Added by Manan Kumar singh on August 31, 2015 at 5:38pm — 2 Comments
Added by Rahul Dangi Panchal on August 31, 2015 at 3:16pm — 8 Comments
अंगूठी (लघु कथा )
'नहीं,नहीं … देखो अब इस घर में रहना शायद मुमकिन नहीं है। 'रेनू ने गुस्से में अपने पति रणधीर से कहा और बैग में अपने कपड़ों को रखने लगी। ''दीपू चलो अपने खिलोने उठाओ और अपने बैग में रखो। ''रेनू ने अपने सात साल के बेटे को करीब करीब डांटते हुए कहा। दीपू भौंचका सा डर कर अपने पापा की तरफ देखकर अपने खिलौने बैग में रखने लगा। ''देखो रेनू ! यूँ छोटी छोटी बातों पर रूठ कर ज़िंदगी के बड़े फैसले नहीं लिए जाते। क्या हुआ अगर मम्मी ने तुम्हें बर्तन साफ़ करने के लिए कह दिया। उनकी…
ContinueAdded by Sushil Sarna on August 31, 2015 at 2:39pm — 10 Comments
1222---1222---1222-1222 |
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मैं घर से दूर आया हूँ मगर कुछ ख़ास रखता हूँ। |
तुम्हारी याद की ताबिश हमेशा पास रखता हूँ। |
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कभी वट पूजती हो तुम, दिखा के चाँद को… |
Added by मिथिलेश वामनकर on August 31, 2015 at 2:03pm — 28 Comments
122 122 122 122
कुहुकती है कोयलिया अमराइयों में
महकते कई फूल पुरवाइयों में
दिखाई न दी आज दीवार उनकी
अजी, क्या सुलह हो गई भाइयों में ?
ग़मों के भँवर में जो खोया था बचपन
मिला आज यादों की परछाइयों में
पिघलते हों पत्थर धुनें जिनकी सुनकर
फुसूँ हमने देखा वो शहनाइयों में
उजाले में दिन के छुपे रहते बुजदिल
उमड़ते वही अब्र तन्हाइयों में
न कद से समंदर की औकात…
ContinueAdded by rajesh kumari on August 31, 2015 at 11:57am — 15 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 31, 2015 at 10:42am — 6 Comments
कैसे हम आजाद हैं, है विचार परतंत्र ।
अपने पन की भावना, दिखती नहीं स्वतंत्र ।।
भारतीयता कैद में, होकर भी आजाद ।
अपनों को हम भूल कर, करते उनको याद ।
छुटे नही हैं छूटते, उनके सारेे मंत्र । कैसे हम आजाद हैं....
मुगल आक्रांत को सहे, सहे आंग्ल उपहास ।
भूले निज पहचान हम, पढ़ इनके इतिहास ।।
चाटुकार इनके हुये, रचे हुये हैं तंत्र । कैसे हम आजाद हैं...
निज संस्कृति संस्कार को, कहते जो बेकार ।
बने हुये हैं दास वो, निज आजादी हार…
Added by रमेश कुमार चौहान on August 31, 2015 at 10:00am — 6 Comments
दुःख से अब तक नहीं मिले हो
इसीलिए फूले फिरते हो I
ज्ञान ध्यान की बातें सारी
सुख सुविधा संग लगती प्यारीI
चेहरे पर पुस्तक चिपकाये
दूजों को ही पाठ पढ़ाये
खुद उनको तुम सीख न पाए I
खुद को पढ़ना भूल गए हो
इसीलिए फूले फिरते हो I
चीज़ों का बस संचय करना
अलमारी को हर दिन भरना I
नया जूता जो देता छाला
लगता कितना पीड़ा वाला I
नंगे पैरों के छालों से
अब तक शायद नहीं मिले…
ContinueAdded by pratibha pande on August 30, 2015 at 6:00pm — 9 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
भेड़िये यूँ घूमते हैं झोपड़ी के सामने
डालते वहशी नज़र सब छोकरी के सामने
जेब खाली देखकर ये रेजगारी कह उठी
जेब खाली मत दिखाना तुम किसी के सामने
पेट बच्चा भर ना पाता बूढ़े से माँ बाप का
रोज मजमा जो लगाता घर गली के सामने
इस नशे में देखिये तो घर उजाड़े हैं बहुत
ये नशा दीवार है घर की ख़ुशी के सामने
शाम से ही सज रही मजबूर सी ये लडकियाँ
ज़ख्म ढक के आ गयीं हैं अब सभी के…
ContinueAdded by gumnaam pithoragarhi on August 30, 2015 at 8:37am — 7 Comments
है खोया क्या किसे वो आज हर पल ढूँढ़ते हैं,
गगन में हैं हमारे पाँव भूतल ढूँढ़ते हैं ।
सभाओं में कोई चर्चा कोई मुद्दा नहीं है,
सभी नेपथ्य में बैठे हुए हल ढूँढते हैं ।
उन्हें होगा तज्रिबा भी कहाँ आगे सफर का,
वो सहरा में नदी, तालाब, दलदल ढूँढ़ते हैं ।
कहीं से खुल तो जाये कोठरी ये आओ देखें,
दरों पर खिडकियों पर कोई सांकल ढूँढ़ते हैं ।
यूँ भी बेकारियों का मसअला हो जायेगा हल,
जो अब तक खो दिया है…
ContinueAdded by भुवन निस्तेज on August 30, 2015 at 8:30am — 14 Comments
Added by kanta roy on August 30, 2015 at 6:33am — 24 Comments
आवरण छोड़ कर तुम चले तो गये, आभरण आज उसका उतारा गया।
आज फिर इक सुहागन अभागन हुई, उसका सिन्दूर धुल के बहाया गया।।
मयकदे से तुम्हारी लगन क्या लगी, देख ले ना गृहस्थी अगन में जली।
आचरण के असर से भले तुम गये, एक दुल्हन को बेवा बनाया गया।।
कल्पना से परे चेतना से परे, जाने संसार में कौन से तुम गये।
हे भ्रमर किस सफर पर चले तुम गये, रंग तेरे सुमन का मिटाया गया।।
कितने संताप आँखों के रस्ते बहे, कितने सपने सुलग कर भशम हो…
ContinueAdded by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 29, 2015 at 11:58pm — 7 Comments
तुम गोलाई में तलाशते हो कोण
सीधी सरल रेखा को बदल देते हो
त्रिकोण में
हर बात में तुम तलाशते हो
अपना ही एक कोण
तुम्हें सुविधा होती है
एक कोण पकड़कर
अपनी बात कहने में
बिन कोण के तुम
भीड़ के भंवर में
उतरना नहीं चाहते
तुम्हें या तो तैरना नहीं आता
या तुम आलसी हो
स्वार्थी और सुविधा भोगी भी
तुम्हें सत्य और झूठ से भी मतलब नहीं है
इस इस देश में गढ़ डाले है
तुमने हजारो लाखों कोण
हर कोण से तुम दागते हो तीर
ह्रदय को…
Added by Neeraj Neer on August 29, 2015 at 11:14am — 12 Comments
दोहा गीत -
रक्षा बंधन पर्व में,
दुनिया भर का प्यार
ऐसा पावन पर्व यह, है भारत की शान
सम्बन्धों की डोर का, बढे खूब सम्मान |
राखी धागे में बँधी, रक्षा की पतवार
बहन लुटाती भ्रात पर, दुनिया भर का प्यार
राखी धागा प्रेम का, बहना देती मान,
आत्महीन भाई वही दे न सके सम्मान |
रिश्ते ही परिवार में, जीने का आधार
भाई के उपहार में, दुनिया भर का प्यार
रक्षा बंधन पर्व में, छुपी खूब यह प्रीत
सबसे ऊपर…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 29, 2015 at 10:30am — 10 Comments
सुनो भैया !
कहीं मन नहीं लगता
जिधर देखती हूँ
तुम ही दिखाई देते हो
कभी आँगन में
माँ के साथ बैठे हुए, कभी
द्वार पर माँ के साथ
मन की बात करते हुए
मै जब भी आती थी
माँ के साथ-साथ तुम्हारे चेहरे पर भी
चमक आ जाती थी
माँ के आँचल की छाँव में
हम दोनों बचपन की यादें
याद कर खुश होते
और माँ भी युवा हो जाती थी
दिन कैसे बीत जाते पता ही नहीं चलता
अब वही घर है वही आँगन
पर ना तुम हो ना माँ…
Added by Meena Pathak on August 29, 2015 at 9:30am — 4 Comments
Added by Samar kabeer on August 28, 2015 at 10:46pm — 9 Comments
1222---1222---1222-1222 |
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सटक ले तू अभी मामू किधर खैरात करने का |
नहीं है बाटली फिर क्या इधर कू रात करने का |
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पुअर है पण नहीं वाजिब उसे अब चोर बोले तुम… |
Added by मिथिलेश वामनकर on August 28, 2015 at 8:30pm — 32 Comments
Added by Rajan Sharma on August 28, 2015 at 5:00pm — 2 Comments
बह्र : २१२२ २१२२ २१२२ २१२
चार मित्रों, चार चेलों से मिली क्या वाह वाह
मैं समझने लग गया ख़ुद को ग़ज़ल का बादशाह
एक चेले की जुबाँ दी काट मैंने इसलिए
बात मेरी काटने का कर दिया उसने गुनाह
बात क्या है, क्यूँ है, कैसे है मुझे मतलब नहीं
मंच पर पहुँचूँ तो फिर मैं बोलता धाराप्रवाह
अब सिवा मेरे न इसको प्यार कर सकता कोई
हो गया है शाइरी का आजकल मुझसे निकाह
चार छः चमचे मिले, माइक मिला, माला…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 27, 2015 at 10:00pm — 6 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 27, 2015 at 9:56pm — 10 Comments
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