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January 2015 Blog Posts (202)

मेरे गृह भी आये दिनकर(नवगीत)

नभ के हाँथ गुलाल हो गया

मुख प्राची का लाल हो गया

मेरे गृह भी आये दिनकर



प्रथम किरण के साथ साथ ही

तम को जैसे जेल हो गया

रवि आते हैं तम जाता है

लुका छिपी का खेल हो गया

बदली के पीछे से देखो

ताँक झाँक करते रह रहकर

मेरे गृह भी आये दिनकर



मादक सी अँगड़ाई लेती

कलियों की मुस्कान देख लो

कोयल गाती है किस धुन में

उसकी प्यारी गान देख लो

ताली बजा रहें है पत्ते

झूम झूमकर नाचे तरुअर

मेरे गृह भी आये दिनकर



इन्द्र… Continue

Added by ram shiromani pathak on January 6, 2015 at 10:55am — 6 Comments

दो नन्हें फूल

दो नन्हें फूल,मेरे आँगन के

खिलते महकते,खुशियाँ जीवन के

लड़ते झगड़ते, कभी रुठ भी जाते

पल भर में फिर भूल भी जाते

भोली हँसी कोमल इनका मन है

इनकी बातो में झरते सुमन हैं

दुख का साया, इनके पास न आए

निर्मल धारा ये, बस बहते ही जाए

‘काशवी’ जीवन है तो,’दैविक’ वर है

इनसे ही तो बना ,मेरा घर , घर है

          ***********

काशवी’-प्रकाशवान

दैविक- ईश्वर का दिया वरदान

       …

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Added by Maheshwari Kaneri on January 5, 2015 at 8:30pm — 7 Comments

मोहब्बत इस ज़माने में गुनाह हो गया

हम तुम्हारे थे पर तुम क्यूँ समझी नही

बेवजह सबकी बातों में उलझी रही

संदेहात्मक परिस्थिति भी सुलझी नही

तुम से जुड़ना ही मेरा गुनाह हो गया

मोहब्बत इस ज़माने में गुनाह हो गया |

तुम से मिलकर फ़कीर दिल भी राजा हुआ

मन का मुरझाया फूल भी ताजा हुआ

मेरे हर दुःख-दर्द का भी जनाजा हुआ

तुम्हारा पास आना भी गुनाह हो गया

मोहब्बत इस ज़माने में गुनाह हो गया |

तुमने दिए जो जख्म अब वो भरते नही

मेरी सांसे भी रुकने से अब तो डरते नही

मर चुके जो…

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Added by maharshi tripathi on January 5, 2015 at 6:53pm — 8 Comments

'मुखौटा'

''माँ भैया का अंतरजातीय विवाह तो आपने आसानी से स्वीकार कर लिया था फिर मेरे अंतरजातीय विवाह के लिए इंकार क्यों कर रही हो.'' छोटे बेटे ने माँ से बहस करते हुए कहा.

माँ ने कहा, "उसने तो हमसे उच्च वर्ग की लड़की पसंद की थी पर तुम्हारी पसंद तो हम से नीची जाति की है. नीची जाति की लड़की हम कैसे स्वीकार कर सकते हैं."

-श्रद्धा थवाईत

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Shraddha Thawait on January 5, 2015 at 4:24pm — 8 Comments

कहीँ तो हो खुदा कोई ~ गज़ल

1222 1222

कहीँ तो हो खुदा कोई ।
सुने दिल की रज़ा कोई ।

झुका है दिल उठे हैँ हाथ ,
करे पूरी दुआ कोई ।

जफा पायी जमाने से ,
निभा जाये वफा कोई ।

किसी से क्योँ खता होती ,
क्यूँ पाता है सजा कोई ।

जो दिल की बेबसी समझे ,
नहीँ ऐसा मिला कोई ।

किसी की याद फिर आयी ,
अश्क बन फिर बहा कोई ।

मौलिक व अप्रकाशित
नीरज मिश्रा

Added by Neeraj Nishchal on January 5, 2015 at 4:00pm — 11 Comments

मरुस्थलीय मृगतृष्णा

मरुस्थलीय मृगतृष्णा

*****************

तुम कहती हो

प्रतिभाशाली बनो

पर मैं असक्त

प्रतिभाओं का बोझ

उठा नहीं सकता

मरुस्थलीय मृगतृष्णा के

पीछे भाग नहीं सकता

जिस शून्यता की अवस्था में

जी रहा हूँ , क्या उसमे

तुमको पा नहीं सकता ?

मुझ शुन्य को अब

तुम्हारा ही सहारा है

तुमसे जुड़कर ही मेरा

कोई आधार बनेगा

यह गतिहीन जीवन

कुछ आगे बढेगा

मेरे हृदय के पवित्र भावों…

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Added by Hari Prakash Dubey on January 5, 2015 at 12:30pm — 19 Comments

दोहा गीत (सुबह -सुबह)

देखो फिर से हो गया
मुख प्राची का लाल।

रविकर के आते हुआ सुन्दर सुखद प्रभात।
तरुअर देखो झूमते नाच रहें हैं पात।
किरणों ने कुछ यूँ मला इनके गाल गुलाल।

मंद मंद यूँ चल रही शीतल मलय बयार।
प्रकृति सुंदरी कर रही अपना भी शृंगार।।
फ़ैल गया चारो तरफ किरणों का जब जाल।

जन जीवन सुखमय हुआ,समय हुआ अनुकूल।
कोयल भी अब गा रही,खिले खिले हैं फूल।।
ठिठुरे तन को घूप ज्यों शुक को मिले रसाल।

-राम शिरोमणि पाठक
मौलिक।अप्रकाशित

Added by ram shiromani pathak on January 5, 2015 at 10:30am — 19 Comments

दृष्टिकोण (लघुकथा)

चौराहे पर आकर एक लम्बी कार रुकी तो एक भिखारिन अपने बच्चे को गोद में उठा कर उस के पास जाकर भीख मागने लगी तभी उसकी नजर उस कार की पिछली सीट पर रखी एक फोटो पर गई जिस में एक गरीब औरत पुराने चिथड़ों से अपने शरीर को ढकते हुए अपने बच्चे को अपने आँचल में छुपाते हुए डरी सहमी बैठी थी यह वही फोटो थी जो पिछले दिनों लाखो रुपयों में बिकी थी, इतनी ही देर में कार के अंदर से आवाज आई, "चल चल आगे चलो…

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Added by harikishan ojha on January 5, 2015 at 10:00am — 9 Comments

ग़ज़ल- छुट्टियों के दिन

मस्कुराते हैं छुट्टियों के दिन

कम ही आते हैं छुट्टियों के दिन

कंपकंपाते हैं छुट्टियों के दिन  

थरथराते हैं छुट्टियों के दिन 

देखो सचमुच में थक गये हैं हम,

ये बताते हैं छुट्टियों के दिन



सैंकडों काम छोड कर बाकी

भाग जाते हैं छुट्टियों के दिन



सपनों के बोझ में दबे बच्चे

खेल पाते हैं छुट्टियों के दिन



चार दिन घर में रह नहीं पाये,

अब थकाते हैं छुट्टियों के दिन

आदतें और थकान,आलस…

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Added by सूबे सिंह सुजान on January 4, 2015 at 11:00pm — 16 Comments

बस तुम्ही पे आस है ( कविता)

उठ सम्भल ओ नौजवान

यही है तेरे नाम पैगाम

लिंग जाती धर्म भेद

आग में जलाए चल

एक थे हम एक हैं

अलख तू लगाए चल

दम तेरे पास है

बस तुम्हीं पे आस है

 

बाधा कोई रोक ले

चूलें तू उसकी ठोक दे

हर दीबार को गिराए चल

हक पाने के लिए

जन जन को जगाए चल

बस तुम्हीं में श्वास है

बस तुम्हीं पे आस है

 

पुण्य आज डूब रहा

पाप फल फूल रहा

सत्ता भ्रष्ट हो रही

जनता त्रस्त रो…

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Added by कंवर करतार on January 4, 2015 at 10:00pm — 10 Comments

ग़ज़ल - प्यार दिल का योग है जी !

2 1 2 2 -2 1 2 2



प्यार दिल का योग है जी  !

ये भी* तो इक रोग है जी  !!



आज जिसको प्यार कहते !

जिस्म का बस भोग है जी  !!



जुर्म माना इश्क को कब ! 

ये सदा इक जोग है जी !!



कुंडली* को तुम देख लेना !

उसमे* भी धनयोग है जी  !!



साथ सच्चा मिल गया हो !

तो बड़ा संयोग है जी !!



दर्द सबका ले लिया तो !

ये सही उपयोग है जी !!



जान का जब साथ हो तो  !

तो यही संजोग है जी !!



काम में गर साथ दे हम…

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Added by Alok Mittal on January 4, 2015 at 8:00pm — 13 Comments

कविता के ब्याज से

कमल-नैन या कंज-लोचन है वह  

कहते है शोक-विमोचन है वह  

पद्म -पांखुरी जैसे है अधर

रक्त-नलिन से कपोल है सुघर

 

नील-नीरज सा मोहक वदन

वपुष नीलोत्पल सुषमा-सदन

है दीर्घ बाहे अम्बुज की नाल

पाद-पुष्ट मानो है पंकज मृणाल

 

हाथ की हथेली है राजीव-दल

विकसित है कर में श्याम-शतदल

चरण-सरोज की है महिमा अनूप

सांवले सरोरुह सा खिला-खिला रूप…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 4, 2015 at 7:30pm — 14 Comments

ग़ज़ल : आजमाते पंख के फैलाव को.

2122,2122,212

सह सके ना फूल के टकराव को.

हैं मुकाबिल झेलने सैलाव को.

थामना पतवार सीखा है नहीं.

हैं चले खेने बिफरती नाव को.

हौसला उनका झुकाता आसमां.

आजमाते पंख के फैलाव को.

हर सफलता चूमती उनके कदम,

आजमाते वक़्त पर जो दाव को.

भाव उनके भी गिरेंगे एक दिन,

भूल जाते हैं सरे सद्भाव को.

.

हरिवल्लभ शर्मा दि. 04.01.2015

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Added by harivallabh sharma on January 4, 2015 at 6:30pm — 15 Comments

नव जीवन--

"बाबू, बाबू" , बाबा के मुंह अस्पष्ट सी आवाजें निकल रही थीं | वो अब धीरे धीरे अपनी ऑंखें खोलने का प्रयास कर रहे थे | खून अभी भी उनकी कलाईयों में चढ़ रहा था और मैं उनके सिरहाने बैठा उनको सहला रहा था |

मुझे सुबह का घटनाक्रम याद आ गया जिसके चलते उनको चोट लगी थी | मैं उनका लाडला पोता था और मुझे वो हमेशा बाबू ही बुलाते थे | मैं कल ही गांव आया था और आज मुझसे मिलने गांव के कई लोग आ गए | उसी बीच एक दलित लड़का आ कर दरवाजे पर पड़ी खाट पर बैठ गया | बाबा ने कभी भी दलितों को बराबर नहीं समझा था , शायद यह…

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Added by विनय कुमार on January 4, 2015 at 1:34pm — 8 Comments

एक-एक शून्य(लघुकथा)

"देखिये श्रीमान आपका बेटा फिर से हर विषय में फेल हो गया है, किसी में 5, किसी में 6, किसी में 7 नंबर, इसीलिए आपको बुलाना पड़ा I लीजिये आप खुद ही इसकी सारी कॉपी देख लीजिये I" "

"अरे गुरूजी ये लीजिये, अब लिफाफा पकड भी लीजिये, आपका ही बच्चा है ,बस एक-एक शून्य लगा दीजिये I"

.

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित"

Added by Hari Prakash Dubey on January 4, 2015 at 1:30pm — 12 Comments

"मेरी रचना" (अतुकान्त-कविता )

"मेरी रचना"    

                                                          

देखते-दिखाते

कभी सुनते-सुनाते

चलते –चलाते

कभी पढ़ते-पढ़ाते

कुच्छ करते-कराते

कभी बतियाते

न जाने कब यह  मन

पहुँच जाता कहां है

किसी देवता के

खेल चढ़े गुर की तरह

संबेदनाओं की टंकार से  

हो कर सम्पदित

द्रबित मन

यादों के ढेर पर से

काल की धूली हटाता

चपल भावों की लहरें

शब्दों के पतवार

वाक्यों की…

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Added by कंवर करतार on January 4, 2015 at 1:00pm — 7 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
पाँच दोहे

 

नये साल की ये सुबह, सुन कोयल का गान ।

मन में ऊर्जा भर गई, तन में आई जान ।।

 

सर्द हवा की ले छुअन, मुख से निकले भाप।

भला-भला सा लग रहा, अंगारों का ताप।।

 

समय वक्र की ऊर्ध्व गति, अधो उम्र की चाल।

जीवन जो है हाथ में, गड्ढे में ना डाल।।

 

बीत गया जो वर्ष तो, देखें ना लाचार।

अपने सपनों को मिले, एक नया आधार।।

 

मोहक आँखों को लगे, एक सुहाना दृश्य।

पीछे क्या सौंदर्य के, हो मालूम…

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Added by शिज्जु "शकूर" on January 4, 2015 at 12:30pm — 18 Comments

होगा सबको हर्ष.....

होगा सबको  हर्ष

जब होगा नव वर्ष

होगा सवेरा नवीन

संध्या होगी नवीन

दिवस  भी नया

होगी रजनी नई

गगन  भी नया

निर्मल सरिता नई

हिमांशु  नवीन  

रवि होगा नवीन

मुस्कुराए  वरुण  

रश्मि होगी अरुण

वे उर्मिल  किरण

करें आकांक्षी वरण

कोई हो न संकीर्ण  

होवें  पूर्ण  प्रवीण

आलोकित हो ......

खुशियों  की उमंग

रहे  बजता  मृदंग

बूढ़े बच्चे सब संग

झूमें खेलें नव रंग...

न…

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Added by anand murthy on January 4, 2015 at 12:30pm — 8 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल --- ज़रा सा बाज़ आ जाओ

1222 / 1222 / 1222 / 1222

-

ग़ज़ल ने यूँ पुकारा है मेरे अल्फाज़, आ जाओ 

कफ़स में चीख सी उठती, मेरी परवाज़ आ जाओ

 

 

चमन में फूल खिलने को, शज़र से शाख कहती है 

बहारों अब रहो मत इस कदर नाराज़ आ जाओ





किसी दिन ज़िन्दगी के पास बैठे, बात हो जाए

खुदी से यार मिलने का करें आगाज़, आ जाओ





भला ये फ़ासलें क्या है, भला ये कुर्बतें क्या है

बताएँगे छुपे क्या-क्या दिलों में राज़, आ जाओ





हमारे बाद फिर महफिल सजा लेना…

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Added by मिथिलेश वामनकर on January 3, 2015 at 11:51pm — 61 Comments

नया साल आया

बीते वर्षों में जो भी मिला है मुझे

नहीं उससे कोई गिला है मुझे

नयन नीर मिले कुछ पीर मिले

दिल के राजा हैं ऐसे फ़कीर मिले

इन्हें राजा बना दें नया साल आया

खुशियाँ बिछा दें नया साल आया|

टुकड़े-टुकड़े किये जिनके सपनों को मैंने

खंडित किया जिनके अपनों को मैंने

व्यतित वर्ष में जिनका भी दिल दुखाया

हँसता हुआ मैंने जो महफ़िल जलाया

हँसी…

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Added by maharshi tripathi on January 3, 2015 at 6:51pm — 7 Comments

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