1222 1222 1222 1222
फ़ना के बाद भी अपनी निशानी छोड़ आये हैं ।
जिसे तुम याद रक्खो वो कहानी छोड़ आए हैं ।।
सुकूँ मिलता हमें कैसे यहां परदेश में आकर ।
विलखती मां की आंखों में जो पानी छोड़ आये हैं ।।
कलेजा मुँह को आता है जरा माँ बाप से पूछो ।
जो घर से दूर जा बेटी सयानी छोड़ आये हैं ।।
हमें इंसाफ का उनसे तकाज़ा ही नहीं था कुछ ।
अदालत में तो हम भी हक़ बयानी छोड़ आये हैं ।l
तेरे प्रश्नों का उत्तर था तेरे लहजे में ही…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on February 11, 2019 at 12:55am — 3 Comments
न्याय के मंदिर की मेरी पहली परिक्रमा थी i कोर्ट के आदेश के अनुसार मुझे एक कर्मचारी की सैलरी कोर्ट में जमा करनी थी I मैं ठीक दस बजे चेक लेकर कोर्ट पहुंच गया I कैशियर साहब ग्यारह बजे आये और बोले –‘इसे स्टैंडिंग काउंसल से वेरीफाई करा के लाओ I’
स्टैंडिंग काउंसल ने डांट लगाई –‘हाउ यू डेयर कम डायरेक्टली टू मी I कम थ्रू माय आफिस I’ मैं आफिस गया I संबंधित बाबू सीट पर नहीं थे I वह एक घंटे बाद आये और आकर मोबाईल पर बतियाने लगे I दस मिनट बाद खाली हुए तो झुंझलाकर बोले- ‘क्या है…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 9, 2019 at 11:00pm — 4 Comments
नजर अपनी उठा लो तो गिले शिकवे भुला लूँ मैं
मुझे बस एक पल दे दो है क्या दिल में बता लूँ मैं
निगाहें तो मिला लेता मगर ये खौफ है दिल में
कही ऐसा न हो दिल का चमन खुद ही जला लूँ मैं
कभी तो मेरी गलियों से मेरा वो यार गुजरेगा
मेरा भी फ़र्ज़ बनता है गुलों से रह सजा लूँ मैं
तुम्हारे पग जहाँ पड़ते वहीं पर फूल खिल जाते
है हसरत दिल के सहारा में हसीं गुल इक ऊगा लूँ मैं
अगर ओंठों से निकली शै तो हंगामा…
Added by Dr Ashutosh Mishra on February 9, 2019 at 11:20am — 1 Comment
2122 2122 2122 2
मत समझना मैं पढ़ा अख़बार हूँ कल का
हमसफ़र हूँ,काबिले-आसार हूँ कल का।1
राह सिमटी जा रही है आज की पल-पल
देख लो मुझको जरा आधार हूँ कल का।2
कौड़ियों के मोल बिकता आज तुम्हारा
सच लिए चलता रहा मनुहार हूँ कल का।3
रोशनाई की उमंगों का…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on February 8, 2019 at 11:00pm — 6 Comments
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 8, 2019 at 2:30pm — 7 Comments
इस नज़र से उस नज़र की बात लम्बी हो गई
मेज़ पे रक्खी हुई ये चाय ठंडी हो गई
आसमानी शाल ने जब उड़ के सूरज को ढका
गर्मियों की दो-पहर भी कुछ उनींदी हो गई
कुछ अधूरे लफ्ज़ टूटे और भटके राह में
अधलिखे ख़त की कहानी और गहरी हो गई
रात के तूफ़ान से हम डर गए थे इस कदर
दिन सलीके से उगा दिल को तसल्ली हो गई
माह दो हफ्ते निरंतर, हाज़री देता रहा
पन्द्रहवें दिन आसमाँ से यूँ ही कुट्टी हो…
ContinueAdded by दिगंबर नासवा on February 8, 2019 at 1:30pm — 8 Comments
22 22 22 22 22 22 22 2
हर लम्हा इक चोट नई थी मुझ पर क्या गुजरी होगी
मेरी हस्ती टूट रही थी मुझ पर क्या गुजरी होगी
मेरे पाँव में इक कांटे से तुझको कितना दर्द हुआ
जब तू शोलों से गुजरी थी मुझ पर क्या गुजरी होगी
जिन सपनों को हमने मालिक के हाथों में सौंपा था
उन सपनों में आग लगी थी मुझ पर क्या गुजरी होगी
सारे रस्ते आकर के जिस रस्ते पर मिल जाते हैं
उस रस्ते पर पीर घनी थी मुझ पर क्या गुजरी होगी
छोड़…
ContinueAdded by मनोज अहसास on February 8, 2019 at 12:26pm — 6 Comments
अल्फाज़ रूठें हैं -
छोटे बच्चों की तरह,
मेरी शायरी पर -
अपने पैर पटक रहे हैं,
बहुत अरसे के बाद -
आया हूँ मिलने इनसे,
यकीनन इसलिए-
रूठे हैं मुझसे कट रहे हैं !!
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by रक्षिता सिंह on February 8, 2019 at 10:25am — 4 Comments
बह्र-
2122-2122-1221-222
सुन! जो उनसे हो मुलाकात जाये तो क्या होगा ।।
दरमियाँ फिर हो वही बात जाये तो क्या होगा।।
पर कहीं वो रूठ कर नजरें अपनी घुमा ली तो ।
बेबजह यूँ इश्क जजबात जाये तो क्या होगा।।
छोड़ उसको फिर न ये दर्द उलफत का देना अब।
रो के गर उसकी भी ये रात जाये तो क्या होगा।।
जानते हो ,वो यूँ मीलों सफर के जैसा है।
दो कदम चल के मुलाकात जाये तो क्या होगा ।।
मुझसे वो अच्छे से मिलना नहीं चाहती…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on February 7, 2019 at 6:37pm — 4 Comments
मन तिरता आकाश
नैनों में सपने तिरते हैं,
मन तिरता आकाश
देखूं जब भी तेरा मुखड़ा,
लगता खिला पलाश
मधुरिम गीत लिख रही मेंहदी,
पायल गाती है
माथे पर कुमकुम…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on February 7, 2019 at 5:15pm — 4 Comments
हिलता है तो लगता ज़िंदा है साया
लेकिन चुप है, शायद गूँगा है साया
कहने में तो है अच्छा हमराही पर
सिर्फ़ उजालों में सँग होता है साया
सूरज सर पर हो तो बिछता पाँवों में
आड़ में मेरी धूप से बचता है साया
असमंजस में हूँ मैं तुमसे ये सुनकर
अँधियारे में तुमने देखा…
Added by अजय गुप्ता 'अजेय on February 7, 2019 at 12:38pm — 3 Comments
रोशनी के सामने ये तीरगी क्या चीज़ है
वक़्त की आंधी के आगे आदमी क्या चीज़ है
***
जब थपेड़े ग़म के खाता है जहाँ में आदमी
तब उसे मालूम होता है ख़ुशी क्या चीज़ है
***
एक बच्चे की कोई भी आरज़ू पूरी हो जब
ग़ौर से फिर देखिये चेहरा हँसी क्या चीज़ है
***
ग़ुरबतों से लड़ के जिसने ख़ुद बनाया हो मक़ाम
बस वही तो जानता है…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 7, 2019 at 10:30am — 4 Comments
बड़े लोग कहते रहे, जीतो काम व क्रोध.
पर ये तो आते रहे, जीवन के अवरोध.
माफी मांगो त्वरित ही, हो जाए अहसास.
होगे छोटे तुम नहीं, बिगड़े ना कुछ ख़ास.
क्रोध अगर आ जाय तो, चुप बैठो क्षण आप.
पल दो पल में हो असर, मिट जाएगा ताप .
रोकर देखो ही कभी, मन को मिलता चैन.
बीती बातें भूल जा, त्वरित सुधारो बैन .
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by JAWAHAR LAL SINGH on February 6, 2019 at 10:50pm — 6 Comments
अंतिम साँझ .......
लिख लेने दो
एक अंतिम साँझ
मुझे
साँझ के पन्नों पर
अभिलाषाओं की वेदी पर
साँसों की देहरी पर
व्योम के क्षितिज़ पर
स्मृति के बिम्बों पर
मौन की गुहा में
स्पर्शों की गंध पर
श्वासों के आलिंगन में
अन्तस् के दर्पण पर
बिंदु के अस्तित्व में
लिख लेने दो
मुझे
प्राणों में लीन प्राणों की
अंतिम
साआआआं ... झ
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on February 6, 2019 at 7:24pm — 4 Comments
बचपन में हमने अपने दादा दादी और नाना नानी को तो नहीं देखा था ,पर हमारे पड़ोस में एक बुजुर्ग महिला जो अपने परिवार के साथ रहा करती थी । उन्ही से हमें बहुत प्यार मिला करता उनका अकसर हमारे घर में बिना नागा जाना जाना हुआ करता था ।हम उन्हें आमा यानी नानी कहा करते थे ।
वे जब भी हमारे घर आती थी,माँ उन्हें बड़े प्यार से बिठा कर चाय नाश्ता दिया करती थी । वे चाय नाश्ते के चुस्कियो के साथ-साथ अपनी हर छोटी-छोटी बातें ,हर दर्द हर दुख सुख माँ के साथ बाँटा करती थी। माँ भी उनकी हर बात बहुत…
ContinueAdded by Maheshwari Kaneri on February 6, 2019 at 4:00pm — 4 Comments
२२१/२१२१/२२२/१२१२
क्या कीजिएगा आप यूँ पत्थर उछाल कर
आये हैं भेड़िये तो सब गैंडे सी खाल कर।१।
कितने जहीन आज-कल नेता हमारे हैं
मिलके चला रहे हैं सब सन्सद बवाल कर।२।
वो चुप थे बम के दौर में ये चुप हैं गाय के
जीता न कोई देश का यारो खयाल कर।३।
पुरखे हमारे एक हैं मजहब से तोल मत
तहजीब जैसी कर रहे उस पर मलाल कर ।४।
माना की मिल गयी तुझे संगत वजीर की
प्यादा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 5, 2019 at 5:31am — 10 Comments
आज बचवा चाचा बहुत उदास दरवाजे पर बैठे थे. वैसे तो उदास उनका पूरा गांव ही हो गया था, अधिकांश नौजवान शहरों के बिजबिजाते भीड़ का हिस्सा बनने चले गए थे. कुछ जो बचे थे वह गांव में अक्सर रात को ही आते थे, दिन में तो उनका समय देसी शराब के ठेके या सिनेमा हाल पर ही बीतता था. हर घर में इक्का दुक्का बुजुर्ग ही बचे थे जो दिन को किसी तरह काट रहे थे. जितना होता एक दूसरे से बात करते या अपने अपने रोग को लेकर खटिया पर पड़े रहते.
गांव था तो गांव के अपने सुख दुःख भी थे. सबसे ज्यादा झगड़ा तो खेतों को लेकर ही…
Added by विनय कुमार on February 4, 2019 at 7:03pm — 6 Comments
एक सच ...
एक सच
व्यथित रहा
अंतस के अनंत में
एक सच
लीन रहा
मिलन के बसंत में
एक सच
ठहर गया
दृष्टि के दिगंत में
एक सच
प्रकम्पित हुआ
आभासी कंत में
एक सच
बंदी बना
अभिलाषी कंज में
एक सच
शकुंत बना
अवसान के अंत में
एक सच
अदृश्य रहा
जीवन के प्रपंच में
एक सच
शून्य बना
अंत के अनंत में
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on February 4, 2019 at 5:44pm — 6 Comments
भले नीम जां मेरा जिस्म हो अभी रूह इसमें सवार है
अभी जा क़ज़ा किसी और दर मेरी साँस में भी क़रार है
***
है जवाब देती लगे नज़र अभी है ख़याल की रोशनी
रहे ज़ीस्त मेरी रवाँ दवाँ ये तुम्हीं पे दार-ओ-मदार है
***
जो पिलाई तूने थी चश्म से कभी मय जो बन के थी साक़िया
न उतर सका न उतार पर चढ़ा अब तलक वो ख़ुमार है …
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 4, 2019 at 5:30pm — 7 Comments
S S S S S S S S S S S S S S S
.
देश के दुश्मन सबके दुश्मन इनसे यारी ठीक नहीं|
इनसे हाथ मिलाने वालों यह गद्दारी ठीक नहीं|
मंदिर-मस्ज़िद-धर्मों-मज़हब रक्षित औ महफूज़ हैं फिर
इनकी खातिर गोलीबारी -तेग-कटारी ठीक नहीं
माँ की अस्मत ख़तरे में औ मुल्क में हो गर त्राहिमाम
तब तो लोग कहेंगे दिल्ली की सरदारी ठीक नही।
आरक्षण की ख़ातिर ही अंधे-बहरे कुर्सी पर हैं
इस हालत से देश की होगी कुई बीमारी ठीक नहीं|
चारण हूँ मद्दाह नहीं मैं सच…
ContinueAdded by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on February 4, 2019 at 2:00pm — 4 Comments
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