२१२२ /११२२ /११२२ /२२
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पार करने हैं समुन्दर ये दिलो-जाँ वाले
और आसार नज़र आते हैं तूफाँ वाले.
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फ़ितरतन मुश्किलें; मुश्किल मुझे लगती हीं नहीं
पर डराते हैं सवाल आप के आसाँ वाले.
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तितलियाँ फूल चमन सारे कशाकश में हैं
एक ही रँग के गुल चाहें गुलिस्ताँ वाले.
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ये न कहते कि रखो एक ही रब पर ईमाँ
इश्क़ करते जो अगर गीता-ओ-कुरआँ वाले.
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जानवर हैं कई, इंसान की सूरत में यहाँ
शह्र में रह के भी हैं तौर बयाबाँ वाले.…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 7, 2018 at 1:02pm — 20 Comments
221 2121 1221 212
अन्याय के विरोध में जाने से डर लगा ।।
भारत का संविधान बताने से डर लगा ।।
यूँ ही बिखर न जाये कहीं मुल्क आपका ।
कोटे पे आज बात चलाने से डर लगा ।।
घोला है ज़ह्र अपने गुलशन में इस तरह ।
अब जिंदगी को और बचाने से डर लगा ।।
फर्जी रपट लिखा के वो अंदर करा गया ।
मैं बे गुनाह था ये बताने से डर लगा ।।
शोषित हुआ सवर्ण करे भी तो क्या करे ।
उसको तो अपना ज़ख्म दिखाने से डर लगा…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on April 7, 2018 at 1:04am — 8 Comments
मिर्ज़ा मासाब कई बार मांसाहार छोड़ने की नाक़ामयाब कोशिशें कर चुके थे। लेकिन उनके घर में बेगम साहिबा के रिवाज़ के मुताबिक़ हर छोटी-बड़ी ख़ुशी के मौक़े पर या तो चिकन पकता या मछली। कभी छोटे या बड़े की जुगाड़ होती या बाज़ार के कबाबों की! मिर्ज़ा जी के शाकाहारी बनने के ख़्वाब इस बार भी चकनाचूर हो गये। रात के ख़ाने के वक़्त दस्तरख़्वान पर बकरे का लज़ीज़ गोश्त पहले से कोई बातचीत किये बिना ही पेश कर दिया गया। उन्होंने बुरा सा मुंह बनाते हुए बेगम की तरफ़ देखा।
"ख़ुशी का मौक़ा था न! आज…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on April 6, 2018 at 9:36pm — 6 Comments
212 1212 1212 1212
...
बसती है मुहब्बतों की बस्तियाँ कभी-कभी,
रौंदती उन्हें ग़मों की तल्खियाँ कभी-कभी ।
ज़िन्दगी हूई जो बे-वफ़ा ये छोड़ा सोचकर,
डूबती समंदरों में कश्तियाँ कभी-कभी ।
गर सफर में हमसफ़र मिले तो फिर ये सोचना,
ज़िंदगी में लगती हैं ये अर्जियाँ कभी-कभी ।
उठ गए जो मुझको देख उम्र का लिहाज़ कर,
मुस्कराता देख अपनी झुर्रियाँ कभी-कभी ।
इश्क़ में यकीन होना लाजिमी तो है मगर,
दूर-दूर दिखती हैं…
Added by Harash Mahajan on April 6, 2018 at 9:30pm — 19 Comments
चंद हायकू ....
आँखों की भाषा
अतृप्त अभिलाषा
सूनी चादर
सूनी आँखें
वेदना का सागर
बहते आंसू
साँसों की माया
मरघट की छाया
जर्जर काया
टूटे बंधन
देह अभिनन्दन
व्यर्थ क्रंदन
बाहों का घेरा
विलय का मंज़र
चुप अँधेरा
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on April 6, 2018 at 9:08pm — 6 Comments
फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फेलुन/फ़इलुन
इसलिये आने से कतराते हैं ईमाँ वाले
तेरे कूचे में उधम करते हैं शैताँ वाले
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ये किसी ख़तरे की आमद का इशारा तो नहीं
ख़्वाब क्यों मुझको दिखाता है वो तूफ़ाँ वाले
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और सब कुछ यहाँ तब्दील हुआ है लेकिन
घर में दस्तूर हैं अब तक वही अम्माँ वाले
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बाग़बाँ ने वो सितम तोड़े हैं इनपर देखो
कितने सहमे हुए रहते हैं गुलिस्ताँ वाले
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रह्म करना किसी बिस्मिल पे गवारा ही…
ContinueAdded by Samar kabeer on April 6, 2018 at 3:00pm — 27 Comments
रेगिस्तान में ......
तृषा
अतृप्त
तपन का
तांडव
पानी
मरीचिका सा
क्या जीवन
रेगिस्तान में
ऐसा ही होता है ?
हरियाली
गौण
बचपन
मौन
माँ
बेबस
न चूल्हा , न आटा ,न दूध
भूख़
लाचार
क्या जीवन
रेगिस्तान में
ऐसा ही होता है ?
पेट की आग
भूख का राग
मिटी अभिलाषा
व्यथित अनुराग
पीर ही पीर
नयनों में नीर
सूखी नदिया
सूने तीर
खाली मटके…
Added by Sushil Sarna on April 6, 2018 at 1:22pm — 11 Comments
बह्र- फाइलातुन मफाइलुन फैलुन
2122 1212 22
मार कर पेट में कटारी खुद।
मर गया एक दिन मदारी खुद।
अपने कर्मों से वो जुआरी खुद।
हो न जाये कभी भिखारी खुद।
पड़ गये दाँव पेंच सब उल्टे,
फँस गया जाल में शिकारी खुद।
आगये दिन हुजूर अब अच्छे
दान देने लगे भिखारी खुद।
हैं नशामुक्ति के अलम्बरदार,
पर चलाते हैं वो कलारी खुद।
खानदानी हुनर है बच्चों में,
सीख लेते हैं दस्तकारी…
Added by Ram Awadh VIshwakarma on April 6, 2018 at 5:39am — 17 Comments
212 212 212 212
स्वार्थ नें राष्ट्र की है सजाई चिता
जाति की अग्नि से चिट चिटाई चिता
भारती माँ तड़प कर कराहे सुनो
पूछती जीते जी क्यूँ सजाई चिता?
प्रीत के व्योम पर द्वेष धूम्राक्ष है
लोभियों नें वतन की जलाई चिता
राजगद्दी के लोभी हैं शामिल सभी
पूछिए मत कि किसनें लगाई चिता?
आग है जो लगी आप जल जाएंगे
बढ़ के आगे न यदि जो बुझाई चिता
मौलिक अप्रकाशित
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 4, 2018 at 11:30pm — 14 Comments
एक गाँव में कुछ लोग ऐसे थे जो देख नहीं पाते थे, कुछ ऐसे थे जो सुन नहीं पाते थे, कुछ ऐसे थे जो बोल नहीं पाते थे और कुछ ऐसे भी थे जो चल नहीं पाते थे। उस गाँव में केवल एक ऐसा आदमी था जो देखने, सुनने, बोलने के अलावा दौड़ भी लेता था। एक दिन ग्रामवासियों ने अपना नेता चुनने का निर्णय लिया। ऐसा नेता जो उनकी समस्याओं को जिलाधिकारी तक सही ढंग से पहुँचा कर उनका समाधान करवा सके।
जब चुनाव हुआ तो अंधों ने अंधे को, बहरों ने बहरे को, गूँगों ने गूँगे को और लँगड़ों ने एक लँगड़े को वोट दिया। जो…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 4, 2018 at 9:11pm — 14 Comments
वृद्धाश्रम के द्वार पर विधवा माँ को छोड़कर जाते समय बेटे ने उसका मोबाइल अपने कब्जे में किया और जाते हुए बोला, ‘तुम यहाँ आराम से रहना. इसकी अब तुम्हें जरूरत ही क्या. मैं आकर हाल लेता रहूँगा ‘
बेटा चला गया तब माँ की आँखों के रुके आंसू बाहर निकलने को बेताब हुए .
’तुम्हारी कोई बेटी नही है क्या ?’- अचानक व्यवस्थापिका ने आकर उससे पूछा .
‘नही, पर क्यों ?’- उसने धीरे से कहा.
‘इसलिए कि आज तक कोई बेटी अपनी माँ को वृद्धाश्रम छोड़ने नही आयी’
‘सच कहती हो बहन, मैंने दो…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 4, 2018 at 9:05pm — 8 Comments
कुम्ह्लाइए मत खिल-खिल रहिये !
खुश-खुश रहिये , हिलमिल रहिये !
बीत गया मनमोहक सपना
खो गया दिलबर आपका अपना
कतराइये मत, शामिल रहिये
हंसमुख रहिये, चुलबुल रहिये !…
Added by नन्दकिशोर दुबे on April 4, 2018 at 5:00pm — 3 Comments
गर्म होती जा रहीं है,
शहर में पागल हवाएँ.
क्या पता इन बस्तियों में,
कब पटाखे फूट जाएँ.
ढूँढता अस्तित्व अपना,
सच बहुत बेचैन है.
डस रहा है दिन उसे तो,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on April 4, 2018 at 11:16am — 18 Comments
२१२/ १२२२// २१२/ १२२२
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हाँ! सराब का धोखा तिश्नगी में होता है,
ग़लतियों पे पछतावा आख़िरी में होता है.
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तितलियों के पंखों पर चढ़ते हैं गुलों के रँग
ज़िक्र जब मुहब्बत का शाइरी में होता है.
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शम्स ख़ुद भी छुपता है देख कर अँधेरे को,
इम्तिहान जुगनू का तीरगी में होता है.
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बीज यादों के बो कर सींचता है अश्कों से
दिल ख़याल उगाता है जब नमी में होता है.
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जिस ख़ुदा की ख़ातिर तुम लड़ रहे हो सदियों से
काश ये समझ पाते वो सभी में…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 3, 2018 at 9:00pm — 12 Comments
यथार्थ ....
कुछ पीले थे
कुछ क्षत-विक्षत थे
कुछ अपने शैशव काल में थे
फिर भी उनका
शाखाओं का साथ छूट गया
धरा पर पड़े
इन पत्तों की बेबसी पर
हवा कहकहे लगा रही थी
जिसके फैले बाज़ुओं पर
निश्चिंत रहा करते थे
उम्र के पड़ाव पर
उन्हीं बाजुओं से
साथ छूटता चला गया
अब उनका बाबा
एक कंकाल मात्र ही तो था
पीले पत्ते बात को समझते थे
कभी -कभी हवा के बहकावे में
इधर -उधर हो जाते थे
लेकिन…
Added by Sushil Sarna on April 3, 2018 at 6:17pm — 7 Comments
ग़ज़ल(याद आती हैं जब)
212 212 212 212
याद आतीं हैं जब आपकी शोखियाँ,
और भी तब हसीं होतीं तन्हाइयाँ।
आपसे बढ़ गईं इतनी नज़दीकियाँ,
दिल के लगने लगीं पास अब दूरियाँ।
डालते गर न दरिया में कर नेकियाँ,
हारते हम न यूँ आपसे बाज़ियाँ।
गर न हासिल वफ़ा का सिला कुछ हुआ,
उनकी शायद रही कुछ हों मज़बूरियाँ।
मिलता हमको चराग-ए-मुहब्बत अगर,
राह में स्याह आतीं न दुश्वारियाँ।
हुस्नवालों से दामन बचाना ए…
ContinueAdded by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on April 3, 2018 at 8:30am — 9 Comments
‘क्या बात करते हो दद्दू ,प्रयास में कमी?’- मैंने झुंझलाकर कहा, ‘अरे हम जमीन आसमान एक कर दिए. कहाँ-कहाँ नहीं दौड़े. जिसने जहाँ बताया भाग-भागे गये. अख़बारों के मेट्रोमोनियल्स छान मारे, बड़े-बड़े घमंडी अह्मकों के आगे दामन फैलाया पर नतीजा वही सिफ़र. दो-तीन जगह तो दिखाई भी हुई, दो-एक लोगों ने पसंद भी किया, विवाह के लिये हाँ भी कर दी पर बाद में मुकर गए. इतना भी न सोचा कि लडकी पर क्या गुजरेगी. माँ-बाप पर क्या बीतेगी. जुबान की तो ससुरी कोई कीमत ही नही.’
‘धीरज धरो, छोटे’ – दद्दू ने सांत्वना दी,…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 2, 2018 at 9:13pm — 7 Comments
एक दुआ
साथ देने की गुजारिश के साथ
जाने अबकी बार खुदाया कैसी पूर्णमासी है
चाँद के पूरे दीदार की चाहत सुलग रही है माथे पर
और पैरों को हिला रहा है डर मंज़र खो देने का
सूनी आँखे ढूंढ रही हैं अपनी क्षमता से दूर
घुटने टेके, हाथ पसारे ,दुआ सहारे
हर दम
मर्यादा से बँधे खड़े हैं
और अम्बर का कैसा नज़ारा
इन नज़रों को सता रहा है
पेड़ों के पीछे चाँद के आने की आहट से
धड़ धड़ सीना धड़क रहा है
लेकिन
जो अंधियारे ,गहरे, काले बादल गरज रहे हैं
उनसे इन…
Added by मनोज अहसास on April 2, 2018 at 7:02pm — 12 Comments
212 212 212 212
रूह से मेरे अब तक जुदा तू नहीं ।
बात सच है सनम बेवफा तू नहीं ।।1
कर रहा एक मुद्दत से सज़दा तेरा ।
कह दिया किसने तुझको खुदा तू नहीं ।।2
जिंदगी से मेरे जा रहा है कहाँ ।
इस तरह अब नजर से गिरा तू नहीं ।।3
मेरे कूचे से निकला न कर बेसबब ।
दिल हमारा अभी से जला तू नहीं ।।4
वार कर मत निगाहों से मुझ पर अभी ।
सब्र मेरा यहाँ आजमा तू नहीं ।।5
लोग अनजान हैं कत्ल के…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on April 2, 2018 at 6:57pm — 9 Comments
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
मेरी सारी वफ़ा ओबीओ के लिये
काम करता सदा ओबीओ के लिये
दिल यही चाहता है मेरा दोस्तो
जान करदूँ फ़िदा ओबीओ के लिये
आठ क्या,आठ सो साल क़ाइम रहे
है यही इक दुआ ओबीओ के लिये
मेरे दिल में कई साल से दोस्तो
जल रहा इक दिया ओबीओ के लिये…
Added by Samar kabeer on April 2, 2018 at 3:00pm — 40 Comments
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2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
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