(मौन) शब्द से सभी परिचित है .... कौन नहीं जनता इस शब्द की विशालता को.....
आज 22 अप्रेल है पूरा एक साल हो गया दोनों को गए हुए, सुधा मन ही मन बुदबुदा रही थी।जरा चाय लाना बालकनी से पति ने आवाज लगाई। चाय तो बनी और पी भी रहे थे दोनों लेकिन सुधा क्षुब्ध, अकेली, बेचैन सी लग रही थी।आज का उजला-उजला नरम सबेरा भी अपना जादू न चला पा रहा था, महेश ने सुधा को हिलाते हुए कहा कहाँ हो? यहीं मीठी ...... क्या हो गया है तुमको ?
सुधा नम आँखों से महेश की ओर देख कर बोली गर ना पढ़ाते…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on March 12, 2014 at 11:00pm — 9 Comments
बह्र : २१२ २१२ २१२ २१२
ये ख़ुराफ़ात करने से क्या फ़ायदा
जाति की बात करने से क्या फ़ायदा
हाय से बाय तक चंद पल ही लगें
यूँ मुलाकात करने से क्या फ़ायदा
हार कर जीत ले जो सभी का हृदय
उसकी शहमात करने से क्या फ़ायदा
आँसुओं का लिखा कौन समझा यहाँ?
आँख दावात करने से क्या फ़ायदा
ये जमीं सह सके जो बस उतना बरस
और बरसात करने से क्या फ़ायदा
कुछ नया कह सको गर तो ‘सज्जन’ सुने
फिर…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 12, 2014 at 9:24pm — 20 Comments
बहुत शोर है यहाँ
बहुत ज़्यादा
मैं कैसे वो आवाज़ सुन सकूँ
जो मेरे लिए है
कितनी ही देर कानों पर हाथ लगा
सब अनसुना करती रही
लेकिन
शोर इतना है कि मेरी हथेलियों को
भेद कर मेरे कानों पर बरस पड़ता है
मष्तिष्क की हर नब्ज़ थर्राने लगी है
नसों में आक्रोश भर गया है
अजीब शोर है यहाँ
जलन, ईर्षा, द्वेष, अपमान का,
भेदभाव का शोर
धधकता, जलाता शोर
इस तरहा बढ़ता जाता है कि
इच्छाशक्ति…
ContinueAdded by Priyanka singh on March 12, 2014 at 3:30pm — 18 Comments
२१२१ २१२२ २१२२
हम भी अखबारों में जब इक दिन छपे थे
दोसतों की शक्ल पर बारह बजे थे
अब सुनो मंजिल तुम्हें हम क्या बताएं
इक तुम्हारे वास्ते क्या-क्या सहे थे…
ContinueAdded by sanju shabdita on March 12, 2014 at 12:30pm — 6 Comments
(1)
गोरा गोरा निर्मल तन है
उसके बिन सब सूनापन है
न पाये तो जाएँ बच्चे रूठ
क्या सखि साजन ? ना सखी दूध !!
(2)
हर दम उसको शीश सजाऊँ
पाकर उसको खिल खिल जाऊँ
अधूरी उस बिन रहूँ न दूर
क्या सखि साजन ? न सखि सिंदूर !!
(3)
कोमल कोमल तन है प्यारा
मन भावे लागे अति न्यारा
छुप जाये जो डालूँ अचरा
क्या सखि साजन ? न सखि गजरा !!
(4)
रूप सलोना…
ContinueAdded by annapurna bajpai on March 12, 2014 at 12:00pm — 6 Comments
तोड़ नीड़ की परिधि
सारी वर्जनाएं
भुला नीति रीति
लांघ कर सीमाएं
छोड़ संयम की कतार
दे परवाज़ को विस्तार
वशीकरण में बंधा
लिए एक अनूठी चाह
कर बैठा गुनाह
लिया परीरू चांदनी का चुम्बन
जला बैठा अपने पर
उसकी शीतल पावक चिंगारी से
गिरा औंधें मुहँ
नीचे नागफनी ने डसा
खो दिया परित्राण
ना धरा का रहा
ना गगन का
बन बैठा त्रिशंकु
वो उन्मत्त परिंदा
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(मौलिक एवं…
ContinueAdded by rajesh kumari on March 12, 2014 at 10:00am — 24 Comments
युवा भारत
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उमंग से भरे चेहरे
पल होंगे तभी सुनहरे
मिले दिशा जब उस ओर
होती है जिधर से भोर
खिलती कली खिलती धूप
बहती नदी खिलता रूप
उन्मुक्त हो गगन उड़ान
नारी स्वयं की पहचान
सफल होय जीवन अपना
शेष रहे न कोई सपना
गीत मिल वो गुनगुनाएं
आओ सब स्वर्ग बनायें
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
मौलिक /अप्रकाशित
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 11, 2014 at 9:56pm — 12 Comments
प्रथम प्रयास ............
1-) देह लता प्रभु दीन्ह है, काहे करत गुमान,
पर सेवा उपकार कर ,तब हीं पावे मान ।
2- ) सुत, दारा अरु बन्धु सब, स्वारथ को संसार,
भज लो साईं राम को, खुद का जनम संभार ।
3- ) मन मैला तन साफ है, क्यों फैलाये जाल ,
हरी को भावत साफ मन, लिखलो अपने भाल ।
4-) मंदिर, पूजा ,यज्ञ,तप, ऊपर का व्यापार ,
मन मंदिर नित झाढ़ लो, पाओगे प्रभु द्वार ।
5-) चौरासी…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on March 11, 2014 at 4:30pm — 12 Comments
Added by Ravi Prakash on March 11, 2014 at 2:33pm — 10 Comments
जो पाँच साल दहाड़े थे गिड़गिड़ाने लगे,
हमें ही वोट दो कहकर करीब आने लगे।
तुम्हारी ज़ात के नेता हैं हम तुम्हारे हैं,
ग़रीबों को ये बताकर गले लगाने लगे।
तुम्हारा हाल बदल देंगे एक मौका दो,
गली गली उसी ढपली को फिर बजाने लगे।
जो भीड़ आई है रैली में, है किराये की,
वो जिसके ज़ोर पे क़द को बड़ा दिखाने लगे।
बहा के ख़ून के दरिया सभी सियासतदां,
हर एक ख़ून के क़तरे से फ़ैज़ उठाने लगे।
ये देस लूट रहे हैं हमारे नेता जी,
जिसे आज़ाद कराने…
Added by इमरान खान on March 11, 2014 at 1:30pm — 20 Comments
छन्न पकैया, छन्न पकैया, दिन कैसे ये आए,
देख आधुनिक कविताई को, छंद,गीत मुरझाए।
छन्न पकैया, छन्न पकैया, गर्दिश में हैं तारे,
रचना में कुछ भाव हो न हो, वाह, वाह के नारे।
छन्न पकैया, छन्न पकैया, घटी काव्य की कीमत,
विद्वानों को वोट न मिलते, मूढ़ों को है बहुमत।
छन्न पकैया, छन्न पकैया, भ्रमित हुआ मन लखकर,
सुंदरतम की छाप लगी है, हर कविता संग्रह पर।
छन्न पकैया, छन्न पकैया, कविता किसे पढ़ाएँ,
पाठक भी…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on March 11, 2014 at 9:30am — 20 Comments
होली के दिन सब मिलो लेकर सारे रंग
गाओ मिलकर फाग को सब यारों के संग /
सब यारों के संग धूम तुम खूब मचाओ
नीला पीला लाल हरा गुलाबी लगाओ
शिकवे सारे भूल चले आओ हमझोली
रंगों का त्योहार ,आ गया है अब होली //
.............मौलिक व अप्रकाशित............
Added by Sarita Bhatia on March 11, 2014 at 9:00am — 8 Comments
कह मुकरियाँ “ – पाँच
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मुझे छोड़ वो कहीं न जाये
इधर उधर की सैर कराये
साथ रहे जैसे हो धड़कन
क्या सखि साजन , नहीं सखि मन
…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on March 10, 2014 at 9:00pm — 15 Comments
2122/ 2122/ 2122/ 212
कातिलों के शह्र में अहले जिगर आते नहीं
भीड़ से होकर परे चहरे नज़र आते नहीं
मेरे चारों ओर किस्मत ने बना दी बाड़ सी
हाल ये है अब परिन्दे तक इधर आते नहीं
वक्त सा होने लगा है दोस्तों का अब मिजाज़
गर चले जायें तो वापस लौटकर आते नहीं
ज़ीस्त के कुछ रास्तों पे तन्हा चलना ठीक है
क्यूँकि अक्सर साथ अपने राहबर आते नहीं
नक्शे-माज़ी देखने को आते तो हैं रोज़-रोज़
खण्डहर…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on March 10, 2014 at 9:00am — 30 Comments
मन तरसे
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तन तरसे मन तरसे .
होली का रंग बरसे .
मै हो गई प्रेम दीवानी
मुझे देख मधुकर हरषे .
फूल गई सब कालिया
मै सुखी निकली घर से .
कोयल कूके पपीहा गाए
भटकी मै बावरी घर से .
लगी हुई विरह वेदना
इलाज नहीं होता हर से .
मेरे प्रियत्तम आ जाओ
मिटे वेदना उस पल से .
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मौलिक व अप्रकाशित"
ओमप्रकाश क्षत्रिय…
Added by Omprakash Kshatriya on March 10, 2014 at 7:00am — 18 Comments
रसिया
आज होली मनाओ रे रसिया
रंग में भीग जाओ रे रसिया
दिल से दिल को मिलाओ रे रसिया
दुश्मनी भूल जाओ रे रसिया.
आज होली मनाओ रे रसिया........
मस्तों की रंग - भंग है टोली
नैनों से मारे रंगों की गोली
छोड शर्मो हया मेरे हमजोली
आओ खेलेंगे मिल के हम होली...
दोस्तों को मिलाओ रे रसिया ..
प्यार दिल से जगाओ रे रसिया..
आज होली मनाओ रे रसिया..
रंग में भीग जाओ रे…
ContinueAdded by सूबे सिंह सुजान on March 9, 2014 at 11:00pm — 16 Comments
मैं गिड़गिड़ाता रहा हूँ
रात दिन
तुम सबके सामने
जितने भी सम्बन्ध हो
कल आज और कल के
इस उम्मीद के साथ /कि
तुम थोड़ा पिघलोगे
भले ही अनिच्छा से
मेरा मान रखोगे
यह भ्रम /जीवन भर
साथ चलता रहा है
इसीलिये सब सहा है
यह सुनते ही तुम
मेरे विरोध में
खड़े हो जाओगे
और शायद फिर
मुझे गिड़गिड़ाता पाओगे
मैं अपना वक्तव्य बदलता हूँ
और इसे सार्वभौम /करता हूँ
फिर तुम्हारी और अपनी
ओर से कहता हूँ
मैं
मुझे…
Added by dr lalit mohan pant on March 9, 2014 at 10:23pm — 14 Comments
फाग मास की पूर्णिमा रंगों का त्योहार
सरसों खिलती खेत में फाल्गुन बाँटे प्यार /
पहला दिन है होलिका दूजा है धुरखेल
भारत औ' नेपाल में खेलें हैं यह खेल /
आओ यारो सब मिलो लेकर रंग गुलाल
नीला पीला औ' हरा गुलाबी संग लाल /
सब करें होलिका दहन फिर लगाएं गुलाल
फाग से है धमार का मिला ताल से ताल /
काम महोत्सव तुम कहो या राग रंग पर्व
होली दिन है मेल का करते सारे गर्व /
आया है अब फाग जो रंगीन है फुहार
भूलो…
Added by Sarita Bhatia on March 9, 2014 at 9:02pm — 10 Comments
अब के बरस की होली में, कुछ ऐसा रंग जमाएंगे।
भ्रष्ट को कालिख पोतेंगे, सज्जन को गुलाल लगाएंगे।।
काले धन वालों को काला, और सभी को सतरंगी।
पिचकारी की तेज धार से, बदन सभी का भिगाएंगे।।
अब के बरस की होली में, कुछ ऐसा रंग…
ContinueAdded by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on March 9, 2014 at 6:30pm — 15 Comments
आत्मा अमर है
जीवन नश्वर है
संसार कुरक्षेत्र
जीवर समर है
कल क्या होगा,
किसे खबर है ?
ज्ञान ही अमृत
अज्ञान ज़हर है
श्रद्धा से देख तू
कण-२ ईश्वर है
मुकेश इलाहाबादी ---
(मौलिक और अप्रकाशित)
Added by MUKESH SRIVASTAVA on March 9, 2014 at 11:30am — 7 Comments
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2022
2021
2020
2019
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2015
2014
2013
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2010
1999
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