-फेलुन
इसको दुनिया की नज़र बद से बचा कर रखना |
अपने दिल में ही मुहब्बत को छुपा कर रखना |
नीम शब आऊंगा मैं कैसे तुम्हारे घर पर
जाने मन बाम पे इक दीप जला कर रखना |
क्या खबर ख्वाब की ताबीर बदल जाए कब
मेरी तस्वीर को सीने से लगा कर रखना |
डर है बद ज़न कहीं अह्बाब न कर दें उनको
अपने जज़्बात को दिल में ही दबा कर रखना…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on January 6, 2017 at 10:50pm — 15 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on January 6, 2017 at 4:43pm — 9 Comments
Added by Mahendra Kumar on January 6, 2017 at 3:30pm — 7 Comments
सच ,लगने लगा पराया ...
न मेरा
आना झूठ था
न तेरा
जाना झूठ था
दूर जाने का मुझसे
बस बहाना
झूठ था
जीती रही
जिस शब् को
हकीकत मानकर
सहर की शरर पे सोया
वो
अफ़साना झूठ था
बादे सबा
में लिपटी
सदायें
यूँ तो आयी थीं
तेरे बाम से मगर
उसमें छुपा
हिज़्रे ग़म को
बहलाने का
तराना झूठ था
इक झूठ
तूने जिया
इक झूठ
मैंने जिया
न सच
तुझे भाया…
Added by Sushil Sarna on January 6, 2017 at 2:00pm — 16 Comments
फाइलातुन मुफाइलुन फेलुन/फइलुन
पिछली यादों में लौट आए हैं
हम बहारों में लौट आए हैं
जाग जाओ उदास ताबीरों
ख़्वाब आँखों में लौट आए हैं
हम मिले भी यहीं, यहीं बिछड़े
किन ख़यालों में लौट आए हैं
चेहरे पे नूर लौट आएगा
अश्क आँखों में लौट आए हैं
जो मकानों से जा चुके थे मकीं
वो मकानों में लौट आए हैं
मौलिक और अप्रकाशित
...दीपक कुमार
Added by दीपक कुमार on January 6, 2017 at 10:30am — 10 Comments
Added by Mohammed Arif on January 5, 2017 at 11:23pm — 13 Comments
भटकन में संकेत मिले तब अंतर्मन से तनिक डरो।
सब साधन निष्फल हो जाएँ, निस्संकोच कृपाण धरो।
व्यर्थ छिपाये मानव वह भय और स्वयं की दुबर्लता।
भ्रष्ट जनों की कट्टरता से सदा पराजित मानवता ।
सब हैं एक समान जगत में, फिर क्या कोई श्रेष्ठ अनुज?
मानव-धर्म समाज सुरक्षा बस जीवन का ध्येय मनुज।
प्रण-रण में दुर्बलता त्यागो, संयत हो मन विजय वरो।
शुद्ध पंथ मन-वचन-कर्म से, सृजन करो जनमानस में।
भेदभाव का तम चीरे जो, दीप जलाओ अंतस में…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on January 5, 2017 at 10:30pm — 25 Comments
बुलबुल ने छोड़ा पंखों पर
अब बोझा ढोना,
नई सुबह की आहट अब
तुम भी पहचानो ना....
अंतर्मन में गूँजी जबसे
सपनों की सरगम,
अपने रिसते ज़ख्मों पर रख
हिम्मत का मरहम,
झूठे बंधन तोड़ निकलना
सीख चुकी है वो,
बाहों में भर लेगी अम्बर
चाहे जो भी हो,
रहने देगी नहीं अनछुआ
कोई भी कोना....
नई सुबह की आहट अब
तुम भी पहचानो ना....
क्यों बाँधे उसके पल्लू में
बस भीगे सावन,
भर लेना है हर मौसम से
अब उसको…
Added by Dr.Prachi Singh on January 5, 2017 at 2:00pm — 14 Comments
ख़्वाब का माहताब ....
तुम्हारे
अंधेरों में
मेरे हिस्से के
उजाले
तुम्हारी मुहब्बत की
गिरफ़्त में
बे-आवाज़
सिसकते रहे
और तुम
मेरी चश्म से
शीरीं शहद से
लम्हों को
कतरों में समेटे
बहते रहे
मेरा ज़िस्म
तुम्हारे लम्स
की हज़ारों
खुशबुओं के
कफ़स में
सांस लेता रहा
आफ़ताब की शरर ने
उम्मीद की दहलीज़ को
हक़ीक़त की
आतिश से
ख़ाक में…
Added by Sushil Sarna on January 5, 2017 at 1:30pm — 17 Comments
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