जल रहे चिराग हैं, जिंदा यहां तख़्त-ओ-ताज है
बह रही गोमती, रोशन यहां के घाट हैं
यह लखनऊ की धरती
यह लखनऊ की शाम है
तहजीब यहां अब्दो आब है,खिलते हर दिल में ख्वाब हैं
दुश्मन को भी कहते आप हैं,दोस्त भी अमें यार हैं
गंज की शाम है, बागों में भी बाग हैं
यह लखनऊ की धरती
लखनऊ की शाम है।
रूमी दरवाजा वो शान है, आज भी तहजीब उसकी आन है ।
इमामबाड़ा हिंदू मुस्लिम एकता की पहचान है
बेगम की कोठी में जलते चिरो चिराग,नक्खास पर सजती बाजार…
Added by peeyush kumar on January 6, 2018 at 9:51pm — 7 Comments
खुद को भूली वो जब दिन भर के काम निपटा कर अपने आप को बिस्तर पर धकेलती तो आँखें बंद करते ही उसके अंदर का स्व जाग जाता और पूछता " फिर तुम्हारा क्या". उसका एक ही जवाब "मुझे कुछ नहीं चाहिए. कभी ना कभी तो मेरा भी वक्त आएगा. उसे याद है अपने छोटे से घर की…
ContinueAdded by नयना(आरती)कानिटकर on January 6, 2018 at 6:45pm — 3 Comments
मुतदारिक सालिम मुसम्मन बहर
212 212 212 212
आँख आँसू बहाती रही रात भर
दर्द का गीत गाती रही रात भर
आसमां के तले भाव जलते रहे
बेबसी खिलखिलाती रही रात भर
बाम पे चाँदनी थरथराने लगी
हर ख़ुशी चोट खाती रही रात भर
रूह के ज़ख्म भी आह भरने लगे
आरजू छटपटाती रही रात भर
प्यार की राह में लड़खड़ाये कदम
आशकी कसमसाती रही रात भर
आह भरते हुये राह तकते रहे
राह भी मुँह चिढ़ाती रही रात भर …
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 6, 2018 at 5:30pm — 31 Comments
जनवरी की कड़ाके की ठंड। घना कोहरा। सुबह क़रीब पांच बजे का वक़्त। सरपट भागती ट्रेन की बोगी में सादी साड़ियां, पुराने से सादे स्वेटर और रबर की पुरानी से चप्पलें पहनी चार-पांच ग्रामीण महिलाओं की फुर्तीली गतिविधियां देख कर नज़दीक़ बैठा सहयात्री उनसे बातचीत करने लगा।
"ये चने की भाजी कहां ले जा रही हैं आप सब?"
"दिल्ली में बेचवे काजे, भैया!" एक महिला ने भाजी की खुली पोटली पर पानी के छींटे मारकर दोनों हाथों से भाजी पलटते हुए…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on January 6, 2018 at 7:30am — 4 Comments
बह्र- फऊलुन फऊलुन फऊलुन फऊलुन
ग़ज़ब की है शोखी और अठखेलियाँ हैं।
समन्दर की लहरों में क्या मस्तियाँ हैं।
महल से भी बढ़कर हैं घर अपने अच्छे,
भले घास की फूस की आशियाँ हैं।
मुकम्मल भला कौन है इस जहाँ में,
सभी में यहाँ कुछ न कुछ खामियाँ हैं।
ज़िहादी नहीं हैं ये आतंकवादी,
जिन्होंने उजाड़ी कई बस्तियाँ हैं।
ये नफरत अदावत ये खुरपेंच झगड़े,
सियासत में इन सबकी जड़ कुर्सियाँ हैं।
समन्दर के जुल्मों सितम…
ContinueAdded by Ram Awadh VIshwakarma on January 5, 2018 at 10:27pm — 16 Comments
मामले की सुनवाई के उपरांत सजा तय हो चुकी थी।अब ऐलान होना शेष था।न्याय-प्रक्रिया के चौंकानेवाले तेवर के मद्दे नजर लोगों में उत्सुकता बढ़ती जा रही थी कि घोटाले के इस मामले में आखिर क्या सजा होती है।बाकी के हश्र सामने थे,वही ढाक के तीन पात जैसे।और न्याय की देवी आज -कल में फँसी हुई थी,क्योंकि कभी किसी वकील की मर्सिया-सभा हो रही होती, तो कभी कुछ और कारण होता।
-फिर कल?
-हाँ, अब कल सजा सुनाई जायेगी।
-वो क्यों?
-पता नहीं।हाँ मुजरिम ने कुछ कम सजा की गुहार लगायी है।…
Added by Manan Kumar singh on January 5, 2018 at 8:00pm — 13 Comments
कुछ कहते-कहते ...
विरह निशा के श्यामल कपोलों को चूम
निशब्द प्रीत
अपनी निष्पंद साँसों के साथ
कुछ कहते-कहते
सो गयी
व्यथित हृदय
कब तक बहलता
पल पल
टूटती यादों के खिलौनों से
स्मृति गंध
आहटों के राग की प्रतीक्षा में
नैनों में
वेदना की विपुल जलराशि भरे
पवन से
कुछ कहते-कहते
सो गयी
खामोशियाँ
बोलती रहीं
शृंगार सिसकता रहा
थके लोचन
विफलता के प्रहार
सह न सके…
Added by Sushil Sarna on January 5, 2018 at 5:38pm — 9 Comments
पहाड़ी नारी
कुदरत के रंगमंच का
बेहद खूबसूरत कर्मठ किरदार
माथे पर टीका नाक में बड़ी सी नथनी
गले में गुलबन्द ,हाथों में पंहुची,
पाँव में भारी भरकम पायल पहने
कब मेरे अंतर के कैनवास पर
चला आया पता ही नहीं चला
पर आगे बढने से पहले ठिठक गई मेरी तूलिका
हतप्रभ रह गई देखकर
एक ग्रीवा पर इतने चेहरे!!!
कैसे संभाल रक्खे हैं
हर चेहरा एक जिम्मेदारी के रंग से सराबोर
कोई पहाड़ बचाने का
कोई जंगल बचाने…
ContinueAdded by rajesh kumari on January 4, 2018 at 7:30pm — 21 Comments
212 1222 212 1222
बज़्म ये सजी कैसी कैसा ये उजाला है
महकी सी फ़ज़ाएँ हैं कौन आने वाला है
-
चाँद जैसे चेहरे पे तिल जो काला काला है
मेरे घर के आँगन में सुरमई उजाला है
-
इतनी सी गुज़ारिश है नींद अब तू जल्दी आ
आज मेरे सपने में यार आने वाला है
-
जागना वो रातों को भूक प्यास दुख सहना
माँ ने अपने बच्चों को मुश्किलों से पाला है
-
उसके दस्त-ए-क़ुदरत में ही निज़ाम-ए-दुनिया है
इस जहान-ए-फ़ानी को जो बनाने वाला है
-…
Added by SALIM RAZA REWA on January 4, 2018 at 5:30pm — 28 Comments
पहली जनवरी की सुबह कुहरे की चादर लपेटे, रोज से कुछ अलग थी। सामने कुछ भी दिखाई नही दे रहा था। चाहे मौसम अनुकूल हो या प्रतिकूल, गौरव की दिनचर्या की शुरूआत मॉर्निंग वॉक से ही होती है, सो आज भी निकल गया हाथ मे एक टार्च लिए।
गली के चौराहे पर रोज की तरह शर्मा जी मिल गए। गौरव ने उनको हैप्पी न्यू ईयर बोला। पर शर्मा जी शुभकामना देने के बजाय भड़कते हुए बोले-
"अरे गौरव भाई! कौन से नव वर्ष की बधाई दे रहे हैं आप? आज आपको कुछ भी नया लग रहा है। क्या?"
क्यों? आपके…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on January 4, 2018 at 1:30pm — 12 Comments
कुछ डोरियां
कच्चे धागों की होती हैं ,
कुछ दृश्य होती हैं ,
कुछ अदृश्य होती हैं ,
कुछ , कुछ - कुछ
कसती , चुभती भी हैं ,
पर बांधे रहती हैं।
कुछ रेशम की डोरियां ,
कुछ साटन के फीते ,
रंगीले-चमकीले ,फिसलते ,
आकर्षित तो बहुत करते हैं ,
उदघाट्न के मौके जो देते हैं ,
पर काटे जाते हैं।
इस रेशम की डोरी
की लुभावनी दौड़ में ,
ज़रा सी चूक ,
बंधन की डोरियां
छूट गईं या टूट गईं ,
रेशम की डोरियां …
Added by Dr. Vijai Shanker on January 4, 2018 at 9:30am — 10 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on January 4, 2018 at 9:24am — 7 Comments
जो हमसे मोहब्बत नहीं है तो हमको
बताओ कि हमसे लजाते हो क्यूँ तुम?
निगाहें मिला कर निगाहों को अपनी
झुकाते हो हमसे छिपाते हो क्यूँ तुम?
कभी फेरना पत्तियों पर उँगलियाँ,
कभी फूल की पंखुड़ी पर मचलना
अचानक सजावट की झाड़ी को अपनी
हथेली से छूते हुए आगे बढ़ना
ये शोखी ये मस्ती दिखाते हो क्यूँ…
ContinueAdded by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 4, 2018 at 8:00am — 7 Comments
विपदा से हारो नहीं, झेलो उसे सहर्ष
नित्य खुशी औ' प्यार से, बीते यह नववर्ष।१।
नभ मौसम सागर सभी, कृपा करें अपार
जनजीवन पर ना पड़े, विपदाओं की मार।२।
इंद्रधनुष के रंग सब, बिखरे हों हर बाग
नये वर्ष में मिट सके, भेद भाव का दाग।३।
खुशियों का मकरंद हो, हर आँगन हर द्वार
हो सब में सदभावना, जीने का आधार।४।
विदा है बीते साल को, अभिनंदन नव वर्ष
ऋद्धि सिद्धि सुख…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 4, 2018 at 8:00am — 12 Comments
2122 1122 1122 22
जहर कुछ जात का लाओ तो कोई बात बने ।
आग मजहब से लगाओ तो कोई बात बने ।।
देश की शाख़ मिटाओ तो कोई बात बने ।
फ़स्ल नफ़रत की उगाओ तो कोई बात बने ।।
सख़्त लहजे में अभी बात न कीजै उनसे।
मोम पत्थर को बनाओ तो कोई बात बने ।।
अब तो गद्दार सिपाही की विजय पर यारों ।
याद में जश्न मनाओ तो कोई बात बने ।।
जात के नाम अभी…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on January 4, 2018 at 12:39am — 8 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on January 3, 2018 at 10:31pm — 3 Comments
भुइंया लोग विजय-पर्व मना रहे थे।यह उनकी पुरातन परंपरा का हिस्सा था।उनके पूर्वजों ने कभी अपने पूर्वाग्रह ग्रस्त मालिकों को बुरी तरह पराजित किया था। तब से यह दिन भुइंया समुदाय के लिए उत्साह और उत्सव का पर्याय बन गया था। 'जई हो,जई हो',की तुमुल ध्वनि गूँजने लगी।यह उनके उत्सव के उत्कर्ष की स्थिति थी।ढ़ोल, नगाड़े,तुरही सब के बोल चरम पर थे। झंकार ऐसी कि मुर्दे भी स्पंदित हो जायें, नृत्य करने लगें। पर,यह क्या?अचानक भगदड़ -सी होने लगी।किसी के सिर से लहू के फव्वारे निकल पड़े।कहीं से किसी ने पत्थर…
Added by Manan Kumar singh on January 3, 2018 at 10:00pm — 2 Comments
Added by Manan Kumar singh on January 2, 2018 at 10:30pm — 9 Comments
2122 2122 2122 212
.
मुश्किलों में दिल के भी रिश्ते पुराने हो गए
ग़ैर से क्या हो गिला अपने बेगाने हो गए
-
चंद दिन के फ़ासले के बा'द हम जब भी मिले
यूँ लगा जैसे मिले हमको ज़माने हो गए
-
पतझड़ों के साथ मेरे दिन गुज़रते थे कभी
आप के आने से मेरे दिन सुहाने हो गए
-
मुस्कराहट उनकी कैसे भूल पाएगें कभी
इक नज़र देखा जिन्हें औ हम दिवाने हो गए
-
आँख में शर्म-ओ-हया, पाबंदियाँ, रुस्वाईयां
उनके न आने के ये…
ContinueAdded by SALIM RAZA REWA on January 2, 2018 at 9:00pm — 18 Comments
फिर आ गया
नववर्ष लेकर
नयी उमंग ।
नयी सौगात
उम्मीद की किरण
नव वर्ष में ।
जन जीवन
चमकें उल्लास में
नव वर्ष में ।
यादों का रेला
खामोश समंदर
बहा जो पाता ।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Neelam Upadhyaya on January 2, 2018 at 2:44pm — 6 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |