तेरी कान्हा बांसुरी, छेड़े ऐसी तान
जिसकी धुन में मन रमा, बिसरा सुध-बुध-ध्यान
बिसरा सुध-बुध-ध्यान, मोह के बंधन छूटे
जग माया का जाल, दर्प के दरपन टूटे
हुआ क्लेश का नाश, पीर सब हर ली मेरी
पर ये क्या बैराग? लुभाती है छवि तेरी !!
- बृजेश नीरज
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by बृजेश नीरज on October 18, 2013 at 11:00pm — 29 Comments
घरों मे वो दादी औ नानी हैं कहाँ अब
बच्चों के सपनों में राजा-रानी हैं कहाँ अब
उम्र से ज़्यादा , क़द बड़े हो गये हैं उनके
कि बच्चों में बच्चों की निशानी हैं कहाँ अब
बुज़ुर्गों की याद भी आए , तो आए कैसे
घरों में कोई भी चीज़ें पुरानी हैं कहाँ अब
नहीं मिलता है , कृष्ण सा क़िरदार कोई
भला दिखती भी मीरा दीवानी हैं कहाँ अब
घर , छतें , घरोंदें हैं , पंछी भी हैं "अजय"
बर्तन में उनके दानें और पानी हैं कहाँ…
Added by ajay sharma on October 18, 2013 at 10:30pm — 15 Comments
सांझ ढली
कुछ टूटा ,
भर गयी रिक्तता.
सब मूंद दिया कसकर.
अन्दर बाहर अब है,
एक रस.
घुप्प अँधियारा.
दिवस का…
ContinueAdded by Neeraj Neer on October 18, 2013 at 10:30pm — 10 Comments
अपने दिल से मेरा सिलसिला जोड़ दे ,
द्वार आखों का अपनी खुला छोड़ दे..
.
ऐसी पागल हवायों की औकात क्या
तू जो चाहे तो तूफाँ का रुख मोड़ दे…
.
राह में रोक लेना तो रुसवाई है
साथ चल या मेरा रास्ता छोड़ दे
.
साफ चाहत का जिसमे न चेहरा दिखे।
दिल ये कहता है वो आइना तोड़ दे ...
.
दुःख में आँखें न आ जाएँ तेरी कहीं
रात भर याद में जागना छोड़ दे…।
मौलिक व् अप्रकाशित
Added by Pankaj Mishra on October 18, 2013 at 9:30pm — 8 Comments
पारदर्शी शीशो पर
लगा दी काली चादर
अब बाहर वाले
नही देख सकते
भीतर का हाल
ठीक उसी तरह
जैसे तुमने
अपने चेहरे की
अतुलनीय मुस्कराहट से
बंद कर दिए
भीतर के सभी किवाड़
जो आया जितना आया
सब डालती जा रही हो
अब डर सा
लग रहा हैं मुझे
खिडकियों की
काली चादर
कुरच रही हैं
हवा बाहर की
ओर मुझे
दिखाई दे रही हैं
एक रौशनी सी
जो सब बहा ले जाएगी
अबकी जो ये कमरा
खाली हो जाये तो
बंद मत…
Added by savita agarwal on October 18, 2013 at 9:30pm — 13 Comments
हरिगीतिका छंद
हरिगीतिका हरिगीतिका हरिगीतिका हरिगीतिका (५, १२, १९, २६ वीं मात्रा लघु, अंत लघु गुरु) x ४
ब्रह्माण्ड सदृश विराटतम निःसीम यह विस्तार है
हर कर्म जिसमें घट रहा संतृप्त समयाधार है
सापेक्षता के पार है चिर समय की अवधारणा
सद्चेतना से युक्त मन करता वृहद…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on October 18, 2013 at 9:30pm — 17 Comments
१.
जोड़ी जुगल निहार मन, प्रेम रस सराबोर|
राधा सुन्दर मानिनी, कान्हा नवल किशोर||
२.
हरे बाँस की बांसुरी, नव नीलोत्पल गात|
रक्त कली से अधर द्वय,दरसत मन न अघात…
ContinueAdded by shalini rastogi on October 18, 2013 at 7:30pm — 8 Comments
क्या कहूँ , क्या लिखूँ…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on October 18, 2013 at 5:44pm — 22 Comments
करूं मै क्या? मेरी आवारगी बेचैन करती है
बनूँ गर रहनुमा तो, रहबरी बेचैन करती है//१
.
समंदर से सटा है घर, मगर लब ख़ुश्क है मेरा
तेरी जो याद आये, तिश्नगी बेचैन करती है//२
.
के अच्छी मौत है, इक बार ही जमकर सताती है
मुझे दिन-रात, अब ये ज़िंदगी बेचैन करती है//३
.
मुहब्बत है मुझे भी, चाँदनी की नूर से लेकिन
निगाहे-हुस्न तेरी, रौशनी बेचैन करती…
Added by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 18, 2013 at 5:00pm — 20 Comments
Added by Poonam Shukla on October 18, 2013 at 9:37am — 8 Comments
बह्र: 221 2121 1221 212
___________________________________
बिखरे हुए गुलाब की पत्ती को जोड़ कर
रक्खा है तेरे नाम के पन्ने को मोड़ कर
शबनम लगा दी फूल ने भवरे की गाल पे
भवरे ने रख दी गुल की कलाई मरोड़ कर
मुड़-मुड़ के जाते वक्त मुझे देख क्यों रही
जब प्यार ही नहीं तो चली जाओ छोड़ कर
उसने कही ये बात तो गम और बढ़ गया
खुश मैं भी अब नहीं हूं तेरे दिल को तोड़ कर
नफरत को इसलिए तू अखरने लगा ‘शकील’…
Added by शकील समर on October 18, 2013 at 9:00am — 20 Comments
"क्यों..भाई, क्या हुआ ? अतिवृष्टि से चौपट हुयी फसल का, मुआवजा दे रही है न राज्य-सरकार ?" रामभरोस ने बड़ी आशाभरी आवाज से पूछा.
"काकाजी..!! दे तो रही थी, पर विपक्ष के नेताओं ने, अगले महीने चुनाव आता देख, चुनाव-आयोग को शिकायत कर स्टे लगवा दिया.. अब देखो क्या होता है ", नितिन ने बड़ी निराशा से कहा.
"अरे बेटा ! सोच रहे थे, कुछ पैसे मिल जाते तो अगली फसल के लिए खाद पानी का जुगाड़ हो जाता, और दीवाली भी मना लेते...", रामभरोस ने कराहते हुए स्वर में कहा..
…
Added by जितेन्द्र पस्टारिया on October 18, 2013 at 12:30am — 25 Comments
बड़े जतन से संजोई किताबें
हार्ड बाउंड किताबें
पेपरबैक किताबें
डिमाई और क्राउन साइज़ किताबे
मोटी किताबें, पतली किताबें
क्रम से रखी नामी पत्रिकाओं के अंक
घर में उपेक्षित हो रही हैं अब...
इन किताबों को कोई पलटना नही चाहता
खोजता हूँ कसबे में पुस्तकालय की संभावनाएं
समाज के कर्णधारों को बताता हूँ
स्वस्थ समाज के निर्माण में
पुस्तकालय की भूमिका के बारे में...
कि किताबें इंसान को अलग करती हैं हैवान से
कि मेरे पास रखी इन…
Added by anwar suhail on October 17, 2013 at 9:30pm — 11 Comments
यह रचना मात्र हास्य के लिए लिखी गई है। इसका किसी भी व्यक्ति विशेष या जाति विशेष से कोई सरोकार नहीं है। कृपया इसे अन्यथा न लेकर मात्र एक हास्य के रूप में स्वीकार कर अपने आशीर्वाद से अनुग्रहित करें। सादर.....
मैडम
चौबे जी का मामला, लगता डाँवाडोल।
सिर से तो फुटबॉल है, और पेट है ढोल।।…
ContinueAdded by Sushil.Joshi on October 17, 2013 at 8:30pm — 24 Comments
Added by Ravi Prakash on October 17, 2013 at 7:50pm — 17 Comments
1212 1122 1212 22
झटक के ज़ुल्फ़ किसी ने जो ली है अंगडाई,
ये कायनात लगे है हमें कुछ अलसाई.
**
किसी से प्यार न पाया सभी ने ठुकराया,
मिली यहाँ है मुहब्बत में सिर्फ रुसवाई.
**
किये थे रब्त सभी आपने कत’आ मुझसे,
जो कामयाब हुआ तब बढ़ी शनासाई.
**
बता रहे थे मुझे, एक दिन, सभी पागल,
हुए सभी वो यहाँ लोग, आज सौदाई.
**
मुहब्बतों के सफ़र से ही लौट कर हमनें,
न करिए इश्क़ कभी, बात सबको समझाई.…
Added by Nilesh Shevgaonkar on October 17, 2013 at 3:30pm — 11 Comments
बादलों से ढँका
नीला नही काला आकाश,
उचाईयों को मापता
उन्मुक्त पंछी,
चट्टान की ओट मे
फाँसने को आतुर बहेलिया,
आहा ! इधर ही आ रहा मूर्ख
फँसेगा, ज़रूर फँसेगा,
ओह ! बच गया,
शायद भांप गया ।
पुनः पेड़ की ओट मे,
वाह ! इधर ही आ रहा दुष्ट
आएगा इस बार
इस तीर की…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 17, 2013 at 3:30pm — 33 Comments
"धत्त्तेरे की... क्या भर देते हैं ये न्यूजपेपरों के बीच में..", मैने एकबारग़ी झल्लाते हुये कहा.
कई रंग-बिरंगे पैम्फलेट मेरे अखबार से निकल कर सरसराते हुए जमीन पर गिरते गये. इन रंगीन पन्नों में बच्चे के प्रेप में एडमिशन से…
Added by Shubhranshu Pandey on October 17, 2013 at 2:37pm — 26 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 17, 2013 at 10:00am — 8 Comments
मेरे महबूब कभी मिलने मिलाने आजा !
मेरी सोई हुई तक़दीर जगाने आजा !!
तेरी आमद को समझ लूँगा मुक़द्दर अपना !
रूह बनके मेरी धड़कन मे समाने आजा !!
मैं तेरे प्यार की खुश्बू से महक जाऊगा !
गुलशने दिल को मुहब्बत से सजाने आजा !!
तेरी उम्मीद लिए बैठे हैं ज़माने से !
कर के वादा जो गये थे वो निभाने आजा !!
बिन तेरे सूना है ख़्वाबो का ख़्यालो का महल !
ऐसी वीरानगी …
ContinueAdded by SALIM RAZA REWA on October 17, 2013 at 9:30am — 16 Comments
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