(१ )
क्रोध बड़ा उसका जहरीला
मुखड़ा होता नीला पीला
छेड़ूँ तो दिखलाता दर्प
क्या सखि साजन
ना सखि सर्प
(२ )
झूम झूम कर मुझे रिझाता
अपनी ताकत सदा दिखाता
प्यार करूँ तो बनता साथी
क्या सखि साजन
ना सखि हाथी
(३ )
हाय मूढ़ की अजब कहानी
काटे तो माँगू ना पानी
क्रोघ करे तो भागे पिच्छू
क्या सखि साजन
ना सखि बिच्छू
(४ )
हर दम पानी पीता रहता
एक जगह पर…
ContinueAdded by rajesh kumari on June 25, 2015 at 11:15am — 21 Comments
122 122
ले, कदमों पे सर है
लो, अब भी कसर है
जो मर ही चुके हो
तो अब किसका डर है
नहीं ख़त्म होगा
ये मेरा असर है
नहीं कोई मंज़िल
महज़ रह ग़ुज़र है
तो घर में ही बैठो
अगर तुमको डर है
लिखे शह्र जिसको
हमें वो शहर है
नहीं है जो कड़वा
वो मीठा ज़हर है
लो, अन्धों से सुन लो
कहाँ रह गुज़र है
****************
मौलिक एवँ…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on June 25, 2015 at 8:58am — 29 Comments
2122 2122 212
छोड़िये , हमको बुलाता कौन है
खार सीने से लगाता कौन है
आप हैं गमगीन , खुद रोते रहें
अब यहाँ कन्धा बढाता कौन है
हाथ अंगारों में रख कहते हैं वो
हमसा खुद को आजमाता कौन है
सोई खोई बस्ती की तनहाई में
ग़ज़ले-ग़ालिब गुनगुनाता कौन है
…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on June 25, 2015 at 8:30am — 28 Comments
122 122 122 12
अँधेरों के मित्रो, हवा दीजिये
मै जलता दिया हूँ बुझा दीजिये
लिये आइना सब से मिलता रहा
सभी अब मुझे बद्दुआ दीजिये
हमारा यक़ीं चाँद से उठ गया
हमे जुगनुओं का पता दीजिये
…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on June 25, 2015 at 8:00am — 25 Comments
सुनो,
गर्मी बहुत है
अपने अहसासों की हवा
को जरा और बहने दो
यादों के पसीनों को
और सूखने दो
सुनो,
गर्मी बहुत है
गुलमोहर के फूलों
से सड़कें पटी पड़ी हैं
ये लाल रंग
फूल का
सूरज का
अच्छा लगता है
अपने प्यार की बरसात को
बरसने दो
बहुत प्यासी है धरती
बहुत प्यासा है मन
भीग जाने दो
डूब जाने दो
सुनो,
गर्मी बहुत है ....
Added by Amod Kumar Srivastava on June 25, 2015 at 7:20am — 5 Comments
तैयार होकर रीता आॅफिस के लिए निकलने ही वाली थी कि नील कह उठे कि आज वो ही उसे आॅफिस छोड़ आयेंगे ।
उसे समझते देर ना लगी कि , आज फिर नील पर शक का दौरा पड़ चुका है ।
थे तो वे आधुनिक व्यक्तित्व के धनी ही । पत्नी का कामकाजी होना , उनकी उदारता का परिचय है समाज में । इसी कारण वे स्त्री विमर्श के प्रति बेहद उदार मान पूजे जाते है समाज में ।
"मै चली जाऊँगी , आप नाहक क्यों परेशान होते हो ! आपके आॅफिस का भी तो यही वक्त है । " - उसके आँखों में दुख से आँसू छलछला आये ।
"क्यों , तुम मुझे…
Added by kanta roy on June 25, 2015 at 7:00am — 16 Comments
गज़ल....खार रचता आदमी....
बह्र... 2122 2122 212
खुद को खुद से कब समझता आदमी.
जीत कर जब हार कहता आदमी
मौन में संजीवनी तो है मगर
मैं हुआ कब चुप अकडता आदमी.
आस्मां के पार भी खुशियां दुखी,
हर कदम पर शूल सहता आदमी.
फूल-कलियां मुस्कराती हर समय,
देवता को भेंट करता आदमी.
आदमी ही आदमी को पूजता,
आचरण पशुता अखरता आदमी.
प्यार में सम्वेदना …
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 24, 2015 at 8:17pm — 14 Comments
मत्तगयन्द सवैया // सात भगण + दो गुरू
बालक बुद्धि यही समझे, अखबार सुधार किया करते हैं।
जूठन खीर न दूध गिरे, इस हेतु बिछा भुइ को ढकते है।।
आखर-आखर कालिख ही, मन सोच-विचार भली कहते हैं।
मानव नित्य प्रलाप करे, अखबार प्रशासन ही छलते हैं।।
के0पी0सत्यम/ मौलिक व अप्रकाशित
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 24, 2015 at 7:08pm — 4 Comments
पुष्प अधखिले : हरि प्रकाश दुबे
ओस की बूंदों में भीग कर
श्रृंगार नया मन रूप का कर
सूरज की रोशनी में चमकते हुए
खूब इठलाते हैं, पुष्प अधखिले !
मंदिर- मज़ार में चढाए जाते है
प्रभु चरणों मै अर्पित हो कर
मन में एक विश्वाश जगा
फूले नहीं समाते हैं, पुष्प अधखिले !
प्रिय को समर्पण की चाह में
किताबों में रख दिए जाते है
प्रेम के इज़हार और इंतज़ार में
सूख कर भी मुस्कराते हैं, पुष्प अधखिले…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on June 24, 2015 at 4:50pm — 8 Comments
संशोधित दोहे :
कर्म बिना मेवा नहीं, बिन मान नहीं शान
विधवा सी लगती सदा,सुर बिन जैसे तान
पैसा काम न आयेगा, जब आएगा काल
रह जाएगा सब यहीं , काहे करे मलाल
काया माया का भला , काहे करे गुमान
नश्वर ये संसार है , क्षण भर का अभिमान
ममता को बिसरा दिया ,भूल गया हर फ़र्ज़
चुका न पाया दूध का , जीवन में वो क़र्ज़
मानव दानव बन गया, किया खूब संहार
पाप कर्म से कर लिया, पापी ने…
Added by Sushil Sarna on June 24, 2015 at 4:30pm — 18 Comments
दवा है दर्द की कह कर पिला देगा मुझे कोई
गिरा कर अश्क फिर अपने बहा देगा मुझे कोई
सिख़ाओ मत मुझे जीना न है अब जिन्दगी प्यारी
दिखा कर प्यार के सपने जला देगा मुझे कोई
गमो की राह अच्छी है न आता पास दुश्मन भी
डगर सुख की चले तो बददुआ देगा मुझे कोई
निराले खेल दुनिया के कभी खेला अगर मैने
न दोगे साथ मेरा तो हरा देगा मुझे कोई
न है हर फूल में काँटे हमेशा सोचता हूँ मै
न बदला सोच अपना तो मिटा देगा मुझे…
ContinueAdded by Akhand Gahmari on June 24, 2015 at 3:57pm — 10 Comments
तुम महान
अद्भुत स्वप्नद्रष्टा
स्वप्न कैसा
साकार किया है
व्यास प्रकाश
पुंज से अपने
जीवन का
महाकाव्य दिया है
तमस तम को
काट ज्ञान से
शुभ्र अमर
संदेश दिया है
तुम दूर दृष्टा हो
मै अज्ञानी
जन्म साकार
यह मूर्त दिया है
मस्तक पर तुम
चंदन हो स्वामी
यह हमने
स्वीकार किया है
तुम मेरे गुरू
गोविंद ब्रह्मज्ञानी
तुममें ईश्वर का
साक्षात्कार किया है
कान्ता राॅय…
Added by kanta roy on June 24, 2015 at 10:30am — 7 Comments
लघुकथा – तकनीक
बिना मांगे ही उस ने गुरु मन्त्र दिया, “ आप को किस ने कहा था, भारी-भारी दरवाजे लगाओं. तय मापदंड के हिसाब से सीमेंट-रेत मिला कर अच्छे माल में शौचालय बनावाओं. यदि मेरे अनुसार काम करते तो आप का भी फायदा होता ?” परेशान शिक्षक को और परेशान करते हुए पंचायत सचिव ने कहा , “ बिना दक्षिणा दिए तो आप का शौचालय पास नहीं होगा. चाहे आप को १०,००० का घाटा हुआ हो.”
“ नहीं दूं तो ?”
“ शौचालय पास नहीं होगा और आप का घाटा ३५,००० हजार हो जाएगा. इसलिए यह आप को…
ContinueAdded by Omprakash Kshatriya on June 24, 2015 at 8:30am — 13 Comments
" साहब , ई सब खाने वाला समान को जलवा देंगे आपलोग ", गोदाम में रखते हुए जोखन ने पूछा |
" हाँ , इनकी एक्सपायरी हो गयी है और ये नुक़्सान पहुँचा सकते हैं लोगों को , इसलिए इनको जलाना पड़ेगा "|
" हमको दे दो साहब , जब भूख प्यास हम लोगों का कुछ नहीं बिगाड़ पाती है तो ये क्या नुक़्सान करेगा | बच्चे दुआ देंगे आपको "|
एक बार उसने जोखन की आँखों में देखा , फिर मन में सोचा " मैं चांस नहीं ले सकता | कुछ हो गया तो ?
थोड़ी देर में सारा सामान जल रहा था और जोखन की आँखों में कुछ देर पहले जले…
Added by विनय कुमार on June 23, 2015 at 9:00pm — 10 Comments
वो चार पहियां गाड़ी कहाँ मिलेगी कोई हमें बता दे,
एक हमसफ़र के साथ चलायें जिसे , ऐसी कोई खता दे
जिसमे न खिड़की हो,
जिसमे न दरवाज़ा ,
जो चले ज़रा धीरे-धीरे ,
बादलों को चीरे-चीरे |
वो चार पहियां गाड़ी कहाँ मिलेगी कोई हमें बता दे,
एक हमसफ़र के साथ चलायें जिसे , ऐसी कोई खता दे
पहियां बड़ा…
Added by Rohit Dubey "योद्धा " on June 23, 2015 at 7:30pm — 5 Comments
Added by VIRENDER VEER MEHTA on June 23, 2015 at 4:21pm — 9 Comments
भूख(लघु कथा)
आखिरी बस जा चुकी।सन्नाटा पसर चला।उसे चूल्हे की आग बुझती-सी लगी,पर यूँ ही बैठी रही।अचानक उसका ध्यान भंग हुआ,
--बस छूट गयी क्या?
दूकान बंद करते पानवाले ने पूछा।
-नहीं,बस यूँ ही---उसने मुड़कर पीछे देखा।पानवाला उसे अंदर तक घूरता-सा लगा।
--अब कोई नहीं आयेगा,चल न मेरे यहाँ आज।
--नहीं,घर में बच्चे भूखे होंगे,और फिर तेरी घरवाली.........?
-मैके चली गयी है।बगल के…
Added by Manan Kumar singh on June 23, 2015 at 3:52pm — 14 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on June 23, 2015 at 1:20pm — 8 Comments
बूँद बूँद बरसो
मत धार धार बरसो
करते हो
यूँ तो तुम
बारिश कितनी सारी
सागर से
मिल जुलकर
हो जाती सब खारी
जितना सोखे धरती
उतना ही बरसो पर
कभी कभी मत बरसो
बार बार बरसो
गागर है
जीवन की
बूँद बूँद से भरती
बरसें गर
धाराएँ
टूट फूट कर बहती
जब तक मन करता हो
तब तक बरसो लेकिन
ढेर ढेर मत बरसो
सार सार…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 23, 2015 at 12:08pm — 8 Comments
1212 1122 1212 22 /112
फ़लक पे जो मुझे अक्सर दिखाई देता है
वो आम लोगों में तनकर दिखाई देता है
अभी हैं बदलियाँ चारों तरफ से घेरी हुईं
तभी तो चाँद भी बदतर दिखाई देता है
जो तोप ले के चले साथ अपनें , वो हमको
कहें हैं हाथ में ख़ंजर दिखाई देता है…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on June 23, 2015 at 9:00am — 22 Comments
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