उसके गले में गोया सहस्त्रों केक्टस उग आये हों
थोड़ी थोड़ी देर में उनको निगलने की कोशिश में
गले की कोशिकाएँ कभी खिंच रही थी
कभी फूल रही थी
साँसें नियंत्रण खो रही थी
आँखों में दर्द के लाल डोरे उभर आये थे
मुझे ऐसा लगा मैं बहते दरिया को बाँध से रोकते हुए देख रही हूँ
जो कितना तकलीफ देह है
कुछ देर और देखती रहूंगी तो वो मेरी आँखों
के रास्ते बह चलेगा
क्यूँ नहीं उस दरिया को मुक्त किया जा रहा
भावनाओं पर नियंत्रण…
ContinueAdded by rajesh kumari on April 11, 2016 at 10:24am — 2 Comments
पर क्यों
पांच सौ रूपये महीने की बाई,
प्रतिस्थापित हो जाती है,
सहेली में,
सब सुख दुख,
सास की ज्यादतियां,
पति की बेवफाईयां,
बड़े प्रेम से सुनती है,
कमेंट्स भी देती है ,
मरहम भी रखती है,
चली जाती है दूसरे घर,
बेतार की सेवा प्रदान करने।
कभी कभी,
प्रतिस्थापित हो जाती है,
संशय के घेरे में,
शक के डेरे में,
सौत बन जाती है,
पर देहरी नहीं छुड़ाती,
अजीब सी कसमसाहट देती है,
रस भरी प्रेम पगी,
कथायें सुनाती है…
Added by Pawan Jain on April 11, 2016 at 10:05am — No Comments
दोहा छंद......ग्यारह मनके
भले भलाई ही करें, बुरे बुने नित जाल.
भले हुए यश-चांदनी, बुरे क्रूर-तम-काल.१
सत्य-अहिंसा-प्रेम रस, सदगुरु की पहचान.
रखे मुक्त हर दोष से, जैसे कमल-कमान.२
सूरज की किरनें चली, सत्य ज्ञान के पार.…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 10, 2016 at 10:49am — 4 Comments
"अरे!जानती हो आचार्य जगत ज्ञानी जी की पुत्रवधु मरते-मरते बची। बस भगवान ने साँसे बख्श दी। वर्ना ऐसा दुःख मिला है जीवन भर कलेजे में ठुंसा रहेगा।बेचारी!"
बैठने के लिए पीढ़ा सरकाते हुए मुख्तारी ताई एक साँस में बोल गई।
"हाँ! सुना तो है कि कल उसकी तबियत ज्यादा ख़राब हो गई थी। शहर के नर्सिंग होम में ही दाखिल है। अभी तक..."
कुछ सोचते हुए फिर बोली, "अब तो उसकी तबीयत में काफी सुधार है।फिर आप किस दुःख की बात कर रही हो ताई?"
सहमते हुए।
"अरे! जानती हो न कि उसका प्रसव का समय नजदीक…
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on April 10, 2016 at 9:30am — 6 Comments
Added by ram shiromani pathak on April 8, 2016 at 2:30pm — 4 Comments
Added by रामबली गुप्ता on April 8, 2016 at 10:01am — 1 Comment
अरकान – 1222 1222 1222 1222
सभी आते हैं घर मेरे महज़ दीदार की खातिर|
दवा लाते नहीं कोई दिले बीमार की ख़ातिर|
सुना है दान वीरों में भी उनका नाम आता है,
मगर वो दान करते है तो बस जयकार की ख़ातिर|
वो मंदिर और मस्जिद में लुटाते लाख पर अफ़सोस,
नही लेकिन दिया कुछ भी कभी लाचार की ख़ातिर|
बनाता मैं भी इक बंगला जो रिश्ते ताक पर रखता,
मगर रहता हूँ कुटिया में तो बस परिवार की ख़ातिर|
बता तू सरफिरा है…
ContinueAdded by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on April 7, 2016 at 5:30pm — 2 Comments
1222 1222 1222 1222
कहाँ तक नाव जाएगी करे पतवार गद्दारी
गजल लय में रहे कैसे करें असआर गद्दारी ।1।
भले कहना सरल है ये यहाँ हर नींव पक्की है
सलामत छत रहे कैसे करे दीवार गद्दारी ।2l
कहा करते हैं दुर्जन भी ये तो तहजीब का फल है
सुहाती है किसी को ढब किसी को भार गद्दारी ।3l
न जाने यार क्या होगा चमन में हाल फूलों का
अगर करने लगे यूँ ही कसम से खार गद्दारी ।4l
जुड़े जब स्वार्थ ही केवल…
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 7, 2016 at 12:00pm — 2 Comments
वही नर्म अहसास ....
वही नर्म अहसास
किसी सुर्ख शफ़क़ से
पलकों की खिड़की में
यादों की शरर बन
जाने कब
मेरी रूह में उतर गए//
वही नर्म अहसास
मेरी तन्हाईयों को
मुझसे लिपट
मेरी करवटों को
ख़ुशनुमा सुरों से सजा
मेरी हयात को
जीने की अदा दे गए//
वही नर्म अहसास
फिर किसी गुजरे लम्हे से निकल
दिल के करीब यूँ हंसे
मानो फ़िज़ाओं ने हौले से
अपनी पाज़ेब छनकाई हो
शोखियों में डूबी
जैसे कोई…
Added by Sushil Sarna on April 6, 2016 at 9:00pm — 2 Comments
२१२/२१२/२१२
.
वक़्त यूँ आज़माता रहा,
रोज़ ठोकर लगाता रहा.
.
साहिलों पर समुन्दर ही ख़ुद,
नाम लिखता,, मिटाता रहा.
.
वो मेरे ख़त जलाते रहे,
और मैं दिल जलाता रहा.
.
वक़्त कम है, पता था मुझे
रोज़..फिर भी लुटाता रहा.
.
डूबती नाव का नाख़ुदा,
बस उम्मीदें बँधाता रहा.
.
वो समझते रहे शेर हैं,
धडकनें मैं सुनाता रहा.
.
कोई तो प्यास से मर गया,
कोई आँसू बहाता…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 6, 2016 at 5:04pm — 3 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on April 6, 2016 at 1:21pm — 4 Comments
212 212 212 212
ये है आलम अब आपस की तकरार से
गुफ़्तगू हो रही सबकी दीवार से
फिर हमें कब रहा डर किसी वार से
लफ्ज़ अपने हुए जब से हथियार से
कुछ ख़बर हो न पाई हमें, इस क़दर
जिस्म से दिल निकाला गया प्यार से
सोचिये, स्वस्थ तब देश कैसे रहे
ख़ैरख़्वाह आज सारे हैं बीमार - से
जीत को जब बनाया है मक़सद,तो फिर
मैं भला क्यों डरूं एक - दो हार…
Added by जयनित कुमार मेहता on April 5, 2016 at 10:08pm — 1 Comment
कितना अजीब खेल है
ये तंबोला
हाउस कटते हैं
तभी मिलती है जीत
आज के महानगरीय
सत्य जैसा
मजबूरी का मुखौटा पहने
यहाँ स्वार्थ चीखता है
दंभ के मंच से
जुड़ाव, रिश्ते कटते हैं
तंबोला की संख्या की तरह
और बनता है' हाउस '
कुछ की भावुक बेवकूफियाँ
काट नहीं पातीं सारे रिश्ते
वो हारे हुए कुंठित
इर्ष्या से देखते हैं
उन विजयी लोगों को
जो पूरा हाउस काट कर
जीत…
ContinueAdded by pratibha pande on April 5, 2016 at 10:00pm — No Comments
Added by दिनेश कुमार on April 5, 2016 at 6:59pm — 10 Comments
1222 1222 1222 1222
बिछड़ कर भी कहाँ तुझसे तेरी बातों को भूले हैं
कहाँ उस झील के तट की मुलाकातों को भूले हैं।1।
कि छोड़ा हमने अपना दिन तेरी जुल्फों के साये में
तेरे काँधें पे हम अपनी सनम रातों को भूले हैं।2।
बजा करती हैं कानों में तुम्हारी पायलें अब भी
खनकती चूडि़यों वाले न उन हातों को भूले हैं।3।
न छत पर चाँद तारों से हमारा हाल तुम पूछो
तपन की याद किसको है कि बरसातों को भूले हैं।4।
अगर है याद जो थोड़ा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 5, 2016 at 12:01pm — 15 Comments
Added by मनोज अहसास on April 5, 2016 at 11:05am — 21 Comments
Added by रामबली गुप्ता on April 5, 2016 at 11:00am — 12 Comments
1222 1222 1222 1222
हमें अब याद आते हैं सुहानी शाम के चर्चे
तुम्हारी बज़्म की बातें तुम्हारे नाम के चर्चे
सदायें ये मुहब्बत की दिशायें गुनगुनायेंगी
कहीं राधा कहीं मीरा कहीं पे श्याम के चर्चे
लिये बैठा हूँ नम आँखें अधूरा प्यार का किस्सा
कभी मजनू कभी राँझे कभी खय्याम के चर्चे
किसी ने राग जो छेड़ा घुली खुशबू…
ContinueAdded by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 4, 2016 at 9:00pm — 20 Comments
प्राणहीन जर्जर जीवन को
अपनाया एकान्त ने।
अपनी अद्भुद्ता की व्यापकता से
मोह लिया ऐसे,
कि अब, वही मेरा सगा है।
बाकी सब ने, मनमाना ठगा है। ।
शून्य को पाकर मैं,
बन गया, मालिक विराट का।
लुटाने को कितना हूँ…
Added by Dr T R Sukul on April 4, 2016 at 4:30pm — 8 Comments
Added by रामबली गुप्ता on April 4, 2016 at 10:30am — 14 Comments
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