Added by V.M.''vrishty'' on October 13, 2018 at 12:34pm — 12 Comments
"सुनो, किसी से चर्चा मत करना! अपने दफ़्तर का प्रोजेक्ट अधूरा भी छोड़ना पड़े, तो भी तुरंत ही अगली बस से यहां लौट आओ!"
"क्यों? क्या हुआ? घबराई हुई सी क्यों हो?"
"ऑफ़िस से लौटने पर आज तो मुझे मेरा सूटकेस ही पूरा खुला हुआ मिला.. और कपड़े बिखरे हुए!"
"कोई क़ीमती सामान चोरी तो नहीं हुआ?"
"क़ीमती ही नहीं.. हमारे जिगर का टुकड़ा भी! .. स्मिता अभी तक घर नहीं लौटी है! ... सूटकेस से मेरी कुछ मंहगी ड्रेसिज़, महंगा हेअर रिमूवर और सेनेटरी नैपकिन्ज़ वग़ैरह सब ग़ायब हैं!"
"तो क्या…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 13, 2018 at 6:35am — 5 Comments
Added by V.M.''vrishty'' on October 13, 2018 at 12:09am — 8 Comments
122 122 122 122
मेरी हर निशानी मिटाने से पहले ।
वो रोया बहुत भूल जाने से पहले ।।1
गयी डूब कश्ती यहाँ चाहतों की ।
समंदर में साहिल को पाने से पहले ।। 2
जफ़ाओं के मंजर से गुज़रा है कोई ।
मेरा ख़त गली में जलाने से पहले ।।3
वो दिल खेलने के लिए मांगते हैं ।
मुहब्बत की रस्मे निभाने से पहले ।। 4
ये तन्हाइयां हो न जाएँ सितमगर ।
चले आइये याद आने से पहले ।।6
मेरे हाल पर छोड़ दे मुझको जालिम ।
मुझे और…
Added by Naveen Mani Tripathi on October 12, 2018 at 11:15pm — 20 Comments
© बसंत कुमार शर्मा
मापनी - १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ १२२२
सदा देता, न लेता कुछ, बुरी नजरों से ताड़ो मत
शजर है घर परिंदों का, उसे तुम यूँ उजाड़ो मत
बड़ी उम्मीद होगी, मगर कुछ भी न पाओगे
सयानी है बहुत जनता, यूँ मंचों पर दहाड़ो…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on October 12, 2018 at 5:27pm — 16 Comments
ये क्या हो रहा मेरे प्यारे शहर को,
कहीं क़त्ल-ओ-गारत कहीं ख़ून के छीटें,
के घायल हैं चंदर कहीं पे सिकंदर,
के हर ओर फैले हुए अस्थि पंजर,
के तुम ही कहो कैसे देखूँ ये मंजर,
के आँखों के सूखे पड़े हैं समंदर ।।…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on October 12, 2018 at 3:00pm — 3 Comments
बाज
--
चिड़िया ने पंख फड़फड़ाये।उड़ने को उद्यत हुई।उड़ी भी,पर पंख लड़खड़ा गये।उसे सहसा एक झोंका महसूस हुआ।।वह गिरते-गिरते बची,उसमें कुछ दूर उड़ती गयी।वह एक बड़ा पंख था,जो उसे हवा दे रहा था।वह उड़ती जा रही थी।कभी-कभी उसे उस बड़े पंख का दबाव सताता।वह कसमसाती,पर और ऊपर तक उड़ने की ख्वाहिश और जमीन पर गिरने के भय में टंगी वह घुटी भी,उड़ी भी......उड़ती रही।ऊँची शीतल हवाओं का सिहरन भरा स्पर्श उसे आंनदित करता।वह उस कंटकित पंख की चुभन जनित अपने सारे दुःख-दैन्य भूलकर उड़ती रही,तबतक जबतक उसे एक ऊँचाई न मिल…
Added by Manan Kumar singh on October 12, 2018 at 1:30pm — 16 Comments
Added by V.M.''vrishty'' on October 12, 2018 at 8:44am — 11 Comments
221-1221-1221-122.
तपती जमीं है आज तू छाने के लिए आ ।
ऐ अब्र जरा आग बुझाने के लिए आ ।।
यूँ ही न गुजर जाए कहीं तिश्नगी का दौर ।
तू मैकदे में पीने पिलाने के लिए आ ।।
ये जिंदगी तो हम ने गुज़ारी है खालिस में ।
कुछ दर्द मेरा अब तो बटाने के लिए आ ।।
जब नाज़ से आया है कोई बज़्म में तेरी ।
क़ातिल तू हुनर अपना दिखाने के लिए आ।।
शर्मो हया है तुझ में तो वादा निभा के देख ।
मेरी वफ़ा का कर्ज चुकाने के…
Added by Naveen Mani Tripathi on October 11, 2018 at 7:30pm — 8 Comments
आन बान है घर की बेटी
इसको सदा बचाएंगे
बेटी से घर रोशन होता
मिलकर सभी पढ़ाएंगे ll
मन में लें सौगंध सभी जन
नहीं कोंख में मारेंगे
बेटी को खुद पढ़ा लिखाकर
अपना चमन सुधारेंगे ll
भेदभाव बेटी बेटा में
कभी नहीं होने देंगे
बेटी घर की रौनक होती
इसे नहीं रोने देंगे ll
सभी क्षेत्र में बेटी आगे
अपने बल से जाती है
आसमान को छूती बेटी
घर का मान बढ़ाती है ll
दो दो घर बेटी सँवारती
सारी खुशियाँ देती…
Added by डॉ छोटेलाल सिंह on October 11, 2018 at 5:48pm — 12 Comments
अस्त व्यस्त -लघुकथा -
पैतीस वर्षीय गल्ला व्यापारी राजेश्वर को दिल का दौरा पड़ा।आनन फानन में चिकित्सालय पहुँचाया गया।
विशेषज्ञ चिकित्सकों द्वारा गहन परीक्षण और उचित चिकित्सा के बाद घर भेज दिया मगर बहुत सारी हिदायतों के साथ।
उनके अनुसार दिल का दौरा हल्का था और समय पर चिकित्सा मिलने से खतरा टल गया है लेकिन जीवन भर सावधानी रखनी होगी।
सगे संबंधी, रिश्तेदार, मोहल्ले के लोग,मित्रों एवम व्यापारियों का ताँता लग गया।
हाल चाल जानने राजेश्वर के सत्तर वर्षीय नानाजी भी…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 11, 2018 at 1:26pm — 10 Comments
इस ग़ज़ल के साथ ओबीओ परिवार को नवरात्री की शुभकामनाएं.. जय माता की
फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन
हर कली में देवियों का वास हो
पत्थरों को दर्द का अहसास हो
फिर कोई अवतार आये भूमि पे
निश्चरों को मृत्यु का आभास हो
लाज की मारी न रोये द्रोपदी
अब नहीं वैदेही को वनवास हो
पीर की तासीर जाओगे समझ
लुट चुका कोई तुम्हारा खास हो
बात इतनी सी समझते क्यों नहीं
घात मिलती है जहाँ बिस्वास हो
(मौलिक एवं…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 11, 2018 at 12:30pm — 17 Comments
Added by V.M.''vrishty'' on October 11, 2018 at 9:53am — 4 Comments
Added by V.M.''vrishty'' on October 10, 2018 at 10:50pm — 18 Comments
थाने के अंदर जाकर उसने एक किनारे अपनी बाइक खड़ी की और चारो तरफ का मुआयना करने लगा. काफी बड़ा अहाता था इस थाने का और एक तरफ संतरी बंदूक जमीन पर टिकाये उसी को देख रहा था. वह धीरे धीरे संतरी की तरफ बढ़ा तभी उसकी नज़र एक खम्भे से बंधे एक आदमी पर पड़ी. गंदे कपडे पहने उस पुरुष की पीठ उसकी तरफ थी और उसके पास दो पुलिस वाले खड़े थे.
इतने में इंस्पेक्टर बाहर आये और उसको देखते ही एक सिपाही को आवाज़ लगाया "अरे दो कुर्सी निकालो बाहर". उसने इंस्पेक्टर से हाथ मिलाया और दोनों कुर्सियों पर…
Added by विनय कुमार on October 10, 2018 at 6:02pm — 14 Comments
ज्योतिपुंज जगदीश! रहो नित ध्यान हमारे।
कलुष-द्वेष-दुर्भाव, हृदय-तम हर लो सारे।।
सत्य-स्नेह-सद्भाव, समर्पण का प्रभु! वर दो।
जला ज्ञान का दीप, प्रभा-शुचि हिय में भर दो।
दो बल-पौरुष-सद्बुद्धि हरि! मार्ग चुनेें सद्कर्म का।
हर जनजीवन के त्रास हम, फहरायें ध्वज धर्म का।।
मौलिक एवं अप्रकाशित
रचनाकार-रामबली गुप्ता
शिल्प-प्रथम चार पद रोला छंद और अंतिम दो पद उल्लाला छंद के संयोग से छप्पय छंद की निष्पत्ति होती है।
Added by रामबली गुप्ता on October 9, 2018 at 11:30pm — 11 Comments
दोस्ती - लघुकथा -
श्रद्धा एक मध्यम वर्गीय परिवार की मेधावी छात्रा थी।वह इस साल एम एस सी जीव विज्ञान की फ़ाइनल में थी। शिक्षा का उसका पिछला रिकार्ड श्रेष्ठतम था।इस बार भी उसका इरादा यूनीवर्सिटी में अब्बल आने का था।
मगर इंसान की मेहनत और इरादे से भी ऊपर एक चीज़ होती है भाग्य।जिस पर ईश्वर के अलावा किसी अन्य का जोर नहीं चलता। श्रद्धा के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ।
वह उस दिन क्लास रूम से बाहर निकल रही थी कि चक्कर खाकर गिर गयी।अफ़रा तफ़री मच गयी। सभी साथी सहपाठी चिंतित और परेशान हो…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 9, 2018 at 8:06pm — 12 Comments
रक्त से जिनके सना था,तर-ब-तर कण-कण धरा का,
हिन्द पर कुर्बान थे, भारत के सच्चे लाल थे जो !
सिंह की गर्जन लिए, टूटे फिरंगी गीदड़ों पर,
भय रहा भयभीत जिनसे, काल के भी काल थे जो!!
देख कर वीरत्व जिनका, विघ्न पथ को छोड़ देता ।
स्वयं विपदा काँप जाती,हाथ तूफ़ां जोड़ लेता ।।
जो कनक-सदृश तपाकर स्वयं को, जीते थे हरदम ।
जो कि कायरता, गुलामी, स्वार्थ से रीते थे हरदम ।।
जिनके आगे पर्वतों का कद सदा बौना रहा था ।
तपते अंगारों पे हरदम,जिनका बिछौना रहा था ।।
उष्णता…
Added by V.M.''vrishty'' on October 9, 2018 at 4:30pm — 14 Comments
212 212 212 212
जिंदगी रफ़्ता रफ़्ता पिघलती रही ।
आशिकी उम्र भर सिर्फ छलती रही ।।
देखते देखते हो गयी फिर सहर ।
बात ही बात में रात ढलती रही ।।
सुर्ख लब पर तबस्सुम तो आया मगर ।
कोई ख्वाहिश जुबाँ पर मचलती रही ।।
इक तरफ खाइयाँ इक तरफ थे कुएं ।
वो जवानी अदा से सँभलती रही ।।
जाम जब आँख से उसने छलका दिया ।
मैकशी बे अदब रात चलती रही ।।
देखकर अपनी महफ़िल में महबूब को।
पैरहन बेसबब वह बदलती रही…
Added by Naveen Mani Tripathi on October 9, 2018 at 10:00am — 16 Comments
मापनी - २१२२ २१२२ २१२२ २१२
चुपके’ चुपके रात में यूँ आता’ जाता कौन है
रोज आकर ख्वाब में नींदें उड़ाता कौन है
था मुझे विश्वास जिस पर दे गया धोखा वही
एक आशा फिर नई दिल में जगाता कौन है
घाव मुझको ज़िन्दगी से कुछ मिले तो हैं, मगर…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on October 9, 2018 at 9:35am — 15 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |