गाँव में होली
गाँव में होली अपनी उफान पर थी । चंदू के द्वार पर सुबह से ही चौपाल बैठ गयी थी । उनका भतीजा कहीं बाहर कुछ काम करता था । उसीने शराब की कुछ बोतलें घर भेज रखी थीं । गाँव में उसका बड़ा भतीजा रहता था ; कुछ काम का, न काज का, बस दोस्त समाज का !खाने –पीनेवालों का ताँता सुबह से उसके दर पे लगने लगा,मुफ्त में शराब और गोश्त के कुछ पर्चे मयस्सर जो हो रहे थे । बीच –बीच में माँ –बहन की भी हो जा रही थी। सुननेवालों के मजे –ही –मजे थे । हम भी अपने दरवाजे पर…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on February 12, 2017 at 7:41pm — 4 Comments
Added by नाथ सोनांचली on February 12, 2017 at 2:30pm — 12 Comments
Added by Rahila on February 12, 2017 at 2:00pm — 13 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on February 12, 2017 at 11:55am — 12 Comments
जानती हूँ वायदों के बंध होते हैं जटिल
मुक्त हों हर बंध से मैं प्यार इतना चाहती हूँ...
ताज़गी की आड़ में कितनी थकन थी, क्या कहूँ
खिड़कियाँ सारी खुलीं थीं पर घुटन थी, क्या कहूँ
अब मिले हर स्वप्न को विस्तार इतना चाहती हूँ...
हर ख़ुशी मुझको मिली है आप जबसे मिल गए
आस के जो फूल मुरझाए हुए थे, खिल गए
गूँजता हर पल रहे मल्हार इतना चाहती हूँ...
आप तक आवाज़ पहुँचे मैं पुकारूँ जब कभी
आप भी जब-जब पुकारें मैं चली आऊँ तभी
प्यार का विश्वास…
Added by Dr.Prachi Singh on February 12, 2017 at 11:00am — 10 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 12, 2017 at 11:00am — 19 Comments
२२१ २१२१ १२२१ २१२
बह्र-ए-मज़ारअ मुसम्मिन अखरब मकफूफ़
यूँ भीड़ में जनाब पुकारा न कीजिये
रुसवा हमें यूँ आप दुबारा न कीजिये
बिलकुल खुली किताब है चेहरा ये आपका
हर रोज पढ़ रहे हैं इशारा न कीजिये
नाराज हो न जाएँ सितारे औ आसमाँ
यूँ चाँद का नकाब उतारा न कीजिये
मौजे मचल रही हैं तुम्हे देख देख कर
गर पाँव चूम लें तो किनारा न कीजिये
गुलशन उदास होगा परेशान डालियाँ
यूँ रास्ते गुलों से…
ContinueAdded by rajesh kumari on February 12, 2017 at 8:54am — 23 Comments
पिता धरा की शक्ति, धारणा के वाहक हैं।
माता धरा समान, सृष्टि की संचालक हैं।
दिया आपने जन्म, न उतरे ऋण की थाती।
मात- पिता गुणगान, आज ये जिह्वा गाती।
पिता धरातल ठोस, और मां ममता धारा।
पिता स्वयं वट वृक्ष, छांव मां ने पैसारा।
हम सब फल रसदार, मिष्ठता उनसे आती।
मात- पिता गुणगान, आज ये जिह्वा गाती।…
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 11, 2017 at 3:08pm — 8 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on February 11, 2017 at 1:36am — 6 Comments
221—2121—1221—212
कविता में सम्प्रदाय लिखा-सा मिला जहाँ
शब्दों के साथ जल गई सम्पूर्ण बस्तियाँ
धीरे से छंट रहा था कुहासा अनिष्ट का
कुछ शिष्टजन ही लेके चले आये बदलियाँ
शासक, प्रशासकों से ये संचार-तंत्र तक
घूमे असत्य भी अ-पराजित कहाँ कहाँ
ये फलविहीन वृक्ष लगाने से क्या मिला ?
दशकों से गिड़गिड़ाती, ये कहती हैं नीतियाँ
अँकुए में सिर उठाने का दृढ़ प्रण है बीज का
आती हैं तीव्र वेग से, तो…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on February 10, 2017 at 6:30pm — 9 Comments
बासंती उमंग
आज सुबह से ही बहुत भागमभाग रही|भगवानजी को पीले वस्त्रों से सुसज्जित किया ,तोरण, बंदनवार मीठे चावल ,केसरिया खीर बनाकर सरस्वतीजी को भोग लगाया |बच्चों को कई बार याद किया क्योंकि सजावट के ये सारे काम उन्हीं के सुपुर्द थे ,और वे भी बड़े उत्साह से सारी तैयारी कराते थे | ड्राइंग क्लास ,संगीत क्लास व घर की पूजा |तीनों जगह की पूजा करते करते न तो दम फूलता था ,न ही कोई परेशानी होती थी पर आज तो सुबह से ही थकान लग रही है |काम सब हो रहे हैं पर न तो कोई उमंग है न ही…
ContinueAdded by Manisha Saxena on February 10, 2017 at 1:09pm — 9 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on February 9, 2017 at 9:50pm — 6 Comments
Added by दिनेश कुमार on February 9, 2017 at 8:59pm — 11 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on February 9, 2017 at 8:49pm — 2 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on February 9, 2017 at 5:24pm — 5 Comments
बिना तुम्हारे
हे मेरी तुम
सब आधा है
सूरज आधा, चाँद अधूरा
आधे हैं ग्रह सारे
दिन हैं आधे, रातें आधी
आधे हैं सब तारे
जीवन आधा
दुनिया आधी
रब आधा है
आधा नगर, डगर है आधी
आधे हैं घर, आँगन
कलम अधूरी, आधा काग़ज़
आधा मेरा तन-मन
भाव अधूरे
कविता का
मतलब आधा है
फागुन आधा, मधुऋतु आधी
आया आधा सावन
आधी साँसें, आधा है दिल
आधी है…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 9, 2017 at 9:39am — 10 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on February 9, 2017 at 8:52am — 5 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 8, 2017 at 10:48pm — 13 Comments
Added by Aparajita on February 8, 2017 at 3:00pm — 15 Comments
ओ मेरे जीवन के सृंगार, मेरे पहले पहले प्यार,
तुम आओ तो हो जाये, मेरा हर सपना साकार
खेतों में सरसों लहराई, चलने लगी बैरन पुरवाई,
तन - मन में है आग लगाये, सुने न मेरी वो हरजाई,
तुम बिन सूना - सूना लागे, मुझको ये संसार।।
तुम आओ तो हो जाये, मेरा हर सपना साकार। ....
फागुन ने है पंख पसारे, रस्ता देखे नैन तिहारे,
चूड़ी, काजल, बिंदिया, पायल,…
ContinueAdded by Anita Maurya on February 8, 2017 at 4:48am — 7 Comments
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