Added by amita tiwari on February 22, 2016 at 10:30pm — 4 Comments
चुप हो जाते हैं.....
मन ही मन
हम कितना बतियाते हैं
जब अक्सर
हम चुप हो जाते हैं//
कभी आँखें बोलती हैं
कभी लब थरथराते हैं
रुके हुए पाँव
मील का पत्थर हो जाते है
जब अचानक
हम चुप हो जाते हैं//
तारीकियों के कैनवास पे
रिश्तों की सिसकती रेखाओं से
अपनी तूलिका में
दर्द का रंग भरकर
उसमें सिमट जाते हैं
अक्सर जब
हम चुप हो जाते हैं//
तपती राहों पर
सूखे होते शज़र से लिपट…
Added by Sushil Sarna on February 22, 2016 at 9:37pm — 2 Comments
आज मेरी "दुष्कर्म" पर हो रही शोध को पुरे तीन साल हो गएI बस अब तो पर्यवेक्षक का फाइनल वेरिफिकेशन बाकि हैI उसी काम के लिए आज उन्होंने मुझे अपने घर पर बुलाया हैI
"गुड मॉर्निंग सर" - में घर में घुसते ही बोलीI
"आओ दामिनी किसी हो"
"ठीक हुँ सर"
घर में सन्नाटा था, में सोफे पर बैठ गईI "मेडम नहीं दिख रहे" कहाँ है?
वो मायके गई हैI, तपाक से जवाब मिलाI ये सुन में थोड़ी डर गई, वो मेरे पास आकर बैठ गए, मुझे अजीब सी घुटन होने लगीI मेरी धड़कने तेज हो गई, न जाने क्यों मुझे कुछ अनहोनी का…
Added by harikishan ojha on February 22, 2016 at 8:46pm — No Comments
हर कोई लालायित कितना, कैसे भी हों कालजयी
इस चक्कर में ठेला-ठाली, धक्का-मुक्की मची रही
नदी वही है, लहर वही है, और खिवईया रहे वही
लेकिन अपनी नाव अकेली बीच भंवर में फंसी रही
बार-बार समझाते उनको हम भी हैं तुम जैसे ही
बार-बार उनके भेजे में बात हमारी नहीं घुसी
छोडो तंज़-मिजाज़ी बातें, आओ बैठो गीत बुनें
खींचा-तानी करते-करते बात वहीं पे रुकी रही
(अप्रकाशित मौलिक)
Added by anwar suhail on February 22, 2016 at 8:30pm — No Comments
अपनी मांग को लेकर एक समुदाय के लोग शांति से आंदोलन कर रहे थे। अचानक आंदोलन ने उग्र रूप लिया। अन्य समुदायों से झड़पें हुई। मारा-मारी हुई। छोटी-बड़ी सड़कें बन्द। लूट-पाट शुरू। यह सब ऎसे चला की मारा-मारी में हुई झड़पों में कइयों की जानें भी गई।
एक पत्रकार मांग को लेकर आंदोलन कर रहे समुदाय के बड़े नेता से
-यह जो हो रहा है, क्या यह सब ठीक है?
-जब चारों तरफ आगजनी हो, मारा-मारी हो, सब अपने ही लोग अपनों को मारने पर तुले हों, जनता हालातों से तंग आ गई हो तो कुछ ठीक कहा जा सकता है? यह…
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on February 22, 2016 at 3:00pm — 5 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 22, 2016 at 12:45pm — 6 Comments
आख़िरकार आज पिछले सत्रह सालों की साधना रंग ला ही गई, कसम से क्या–क्या पापड़ बेलने पड़े इस सचिवालय तक पहुँचने के लिए... नए सचिव साहब, मन ही मन सोचते हुए, कभी अपने खूबसूरत दफ्तर और कभी अपने स्वागत में प्रस्तुत फूलों के अम्बार को देख–देख कर मुस्करा रहे थे कि तभी, दरवाजे की घंटी बज उठी, एक आवाज आयी “क्या मैं अन्दर आ सकता हूँ ? “जी, फ़रमाइए।”
“जय हिन्द सर, मै आपका ‘वैयक्तिक सहायक’ हूँ, आपका इस नए कार्य क्षेत्र में स्वागत है, मेरी तरफ से ये तुच्छ भेंट स्वीकार कीजिये साहब।”
“ओह ! धन्यवाद आपका,…
Added by Hari Prakash Dubey on February 22, 2016 at 10:06am — 6 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on February 22, 2016 at 8:00am — 4 Comments
115
मेरी प्यारी व्यथा
===========
खपरैल से निर्विघ्न आती
वर्षा की अनुपम फुहारों से,
आर्द्रशीत अनिल ने, भिगोया था तनमन अपना।
मेंढकों की सी जिंदगी में उस दिन...
अपनी 'भुजा की तकिये' के नीचे से आता,
बड़े चाव से, तुम्हारा--- स्वर सुना।
गुंजरित बसंत कहीं पल्लवित वसुंधरा
स्वतंत्र कामना समूह के अनोखे जाल में
बटोरे थी, आकर्षक संन्निधि अपनी,
'बक मीन दर्शन' की दशा को ,
चित्त दे, सौरभ विखेरते शशांक में,
भूख प्यास भूल, तुझे पल पल…
Added by Dr T R Sukul on February 21, 2016 at 4:49pm — 4 Comments
2122 1122 1122 22
सारे धर्मों की सही बात उठाई जाए,
उसकी इक बूँद हर इन्साँ को पिलाई जाए।
है समंदर ही समंदर मगर इन्साँ प्यासा
सूखे होठों की चलो कहाँ प्यास बुझाई जाए।
आज तक माफ़ किया जिनको समझ कर नादाँ
अब जरूरत है उन्हें आँख दिखाई जाए।
जेठ की गर्म हवाओं में भी बरसे सावन
मेहंदी प्यार की प्यार की मेहंदी जो हाथों में रचाई जाए।…
Added by Dr.Prachi Singh on February 21, 2016 at 2:30pm — 40 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
ये दौलत आदमी को आदमी रहने कहाँ देती ये बारिश बँध के इन नदियों को भी बहने कहाँ देती गजब का तैश अहदे नौ के इस आदम में देखा है ये ऐठन आदमी को आज कुछ सहने कहाँ देती हुए आजाद आजादी मिली कहने को बस हमको मगर दहशत दिलों की कुछ हमें कहने कहाँ देती ये बहशीपन ये गुंडागर्दी ये आतंक का साया शराफत मेरी दुनिया में… |
Added by Dr Ashutosh Mishra on February 21, 2016 at 2:08pm — 11 Comments
मौसम !
आजकल हर किसी चीज का मौसम हो रहा है। ष्षादी का मौसम, खरमास का मौसम मेला का मौसम और उपवास तथा स्नान का मौसम लगता है कि हमें मौसम के अलावा अन्य किसी तरह से रहा ही नहीं जाता। अब चुनाव का भी एक मौसम चल रहा है।
यह तुनक कर संजीव ने कहा और घर के भीतर भाग गया। उसके साथ बातचीत मंे ष्षामिल रहे नन्द गोपाल हक्के -बक्के रह गये और कुछ सोचत हुए सोफे पर पसर गये।
थोड़ी देर बाद पुनः संजीव ने वापस आकर बातचीतषुरू की । कहा कि अब अक्सर चुनाव हो रहे हैं और जनमानस में चुनावी लहर व्याप्त…
Added by indravidyavachaspatitiwari on February 21, 2016 at 1:43pm — 1 Comment
Added by shikha kaushik on February 21, 2016 at 12:33pm — 4 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on February 21, 2016 at 12:02pm — 4 Comments
आठ भगण पर आधारित सवैया...किरीट सवैया कहलाती है.
-१-
पावन हैं ऋतुराज समाजिक, मान सुज्ञान विधान प्रतिष्ठित.
पर्वत दृश्य समीर नदी रस, धार सुप्रीति समान प्रतिष्ठित.
काम कमान लिये फिरता, रति संग रखे हर बाण प्रतिष्ठित.
शंकर भस्म करे पल में, वर काम अनंग प्रधान प्रतिष्ठित.
-२-
गंग तरंग उमंग लिये नव प्राण धरा रस से कर सिंचित.
पाप विकार अनिष्ट गरिष्ठ समेट बही यश से कर सिंचित.
शुद्ध प्रबुद्ध प्रणाम करे…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 21, 2016 at 5:13am — 2 Comments
प्रेम कहानी
मेरी भी है प्रेम कहानी,जिसमे राजा और है रानी|
मिल कर खोला दिल का राज ,नदी किनारे की है बात|
कहा तुम्हारा साथ चाहिए ,प्यार भरे ज़ज्बात चाहिए|
दिल की बाते देना बोल ,नीम नहीं मिश्री के घोल|
मृग नैनी सु अधरों वाली ,तेरे बिना मै खाली खाली|
मेरी भी है प्रेम कहानी ,जिसमे राजा और है रानी|
लड़की का जवाब
यही बात तो सब है कहते ,साथ हमारे कभी न रहते\
कभी यहाँ है कभी वहाँ है ,रब ही जाने कहा कहा है|
कभी है राधा कभी…
ContinueAdded by Pankaj sagar on February 20, 2016 at 4:00pm — 1 Comment
212 212 212 212
शेर-सा, बाघ-सा, तेंदुआ-सा लगा
शह्र में हर कोई भागता-सा लगा
अक्स उसने दिखाया मेरा हू-ब-हू
आज कोई मुझे आइना-सा लगा
यूं मुझे ज़ीस्त के तज़्रिबे थे कई
तज़्रिबा इश्क़ का पर नया-सा लगा
क़ामयाबी मुक़द्दर के हाथ आ गई
कोशिशों से कोई ढूंढता-सा लगा
त्यौरियां हुक्मरानों की चढ़ने लगीं
जब भी आम-आदमी खुश ज़रा-सा लगा
जिस्म-ओ-जां एक कब के हुए…
ContinueAdded by जयनित कुमार मेहता on February 19, 2016 at 8:59pm — 13 Comments
सर्द सुबह में गुनगुनी धूप आज विधायक ‘बाबू राम’ के सरकारी बंगले पर मेहरबान थी, ‘बाबू राम’ जी, जो अब मंत्री भी बन चुके थे अपने सफ़ेद कुरते, पायजामे के साथ नीली जैकेट पहन, इत्र छिड़क कर अपने आप को शीशे में निहार-निहार कर आत्ममुग्ध हुए जा रहे थे तभी उनके नौकर ‘हरिया’ ने आवाज़ लगाई, “साहब ! साहब ! नाश्ता तैयार है।”
“अच्छा तो बाहर गार्डन में लगा दे और सुन ! जरा अखबार भी लेते आना, देखें क्या खबर है आज अपनी।”
जी सरकार, ...कहकर ‘हरिया’ चला गया और मंत्री महोदय बाहर…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on February 19, 2016 at 4:09pm — 6 Comments
(१) शक्ति छ्न्द=== इस छ्न्द मे १, ६, ११ , एवम् १६ लघु होता है /
=========================================
मापनी १२२ १२२ १२२ १२
ज़मीं पे सितारे थिरकने लगे /
मनो भाव बन कर मचलने लगे /
लिखे राज मुक्तक मगन मन सुधा/
सुमन गीत बनकर महकने लगे //
=============================
(२)मापनी= १२२२ १२२२ १२२२ १२२२
लगाओ पेड़ धरती पर करो खुशहाल अब धरती /
बिछाओ फूल चुन चुन कर यही घर घर खुशी भरती/
घटाएँ भी बहर बन के करें…
Added by राजकिशोर मिश्र 'राज' प्रतापगढ़ी on February 19, 2016 at 2:30pm — 3 Comments
Added by Rahila on February 19, 2016 at 12:43pm — 19 Comments
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