2122 2122 2122 212
1
उनकी आँखों में उतर कर ख़ुद को देखा है कहाँ
हक़ अभी तक उनके दिल पर इतना अपना है कहाँ
2
आदतें यूँ तो मिलेंगी एक सी लोगों में पर
उनके दिल में एक सा एहसास होता है कहाँ
3
है लड़ाई ख़ुद से अपनी है बग़ावत ख़ुद ही से
बात इतनी सी ज़माना भी समझता है कहाँ
4
चारदीवारी में घर की साथ तो रहते हैं सब
ज़ाविया पर उनके दिल का एक जैसा है कहाँ
5
देख लिया गल कर पसीने में भी हमने…
ContinueAdded by Rachna Bhatia on July 31, 2021 at 11:21pm — 11 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
शीशा भी लाया आज वो लोहे में ढालकर
बोलो करोगे आप क्या पत्थर उछाल कर।१।
*
जिन्दा ही दफ्न सत्य जो कल था किया गया
लानत समय ने आज दी मुर्दा निकालकर।२।
*
वो बिक गयी है वस्तु सी बेहाल भूख से
अब क्या रखोगे बोलिए उस को सँभालकर।३।
*
केवल किसान जानता मौसम की मार को
हम ने तो देखा बीज न खेतों में डालकर।४।
*
रोटी का मोल जानते बचपन से ही बहुत
माँ ने …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 31, 2021 at 1:18pm — 15 Comments
उदास तारा
1212, 1122, 1212, 22
न बदली छाई थी कोई न कुहरा छाया था
लपेटे चाँदनी अपनी क़मर भी निकला था
सजा था रात सितारों से आसमाँ सारा
उन्हीं के बीच था गुमसुम उदास इक तारा
उदास देख उसे दिल मेरा मचलने लगा
कि बात करने का उससे ख़याल पलने लगा
बुलाया मैंने इशारे से फिर क़रीब उसे
कहा बता तू ज़रा हाल ऐ हबीब मुझे …
Added by Md. Anis arman on July 31, 2021 at 10:11am — 6 Comments
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 30, 2021 at 12:30pm — 12 Comments
'हम जातीय आधार पर विकास की योजनाएं बनाएंगे।'
'क्या अमीर -गरीब जाति के आधार पर होते हैं?' बाबा ने सवाल ठोका।
'नहीं,पर पता तो चले कि किस जाति में कितने गरीब हैं।'
'कमीने!जिससे तुमलोगों को अपनी कारस्तानी फैलाने का मौका मिले,यही न? वोटजात ससुर!भागता है कि नहीं हियां से?'गांव के बूढ़े बाबा ने विधायक प्रतिनिधि को खदेड़ा।
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Manan Kumar singh on July 29, 2021 at 7:00am — 4 Comments
सावन के दोहे :.........
गुन -गुन गाएँ धड़कनें, सावन में मल्हार ।
पलक झरोखों में दिखे, प्यारी सी मनुहार ।।
सावन में अक्सर करे , दिल मिलने की आस।
हर गर्जन पर मेघ की, यादें करती रास ।।
अन्तस में झंकृत हुए, सुप्त सभी स्वीकार।
तन पर सावन की करे, वृृष्टि मधुर शृंगार ।।
सावन में अच्छे लगें, मौन मधुर स्वीकार ।
मुदित नयन में हो गई, प्रतिबन्धों की हार।।
अन्तर्मन को छू गये, अनुरोधों के ज्वार ।
इन्कारों…
Added by Sushil Sarna on July 28, 2021 at 3:30pm — 6 Comments
1212 1122 1212 22 / 112
तमाम उम्र सहेजी मगर वो बेकार है
अजीब बात है शाइर डगर वो बेकार है
सुहाने चाँद की रातों सफर वो बेकार है
लो अब कहूँ तो कहूँ क्या असर वो बेकार है
बिना किताब बिना बिम्ब काव्य की सर्जना
जो खोलता है मआनी नगर वो बेकार है
नयी - नयी है ये दुल्हन बहार सावनी अब
नया चलन है सो सहवास घर वो बेकार है
हमारे गुरू जी अभी सुन बहुत बड़ी जीत हैं
हवा चहक तो रही…
ContinueAdded by Chetan Prakash on July 27, 2021 at 8:30am — No Comments
प्रश्न ......
प्रश्न प्रश्न प्रश्न
स्वयं को तलाशते
सैंकड़ों प्रश्न
क्या मैं
सदियों से वीरान किसी पूजा गृह की
काल धूल के आवरण से लिपटी
कोई खंडित प्रतिमा हूँ
या फिर
किसी हवन कुंड में
किसी मनोरथ की सिद्धि के लिए
झोंकी जाने वाली सामग्री हूँ
या फिर
विषधरों के दंश झेलता
कोई चंदन का विटप हूँ
या फिर
काल की आँधी में अपने अस्तित्व से जूझता
धीरे-धीरे विघटित होता
शिला खंड…
Added by Sushil Sarna on July 26, 2021 at 12:54pm — 6 Comments
221 2121 1221 212
वो सिलसिला मिला ही नहीं जो जुड़ा रहे।
हम सबके होके दोस्तो सबसे जुदा रहे।
दीवारें आंधियों का असर सह रही है पर,
ये देखना है घर मेरा कब तक खड़ा रहे।
टुकड़े तुम्हारी याद के दिल में समेटकर,
सारे जहां के रिश्तों से हम बावफ़ा रहे।
बचपन से ही उदास रही है मेरी नज़र,
दो चार रोज साथ तेरे खुशनुमा रहे।
तेरे क़रीब कौन है इसका मलाल क्या,
मेरे लबों पर बस तेरे हक़ में दुआ…
Added by मनोज अहसास on July 25, 2021 at 11:35pm — 2 Comments
221 - 2121 - 1221 - 212
आईं हैं जब से रास ये तन्हाईयाँ हमें
अपनी ही अजनबी लगें परछाईयाँ हमें
ख़ल्वत के अँधेरों में था हासिल हमें सुकूँ
तड़पा रहीं हैं कितना ये रानाइयाँ हमें
देखा न जाता हमसे किसी को भी ग़मज़दा
भातीं नहीं किसी की भी रुस्वाईयाँ हमें
जिसको दिया सहारा उसी ने दग़ा किया
कितना सता रहीं हैं ये अच्छाईयाँ हमें
रानाइयों से दूर निकल आए …
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 25, 2021 at 4:46pm — 4 Comments
2122 2122 2122 212
Added by Saurabh Pandey on July 25, 2021 at 3:00pm — 23 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
कहते है लोग प्रीत की हमको समझ नहीं
दुश्मन के साथ मीत की हमको समझ नहीं।१।
*
नफरत ही नित्य बँट रही सरकार इसलिए
आँगन में उठती भीत की हमको समझ नहीं।२।
*
न्योतो न आप मंच से महफिल बिगाड़ने
कविता गजल या गीत की हमको समझ नहीं।३।
*
हम ने सदा ही धूप का रस्ता बुहारा पर
रिश्तों में पसरी शीत की हमको समझ नहीं।४।
*
समझा नहीं है खेल मुहब्बत को इसलिए
इस में ही…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 25, 2021 at 5:17am — 4 Comments
ग़ज़ल
1212 1122 1212 22/112
सुख़न में पैदा तेरे किस तरह कमाल हुआ
हज़ार बार यही मुझसे इक सवाल हुआ
तमाम उम्र गुज़ारेंगे किस तरह यारो
हमें तो साँस भी लेना यहाँ मुहाल हुआ
लिखा न जाएगा ख़त में ख़ुद आके देख लो तुम
तुम्हारे इश्क़ में जो भी हमारा हाल हुआ
हुनर नहीं ये हमारा अता ख़ुदा की है
कि शे'र जो भी कहा हमने बेमिसाल हुआ
ज़बाँ से कह न सके वो मगर सुना ये है
हमारे जाने का उनको बहुत मलाल…
Added by Samar kabeer on July 24, 2021 at 6:30pm — 17 Comments
12122, 12122
1)वो मिलने आता मगर बिज़ी था
मैं मिलने जाता मगर बिज़ी था
2)था इश्क़ तुझसे मुझे भी यारा
तुझे बताता मगर बिज़ी था
3)वो कह रहा था मदद को तेरी
ज़रूर आता मगर बिज़ी था
4)मैं दूसरों की तरह जहाँ में
बहुत कमाता मगर बिज़ी था
5)वो चाहती थी मना लूँ उसको
है सच मनाता मगर बिज़ी था
6)फ़लक से तेरे लिए यक़ीनन
मैं चाँद लाता मगर बिज़ी…
Added by Md. Anis arman on July 23, 2021 at 8:07pm — 12 Comments
फ़र्ज़ ......
निभा दिया फ़र्ज़
संतान ने
भेजकर माँ - बाप को
वृद्धाश्रम
........................
आजकल फ़र्ज़ भी
निभाए जाते हैं
कर्ज़ की तरह
.........................
गुजर गए
गुजरना था उनको
जिन्दगी की आखिरी पायदान से
बदल कर
पुरानी नेम प्लेट अपने नाम से
निभा दिया फ़र्ज़
अपने वारिस होने का
सुशील सरना / 23-7-21
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on July 23, 2021 at 5:37pm — 2 Comments
221-2121-1221-212
मंज़िल की जुस्तजू में तो घर से निकल पड़े
काँटों भरी थी राह प बेख़ौफ़ चल पड़े (1)
भौहें तनीं थीं देख के मुझको ऐ दिल मेरे
कुछ ऐसा कर कि अब उसी माथे प बल पड़े (2)
हर रात जागता हूँ मैं बेवज्ह दोस्तो
उसकी भी नींद में किसी शब तो ख़लल पड़े (3)
सारे बुजुर्ग देख के ख़ामोश थे मगर
बच्चे तो देखते ही खिलौने मचल पड़े (4)
सोचा नहीं था ज़ीस्त ये दिन भी दिखाएगी
देखी जो शक्ल मौत की हम भी उछल पड़े…
Added by सालिक गणवीर on July 23, 2021 at 12:30pm — 9 Comments
आत्म घाती लोग - लघुकथा -
मेरे मोबाइल की घंटी बजी। स्क्रीन पर दीन दयाल का नाम था। मगर दीन दयाल का स्वर्गवास हुए तो दो साल हो गये। उसके परिवार ने तो कभी भी याद ही नहीं किया। आज अचानक कैसे याद आ गई।…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on July 23, 2021 at 9:58am — 4 Comments
221 2121 1221 212
रस्मो- रिवाज बन गयी पहचान हो गयी
वो दिलरुबा थी मेरी जो भगवान हो गयी
मक़तल बना है शहर वो रफ्तार ज़िन्दगी,
मुश्किल हुई है जीस्त कि श्मशान हो गयी
हर शख्स वो अकेला ही दुनिया में आजकल,
क्या वो करें जो कह सकें गुलदान हो गयी
सुन राजदाँ बहुत हुई बेज़ार ज़िन्दगी,
कासिद नहीं आया जबाँ कान हो गयी
जाहिल बने रईस वो हक़दार देश के,
अब हार-जीत उनकी खुदा शान हो…
ContinueAdded by Chetan Prakash on July 22, 2021 at 7:30am — 1 Comment
२१२/२१२/२१२ /२२
जिसका अपना यहाँ दायरा कम है
आसमाँ को भी वो मानता कम है।१।
*
मुझसे कहता है क्यों पूजता कम है
देख तुझ में भी तो देवता कम है।२।
*
जो ठहरना नहीं चाहता साथी
उसके हिस्से में क्यों रास्ता कम है।३।
*
बात औरों के सिर डालकर देखो
अपने ईमान को तौलता कम है।४।
*
पास बैठा है लेकिन अबोला ही
कौन कहता है अब फासला कम है।५।
*
हर बुराई …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 21, 2021 at 9:43am — 12 Comments
कलयुग में ऋण के बिना, सरे न कोई काम।
बड़ी बड़ी जो हस्तियाँ , ऋण ले बनी तमाम ॥
टाँक पैबंद वस्त्र में, तब ढकते थे लाज।
लोग प्रदर्शन कर रहे, उन्हें फाड़कर आज॥
मूर्ति मात्र साधन सदा, ध्यान लगाएँ नित्य।
निराकार ईश्वर सदा, देखता सबके कृत्य॥
मान पुरुष को दे भले, सामाजिक परिवेश।
घर पर तो चलता सदा, पत्नी का आदेश॥
कर…
ContinueAdded by Om Parkash Sharma on July 21, 2021 at 12:00am — 5 Comments
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