Added by kanta roy on July 5, 2015 at 9:35pm — 13 Comments
बाबूजी जी के श्राद्ध कर्म में वे सारी वस्तुएं ब्राह्मण को दान में दी गयी जो बाबूजी को पसंद थे. शय्या-दान में भी पलंग चादर बिछावन आदि दिए गए. ऐसी मान्यता है कि स्वर्ग में बाबूजी इन वस्तुओं का उपभोग करेंगे. लोगों ने महेश की प्रशंशा के पुल बांधे।
"बहुत लायक बेटा है महेश. अपने पिता की सारी अधूरी इच्छाएं पूरी कर दी."
"पर दादाजी को इन सभी चीजों से जीते जी क्यों तरसाया गया?"- महेश का बेटा पप्पू बोल उठा.
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(मौलिक व अप्रकाशित )
Added by JAWAHAR LAL SINGH on July 5, 2015 at 8:30pm — 22 Comments
कम्पनी में गबन के आरोप में वह आज पांच साल की कैद काट कर वह जेल से छूटा तो सीधे दिव्या के घर पहुँचा । दिव्या नहीं मिली । वह काम पर गई थी । उसने उसके मोबाइल पर उसी जगह मिलने का समय दिया जहाँ वह अक्सर मिला करते थे ।
"मुझे भूल जाओ तुम । अब मेरी जिंदगी में तुम्हारे लिये कोई जगह नहीं है ।" सिगरेट सुलगाते ही उसकी आवाज सुनाई दी ।
"पर यह सब तो मैंने तुम्हारी ख़ुशी के लिये किया था ? " सुनते ही उसका दिल रो पडा जैसे ।
"मेरी ख़ुशी या अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिये ....! मेरी ख़ुशी तो…
ContinueAdded by Pankaj Joshi on July 5, 2015 at 5:30pm — 6 Comments
Added by shree suneel on July 5, 2015 at 5:00pm — 38 Comments
एक नदी पर एक पुल था , जिसमे सात पाये थे। एक बार सबसे बीच वाले पाए ने सबसे किनारे वाले पाए से कहा “जानते हो यह पुल मेरी वजह से ही है। नदी की जलधारा का सबसे ज्यादा प्रवाह मैं ही झेलता हूँ। मैं हमेशा पानी में डूबा रहता हूँ, तुमलोगों का क्या किनारे खड़े रहते हो, बरसात में कभी कभी नदी की जलधारा तुम तक पहुँचती है वरना सालो भर ऐसे ही खड़े रहते हो, तुम्हारी उपयोगिता ही क्या है। मेरे कारण ही लाखों लोग इस पुल का प्रयोग कर नदी के आर पार जा पाते हैं । “
किनारे वाले पाये ने कोई जवाब नहीं दिया। कुछ…
Added by Neeraj Neer on July 5, 2015 at 3:00pm — 12 Comments
Added by umesh katara on July 5, 2015 at 12:26pm — 5 Comments
मजहब जिसने इंसानों को आपस में जोड़ा है
आज उसी मजहब ने क्यूँ दिल इंसा का तोडा है
कितनी सुंदर धरती है ये कितने सुंदर मंजर
पर राहों में उल्फत की क्यूँ नफरत का रोड़ा है
जिन की ख्वाइश धन दौलत दुनिया भर की हथिया लें
गर समझें तो आज समझ लें ये जीवन थोडा है
राम नाम जिस पाहन पर वो सागर में उतराए
डूब गया वो राम नाम के बिन जिसको छोड़ा है
तब तक चैन कहाँ पाया है इस इंसा ने जग में
जब…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on July 5, 2015 at 10:34am — 15 Comments
Added by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on July 4, 2015 at 8:21pm — 9 Comments
“तुम लोग बहू से ही ठीक रहती हो. बात-बात पे वो डांटा करती है न, तभी तुम लोगों का दिमाग ठंढा रहता है ! आ रही है न, गर्मी छुट्टी के बाद.. कल-परसों में.... ,” - तमतमाती हुई सुभद्रा महरी पर बरसती जा रही थी.
“माँजी, साफ तो मैं कर ही रही थी.. ” - महरी ने बात सम्भालना चाहा.
“चुप रहो ! महीने भर का लेना-देना सब बेकार कर दिया. जरा सा कुछ कहा नहीं कि टालना शुरु.. ”
अखबार पर से आँखे उठा कर रमेश ने पत्नी की ओर देखा. इधर तीन-चार दिनों से…
Added by Shubhranshu Pandey on July 4, 2015 at 8:00pm — 10 Comments
Added by Pari M Shlok on July 4, 2015 at 4:19pm — 24 Comments
हर्षिता क्लास की सबसे खुबसूरत लड़की थी, अधम, रंजित और उसकी मित्र मंडली, सभी उससे दोस्ती के लिए लालायित रहते थे किन्तु वह तो बस अपने काम से काम रखती थी. एक दिन हर्षिता को अकेला देख रंजित उससे बोला,
“हर्षिता मैं तुम्हे अपनी बहन बनाना चाहता हूँ क्या तुम मुझे अपना भाई होने का अधिकार दोगी ?”
माँ बाप की इकलौती बेटी हर्षिता रंजित को भाई के रूप में पाकर बहुत ख़ुश हो गयी. अब उसका उठना बैठना रंजित के साथ-साथ उसके दोस्तों के साथ भी होने…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 4, 2015 at 4:04pm — 30 Comments
पिता की अचानक हुई मौत से वो टूट गया । एकदम ठीक ठाक थे , बस हल्का सा बुखार हुआ और दो दिन में चल बसे । आर्थिक स्थिति तो बदतर थी ही ,पहले माँ और अब पिताजी भी , एकदम से बड़ा हो गया वो । पुरे गाँव में ख़बर हो गयी थी और सब रिश्तेदारों को भी फोन कर दिया गया । चाचा , जो अलग रहते थे घर पर आ गए थे और अंतिम क्रिया की तैयारियों में लग गए थे ।
अंतिम संस्कार करके वापस चलते समय मौजूद सभी लोगों को रिवाज़ के अनुसार भरपेट नाश्ता कराकर वो भी चाचा के साथ ट्रैक्टर पर गाँव चल पड़ा । घर पहुँच कर चाचा ने उसको सारे…
Added by विनय कुमार on July 4, 2015 at 2:03pm — 22 Comments
Added by kanta roy on July 4, 2015 at 1:08pm — 16 Comments
122 122 122 122
पियादे से राजा की फिर मात होगी
सरे सुब्ह लगता है फिर रात होगी
दिशायें जहाँ पर समझ की अलग हैं
वहाँ अब ठिकाने की क्या बात होगी
समझ कर ज़रा आप तस्लीम करिये
वो देते नहीं हक़ , ये ख़ैरात होगी
वही सुब्ह निकली , वही धूप पसरी
नया कुछ नहीं तो , वही रात होगी
यहाँ साजिशों में लगे सारे माहिर
सँभल के, यहाँ पीठ पर घात होगी
बड़ा ख़्वाब जिसका है, दिल भी बड़ा…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on July 4, 2015 at 7:30am — 19 Comments
खिड़कियों में घन बरसते
द्वार पर पुरवा हवा..
पाँच-तारी चाशनी में पग रहे
सपने रवा !
किन्तु इनका क्या करें ?
क्या पता आये न बिजली
देखना माचिस कहाँ है
फैलता पानी सड़क…
Added by Saurabh Pandey on July 4, 2015 at 2:00am — 38 Comments
" सर , मैं हस्पताल पहुँच गया हूँ , कवर करता हूँ एक्सीडेंट की स्टोरी "|
" अच्छा तो आपने देखा उनको , सामने देखकर कैसा लगा ? रिपोर्टर की आवाज़ ने उसके दर्द में इज़ाफ़ा कर दिया |
" अरे इतने बड़े स्टार से मुलाक़ात तो हो गयी , लोग तो तरसते हैं दूर से भी एक झलक पाने के लिए , कुछ बताईये ", और भी कुछ कह रहा था वो लेकिन दर्द और क्रोध के उबाल में उसने रिपोर्टर का माइक छीन कर फेंक दिया |
" स्टार , स्टार लगा रखा है , मेरी टूटी हड्डियाँ तुम्हे नहीं दिखती , दफा हो यहाँ से "|
मौलिक एवम…
Added by विनय कुमार on July 3, 2015 at 8:42pm — 10 Comments
मत्तगयन्द सवैया. (सात भगण और दो गुरु )
1.
वक्त बली अति सौम्य तुला रख नीति- सुप्रीति सदा पगता है.
काल अकाल विधी - विधना सबके सब मूक बयां करता है.
मीन - नदी अति व्यग्र रहें, बगुला नित शांत मजा चखता है.
वक्त समग्र विकास करे पर, मानव सत्य नहीं गहता है.
2.
स्नेह मुहब्बत संग दया समता, करुणाकर ही रखते हैं.
क्रूर कठोर अघोर सभी जन में, सदबुद्धि वही फलते हैं.
रावण कौरव कंस बली हिरणाक्ष,…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 3, 2015 at 8:30pm — 4 Comments
" अम्मा , दद्दा , छुटके ! ई देखो , नए फिसनवा की पेटी । ऊ सहर की सड़क पे मिळत रही । "
" तनिक खोल तो मुनिया , कउनो गहना- जेबर भए तो दरोग़ा के बुलवाई के पड़ी ।"
" खोलत हैं अम्मा , ई का ? भीतर तो दर्पन चिपकत रही , वो भी ठुस्स भेसईंन रंगत ।"
" का कहत है ? फैंक अबहीं । जुरूर ई सुसरा सहर वाले कौनों जादू-टोना करके पटकत गईल ।"
" पर दद्दा , ई के भीतरे जो ढेर डिबियाँ जमत रहि , ऊ का , का ? "
" जिज्जी , तनक उहे बी तो .....का पता , कौनो गोली- बिस्किट ही धरें हों । "
" सैतान !…
Added by shashi bansal goyal on July 3, 2015 at 8:00pm — 9 Comments
अजनबी लाशें..
पाठशाला में पढाती
आँंखें खोल कर,
सृ-िष्ट की सबसे सुन्दर कृति
नारी का हृदयंगम पाठ
अक्षर-अक्षर निर्वस्त्र, लिजलिजा भाव
भाषा नि:शब्द!
पर, संवेदना के पहाड़े याद नहीं होते।…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 3, 2015 at 7:30pm — 4 Comments
चेप्टर -1 - दोहे
निंदा को आतुर रहें, करें नहीं गुणगान
मैल हिया में देख के ,रूठ गए भगवान
मालिक कैसा हो गया , तेरा ये इंसान
बन्दे तेरे लूटता , बन कर वो भगवान
तेरा अजब संसार है,हर कोई बेहाल
हर मानव को यूँ लगे, जग जैसे जंजाल
संस्कार सब खो गए , बढ़ने लगी दरार
जनम जनम के प्यार का, टूट गया आधार
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on July 3, 2015 at 4:01pm — 22 Comments
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